यात्रा दिनांक - 31 मार्च 2018
पूर्णिमा पर गंगा स्नान - कछला ब्रिज
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कछला ब्रिज - मीटरगेज का स्टेशन |
चूँकि आज पूर्णिमा थी और मुझे मेरे घर के लिए गंगाजल की आवश्यकता भी थी इसलिए शनिवार की छुट्टी भी थी तो चल दिया आज गंगा स्नानं करने कछला की ओर। आज मेरी कमलेश बुआजी भी अपने गांव अमोखरि जा रही थी तो दोनों चल दिए सुबह सबेरे पांच बजे मथुरा स्टेशन की ओर। स्टेशन पर बाइक खड़ी कर सीधे ट्रेन की तरफ पहुंचे। आगरा कैंट - कोलकाता एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म पर खड़ी हुई थी और चलने ही वाली थी, सही वक़्त पर पहुंचकर हमने ट्रेन में सीट में जगह पा ली। यह वही ट्रेन है जिससे मैं कुछ महीनों पहले बिहार की यात्रा पर गया था, आज इस ट्रेन में यात्रा का मेरा दूसरा मौका था। ट्रेन मथुरा से चलकर सीधे हाथरस सिटी रुकी, बुआजी यहीं उतर गई, अब आगे की यात्रा मुझे अकेले ही करनी थी।
कुछ देर बाद मैं कासगंज पहुँच गया, ट्रेन के प्लेटफॉर्म पर पहुँचने से पहले ही मैं उतर गया और पुरानी मीटरगेज की लाइन पर चलते हुए मथुरा बरेली रोड तक पहुंचा। पहले मीटरगेज की लाइन पर ट्रेन मथुरा से बरेली जाते समय कासगंज से वापस मथुरा की दिशा में जाया करती थी किन्तु ब्रॉड गेज बनने के बाद अब यह सीधे ही जाती है। इसलिए रेलवे ने मीटरगेज की सभी लाइन समाप्त करदी परन्तु जब इस दिशा की कोई जरुरत ही नहीं थी तो इस लाइन अभी तक नहीं उखाड़ा गया है। इस लाइन पर चलते वक़्त मुझे अपने बचपन के दिन याद आ रहे थे मैंने अपने मातापिता के साथ इस रेल लाइन पर कुमाँयू एक्सप्रेस और गोकुल एक्सप्रेस में बरेली तक यात्रा की है। पिछले कुछ वर्ष पहले ही मैंने अकेले इस रेल लाइन पर रुहेलखंड एक्सप्रेस से भी एक सफर किया था। आज इस लाइन पर कोई ट्रेन नहीं चलती और नाही चलेगी बस यही सोच सोच कर मन दुखी सा होने लगा।
सड़क पर पहुंचकर मैंने एक टिर्री वाले से बस स्टैंड चलने को कहा, कुछ ही देर में मैं बस स्टैंड पहुँच गया , काफी मात्रा में लोग बरेली और बदांयू जाने के लिए बस के इंतज़ार में खड़े थे। काफी देर पश्चात् एक पीलीभीत डिपो की बस आई और सभी उसी मैं सवार हो लिए। मैंने तेतीस रूपये का एक कछला घाट तक का टिकट ले लिया। सोरों से होते हुए बस ने मुझे कछला ब्रिज पर उतार दिया, पैदल चलते हुए मैं ब्रिज के दूसरी तरफ पहुंचा, आज पूर्णिमा थी इसलिए यहाँ गंगाजी के किनारे दोनों तरफ काफी भीड़ थी। मुझे वापस ट्रैन से ही आना था और स्टेशन गंगा के दूसरी तरफ था इसलिए मैं ब्रिज पार करके स्टेशन की तरफ वाले घाटों पर पहुंचा। यहाँ से एक नाव द्वारा मैं गंगाजी में बने बीच टापू पर पहुंचा और इत्मीनान से गंगा स्नान का लुफ्त उठाया। काफी देर बाद जब याद आया कि ट्रेन के आने का समय नजदीक है तो एक बोतल में गंगाजल भरकर नाव द्वारा वापस घाट तक पहुंचा।
मैं एक नाव से टापू तक गया था और दूसरी से वापस आया और दोनों नाव वालों को वापस आकर अलग अलग दस दस रुपये दिए जबकि मैंने पहले ही आना जाना दस रुपये में तय कर रखा था। मैं किसी भी सूरत मैं ट्रेन को निकालना नहीं चाहता था क्योंकि मैं जानता था कि यही वो ट्रेन है जो मुझे सीधे मथुरा तक लेकर जाएगी। मैं स्टेशन पहुंचा, यह काफी रमणीक स्टेशन है, जब यहाँ मीटरगेज की लाइन थी तब गंगाजी पर एक ही ब्रिज बना था जिसपर होकर ट्रेन भी गुजरती थी और सड़क यातायात भी। परन्तु अब यहाँ सड़क का पुल अलग बना हुआ है और रेलवे का अलग। मीटरगेज वाले पुल के अब पिलर ही शेष बचे हैं जो आज भी गंगा के बीचोंबीच मजबूती के साथ खड़े हैं। स्टेशन के पास खिलौनों की दुकाने लगी हुईं थीं, मैंने भी कुछ खिलौने खरीद लिए जिसमे डमरू और एक दो डिब्बों की ट्रैन मैंने खरीदी।
कुछ प्रसाद लेकर मैं प्लेटफॉर्म पर पहुंचा और एक छोले वाले को देखकर मुझे अपना बचपन फिर से याद आ गया। ऐसे ही छोले वाले मेरे गांव के स्टेशन यानी हाथरस जंक्शन या हाथरस रोड पर हुआ करते थे और मैं इनसे छोले खाने के लिए अपने मम्मी पापा से जिद किया करता था और मेरे पापा मुझे बड़े चाव से छोले खिला दिया करते थे। हाथरस जंक्शन बड़ी लाइन का दिल्ली - हावड़ा रेलमार्ग पर मुख्य स्टेशन है और हाथरस रोड उस समय छोटी लाइन का मथुरा - बरेली लाइन का मुख्य स्टेशन था, तब यहाँ मीटरगेज की दो पटरियां हुआ करती थी और दोनों तरफ प्लेटफार्म भी बने हुए थे। अधिकतर मीटरगेज गाड़ियों का क्रॉस यहीं होता था। मुझे आज भी याद है जब गोकुल एक्सप्रेस सुबह दस बजे यहाँ बरेली से आती थी तो आगरा फोर्ट से कासगंज जाने वाली पैसेंजर से यहीं क्रॉस करती थी और रात को तो दोनों तरफ की कुमाँयू एक्सप्रेस का क्रॉस यहीं होता था। मेरे दादाजी इसी स्टेशन पर रेलवे में नौकरी किया करते थे। वाकई वो समय बहुत ही अच्छा और ना भूलपाने वाला है, ब्रॉड गेज बनने के बाद हाथरस रोड स्टेशन की चमक और इसकी महत्वता समाप्त सी हो गई।
कुछ समय बाद ट्रेन कछला ब्रिज पर आई और मैं इसमें सवार हो लिया। यह पैसेंजर ट्रैन है जो ढाई बजे मथुरा जंक्शन स्टेशन पहुंचकर खड़ी हो जाती है। पता नहीं क्यों रेलवे इसे आगे आगरा कैंट या आगरा फोर्ट तक नहीं भेजती, अगर यह आगरा कैंट तक जाती भी है तो रेलवे को कुछ न कुछ मुनाफा ही होगा, साथ प्लेटफॉर्म भी खली ही रहेगा और यह जाने के समय यानी रात नौ बजे तक वापस भी आ सकती है।
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मेरी बुआजी - कमलेश रावत |
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कासगंज में बना मीटरगेज का एक पुल |
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बरेली जाने वाली मीटरगेज की लाइन |
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मेरी यादें इस रेलवे लाइन के साथ |
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कभी किसी ज़माने में मैंने इस रेल लाइन पर यात्रा की थी। |
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गंगा प्रथम दर्शन |
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कछला ब्रिज - सड़क मार्ग |
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कछला घाट |
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गंगा स्नान - पूर्णिमा मेला |
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नाव द्वारा टापू पर जाते हुए |
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कछला घाट |
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पूर्णिमा पर गंगा स्नान |
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