मरियम -उज़ -जमानी का मक़बरा
सन 1527 में बाबर ने जब फतेहपुर सीकरी से कुछ दूर उटंगन नदी के किनारे स्थित खानवा के मैदान में अपने प्रतिद्वंदी राजपूत शासक राणा साँगा को हराया तब उसे यह एहसास हो गया था कि अगर हिंदुस्तान को फतह करना है और यहाँ अपनी हुकूमत स्थापित करनी है तो सबसे पहले हिंदुस्तान के राजपूताना राज्य को जीतना होगा, इसके लिए चाहे हमें ( मुगलों ) को कोई भी रणनीति अपनानी पड़े। बाबर एक शासक होने के साथ साथ एक उच्च कोटि का वक्ता तथा दूरदर्शी भी था। इस युद्ध के शुरुआत में राजपूतों द्वारा जब मुग़ल सेना के हौंसले पस्त होने लगे तब बाबर के ओजस्वी भाषण से सेना में उत्साह का संचार हुआ और मुग़ल सेना ने राणा साँगा की सेना को परास्त कर दिया और यहीं से बाबर के लिए भारत की विजय का द्धार खुल गया। इस युद्ध के बाद बाबर ने गाज़ी की उपाधि धारण की।
बाबर की इस दूरदर्शी सोच और उसकी रणनीति को उसके पौत्र अकबर ने भलीभाँति समझा और इसी के अनुसार उसने हिन्दुस्तान में राजपूतों से सम्बन्ध स्थापित किये। अकबर का जन्म भी उमरकोट के राणा वीरसाल के यहाँ हुमाँयु की पत्नी हमीदाबानो के गर्भ से हुआ था। उसका बचपन हिन्दू राजपूतों के मध्य ही गुजरा। अपने पिता की असमय मृत्यु के बाद पंजाब के कलनौर में 13 वर्ष की अवस्था में अकबर का राजतिलक हुआ और उसके बाद उसने छिन्न भिन्न मुग़ल साम्रज्य को संगठित कर अपना एक छत्र साम्राज्य स्थापित किया। वह जानता था कि उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती वाला जो राज्य है वो राजपूताना ही है क्योंकि राजपूत अत्यंत ही महत्वकांक्षी थे और बाबर के विरूद्ध हुई खानवा के युद्ध में अपनी पराजय का बदला लेने को आतुर थे।
अधिकतर राजपूत राजाओं ने अकबर की शान्त और स्वायत्ता से संतुष्ट होकर आत्म समपर्ण कर दिया। इन्हीं में आमेर के राजा भारमल नाम भी बड़े तबके के साथ लिया जाता है। उन्होंने मुगलों की आधीनता ही स्वीकार नहीं की बल्कि उनसे वैवाहिक संबंध भी स्थापित किये। राजा भारमल ने अपनी पुत्री जोधाबाई जिसे हरकाबाई के नाम से भी जाना जाता है का विवाह मुग़ल बादशाह अकबर के साथ किया। इसके बाद ही अकबर को राजपूतों पर अपना अधिपत्य स्थापित करने में आसानी हुई। हालांकि अनेक राजपूत ऐसे भी थे जिन्होंने अकबर की आधीनता कभी स्वीकार नहीं की जिनमे मेवाड़ के शासक महाराणा प्रताप का नाम शिरोमणि है।
जोधाबाई एक हिन्दू राजपूत स्त्री थी। मुगलों के बीच रहकर भी उसने कभी अपना हिंदुत्व नहीं त्यागा। उसने सम्राट अकबर की पत्नी होने के सारे फ़र्ज़ अपने धर्म के साथ ही निभाए थे। हिंदुस्तान की मलिका होने के बाबजूद भी उसमें कभी अहम की भावना नहीं थी जबकि अकबर की अन्य पत्नियाँ उससे द्धेष की भावना रखती थीं क्योंकि उसके व्यक्तिगत स्वभाव और व्यवहार के कारण अकबर उसे अपनी सबसे प्रिय रानी के रूप में देखता था। जोधाबाई ने अपने जीतेजी और मरने के बाद भी दोनों धर्मों को पूरी निष्ठा से निभाया।
जहाँगीर की आत्मकथा तुजुके जहाँगीरी में जोधाबाई के नाम के स्थान पर मरियम उज़ ज़मानी के नाम से जाना गया है। जोधाबाई की मृत्यु उपरांत हिन्दू होने के कारण उनका दाह संस्कार किया गया था, जिस स्थान पर उनका दाह संस्कार हुआ वहां राजपूत होने के कारण उनकी छतरी का निर्माण किया गया। यह स्थान आज भी आगरा के अर्जुन नगर में स्थित है और मुग़ल बेग़म होने के कारण उनका मकबरा, अकबर के मकबरे से कुछ दूर आगरा - दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है जिसे मरियम के मकबरे के नाम से जाना जाता है।
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मरियम का मकबरा |
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MARIAM TOMB |
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SUDHIR UPADHYAY AT MARIYAM TOMB |
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MARIAM GRAVE |
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MARIAM TOMB |
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