Saturday, March 3, 2018

Rajim


 राजीव लोचन मंदिर  - राजिम 



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       सिरपुर से लौटकर हम महासमुंद आ गए, दोपहर के डेढ़ बजे थे और मैंने सिवाय एक समोसे के कुछ भी नहीं खाया था और मैं बिना नहाये कुछ खाना भी नहीं चाहता था। बस स्टैंड पहुंचकर देखा तो राजिम जाने वाली बस तैयार खड़ी थी, राजिम से चलकर यह कुछ देर फिंगेश्वर में खड़ी रही। फिंगेश्वर के बाद सीधे शाम चार बजे हम राजिम पहुँच गए। मुझे लगा था कि यहाँ महानदी पर घाट बने होंगे और मुझे महानदी में नहाने का मौका  मिलेगा परन्तु यहाँ भी मेरी मनोकामना पूर्ण नहीं हो पाई। नदी में पानी तो था परन्तु घाटों से बहुत दूर। राजिम छत्तीसगढ़ का एक मुख्य धार्मिक स्थल है  इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है।



     यहाँ महानदी, पैरी और सौंढूल नदियों का पवित्र संगम स्थल है, यह संगम स्थल प्राचीन कुलेश्वर मंदिर के निकट है तथा इसका धार्मिक महत्व प्रयाग के समान ही है, इसलिए यहाँ हिन्दू लोग यहाँ आकर श्राद्ध, पिंडदान, तर्पण, पर्व स्नान, अस्थि विसर्जन, दान आदि करते हैं। यही त्रिवेणी के संगम के निकट ही राजीव लोचन मंदिर छत्तीसगढ़ के प्राचीन मंदिरों में से एक है।

   मंदिर में ही अंकित महामंडप की पार्श्वभित्ति पर कलचुरी संवत ( 1194 ईस्वी ) का एक शिलालेख है। शिलालेख में कल्चुरी शासक पृथ्वीदेव द्धितीय ( 1135 - 1165 ई. ) के सेनानी द्वारा तलहारी मंडल को पराजित करने का वर्णन मिलता है। दूसरा शिलालेख ८वीं या ९वीं शताब्दी में लिखा  गया है जिसे पढ़ने से ज्ञात होता है कि यह एक विष्णु मंदिर है। गर्भगृह में काले पत्थर की बनी भगवान विष्णु की चतुर्भुजी मूर्ति है। श्री राजीवलोचन मंदिर को पाँचवा धाम माना गया है।

      राजीव लोचन मंदिर से थोड़ी दूर तीनो नदियों के संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव मंदिर का भी विशेष महत्व है। यह लोमश ऋषि के आश्रम के बिलकुल नजदीक है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान जब प्रभु श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण और माता सीता के साथ लोमश ऋषि के आश्रम पधारे तो यहीं रहकर सीताजी ने बालू से एक शिवलिंग का निर्माण किया जो कालांतर में कुलेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्द है। यहाँ महाशिवरात्रि के अवसर पर विशाल मेला लगता है जो हमारे यहाँ आने से कुछ ही दिन पहले समाप्त हो गया।

       राजिम यूँ तो एक धार्मिक स्थल है इसे घूमने के लिए आपको पूरा एक दिन चाहिए होता है।  राजीवलोचन जी के दर्शन करने के बाद मेरा प्लान चम्पारण जाने का था जो महाप्रभु बल्ल्भाचार्य जी का जन्मस्थल है और राजिम से 9 किमी दूर स्थित है। यहीं एक धर्मशाला भी बनी हुई है जहाँ रूकने का मेरा मन था परन्तु आकाश और निधि का यहाँ रूकने का कतई मन नहीं था।  मैं आकाश और निधि को अपने साथ लेकर आया था और बीच सफर में उन्हें अकेला छोड़कर जाने का मेरा मन नहीं था। इसलिए मैं चम्पारण नहीं जा पाया और एक टिर्री पकड़कर महानदी के दूसरी पार राजिम रेलवे स्टेशन पहुंचे। राजिम नेरोगेज का एक आखिरी स्टेशन है यहाँ से पहले सीधे ट्रेन रायपुर तक चला करती थी जो अब अभनपुर तक ही जाती है।

       शाम के छ बज चुके थे ट्रेन का आने का समय भी हो चुका था, शाम भी धीरे धीरे ढलने लगी थी। निधि और आकाश प्लेटफार्म पर एक तरफ बैठे आपस में अपनी आगे की यात्रा का प्लान बना रहे थे और मैं दूसरी तरफ अपनी माँ को याद कर रहा था। ऐसे तीर्थस्थानों पर आकर बिना माँ के मेरा मन नहीं लगता आखिर वो सबसे टॉप पर मेरी सहयात्री रहीं हैं। मैंने तुरंत फोन निकाला और माँ से बात की तब जाकर मुझे थोड़ा सा संतोष प्राप्त हुआ।
    अब ट्रेन भी आ चुकी थी, चूँकि इसका सफर अब ज्यादा लम्बा नहीं है इसलिए इसमें राजिम से जाने वाले हम तीन ही यात्री थे। बाकी के तीन और लोग भी हमारे कोच में बैठ गए पर ये तीनो लोकल लड़के ही थे और इस ट्रेन का उपयोग नशा करने के परिपथ से करते हैं। अँधेरा हो चुका था, हालांकि कोच में हम तीनो के अलावा वे तीन लड़के भी थे जो इस समय ट्रेन में चिलम और गांजा भर भर कर फूँक रहे थे परन्तु हमारे साथ लड़की को देखकर भी उन्होंने किसी तरह की कोई भी बत्तमीजी नहीं की।

    हम अभनपुर पहुंचे, अभनपुर एक जंक्शन स्टेशन है जहाँ एक लाइन धमतरी को भी जाती और दूसरी रायपुर की तरफ केन्द्री तक। राजिम की तरफ से तो हम आये ही हैं। और साथ में अभनपुर एक बड़ा क़स्बा भी है यहाँ काफी बड़ा बाजार है और यह रायपुर से जगदलपुर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। हम बस स्टॉप पर पहुंचे, घडी शाम के सात बजे चुकी थी और हलकी हलकी बारिश भी पड़ने लगी।

   छत्तीसगढ़ में यह हमारे लिए पहली बारिश थी, थोड़ी देर में जगदलपुर की तरफ से एक डीलक्स बस आई जिसमे बैठने की सीटें कम और सोने की ज्यादा थी। इसी बस से हम रायपुर पहुंचे। निधि और आकाश को आज यहीं रूकना था पर मुझे नहीं। हम स्टेशन पहुंचे, निधि और आकाश ने अपना रूकने का ठिकाना खोज लिया था इसलिए वो मुझे स्टेशन छोड़कर निकल गए और मैं मथुरा की तरफ लौटने के लिए ट्रेन की प्रतीक्षा करने लगा।

जिला गरियाबंद की सीमा में 

फिंगेश्वर बस स्टैंड 

राजिम चौक 

MAHANADI RIVER

महानदी के घाट, राजिम 

राजिम में सूर्यास्त 

MAA KAALI IN RAAJIM

MAHANADI RIVER

RAJIV LOCHAN TEMPLE

RAJIV LOCHAN TEMPLE

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RAJIV LOCHAN TEMPLE
RAJIV LOCHAN TEMPLE

RAJIV LOCHAN TEMPLE

RAJIV LOCHAN TEMPLE

श्री राजीव लोचन मंदिर 

RAJIV LOCHAN TEMPLE

राजिम चौराहा 

राजिम रेलवे स्टेशन 

RAJIM RAILWAY STATION 



RAJIM RAILWAY STATION 


राजिम रेलवे स्टेशन 

RAJIM RAILWAY STATION

RAJIM RAILWAY STATION 

RAJIM RAILWAY STATION

MANIK CHOURI

ABHANPUR RAILWAY STATION

ABHANPUR RAILWAY STATION

रायपुर स्टेशन के बाहर एक मंदिर का दृश्य 

 अगली यात्रा  - माँ जालपादेवी मंदिर, कटनी

छत्तीसगढ़ में मेरी अन्य यात्रायें

  • पिताजी के साथ दुर्ग की एक यात्रा - मार्च 2015 
  • महासमुंद की ओर एक सफर       - मार्च 2018 
  • सिरपुर एक ऐतिहासिक नगर        - मार्च 2018 

2 comments:

  1. राजिम उर्फ छत्तीसगढ़ की काशी की बढ़िया घुमक्कड़ी

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  2. बहुत खूब। शुभकामनाएँ

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