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बैजनाथ धाम में इस बार
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जोगिन्दर नगर से हम बैजनाथ की ओर रवाना हुए, जोगिन्दर नगर की ओर आते वक़्त जो उत्साह हमारे अन्दर था अब वो सुस्ती में बदल चल गया, ट्रेन खाली पड़ी हुई थी सभी बैठने वाली सीटों पर लेट कर आ रहे थे, समय भी दोपहर का था और यहाँ गर्मी का तापमान अपने चरमोत्कर्ष पर था। इसीलिए कुमार भी सो गया, परन्तु मुझे ट्रेन में नींद बहुत ही कम आती है, मैं अब यहाँ से हमारी यात्रा लौटने की शुरू हो चुकी थी, और मैं लौटते हुए हिमालय की इन घनी वादियों को बाय बाय कह रहा था ।
कुछ ही देर बाद बैजनाथ पपरोला स्टेशन आ गया, मैं नहाने जाना चाहता था, मैंने सभी की राय ली कुमार और पिताजी मेरे साथ चलने के लिए राज़ी हो गए, बाबा ने मना कर दिया। मैं, कुमार और पिता जी रेलवे लाइन के किनारे किनारे नदी तक पहुंचे, यहाँ नदी का जल बहुत ही शांत था, नदी का यह दृश्य वाकई लाजबाब था । मैं नदी से नहाकर स्टेशन पहुंचा और यहाँ माँ के पास सामान रखकर हम बैजनाथ जी मंदिर की तरफ बढ़ चले , पपरोला से कई अनगिनत बसें मंदिर के पास स्थित बस स्टैंड जाती है ।
हम बस स्टैंड पहुंचे, यहाँ पिताजी को धुप की वजह से चक्कर से आ गए सो मैं पिताजी को नीम्बू पानी पिलाने ले गया, दुकानदार एक सोडे की बोतल में नीबू निचोड़कर शिकंजी बना रहा था, कीमत थी पंद्रह रुपये। मुझे छोड़कर सभी ने एक एक गिलास नींबू पानी पिया, बस स्टैंड के ठीक सामने ही बैजनाथ जी मंदिर है, बैजनाथ जी के मंदिर में स्थित शिवलिंग रावण द्वारा स्थापित माना जाता है जब रावण ने शिव जी से लंका चलकर रहने के लिए आग्रह किया। अब शिवजी ठहरे पहाड़ों और बर्फों में रहने वाले , भला उन्हें सोने की लंका से क्या लगाव ,इसलिए शिवजी ने रावण को एक शिवलिंग देते हुए कहा कि तुम मेरे इस स्वरूप को धरती पर जहाँ कहीं भी रख दोगे यह शिवलिंग हमेशा के लिए वहीँ स्थापित हो जायेगा ।
रावण अपने पुष्पक विमान में शिवलिंग को लेकर लंका की तरफ जा रहा था, जब वह हिमालय की इन वादियों से गुजरा तो उसे लघुशंका ( टॉयलेट ) का आभास हुआ, इसकारण उसने अपने विमान को इस पर्वत पर उतारा और यहाँ बकरियां चरा रहे एक गड़रिये के हाथ में शिवलिंग देकर कहा जब तक मैं वापस न आ जाऊं, इसे ऐसे ही पकडे रहना, गड़रिया शिवलिंग का बोझ अत्यधिक समय तक न उठा सका और धरती पर रखकर भाग गया, रावण ने वापस आकर देखा तो शिवलिंग स्थापित हो चुका था, उसने बहुत प्रयास किया इस शिवलिंग को उठाने का किन्तु असफल रहा, और आज भी यह शिवलिंग ऐसे ही यहां पर स्थापित है ।
( जानकारी दन्त कथाओं पर आधारित है )
यहाँ कोई ज्यादा भीडभाड नहीं थी, आराम से शिवलिंग के दर्शन हो गए, मैं रावण के द्वारा स्थापित इस शिवलिंग के साथ साथ राम द्वारा स्थापित शिवलिंग के भी दर्शन कर चुका हूँ, जब मैं रामेश्वरम गया था।यह शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंग में शामिल नहीं है किन्तु इसका पौराणिक महत्व अवश्य है, बैजनाथ जी के मंदिर के ठीक सामने है एक नंदी जी की मूर्ति जिसमे भक्तों की मान्यता है कि इनके कान में कही हुई बात जल्द ही पूरी हो जाती है। सो मैंने भी कुछ भक्तों को उनके कान में कुछ कहते हुए देखा, उनके देखा देखी बाबा भी नंदी जी के कान में कुछ कहने लगे, पता नहीं क्या?
मंदिर से दर्शन करने के बाद हम लोग वापस स्टेशन की तरफ निकल लिए, रास्ते में मैंने बीस रुपये के नींबू ले लिए, खुद ही शिकंजी बनाने के लिए और एक स्टेशनरी की दुकान से पेन्सिल छीलने का चाक़ू भी ले लिया। स्टेशन पर आकर दो गिलास शिकंजी बनाई और पी गया और एक गिलास माँ ने भी पी लिया। यहाँ मेरी चप्पल उखड गई जिन्हें चेन्नल कराने के लिए मैं फिर से पपरोला के बाजार में आया और साथ में बाबा भी थे, बाबा को अपने साथ आते देख मुझे एक अजीब सी ख़ुशी हुई ।
BAIJNATH PAPROLA RAILWAY STATION |
BAIJNATH PAPROLA RAILWAY STATION |
BAIJNATH PAPROLA RAILWAY STATION |
BAIJNATH PAPROLA RAILWAY STATION |
बैजनाथ मंदिर स्टेशन, यहां से मंदिर पैदल मार्ग द्वारा एक किमी है |
बैजनाथ नदी से गुजरती ट्रेन |
नदी में मेरे पिताजी |
और हम भी |
बैजनाथ मंदिर |
नन्दी के कान में फुसफुसाते बाबा |
मंदिर में एक खुबसूरत बगीचा भी है |
बैजनाथ मंदिर प्रवेश करते समय |
बैजनाथ पपरोला टिकट घर |
यात्रा का अगला भाग - नगरकोट धाम 2013
काँगड़ा यात्रा 2013 के अन्य भाग :-
- काँगड़ा यात्रा - 2013
- पठानकोट की तरफ
- काँगड़ा वैली पैसेंजर ट्रेन यात्रा
- चामुंडा के मंदिर में
- जोगिन्दर नगर की ओर
- मैक्लोड़गंज
- काँगड़ा फोर्ट
- टेड़ा मंदिर
- ज्वालादेवी धाम
- छिन्नमस्तिका धाम
- होशियारपुर रेलवे स्टेशन
- अमृतसर - एक ऐतिहासिक शहर
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very nice Sudhir Upadhyay .
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