Thursday, April 18, 2019

BAIJNATH PAPROLA : 2019

बैजनाथ धाम और बिनबा नदी



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      पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मैं काँगड़ा से बैजनाथ पपरोला तक चलने वाली एकमात्र एक्सप्रेस ट्रेन से बैजनाथ पपरोला स्टेशन पहुँच गया। अब यह ट्रेन शाम को यहाँ से 4:30 बजे पठानकोट के लिए प्रस्थान करेगी इसलिए अभी बैजनाथ में घूमने के लिए मेरे पास पर्याप्त समय था। मैं पहले भी यहाँ 2 या 3 बार आ चुका हूँ और जब आज से 6 साल पहले मैं यहाँ आया था तब पिताजी के साथ यहाँ बहने वाली बिनवा नदी में स्नान भी करने गया था। इसलिए आज मेरा प्रथम लक्ष्य था इस नदी में स्नान करना। बैजनाथ से आगे रेलवे लाइन जोगिन्दर नगर तक जाती है और एक शानदार घुमाव साथ बिनवा नदी को पार करती है।


     मैं इसी रेलवे लाइन के साथ साथ बिनवा नदी तक पहुँचा और अपने वस्त्र उतार कर बिनवा में स्नान करने लगा परन्तु पिछली बार की अपेक्षा इस बार नदी का पानी बहुत ही ठंडा था, क्योंकि इस बार पहाड़ों में बर्फ बहुत ज्यादा ही पड़ी है और बिनवा नदी एक पहाड़ी नदी है जो उच्च हिमालयी पहाड़ों में से ग्लेशियर बनाकर बहती हुई नीचे आती है, इसकारण आज इसका पानी बर्फीला था। ज्यादा देर नदी में स्नान ना करके तुरंत दूसरे वस्त्र पहने और पैदल पैदल ही मंदिर की ओर रवाना हो गया।

    इसबार मैं बैजनाथ मंदिर, दूसरे गेट से पहुँचा जो मंदिर पहुँचने का मुख्य मार्ग था, यहाँ मंदिर के बाहर पूजापाठ का सामान खरीदने वाली दुकाने भी थीं। मैं मंदिर प्रांगण में पहुँचा और अपने आराध्य भोलेनाथ के दर्शनकर स्वयं को कृतार्थ किया। 

    यह मंदिर एक ऐतिहासिक कालीन मंदिर है इसका पौराणिक इतिहास मैं अपनी पिछली बैजनाथ यात्रा के दौरान बता चुका हूँ। आज मुझे इसका ऐतिहासिक महत्व जानना था, इसलिए इसबार मंदिर को मैंने चारों तरफ से ध्यान से देखा। हालाँकि यह पुरातत्व विभाग के अधीन है इसलिए यहाँ का संरक्षण काफी अच्छे प्रकार से किया गया है।

    कहते हैं इस मंदिर का निर्माण सन 1204 ई. में आहुका और मन्युका नामक दो व्यापारियों ने कराया था, मंदिर का निर्माण होने पूर्व भी यहाँ एक शिव मंदिर होने का पूर्ण अनुमान है यह मंदिर पांडवो द्वारा स्थापित कहलाता है। उसी मंदिर की जीर्णशीर्ण अवस्था को आहुक और मन्युका ने एक नए मंदिर का रूप दिया। यह आज भी उसी स्थिति में दर्शनों के लिए विधमान है।

    ऐसे प्राचीन मंदिरों को संरक्षण की बहुत आवश्यकता होती है क्योंकि यह मंदिर ही हमारे धर्म और देश की धरोहर होने के साथ साथ प्राचीन पहचान भी हैं। भगवान शिव को बैजनाथ नाम से भी जाना जाता है, इसलिए इस नाम से देश में और भी अन्य स्थानों पर प्राचीन शिव मंदिरों का निर्माण हुआ है। यह हिमाचल के बैजनाथ हैं और अब वर्तमान में भी हिमाचल प्रदेश की मुख्य पहचान बने हुए हैं।  

      मंदिर के दर्शन कर मैं सीधे रेलवे स्टेशन पहुँचा,  शाम का समय हो चला था और मुझे घर ( कांगड़ा मंदिर ) भी पहुँचना था क्योंकि आज मैं पहली बार इस क्षेत्र में बिना परिवार और पत्नी के आया था।  माँ के रूप में साक्षात् देवी माँ मेरे लौटने की प्रतीक्षा कर रही थीं। एक्सप्रेस पठानकोट जाने के लिए स्टेशन पर तैयार खड़ी हुई थी। मैंने काँगड़ा स्टेशन की एक टिकट ली और ट्रेन में अपना स्थान ग्रहण किया। लगभग  दो घंटे की यात्रा के बाद में काँगड़ा पहुँच गया।    

बिनबा नदी और सामने पहाड़ पर बैजनाथ मंदिर 


बिनबा नदी 

बिनबा नदी 

बिनबा नदी - भयंकर ठंडा बर्फीला पानी 

बैजनाथ मंदिर के बाहर बाजार 

बैजनाथ मंदिर प्रवेश द्धार 

बैजनाथ मंदिर 


खीरगंगा नदी 

एक चेतावनी 

खीरगंगा घाट, बैजनाथ धाम 

बैजनाथ धाम 

बैजनाथ धाम 

बैजनाथ धाम

कृष्ण मंदिर, बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ के आसपास अन्य प्राचीन शिव मंदिर 

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम



बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम


बैजनाथ धाम

बैजनाथ धाम



बैजनाथ पपरोला रेलवे स्टेशन 

बैजनाथ पपरोला रेलवे स्टेशन 


बैजनाथ पपरोला रेलवे स्टेशन 


बैजनाथ पपरोला रेलवे स्टेशन 


बैजनाथ पपरोला रेलवे स्टेशन 

अगली यात्रा :- नगरकोट धाम में एक रात 

धन्यवाद 

 यात्रा के अन्य भाग :-




  

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