बिलासपुर शहर और पाली का महादेव मंदिर
मानसून की तलाश में एक यात्रा भाग - 4
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चन्द्रेह से वापस लौटने के बाद मैं ट्रेन के चलने से सही दस मिनट पहले ही रीवा स्टेशन पहुँच गया था। स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म पर ही बिलासपुर जाने वाली ट्रेन खड़ी हुई थी। मेरी अब अगली यात्रा बिलासपुर के लिए होनी थी जहाँ मुझे लाफा चैतुरगढ़ के पहाड़, ऐतिहासिक मंदिर और किला देखना था और इसके साथ ही मुझे छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रतनपुर को भी देखना था, जिसके बारे में मैंने सुना है कि यह कल्चुरी शासकों की प्राचीन राजधानी है जिसे बाद में बिलासपुर नामक शहर बसाने के बाद यहाँ स्थानांतरित कर दिया गया। रतनपुर में आज इन्हीं शासकों का पुराना किला और इनके द्वारा बनबाये गए प्राचीन मंदिर दर्शनीय हैं।
ट्रेन के कोच लगभग खाली ही पड़े थे, ठीक दस बजकर पांच मिनट पर गाड़ी को रवाना होने के सिग्नल प्राप्त हो गए और एक जोरदार सीटी देकर ट्रेन अपने गंतव्य को रवाना हो चली। रीवा से सतना के बीच यह मेरी पहली रेल यात्रा थी। रीवा एक टर्मिनल स्टेशन है जहाँ से आगे के लिए कोई रेलमार्ग नहीं है। हालांकि वर्तमान में रीवा से सीधी के लिए रेल लाइन बिछाए जाने का कार्य जोरो से चल रहा है और बीच में पड़ने वाले उस पर्वत में से रेल सुरंग बनाने का कार्य भी प्रगति पर है। बहुत ही जल्द सतना से सीधी के लिए रेलमार्ग से आवागमन की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी और चन्द्रेह मंदिर जैसी ऐतिहासिक जगहें पर्यटकों के लिए दुर्गम नहीं रहेंगी।
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सतना और रीवा का क्षेत्र सीमेंट उत्पादन में अग्रणी है, जहाँ सीमेंट बनाने के बड़े बड़े कारखाने और प्लांट मौजूद हैं जिनमें सबसे मुख्य प्रिज्म सीमेंट का कारखाना है जो ट्रेन में से मुझे दिखाई दे रहा था। मैं खिड़की के किनारे बैठा हुआ था, ठंडी ठंडी हवा अब मुझे धीरे धीरे नींद के आगोश में ले जा रही थी, क्योंकि आज के दिन मैं बहुत थक गया था। सुबह मैहर में शारदा माता के दर्शन करने के बाद भरहुत स्तूप देखा और उसके बाद सतना से चन्द्रेह मंदिर देखकर रीवा वापस लौटा। इसलिए कुल मिलाकर शरीर थकना ही था, और अब नींद आना लाजमी थी। जनरल डिब्बे की यह गद्दीदार सीट बिलकुल खाली पड़ी थी, बस इसी पर अपना बिस्तर लगाया और मैं सो गया।
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सुबह छ बजे लगभग जब मेरी आँख खुली तो देखा कि पेंड्रा रोड आने वाला है। यह एकमात्र ऐसा स्टेशन है जहाँ मैं सुबह सुबह ही पहुँचता हूँ क्योंकि कुछ माह पहले जब माँ को लेकर पुरी गया था तब भी उत्कल एक्सप्रेस यहाँ सुबह सुबह ही पहुंची थी। पेंड्रा रोड, अमरकंटक जाने के लिए सबसे नजदीकी और मुख्य रेलवे स्टेशन है क्योंकि यहाँ स्टेशन के बाहर से ही अमरकंटक जाने के लिए साधनों की उचित उपलब्धता रहती है। काफी देर पेंड्रा रोड पर रुकने के बाद ट्रेन अपने गंतव्य को रवाना हो गई। पहाड़ों और गुफाओं को पार करने के बाद अंततः यह छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग में पहुंची। पहला शहर बिलासपुर ही था, बिलासपुर में ही उसलापुर नामक एक रेलवे स्टेशन है रायपुर - कटनी रेलमार्ग पर पड़ता है, और बिलासपुर का मुख्य स्टेशन इससे थोड़ी दूर स्थित है।
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बिलासपुर स्टेशन, दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय है। स्टेशन पर समस्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं और साफ़ सफाई पर यहाँ विशेष जोर दिया जाता है जिससे यह हमेशा चमकता हुआ सा साफ़ स्वच्छ स्टेशन प्रतीत होता है। स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में मैंने अपने मोबाइल को चार्जर में लगाया और नहाने की तैयारी करने लगा। मेरे नजदीक ही एक और सज्जन आकर बैठ गए जो नहाने की जल्दी में थे, इसलिए अपने सामान की जिम्मेवारी वह मुझे सौपकर बाथरूम प्रयोग करने के लिए चले गए। मुझे मजबूरन अपना समय खपाना पड़ा। लगभग बीस मिनट बाद वह जब नहाधोकर वापस निकले तो अब मैंने उन्हें अपने सामान की जिम्मेवारी सौंपी और नहाने चला गया। जब मैं नहाने के बाद वापस लौटा तो देखा ना वहां वह सज्जन हैं और नाही उनका सामान।
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गनीमत रही कि मेरा बैग सेफ रखा था और मोबाइल तो मेरे पास ही था जो मैंने नहाने से पहले अपनी पॉकेट में रख लिया था। मानना पड़ेगा कि अनजाने शहर में आप अनजान लोगों पर पूरी तरह से विश्वास नहीं कर सकते। वह तो चला गया था, किन्तु उसके जाने के बाद कोई और मेरा सामान ले जाता तो मैं तो उसे ही कोसता रहता। पर यात्रा तो मेरा पूर्ण विश्वास बिहारी जी पर रहता है और वही मेरे सामान की और मेरी रक्षा करते हैं और मेरे मार्गों को सुगम बनाते हैं। अपना सामान रखने के बाद और तैयार होने के बाद मैं स्टेशन के बाहर निकला और यहाँ बने सेल्फी बोर्ड के पास गया जहाँ लिखा था हमर स्वच्छ बिलासपुर स्टेशन।
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मैंने गूगल पर पहले ही सर्च कर लिया था कि यहाँ बाइक रेंट पर मिल जाती हैं। शिव टाकीज चौक के समीप ही गो बाइक के नाम से रेंट वाली दुकान है। एक ऑटो द्वारा मैं यहाँ पहुंचा और बाइक रेंट की दुकान पर जाकर एक बाइक के बारे में पता किया। इस दुकान के संचालक का व्यवहार बहुत ही मैत्रतापूर्ण था और यहाँ 250/- रूपये से बाइक रेंट की शुरुआत होती है। मैंने 400 /- आठ घंटे के हिसाब से एवेंजर बाइक किराए पर ली और चल दिया बिलासपुर शहर की सड़कों को घूमने के लिए। यहाँ एक पेट्रोलपंप से 300 का पेट्रोल डलवाने के बाद मैं कोरबा स्थित पाली के लिए निकल पड़ा किन्तु इससे पहले बिलासपुर नगर के बारे में थोड़ा जान लेना आवश्यक था।
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प्राचीनकाल में आधुनिक बिलासपुर शहर, कलचुरी राजाओं के रतनपुर राज्य के अंतर्गत शामिल था, 11 वीं शताब्दी में रतनपुर के महाराज रत्नदेव द्वितीय के समय यहाँ घना जंगल था जहाँ कुछ केवट जाति परिवार रहते थे। एक किंवदंती के अनुसार एक समय जब राजा रतनदेव अपने सैनिकों के साथ यहाँ आखेट के लिए आये तो वह अपने सैनिकों से बिछड़ गए। उनके सैनिक इस केवट बस्ती में पहुंचे तो उन्हें यहाँ बिलासा नाम की एक सुन्दर यौवन कन्या को देखा और उसके साथ दुर्व्यवहार किया। सैनिकों के इस कृत्य के फलस्वरूप बिलासा ने आत्मग्लानि में अपने प्राण त्याग दिए। जब यह बात राजा रत्नदेव को पता चली तो उन्होंने दोषी सैनिकों को कठोर दंड दिया और बिलासा के सम्मान में इस थान से जंगल को कटवाकर एक सुन्दर नगर की स्थापना की। यही सुन्दर नगर वर्तमान में बिलासपुर के नाम से जाना जाता है।
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आज भी बिलासपुर के एक मुख्य चौराहे पर बिलासा की सुन्दर मूर्ति स्थापित है। बिलासा का विवरण यहाँ के लोकगीतों और देवार के गीतों में मिलता है जिसके अनुसार बिलासा को शौर्य की प्रतिमा एवं देवी स्वरूप माना गया है। उसपर हुए अत्याचार की कहानी मात्र एक मिथ्या मानी जाती है परन्तु अतीत में क्या घटा यह कोई नहीं आज सका। अतीत और इतिहास की कथाएं आज भी अनुमान पर निर्भर हैं। यहाँ पलाश के वृक्षों की भरमार होने के कारण इसे पलासपुर कहा जाने लगा और अंग्रेजों ने इसी पलास पुर को बेलास पुर कहना शुरू कर दिया और धीरे धीरे यह बिलासपुर। यहाँ आज भी पलास पत्तों से दोना पत्तल बनाने का काम चलता है। बिलासपुर शहर अरपा नदी के किनारे स्थित है।
बिलासपुर रेलवे स्टेशन के बाहर अपना एक फ़ोटो |
बाइक में पेट्रोल डलवाने के बाद मैंने अरपा नदी को पार किया और ग्रामीण रास्तों से होते हुए मैं पाली की तरफ बढ़ चला। यहाँ मानसून के कुछ अंश मुझे दिखाई दिए। शानदार रास्तों और ठन्डे मौसम के बीच मैं छत्तीसगढ़ के गाँवों से होते हुए बाइक को दौड़ा रहा था। एक स्थान पर पाली वाली सड़क पीछे रह गई और मैं गलत दिशा में रतनपुर की ओर बढ़ने लगा था। मुझे समय और पेट्रोल दोनों बचाने की चिंता थी अतः एकस्थान पर जाकर मैंने कुछ स्थानीय लोगों से पाली जाने के मार्ग को पूछा। जब उन्होंने कहा कि वह रास्ता तो पीछे ही रह गया है तो उनमें से एक व्यक्ति मेरे साथ कुछ दूर तक बाइक पर बैठकर आया और बेला जाने के मार्ग पर उतर गया और उसने कहा की यही रास्ता सीधे बेला जायेगा और बेला से पाली वाला हाईवे तुम्हें मिल जायेगा।
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कुछ ही समय बाद मैं बेला में था, कल रीवा के पास एक बेला मिला था और आज बिलासपुर में दूसरा बेला मिल गया। बेला में बिलासपुर से कोरबा और अंबिकापुर जाने वाला राष्टीय राजमार्ग मुझे मिल गया था। यह मार्ग बिलासपुर से रतनपुर होते हुए पाली, कोरबा और अंबिकापुर के लिए गया है। अब एवेंजर हाईवे पर दौड़ने लगी थी, इस हाईवे का चौड़ीकरण का कार्य तेजी से चल रहा है अतः कुछ परेशानियां उठाते हुए मैं शीघ्र ही पाली पहुँच गया। पाली, कोरबा जिले के अंतर्गत एक बड़ा क़स्बा है जहाँ से लाफ़ा चैतुरगढ़ का मार्ग अलग होता है। यहीं एक चौराहे पर प्राचीनकाल का एक शिव मंदिर स्थित है।
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कमल के फूलों से सुशोभित एक सरोवर के निकट यह ऐतिहासिक मंदिर स्थित है। यह मंदिर आठवीं शताब्दी में निर्मित हुआ माना जाता है जिसका निर्माण 870 ई. में वाण वंश के शासक विक्रमादित्य ने करवाया था। वर्तमान में यह मंदिर रायपुर मंडल के पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। इसी मंदिर के ठीक सामने एक बहुत बड़ा तालाब है जिसमें सुगंध बिखरते कमल के पुष्प प्रचुर मात्रा में लगे हुए थे। इसी मंदिर के नजदीक एक हनुमान जी का भी दिव्य सुन्दर मंदिर बना हुआ है। शाम के समय यह स्थान अत्यंत ही खूबसूरत लगता है और यहाँ के कुछ स्थानीय निवासी प्रतिदिन यहाँ आकर सरोवर के किनारे बैठकर आत्म चिंतन में लिप्त हो जाते हैं।
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पाली का यह शिवमंदिर, बिलासपुर - कोरबा राष्ट्रीय राजमार्ग पर ही स्थित है और यहाँ बस द्वारा अथवा स्वयं के वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। बिलासपुर से नियमित अंतराल पर यहाँ आने के लिए बसें मिलती रहती हैं।
बिलासपुर - कोरबा राष्ट्रीय राजमार्ग |
अरपा नदी पर एक पुल |
पाली में प्रवेश |
शिव मंदिर के प्रथम दर्शन |
हनुमान जी का मंदिर और पीछे कमल सरोवर |
मंदिर का पुरातात्विक वर्णन |
मंदिर का प्रवेश द्वार |
मंदिर के नजदीक सरोवर |
पाली का ऐतिहासिक महादेव मंदिर |
पाली का ऐतिहासिक महादेव मंदिर |
PALI SHIV TEMPLE |
कमल सरोवर |
पाली का ऐतिहासिक महादेव मंदिर |
पाली का ऐतिहासिक महादेव मंदिर |
पाली का ऐतिहासिक महादेव मंदिर |
पाली का ऐतिहासिक महादेव मंदिर |
मंदिर की दीवारों पर कलाकृतियाँ |
पाली का ऐतिहासिक महादेव मंदिर |
मंदिर का प्रवेश द्वार |
मंदिर के गर्भगृह में स्थित शिवलिंग |
अगली यात्रा - लाफा, चैतुरगढ़ की तरफ
इस यात्रा के पिछले अन्य भाग :-
- माँ शारदा के दरबार में - मैहर यात्रा 2021
- भरहुत स्तूप और उसके अवशेष
- चन्द्रेह मंदिर और भँवरसेन का पुल
- नीलकंठ महादेव - कालिंजर किला
- लक्ष्मण मंदिर - सिरपुर
- ककनमठ शिव मंदिर - सिहोनियां
- एकहत्तर सौ महादेव मंदिर - मितावली
- पढ़ावली शिव मंदिर - पढ़ावली
- बटेश्वर मंदिर समूह - मुरैना
- बैजनाथ मंदिर समूह - पपरोला
- कर्ण मंदिर - अमरकंटक
- भोजपुर शिव मंदिर - भोजपुर
- कैलाश मंदिर - एलोरा
- खजुराहो मंदिर समूह
- एहोल के ऐतिहासिक मंदिर
- पत्तडकल मंदिर समूह
- भूतनाथ मंदिर - बादामी
- अमृतेश्वर शिव मंदिर - अन्निगेरी
- त्रिकुटेश्वर शिव मंदिर - गदग
- दौड़बासप्पा शिव मंदिर - डम्बल
- लकुण्डी के ऐतिहासिक मंदिर
- महादेवी मंदिर - इत्तगि
- महामाया मंदिर - कुकनूर
- विरुपाक्ष मंदिर - हम्पी
- महिषासुर मर्दिनी मंदिर - चैतुरगढ़
- महामाया मंदिर - रतनपुर
- विष्णु वराह मंदिर - कारीतलाई
धन्यवाद
🙏
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