हिमानी चामुण्डा की खोज में
यात्रा दिनांक - 19 अप्रैल 2019
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आज की सुबह मेरा यात्रा लक्ष्य हिमानी चामुंडा की ओर था, सुबह सुबह माँ बज्रेश्वरी देवी को प्रणाम करके मैं बाहर रोड पर आ गया और चामुंडा जाने वाली बस का इंतज़ार करने लगा, जब काफी देर तक कोई बस नहीं आई तो मैंने एक बस वाले से चामुंडा जाने वाली बस के बारे में पूछा तो उसने बस स्टैंड की तरफ इशारा करते हुए कहा कि चामुंडा जाने वाली बस तुम्हें वहाँ से मिलेगी, जबकि पिछली बार मैं यहाँ आया था तो हम सभी यहीं से बस में बैठकर चामुंडा गए थे। खैर मैं बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा और जल्द ही मुझे चामुंडा जाने वाली बस मिल गई।
चामुंडा मंदिर के नजदीक पहुंचकर मैं ऊपर ही चौराहे पर उतर गया जहां से एक रास्ता हिमानी चामुंडा की तरफ जाता है। मैं एक बेसमेंट की खाली छत पर आकर खड़ा हो गया जहाँ से मुझे नीचे चामुंडा देवी का भव्य मंदिर और उनका प्रांगण स्पष्ट दिखाई दे रहा था और मंदिर के पीछे सफ़ेद बर्फ की चादर ओढ़े धौलाधार श्रेणी के ऊँचे ऊँचे पहाड़, जिन्हे देखकर मन अत्यंत ही प्रशन्न था और चाहकर भी नजर हटने का नाम नहीं ले रही थी।
मेरे बराबर में ठुक ठुक की आवाज सी आ रही थी, मैंने मुड़कर देखा तो एक बाबा कनस्तर बना रहे थे और मैं उस छत पर खड़े होकर ठंडी हवा और काँगड़ा की वादियों का आनंद ले रहा था।
कनस्तर बना रहे बाबा से जब मैंने हिमानी चामुंडा जाने का मार्ग पूछा तो उन्होंने सामने बाईं तरफ दिख रहे पहाड़ की तरफ इशारा करते हुए कहा कि उस पहाड़ के दूसरी तरफ दो तीन किमी दूर हिमानी चामुंडा है। तुम पहली बार आये हो और अकेले हो इसलिए रास्ता भटक सकते हो इसलिए बेहतर होगा की तुम अगली बार अपने दोस्तों को लेकर आओ तभी वहां जाना बेहतर होगा। काफी बर्फ जमा है रास्ते में, मैंने बिना देर किये बाबा की बात मान ली और नीचे वाली चामुंडा माता के दर्शन हेतु चल दिया।
एक सीढ़ीदार रास्ते से उतारकर मैं नीचे बह रही नदी तक पहुंचा और सबसे पहले स्नान करने लगा। मैं जब भी चामुंडा आया हूँ इस नदी में स्नान करके ही आगे बढ़ा हूँ, आज इस नदी का पानी अत्यंत ही ठंडा था। ज्यादा देर नदी में सनान ना करके मैं सीधे माता के भवन पहुँचा। पिछली साल की अपेक्षा इस बार यहाँ बहुत कुछ बदल चुका है, अब वो तीन शेड वाला बरामदा यहाँ नहीं रहा। माता का मंदिर पहले की तरह ही था। इस बार मैं नंदेश्वर महादेव के दर्शन करके नदी पार दूसरे मंदिर में भी गया जो की मंदिर के रूप में एक आश्रम था।
हिमानी चामुंडा फिर जाने का सपना लिए मैं चामुंडा जी से निकल लिया और एक प्राइवेट बस द्वारा नगरोटा बस स्टैंड पहुँच गया। अभी शाम तक मेरे पास पर्याप्त समय था इसलिए मैं यहाँ और भी कुछ देखना चाहता था इसलिए पहले मैं यहाँ से कागंड़ा जाने वाली बस में बैठा। हालांकि मैंने इस क्षेत्र में सपरिवार यात्रा पिछले वर्ष ही की थी इसलिए आज अकेले होने की वजह से वे सब मुझे बार बार याद आ रहे थे जिनमे मेरी माँ, मेरी पत्नी मेरे मामा और मेरा दोस्त कुमार था।
चामुंडा माँ की तरफ |
चामुंडा देवी का एक दृश्य |
मैं और धौलाधार श्रेणी |
सुधीर उपाध्याय |
मेरे बाईं तरफ दिख रहे पहाड़ के उसपार ही चामुंडा माता का मंदिर है। |
वाणगंगा का एक दृश्य |
चामुंडा द्वार |
जय माँ चामुंडा |
जय चामुंडा जी |
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