महासमुंद की ओर
पिछली बार जब
छत्तीसगढ़ की यात्रा पर दुर्ग गया था तो मेरे पिताजी मेरे साथ थे। यह मेरे साथ मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा थी। इस यात्रा से लौटने के तीन माह बाद ही पिताजी मुझे इस संसार में हमेशा के लिए अकेला छोड़ गए। पिताजी तो नहीं रहे पर उनकी यादें हमेशा मेरे साथ रहती हैं। अब तीन साल हो चुके हैं और मुझे छत्तीसगढ़ फिर से बुला रहा था। यात्रा करने के लिए मुझे सबसे ज्यादा परेशानी ऑफिस से छुट्टी लेने में आती है। आसानी से नहीं मिलती, प्राइवेट नौकरी है इसलिए कोई उपाय सोचना पड़ता है।
इस बार होली की छुट्टियां हाथ लगी तो समता एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करा दिया। सोचा था रायपुर से धमतरी तक चलने वाली नेरी गेज की ट्रैन में यात्रा करूँगा। ऑफिस में साथ के लोगो को पता चला कि मैं इसबार छत्तीसगढ़ घूमने जा रहा हूँ तो मेरे साथ काम करने वाली निधि और आकाश भी चलने के लिए राजी हो गए। आकाश ने भी रिजर्वेशन करवा लिया और सतेंद्र का मैंने कर दिया।
यात्रा की तारीख निश्चित हुई दो मार्च, जिस दिन धुल की होली थी। अब त्योहारों की छुट्टियां यात्राओं में ही काम आती थी, त्यौहार तो अब पहले जैसे रहे नहीं। अब जमाना बदल गया है अब किसी को किसी से मतलब नहीं रह गया है। इसलिए मुझे त्योहारों पर उन्हें मनाने से ज्यादा यात्रा करने में आनंद आता है। लोग होली खेलने और देखने दूर दूर से ब्रज में आते हैं और हम ब्रज से जाने के लिए तैयार थे।
आख़िरकार यात्रा का दिन आया, सुबह दस बजे ट्रेन का समय था। निधि और आकाश सुबह सात बजे ही स्टेशन पहुँच गए थे। सतेंद्र का गाँव मथुरा से थोड़ा दूर पड़ता है और आज धुल की होली भी है इसलिए वो स्टेशन तक नहीं पहुँच सका। मैंने भी अपना बैग लगाया और माँ को प्रणाम कर मैं भी स्टेशन की तरफ निकल लिया। मेरे छोटे मामा जी का लड़का और मेरा भाई पुष्पेंद्र मेरी बाइक से मुझे स्टेशन तक छोड़ गया।
स्टेशन पर जाकर मुझे आकाश और निधि बैठे मिले। मैंने सतेंद्र को फोन लगाया परन्तु वो अपने गांव से नहीं निकल सका, इसप्रकार उसकी यात्रा की टिकट बेकार हो गई। इंटरनेट की टिकट थी वो भी वेटिंग की थी, एन वक़्त पर कन्फर्म हो गई और कन्फर्म टिकिट कैंसिल करना रेलवे के नियमो के विरुद्ध था मतलब कैंसिल नहीं हुई और एक टिकट के पैसे बेकार हो गए। निर्धारित समय पर समता एक्सप्रेस भी आ गई। हम अपनी अपनी सीटों पर पहुंचे, आज ट्रैन लगभग खाली ही पड़ी थी।
हमारे बराबर में एक सज्जन अपने परिवार सहित रायपुर जा रहे थे, लिम्का की बोतल में वोडका पी रहे थे, स्माइल से ही पता चल रहा था उन्होंने हमसे कहा छत्तीसगढ़ में घूमने को कुछ भी नहीं है, विशाखापट्टनम चले जाइये अच्छी जगह है लेकिन जब मैंने उन्हें छत्तीसगढ़ के उन स्थानों की जानकारी कराइ जो हमारी इस ट्रिप की लिस्ट में थे तो उन्हें एहसास हुआ की हाँ वाकई छत्तीसगढ़ में भी बहुत कुछ है।
खैर हम आगरा कैंट स्टेशन पहुंचे, यह वो स्थान है जहाँ मैं बचपन से लेकर अबतक रहा हूँ, मेरे पिताजी यहीं इसी स्टेशन पर नौकरी किया करते थे और यह स्टेशन मेरे लिए मेरे घर से कम नहीं था। यहाँ मेरा दोस्त कुमार भाटिया भी मुझसे मिलने आया और हमने आपस में एक दुसरे को रंग लगाकर होली सेलिब्रेट की। कुमार भी इसी स्टेशन पर रेलवे में नौकरी करता है। थोड़ी देर बाद धौलपुर स्टेशन पर रूककर ट्रैन चल दी और स्टेशन निकलने के बाद चम्बल की घाटियां शुरू हो चुकी थीं ।
चम्बल नदी के निकलने के साथ ही राजस्थान की सीमा भी समाप्त हो चुकी थी और इसके साथ ही मध्य प्रदेश शुरू हो चुका था। मुरैना पर ट्रेन का ठहराव नहीं था इसलिए रुकी भी नहीं और अगला स्टॉप हमने ग्वालियर पहुंचकर ही लिया। ग्वालियर के बाद दतिया निकलते ही फिर से उत्तर प्रदेश की सीमा शुरू हो जाती है और हम झाँसी पहुँच जाते हैं। झाँसी के बाद ललितपुर उत्तर प्रदेश का आखिरी शहर है इसके बाद मध्य प्रदेश फिर से शुरू हो जाता है और अंततः हम मध्य प्रदेश के राजधानी भोपाल पहुंचते हैं।
भोपाल के बाद रात हो गई, और रात को जब मेरी आँख खुली तो देखा रात के दो बजे हैं और ट्रेन नागपुर स्टेशन पर खड़ी है। नागपुर से निकलते ही मैं अपनी सीट पर जाकर सो गया और सुबह जब उठा तो तो मेरी आँख सीधे दुर्ग में ही खुली। मैं छत्तीसगढ़ पहुँच गया हूँ और थोड़ी देर बाद हम छत्तिसगथ की राजधानी रायपुर में थे। यह एक जंक्शन रेलवे स्टेशन है जहाँ से पहले एक नेरोगेज लाइन अभनपुर होते हुए धमतरी और राजिम के लिए जाती थी और दूसरी महासमुंद होते हुए उड़ीशा की तरफ जाती है जिसपर अभी हम सफर कर रहे हैं।
रायपुर के निकलते ही महासमुंद जिला शुरू हो जाता है। रास्ते में महानदी भी पार करनी पड़ती है, महानदी देखने का यह मेरा पहला चांस है। महानदी पार करते ही महासमुंद स्टेशन आया और हमारी समता एक्सप्रेस की यात्रा यहाँ पूर्ण हो गई।
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मैं आकाश और निधि मथुरा जंक्शन स्टेशन पर होली के दिन |
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मैं कुमार और आकाश आगरा कैंट स्टेशन पर होली के दिन |
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मैं धौलपुर स्टेशन पर |
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चम्बल नदी |
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रास्ते का एक दृश्य |
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बेतवा नदी |
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बेतवा नदी |
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रास्ते में एक नहर |
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नागपुर |
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नागपुर जंक्शन रात दो बजे |
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आरंग मंदिरों का शहर कहलाता है। |
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महानदी |
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महानदी |
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महासमुंद और आकाश |
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मैं और आकाश महासमुंद रेलवे स्टेशन पर |
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महासमुंद रेलवे स्टेशन |
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महासमुंद रेलवे स्टेशन |
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सुधीर उपाध्याय और महासमुंद रेलवे स्टेशन |
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महासमुंद रेलवे स्टेशन |
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स्टेशन के सामने एक दुकान से कुछ सामान लेता आकाश |
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महासमुंद रेलवे कॉलोनी |
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महासमुंद रेलवे स्टेशन |
अगली यात्रा -
लक्ष्मण मंदिर, सिरपुर।
छत्तीसगढ़ में मेरी अन्य यात्रायें।
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