फतेहपुर सीकरी और सलीम चिश्ती की दरग़ाह
पिछली यात्रा -
लोहागढ़ दुर्ग
पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान की सीमा पर स्थित आगरा शहर दुनियाभर में ताजमहल के कारण जाना जाता है परन्तु भारतीय इतिहास के अनुसार गौर किया जाये तो पता चलता है कि आगरा का अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व मुग़ल सम्राट अक़बर की वजह से है जिन्होंने ना सिर्फ यहाँ एक मजबूत किले का निर्माण कराया बल्कि इसे अपनी राजधानी भी बनाया, साथ ही अपनी मृत्यु के बाद भी उन्होंने आगरा की ही धरती को पसंद किया और अपने मरने से पूर्व ही अपना मकबरा बनवा लिया। चूँकि आगरा शहर की स्थापना सिकंदर लोदी ने की थी परन्तु आगरा का मुख्य संस्थापक सम्राट अकबर को माना गया है।
काफी समय आगरा किले में रहने के बाद और राजपूतों से सम्बन्ध स्थापित करने बाद जब शहंशाह अकबर को यह एहसास हुआ कि इतने बड़े साम्राज्य का विस्तार होने के बाद भी उन्होंने अपने रहने के लिए और अपने समस्त परिवार के लिए स्थान का विस्तार नहीं किया है तो उन्होंने आगरा शहर से 12 कोस दूर पश्चिम दिशा की तरफ एक स्थान चुना और एक नगर का निर्माण कराया। इस नये नगर का निर्माण सम्राट अकबर ने 1569 ई मे करवाया था, इस स्थान का चुनाव सम्राट अकबर ने तब किया जब वह अपनी गुजरात पर विजय प्राप्त करने के बाद यहाँ आये और यहाँ प्रसिद्ध सूफी संत सलीम चिश्ती से एक पुत्र प्राप्ति की दुआ मांगी। कुछ समय बाद जब सलीम चिश्ती जी की दुआ से अकबर को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो उन्होंने अपने इस पुत्र का नाम भी सूफी संत के नाम पर सलीम रखा और यही सलीम आगे चलकर जहाँगीर के नाम से मुग़ल साम्राज्य का भावी सम्राट हुआ।
इस नगर के चारों तरफ विशाल चारदीवारी का निर्माण कराया गया और एक ऊँचे स्थान पर जहाँ प्रसिद्ध सूफी संत सलीम चिश्ती की दरगाह स्थित थी वहां अपने और अपने परिवार के लिए महलों का निर्माण कराया। इस नए नगर का नाम उन्होंने फतेहपुर यानी 'जीत का शहर' रखा और आगरा से अपनी राजधानी यहाँ स्थानांतरित की। यह नगर देखने भी बहुत ही सुन्दर और भव्य था और इस नगर की संरचना बहुत ही सुनियोजित तरीके से की गई थी। इस नगर की सीमाएं राजपूताना ( आज का राजस्थान ) की सरहदों को छूती थी और यही वो केंद्र बिंदु भी था जहाँ से शहंशाह को सम्पूर्ण भारत पर राज्य करने और नियंत्रण रखने में आसानी होती थी। इस नगर में उन्होंने भव्य महलों का निर्माण कराया और आगरा की प्रजा की सुरक्षा के लिए इसे चारों तरफ से मजबूत चारदीवारी से सुरक्षित करवाया।
यह स्थान पहले सीकरी नामक गाँव कहलाता था जो मुग़ल साम्राज्य की राजधानी बनने के बाद फतेहपुर कहलाया और आज इसे फतेहपुर सीकरी के नाम से जाना जाता है। सम्राट अकबर ने इस खूबसूरत शहर का निर्माण करने के बाद यहाँ विशाल बुलंद दरबाजा भी स्थापित कराया जो उन्हें अपनी मालवा की विजय यात्रा के दौरान प्राप्त हुआ था यह बुलंद दरबाजा आज विश्व भर में प्रसिद्ध है और इस दरबाजे से बहुत दूर दूर तक का नजारा देखा जा सकता है साथ ही सम्राट यहाँ खड़े होकर सम्पूर्ण नगर को भी देखा करते थे। इस दरवाजे के अंदर प्रवेश करते ही सलीम चिश्ती की दरगाह का दीदार होता है जो सफ़ेद रंग की संगमरमर के पत्थरों को तराश कर बनाई गई और इसके पास ही पश्चिम दिशा की तरफ जामामस्जिद का भी निर्माण कराया।
आगरा किले की तरह ही यहाँ दीवाने खास और दीवाने आम का भी निर्माण हुआ और मुग़ल मुद्रा की टकसाल का भी निर्माण कराया गया। सम्राट ने अपने आराम के लिए यहाँ खास महल का भी निर्माण कराया और इसके नजदीक ही पंचमहल भी निर्माण कराया। सम्राट ने अपनी बेगमों के लिए भी महलों का निर्माण कराया जिनमे आज भी जोधाबाई का महल महत्वपूर्ण है और साथ ही अपने नवरत्नों में से एक और मुख्यमंत्री बीरबल के महल का निर्माण कराया। महल के पीछे एक हिरन मीनार स्थित है जहाँ सम्राट के प्रिय हाथी जिसका नाम हिरन था की कब्र है। इस मीनार में दूर से नुकीली कीलें नजर आती हैं जो वास्तव में हाथियों की नाक अथवा सूंड़ हैं।
अकबर की जीवनगाथा लिखने वाले कवि अबुल फजल जिन्होंने आईने अकबरी की रचना की का महल भी यहाँ स्थित है जो सलीम चिश्ती के दरगाह के ठीक पीछे स्थित हैं। कुल मिलकर अकबर ने इस स्थान पर शानदार महल और नगर का निर्माण कराया परन्तु यहाँ वह अत्यधिक वर्षों तक रह ना सके क्योंकि प्रकृति के आगे किसी की नहीं चलती चाहे वो कितना ही बड़ा सम्राट क्यों ना हो और सम्राट अकबर को भी प्रकृति के आगे झुकना पड़ा और इस खूबसूरत नगर को छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा जिसका मुख्य कारण था यहाँ पीने की पानी की कमी का होना और वो कहते हैं बिन पानी सब सून, मछली, मानुष, चून। अंत में सम्राट अकबर को अपनी राजधानी यहाँ से वापस आगरा ले जानी पड़ी और यह खूबसूरत शहर सुनसान हो गया।
मैं और शारुख फतेहपुर सीकरी में पीछे के दरवाजे से शामिल हुए और सबसे पहले हिरन मीनार पहुंचे यहाँ से हाथी पोल होते हुए बुलंद दरवाजे तक पहुंचे। शारुख को किले और मकबरों में कोई दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वो बाहर ही बैठा रहा और मैं उचित टिकट लेकर अंदर जाकर सभी महलों को देख आया। यह वास्तव में एक विशाल नगर था जिसका पानी की कमी के कारण पतन हो गया और सम्राट अकबर के बाद भी किसी भी मुग़ल बादशाह ने इस स्थान को अपने रहने लायक उपयुक्त नहीं समझा और यह केवल राजपुताना की ओर जाने के लिए एक सराय का काम करता रहा।
|
फतेहपुर सीकरी से कुछ दूर एक मकबरा |
|
सीकरी की पहली झलक |
|
सीकरी के साथ मैं भी |
|
हिरण मीनार |
|
हिरण मीनार |
|
हिरण मीनार |
|
हिरण मीनार का एक दृश्य |
|
हिरण मीनार और नुकीली कीलों नुमा हाथी की सूंड़ें |
|
सीकरी में दिल्ली दरवाजा |
|
हाथी पोल और शारुख |
|
अबुल फजल का घर |
|
फतेहपुर सीकरी का क्लॉक टावर |
- हाथी पोल या पिछली फतेहपुर सीकरी
|
छत पर चित्रकारी |
Thanks for visit
आप और शारुख अक्सर साथ यात्राएं करते है क्या...बहुत बढ़िया तस्वीरे...
ReplyDelete