शहीदी मेला - भगत सिंह जी की समाधि पर
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भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जी का समाधी स्थल |
मैंने सुना था कि पंजाब में एक ऐसी भी जगह है जहाँ साल में केवल एक ही बार ट्रेन चलती है और वो है फ़िरोज़पुर से हुसैनीवाला का रेल रूट। जिसपर केवल वैशाखी वाले दिन ही ट्रेन चलती है, जब मैंने इसके बारे में विस्तार से जानकारी की तो पता चला कि यहाँ साल में एक बार नहीं दो बार ट्रेन चलती है, वैसाखी के अलावा शहीदी दिवस यानी २३ मार्च को भी। इसलिए इसबार मेरा प्लान भी बन गया शहीदी दिवस पर भगत सिंह जी की समाधी देखना और साल में दो बार चलने वाली इस ट्रेन में रेल यात्रा करना। मैंने मथुरा से फ़िरोज़पुर तक पंजाब मेल में रिजर्वेशन भी करवा दिया। अब इंतज़ार था तो बस यात्रा की तारीख का। और आखिर वो समय भी भी आ गया।
शाम को ऑफिस से लौटकर शीघ्रता से तैयार हुआ और मोबाइल में पंजाब मेल की लोकेशन चेक की, अभी आगरा कैंट से ही निकली थी, इसका मतलब था कि मेरे पास स्टेशन पहुँचने तक केवल चालीस मिनट का समय था, घर से तैयार होकर बाइक उठाई और सीधे स्टेशन। थोड़ी देर में पंजाब मेल भी आ गई। एक आम यात्री की तरह मैं अपने कोच एस 4 में पहुंचा, मेरी सीट 4 नंबर ही थी जो लोअर बर्थ थी। यहाँ पहले से ही एक सज्जन अपना साम्राज्य फैलाये बैठे हुए थे, जैसे ही खाली से जगह देखकर में बैठने लगा, तो उन्होंने मुझे यहाँ ना बैठने का इशारा किया। मैंने पुछा क्या यहाँ कोई बैठा है, उसने कहा हां, खाली नहीं है आगे देखिये। मुझे एक तरफ तो हँसी भी आई और दुसरे ही पल गुस्सा, उसने मुझे आम यात्री ही समझा था जो जनरल की टिकट लेकर स्लीपर में यात्रा करते है।
मेरी सीट पर उस आदमी ने अपना बैग रखा हुआ था, जिसे हटाते हुए मैंने उससे कहा भाईसाहब किसी और की किसी भी चीज़ पर अपना हक़ जताना बहुत ही बुरी आदत होती है जल्दी ही बदल डालो वर्ना एक दिन पछताना पड़ेगा। मुझे जबरदस्ती बैठे देख उसने एक पल में कहा क्या ये आपकी सीट है, मैंने कहा बिलकुल। बराबर में बैठा एक सहयात्री हम दोनों की वार्तालाप को देखकर हंस पड़ा। और वो सज्जन दिल्ली तक बिना कुछ कहे, एक शर्मीली छवि लिए चुपचाप बैठे हुए आये। क्या मिल गया उसे दूसरी सीटों पर भी अपना कब्ज़ा करने से।
खैर, दिल्ली से निकलते ही मैं अपनी सीट पर सो गया और सुबह कोटकपूरा स्टेशन पर मेरी आँख खुली। पंजाब की खुशबू आना शुरू हो गई थी, चारों तरफ गेंहूँ के लहलहाते खेत देखकर मन रोमांचित हो उठता है। फरीदकोट होते हुए ट्रेन फ़िरोज़पुर पहुँची। पंजाब का आखिरी और शांत शहर, एकदम अकेला। पहली बार फ़िरोज़पुर को देखकर मन में सवाल उठा आखिर पंजाब मेल जैसे शानदार गाडी मुंबई जैसे बड़े शहर से चलकर फ़िरोज़पुर ही क्यों आती है यह अमृतसर भी जा सकती थी, चंडीगढ़ भी जा सकती थी या फिर जम्मू भी जा सकती थी फिर ऐसा क्या था कि ये पंजाब मेल फ़िरोज़पुर जैसे एक छोटे शहर तक ही अपनी सेवा देती है ?
जल्द ही इसका उत्तर मुझे मिल गया, परन्तु आगे बताऊंगा। स्टेशन से बाहर निकलकर देखा तो नेरोगेज का एक छोटा इंजन भी यहाँ खड़ा हुआ था। फ़िरोज़पुर, उत्तर रेलवे का एक मुख्य मंडल है रेलवे स्टेशन काफी शानदार है, यहाँ बने वेटिंग रूम में नहा धोकर में रेडी हो गया और पूछताछ केंद्र पर जाकर पता किया कि हुसैनीवाला के लिए ट्रेन कितने बजे जाएगी, जवाब मिला साढ़े नौ बजे। यह एक DMU ट्रेन है। जो जालंधर से अभी आएगी। मैंने हुसैनीवाला की एक टिकट ली और ट्रेन में बैठ गया। फ़िरोज़पुर छावनी से चलकर यह फ़िरोज़पुर सिटी स्टेशन पहुंची, यह एक छोटा स्टेशन है यहाँ से काफी RPF वाले अब इस ट्रेन में सवार हो गए।
एक साल बाद चलने वाली ट्रेन को देखकर बड़े बूढ़ों और बच्चों में एक अलग ही उत्साह था, जंग लगी पटरी पर ट्रैन चल रही थी। काफी घास फूस भी पटरियों पर उगी हुई थी इसे रोंदती हुई ट्रेन हुसैनी वाला की तरफ चलती जा रही थी। रास्ते में एक स्थान पर ट्रेन रुकी, हालाँकि आज शहीदी दिवस था इसलिए यहाँ शरबत वितरण हो रहा था। इसके बाद हुसैनीवाला पहुँच गए। सतलज नदी के किनारे एक छोटा सा टिकटघर बना था, यही हुसैनी वाला का स्टेशन है, यहाँ कोई प्लेटफॉर्म नहीं है।
यहाँ आकर ही मैंने जाना कि मैं पाकिस्तान के बॉर्डर पर आ चुका हूँ। अंग्रेजों के समय में जब पाकिस्तान नहीं बना था उस समय रेलवे लाइन फ़िरोज़पुर से लाहौर होते हुए पेशावर तक जाती थी, इसी रूट पर पंजाब मेल मुंबई से पेशावर के बीच चलती थी और सिर्फ पंजाब मेल ही नहीं, फ्रंटियर मेल भी जिसे अब स्वर्ण मंदिर मेल कहते है अमृतसर होते हुए लाहौर के रास्ते पेशावर जाती थी। इसके अलावा ग्रैंड ट्रक एक्सप्रेस जो जी टी एक्सप्रेस भी कहलाती है मद्रास से चलकर फ़िरोज़पुर होते हुए पेशावर तक जाती थी। उस समय यह एक मीटर गेज की लाइन थी।
हुसैनीवाला उस समय काफी बड़ा स्टेशन था, सतलज के दोनों छोरों पर केसर 'ए' हिन्द नामक एक विशाल पुल के अवशेष अब भी यहाँ देखे जा सकते हैं और नदी के बीच में खड़े वो पिलर आज भी हमें उस ज़माने की याद दिलाते है जब यहाँ से ट्रेन सीधे लाहौर और पेशावर तक जाती थी। आजादी के बाद हुसैनीवाला और केसर ए हिन्द रेलवे पुल पाकिस्तान की सीमा में चला गया और पाकिस्तान ने बिना देर किये इस ब्रिज को तोड़ दिया। हमारे तीनों महान क्रांतिकारियों समाधि स्थल भी पाकिस्तान की सीमा में चला गया जो हिंदुस्तानी लोगों को नागवार लगा इसलिए हिंदुस्तानी लोगों की श्रद्धा को देखते हुए प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जी के आग्रह पर पाकिस्तान से यह जगह हिंदुस्तान में आई और इससे दुगनी जगह भारत को पाकिस्तान को देनी पड़ी, इसके पीछे मुख्य कारण था सतलज के पार स्थित भगत सिंह जी की समाधी।
दरअसल जब लाहौर जेल में बंद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव् को फांसी की सजा सुनाई गई तो 24 मार्च की तारीख निश्चित की गई। किन्तु हिन्दुस्तानियों के बढ़ते क्रोध और उपद्रव को देखकर अंग्रेज डर गए और उन्होंने इन तीनों महान क्रांतिकारियों को सजा की तारीख के एक दिन पहले यानि 23 मार्च शाम को सवा सात बजे ही फांसी दे दी और लाहौर जेल की पिछली दीवार को तोड़कर रात के अँधेरे में तीनो के शवों को यहाँ सतलज के पास रेल लाइन के किनारे लाकर जला दिया।
जब गांव वालों ने आधी रात को जंगल में आग लगती देखी तो उन्हें कुछ संदेह हुआ, ग्रामीणों को आते देख अंग्रेज अधजली लाशो को छोड़कर भाग खड़े हुए। ग्रामीणों ने जब इनकी पहचान की तो विधिवत रूप से उनका अंतिम संस्कार किया। और आज उसी स्थान पर उन महान क्रांतिकारियों की समाधियाँ बनी हुईं हैं। पंजाब का वो वीर पुत्तर तो हमेशा के लिए सो गया परन्तु अपने पीछे छोड़ गया भारतीयों के दिलों में बलिदान की वो गाथा जिसे हिंदुस्तान कभी नहीं भुला पायेगा।
आज के दिन यहाँ काफी बड़े बड़े लोग भी देखने को मिल जाते हैं मुझे भी मिले, पंजाब के आदरणीय मुख्यमंत्री जी प्रकाश सिंह बादल। काफी बड़ा काफिला था, आते ही तीनो क्रांतिकारियों की अमर ज्योति पर श्रद्धांजलि दी और उसके बाद मूर्तियों पर माल्यार्पण कर पास में लगे विशाल मंच पर भाषण दिया। मैं भी कुछ समय के लिए उनका भाषण सुनने लगा परन्तु जब कुछ समझ में नहीं आया तो उठ कर चल दिया , पंजाबी भाषा थी तो कुछ समझ में नहीं आया। वापस स्टेशन पर आकर देखा तो ट्रेन में आने में अभी काफी वक़्त था तो केसर ए हिन्द पुल के पूर्वी सिरे को देखने को चला गया। इसे ईस्टर्न पीयर्स भी कहते हैं। यहाँ किसी ज़माने में पुराना हुसैनीवाला स्टेशन हुआ करता था।
यहाँ के पुराने अवशेषों को देखकर मुझे ऐसा लगा जैसे इसका बंद होना कल ही की बात हो। सब कुछ ज्यों का त्यों है, कुछ भी नहीं बदला। ईस्टर्न पीयर्स के एक तरफ सतलज पर बने उस पुल के पिलर और दूसरी तरफ हुसैनीवाला स्टेशन के पुराने अवशेष। तभी मुझे ट्रेन का हॉर्न सुनाई दिया, एक बार को तो ऐसा लगा जैसे ट्रेन यहीं इसी तरफ आ रही है पर जब इतिहास से निकलकर वर्तमान में आया तो जाना डीएमयू का हॉर्न है। तुरंत नए हुसैनीवाला स्टेशन पहुंचा और टिकट लेकर वापस फ़िरोज़पुर की तरफ लौट चला।
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कोट कपूरा रेलवे स्टेशन पर सुबह सुबह |
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फरीदकोट रेलवे स्टेशन |
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कासूबेगु रेलवे स्टेशन |
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मेला स्पेशल ट्रेन की समय सारिणी |
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फ़िरोज़पुर छावनी |
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फ़िरोज़पुर शहर |
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फ़िरोज़पुर शहर के बाद एक लाइन फाज़िलका चली जाती है और दूसरी हुसैनीवाला के लिए जिसपर आज एक साल बाद ट्रेन जा रही है। |
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शर्वत वितरण कैंप, यहाँ शर्वत पीने के लिए ट्रेन को पांच मिनट रोका गया |
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हुसैनीवाला रेलवे स्टेशन |
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उत्तर रेलवे की सीमा का आखिरी पॉइंट |
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सतलज दरिया की ओर |
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सतलज नदी पर बना बाँध, जिसमे बाएं तरफ पाकिस्तान है। |
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पंजाब माता |
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केसर ए हिन्द पुल के अवशेष |
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किसी ज़माने में यहाँ ट्रेन पाकिस्तान के कसूर जाती है |
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वेस्टर्न पीअर्स |
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पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जी और उनका काफिला |
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इंक़लाब जिंदाबाद |
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वेस्टर्न पीअर्स |
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पुल के अवशेष गेंहूँ के खेतों में भी |
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हुसैनीवाला बॉर्डर, आज के दिन बंद रहता है, वैशाखी के दिन खुलता है। |
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ईस्टर्न पीअर्स का एक दृशय |
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यहीं था किसी ज़माने का हुसैनीवाला स्टेशन |
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सतलज नदी में स्थित ये पिलर आज भी उस पुल की याद दिलाते है जब पंजाब मेल यहाँ से गुजरती थी |
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पुराने हुसैनीवाला स्टेशन पर जाने के लिए बनी सीढ़ियाँ |
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शायद यह भी उसी समय के स्टेशन का अवशेष है |
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नया हुसैनीवाला स्टेशन |
आप सभी जो मेरा यह ब्लॉग पढ़ते हों, सभी से मेरा सप्रेम निवेदन है कि ब्लॉग पढ़ने के बाद कमेंट बॉक्स में अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दर्ज करें।
अगली यात्रा -
भटिंडा पैसेंजर से एक यात्रा
Bhai ji Gazab maza aa gya pic. dekh kek superb......
ReplyDeleteJa hind।