मानसून की तलाश में एक यात्रा - भाग 1
शारदा माता के दरबार में - मैहर धाम यात्रा
यात्रा दिनांक - 10 जुलाई 2021
अक्सर मैंने जुलाई के महीने में बरसात को बरसते हुए देखा है किन्तु इसबार बरसात की एक बूँद भी सम्पूर्ण ब्रजभूमि दिखाई नहीं पड़ रही थी। बादल तो आते थे किन्तु हवा उन्हें कहीं और रवाना कर देती थी। काफी दिनों से समाचारों में सुन भी रहा था कि भारत के इस राज्य में मानसून आ गया है, यहाँ इतनी बारिश पड़ रही है कि सड़कें तक भर चुकीं हैं। पहाड़ी क्षेत्रों से बादल फटने तक की ख़बरें भी सामने आने लगीं थीं किन्तु ब्रज अभी भी सूखा ही पड़ा था और समस्त ब्रजवासी गर्मीं से हाल बेहाल थे। इसलिए सोचा क्यों ना हम ही मानसून को ढूढ़ने निकल पड़ते हैं। मानसून के मौसम में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से भला और कौन सी जगह उचित हो सकती थी इसलिए बघेलखण्ड और रतनपुर की यात्रा का प्लान बन गया।
महाकौशल के जनरल कोच में वेटिंग थी, फिर भी उसी में एक टिकट करा ली और यात्रा की तैयारी पूर्ण कर ली। ट्रेन के आने से दो घंटे पहले मोबाइल में सन्देश प्राप्त हुआ कि आपकी टिकट कन्फर्म नहीं हुई है मात्र दो वेटिंग ही शेष रह गई थी। ई -टिकट कन्फर्म ना होने का मतलब होता है टिकट का कैंसिल हो जाना। एकबार फिर से IRCTC की वेबसाइट पर भाग्य आजमाया तो स्लीपर में करंट में सीट उपलब्ध थी और पहले की अपेक्षा ट्रेन का किराया भी कम हो गया था। इसलिए बिना देर किये पुनः स्लीपर कोच में रिजर्वेशन किया और सीट कन्फर्म कर ली। ट्रेन के आने से आधा घंटा पहले ही मैं स्टेशन पहुँच गया और जिस कोच में मेरा रिजर्वेशन वह ठीक मेरे सामने ही आकर रुका।
मेरी सीट साइड लोअर थी, गर्मी के मौसम में यह मेरी पसंदीदा सीट होती है। मेरे नजदीक की सीटों पर मथुरा से फैमिली के कुछ सदस्य भी ट्रेन में सवार हुए जिन्होंने ट्रेन के चलते ही मातारानी को जोरदार जयकारा लगाया और मैं समझ गया कि यह लोग भी मैहर ही जा रहे हैं। अपने सही समय से ट्रेन मथुरा से रवाना हो गई और आगरा के बाद जाजौ स्टेशन पर इसे लूप लाइन में खड़ा कर दिया जहाँ दो राजधानियाँ ट्रेनें निकलने के बाद यह आगे रवाना हुई। धौलपुर के बाद मुरैना पर इसे गोवा एक्सप्रेस ने पीछे छोड़ा और दतिया पर दुरंतो एक्सप्रेस ने। झाँसी पहुँचने तक अँधेरा हो चुका था। मेरे नजदीक बैठी फैमिली में एक महिला बड़ी ही चतुर थी, वह अपने दो साल के बच्चे को लेकर ऊपर वाली सीट पर लेटी हुई थी जिसने मेरी सीट पर दोनों खिड़कियों से आती हवा को महसूस करते हुए सीट बदलने की माँग की जिसे मैंने बड़े ही प्यार से ठुकरा दिया।
सुबह सतना के आसपास मेरी आँख खुली, सतना के बाद अगला स्टेशन मैहर ही था। मैहर धाम माता शारदा मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। माता शारदा बुंदेलखंड और बघेलखण्ड की अधिष्ठात्री देवी हैं और यहाँ के लोकनायक आल्हा और ऊदल की कुलदेवी हैं। मैहर में स्थित एक त्रिकूट पर्वत पर माता का भव्य मंदिर बना हुआ है जिसके लिए 1051 खड़ी सीढ़ियां हैं जिन्हें चढ़कर माता के भक्त मंदिर तक पहुंचते हैं। इसके अलावा मंदिर तक पहुँचने के लिए यहाँ रोपवे भी बना हुआ है और मंदिर कमेटी की तरफ से वैन की सुविधा भी उपलब्ध है। पर्वत की तलहटी में ही यहाँ काफी बड़ा बाजार बना हुआ है जहाँ से पूजा की प्रत्येक सामग्री के अलावा खाना पीना और नहाने तक सुविधा उपलब्ध रहती है।
माता के मंदिर तक पहुँचने के लिए जो सीढ़ियों का मार्ग है, उसके शुरुआत में ही हाथी पर सवार लोकदेवता आल्हा के दर्शन होते हैं। आल्हा के बारे में लोक किंवदंती है कि वह महाभारतकालीन युधिष्ठर का अवतार हैं और कलयुग में अमर हैं। आज भी सर्वप्रथम माता की पूजा अर्चना आल्हा के द्वारा ही पूर्ण होती है। वह कब आकर माता की पूजा अर्चना कर जाते हैं यह किसी को भी ज्ञात नहीं है। किन्तु सुबह तड़के जब पुजारी द्वारा मंदिर के द्वार खोले जाते हैं तो माता की विधिवत पूजा अर्चना और ताजे फूल चढ़े हुए मिलते हैं। रात्रि के वक़्त इस मंदिर अथवा पर्वत पर रुकना निषेध है इसलिए सूर्य ढलने के पश्चात शाम को जब माता की आरती होती है उसके बाद पुजारी सहित सभी लोग पर्वत से नीचे आ जाते हैं और मंदिर में कोई भी शेष नहीं रहता।
मैं स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में ही नहाधोकर तैयार हो गया और मंदिर की तरफ निकल पड़ा। एक ऑटो द्वारा मैं मंदिर से कुछ दूरी पर उतरा और बाजार घुमते हुए मंदिर की ओर रवाना हुआ। सर्वप्रथम मुझे स्वामी विवेकानंद जी की प्रतिमा दिखाई दी जिसका एक फोटो लेकर मैं आगे बढ़ चला। एक दुकान पर अपना सामान रखकर और पूजा की सामग्री लेकर मैं मंदिर के सीढ़ी मार्ग पर पहुंचा। लोकदेवता आल्हा के दर्शन करने के पश्चात मैंने मंदिर के लिए चढ़ाई प्रारम्भ कर दी। मैहर धाम में यह मेरी तीसरी यात्रा थी इससे पूर्व मैं सबसे पहले यहाँ अपनी माँ के साथ आया था और दूसरी बार अपने बहनोई केसी और भाई गोपाल के साथ। आज मैं अकेला हूँ और मुझे यहाँ आकर एहसास हो रहा है कि यहाँ मुझे अपनी पत्नी को भी एकबार अवश्य लाना चाहिए था।
सीढ़ियां खड़ी चढ़ाई वाली हैं, सीढ़ियों के मध्य में और दोनों तरफ लोहे की रेलिंग लगी हुईं हैं जिन्हें पकड़कर भक्तगण आसानी से सीढ़ियों पर चढ़ और उतर सकते हैं। समस्त सीढ़ियों का मार्ग टीनशेड से ढका हुआ है जिससे धुप और बरसात से बचाव संभव है और इसके अलावा यहाँ कुछ दूरी पर पीने के लिए नल और बैठने के लिए कुर्सियों का भी इंतज़ाम है। बीच बीच में सड़क मार्ग भी दिखाई देता है जो इस पर्वत के चारों तरफ गोलाकार बना हुआ है जिसपर मंदिर तक पहुंचने के लिए वैन की सुविधा उपलब्ध रहती है। कुछ ही समय बाद मैं मंदिर तक पहुँच गया और माता शारदा के आगे प्रणाम कर अपने आप को धन्य किया।
मंदिर के पीछे काफी बड़ा यार्ड बना है जहाँ दर्शनार्थी कुछ देर रुककर पर्वत से आसपास का नजारा देखते और आनंद लेते हैं। किसी भी मंदिर में बने प्रांगण में कुछ समय बैठने के पश्चात जो सुकून प्राप्त होता है वह सुकून यात्रा के दौरान सबसे सुखदाई अनुभव देता है। यात्रा की सारी थकान पलभर में समाप्त सी हो जाती है, कुछ पल के लिए लगने लगता है जैसे अपने घर में ही बैठे हों और यह आनंद तब दुगुना हो जाता है जब वह प्रांगण माता रानी के दरबार का हो। मैं भी यहां काफी देर बैठा क्योंकि गर्मीं से हाल बेहाल था और इस पर्वत पर ठंडी शीतल हवा का आनंद प्राप्त जो हो रहा था।
नीचे जाने के लिए मैंने रोपवे का प्लान बनाया, टिकट लेने गया तो देखा यहाँ इतनी लम्बी लाइन लगी हुई थी जितनी मातारानी के दर्शनों हेतु भी नहीं लगी थी। भीड़ को देखकर मैंने सीढ़ियों से ही उतरना उचित समझा। इस पर्वत से आसपास का नजारा अति सुन्दर लग रहा था। विंध्य की फैली पर्वतमालाओं को देखकर एक अलग ही एहसास सा उत्पन्न हो रहा था तभी मेरी नजर नीचे बने एक अखाड़े की तरफ गई। यह आल्हा ऊदल का अखाड़ा है, माना जाता है कि अपने समय में वह दोनों योद्धा यहाँ पहलवानी का अभ्यास करते थे। इसी से थोड़ा सा आगे आल्हा तालाब नामक एक स्थान है जहाँ सरोवर में वही पुष्प खिलते हैं जो सर्वप्रथम पुजारी को देवी माता के समक्ष अर्पित किये हुए मिलते हैं।
काफी देर यहाँ ठहरने के बाद मैं नीचे उतर आया और अपना सामान लेकर बस स्टैंड पहुंचा और अपनी अगली यात्रा पर रवाना हो गया।
जय माता दी
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जाजौ स्टेशन पर महाकौशल एक्सप्रेस |
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चम्बल की घाटियाँ |
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मैहर रेलवे स्टेशन |
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मैहर स्टेशन पर उतरने का कारण |
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मैहर रेलवे स्टेशन |
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प्रथम प्रवेश द्वार |
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स्वामी विवेकानंद की प्रतिमा |
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मैहर बाजार |
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सीढ़ी मार्ग और आल्हा की मूर्ति |
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लोकदेवता आल्हा |
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जय माँ शारदा |
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दर्शन हेतु भक्तों की कतार |
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माँ शारदा देवी मंदिर - मैहर |
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सुकून के कुछ पल |
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जय माता की मित्रो |
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रोपवे सुविधा |
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त्रिकूट पर्वत का एक दृश्य |
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मैहर धाम |
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मंदिर प्रांगण |
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आल्हा और ऊदल का अखाड़ा |
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आल्हा तालाब |
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आल्हा ऊदल का अखाड़ा और तालाब |
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विंध्य की पहाड़ियाँ |
अगली यात्रा - भरहुत स्तूप के अवशेष
THANKS FOR YOUR VISIT
बहुत ही सुन्दर सजीव वर्णन।
ReplyDeleteजी आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
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