शिवाड़ किला और घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग
मानसून बीतता ही जा रहा था और इस वर्ष मेरी राजस्थान की यात्रा अभी भी अधूरी ही थी इसलिए पहले यात्रा के लिए उपयुक्त दिन निश्चित किया गया और फिर स्थान। परन्तु इस बार मैं घर से ज्यादा दूर जाना नहीं चाहता था, बस यूँ समझ लीजिये मेरे पास समय का काफी अभाव था। यात्रा भी आवश्यक थी इसलिए इसबार रणथम्भौर जाने का प्लान बनाया मतलब सवाई माधोपुर की तरफ। यहाँ काफी ऐसी जगह थीं जो मेरे पर्यटन स्थलों की सैर की सूची में दर्ज थे। इसबार उनपर घूमने का समय आ चुका था इसलिए मैं रात को एक बजे घर से मथुरा स्टेशन के लिए निकल गया। बाइक को स्टैंड पर जमा कर मैं प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। कुछ ही समय में निजामुद्दीन से तिरुवनंतपुरम जाने वाली एक एक्सप्रेस आ गई जिससे मैं सुबह पांच बजे सवाई माधोपुर पहुँच गया।
अभी दिन निकला नहीं था और मुझे थोड़ी सर्दी का एहसास सा भी हो रहा था इसलिए स्टेशन के बाहर आकर एक दुकानपर मैंने गर्मागर्म चाय पी और रणथम्भौर से पहले शिवाड़ जाने का प्लान बनाया। शिवाड़ एक पहाड़ी पर स्थित प्राचीन किला है और इस किले की तलहटी में भगवान शिव का बारहवाँ ज्योतिर्लिंग 'घुश्मेश्वर' स्थित है। यह यहाँ की मान्यता ही है कि शिवाड़ का ज्योतिर्लिंग ही बारहवाँ ज्योतिर्लिंग है परन्तु आज से दो साल पहले मैं और माँ, महाराष्ट्र स्थित औरंगाबाद स्थित घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन भी कर चुके हैं। यह बात इतनी महत्वपूर्ण नहीं कि बारहवाँ ज्योतिर्लिंग शिवाड़ का ही है या महाराष्ट्र का, महत्वपूर्ण है भगवान् शिव के प्रति मन में आस्था और भक्ति का होना।
शिवाड़, सवाईमाधोपुर से थोड़ी दूर है जो जयपुर जाने वाली रेलवे लाइन पर ईशरदा रेलवे स्टेशन से पांच किमी दूर स्थित है। थोड़ी देर में शिवाड़ जाने के लिए भोपाल से जोधपुर जाने वाली पैसेंजर आने वाली थी इसलिए स्टेशन के बाहर स्थित एसबीआई के एटीम से कुछ रुपये निकालकर मैं स्टेशन पहुँचा, ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर एक पर आ चुकी थी और इसका इंजन अलग करके ट्रेन के दुसरे तरफ लगाया जा रहा था। यह पहले एक पैसेंजर ट्रेन थी जिसे अब एक्सप्रेस का नाम से दिया गया है परन्तु इसका काम अभी भी पैसेंजर का ही है। ट्रेन में पैर रखने की भी जगह नहीं बची थी। जयपुर जाने वाली यह सुबह की पहली ट्रेन है काफी लम्बी दूरी तय करके जोधपुर पहुँचती है।
ईशरदा से पहले एक और मुख्य स्थान यहाँ देखने की लिस्ट में था, चौथ का बरवाड़ा। जो एक रेलवे स्टेशन भी है। यहाँ चौथ माता का विशाल मंदिर है जो सिर्फ यहीं देखने को मिलता है। मैं यहाँ जाना तो चाहता था पर पहले उन्हीं स्थानों पर जिन्हें देखने के लिए मैं घर से चला था। अगला स्टेशन ईशरदा था और यहाँ मेरे साथ साथ अनेकों तीर्थयात्री भी शिवदर्शन के यहाँ उतरे। स्टेशन के सामने ही जीप वाले शिवाड़ जाने के लिए तैयार खड़े हुए थे। शिवाड़ का दुर्ग स्टेशन से ही साफ़ साफ़ नजर आता है जो एक पहाड़ी पर स्थित है। स्टेशन के सामने मैं भी एक जीप में बैठ गया और शिवाड़ पहुँच गया।
मेरा मन किले को देखने के लिए था, परन्तु जब जीप वाले ने मुझे बताया कि यह किला बंद है और वहां कोई नहीं जाता तो मेरे किले को घूमने की इच्छा मन में ही रह गई और बाहर से ही मैंने इस किले का अवलोकन किया। जाने को तो इस किले में जाया जा सकता था पर मैं नहीं गया इसके दो मुख्य कारण थे पहला मैं अकेला था और अकेले इस सुनसान किले में जाना मुझे उचित नहीं लगा और दूसरा मेरे पास घूमने के लिए केवल आजका दिन ही शेष था जिसमे मुझे रणथम्भौर का किला भी देखना था। इसलिए किले में ना जाकर मैं भगवन शिव के दर्शन करने के लिए मंदिर में गया। यह मंदिर बहुत ही शानदार और प्राचीन है, पूर्व समय में शिवाड़ शिवालय के नाम से जाना जाता था और शिवपुराण में भी इस क्षेत्र का वर्णन शिवालय के नाम से ही मिलता है।
कहते हैं पूर्वकाल में घुश्मा नामक एक स्त्री भगवान शिव की अनन्य भक्त थी जिसके पुत्र को भगवान् शिव ने जीवित करके उसे यह वरदान दिया कि यह स्थान आगे चलकर कालांतर में घुश्मेश्वर के नाम से जाना जायेगा। सन 1081 ई. में महमूद ग़जनवी ने मथुरा से सोमनाथ जाते समय इस प्राचीन मंदिर पर आक्रमण किया, गजनवी से युद्ध करने के लिए शिवाड़ के राजा चंद्रसेन अपने पुत्र इन्द्रसेन और सेनापति रेवत जी के साथ मैदान में आ डटे। राजा चन्द्रसेन उनके पुत्र इन्द्रसेन और रेवत जी युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी स्त्रियों ने मंदिर के नजदीक ही जौहर किया और सती हो गईं। ग़जनवी ने मंदिर के स्थान पर मस्जिद बना दी जिसे बाद में मण्डावर के राजा ने 1179 ई. में पुनः बनवाया।
13 वीं सदी में अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण करने से पहले इस स्थान पर आक्रमण किया और यहाँ स्थित नंदी जी की विशाल मूर्तियों को तोड़ दिया। मूर्तियों के क्षतिग्रस्त होते ही भगवान् शिव ने रूद्र के रूप में उसे इतना भयभीत किया कि वो अपनी सेना सहित यहाँ से भाग खड़ा हुआ। कहा जाता है रणथम्भौर पर विजय प्राप्त करने के बाद अलाउद्दीन ने फिर से शिवाड़ की तरफ अपना रुख किया किन्तु वैशिष्ठी नदी जिसे अब बनास नदी कहा जाता है के रौद्र रूप को देखकर वह वापस दिल्ली लौट गया।
यह मंदिर देवगिरि पर्वत की तलहटी में स्थित है और इसी पर्वत पर शिवाड़ का दुर्ग स्थित है, मंदिर से एक रास्ता ऊपर की तरफ देवपार्क की तरफ भी जाता है, इसकी टिकट लेकर मैं भी देवलोक घूमने गया यह काफी अच्छा और घूमने लायक स्थान है। देवलोक भी कहते हैं यहाँ सभी देवों की विशाल मूर्तियां स्थित हैं पत्थरों से बने इस देव पार्क में घूमने का एक अलग ही आनंद है जब मैं यहाँ घूम रहा था तभी अचानक बरसात आ गई और यहाँ घूम रहे सभी लोग वापस नीचे लौट गए किन्तु मैं अकेला ही ऊपर तक चढ़ता गया और पूरा देवलोक घूमने के बाद मैं वापस मंदिर आगया। अब ट्रेन का समय भी हो चला था इसलिए मैंने अब शिवाड़ से निकलने का निश्चय किया और पैदल गोल सर्किल के पास आया।
शिवाड़ के निवासी अपने क्षेत्र को अत्यंत ही सुन्दर बनाने में निरंतर कार्यरत हैं जिससे यहाँ आने वाले सैलानियों को किसी प्रकार की कोई परेशानी या निराशा ना मिले। यहाँ एक खूबसूरत पार्क का निर्माण किया गया है इस पार्क में से शिवाड़ के दुर्ग की एक अलग ही तस्वीर सामने आती है और मुझे तो ऐसी आई थी कि मैं लगातार अपने कैमरे से इसकी तस्वीरें खींचता ही रहा। ट्रेन का समय टाला नहीं जा सकता वो भले ही देरी से आये परन्तु मुझे समय पर स्टेशन पहुँचना अति आवश्यक था इसलिए बिना किसी वाहन का इंतज़ार किये मैं पैदल ही शिवाड़ से ईशरदा स्टेशन की तरफ चला जा रहा था , धीमी धीमी बारिश की फुहारों के बीच मैं बार बार मुड़कर शिवाड़ के दुर्ग को निहारता ही रहा और मेरे कदम आगे बढ़ते रहे।
काफी चलने के बाद जब मैं थक गया तो एक बाइक पर आ रहे बाबा को हाथ दिया और उन्होंने मुझे स्टेशन तक छोड़ दिया। जब मैं स्टेशन के फोटो खींच रहा था तो यहाँ का एक निवासी लड़का मुझे फोटो लेते देख मुझसे बात करने लगा और मेरे घूमने का राज जानना चाहा। जब उसे पता चला कि मैं एक ब्लॉगर हूँ और अपनी यात्राओं और स्थानों पर ब्लॉग लिखता हूँ तो वह अनजान इंसान बहुत खुश हुआ और मुझे शिवाड़ के बारे बहुत सी बातें बताने लगा, ईशरदा के किले के बारे में भी उसने मुझे बहुत कुछ बताया और उसके विनाश के बारे में भी। बा मुझसे मिलकर इतना प्रभावित हुआ कि उसके और मेरे बीच में एक दोस्ती का रिश्ता सा बन गया था।
उसने मुझे शिवाड़ के पार्क में भी फोटो लेते हुए देखा था, और वो जानता था कि मैं सुबह से लगातार अपनी यात्रा को अंजाम दिए जा रहा था जिसमे मैं अपनी भूख प्यास सब भूल गया था। स्टेशन पर आकर जब मैंने थकान सी महसूस की तब वो मुझे स्टेशन के बाहर एक दुकान पर ले गया जहाँ उसने गर्मागरम चाय बनवाई उसके बाद कुछ ही समय में ट्रेन आ गई और हम दोनों सवाई माधोपुर के लिए रवाना हो गए। अगले स्टेशन चौथ के बरवाड़ा उस लड़के के कुछ मित्र आगये और वह मुझे बाय कहकर चला गया। कुछ ही समय की ये छोटी सी दोस्ती दिल पर इतनी छाप छोड़ गई कि एक दूसरे से बिछड़ते हुए ना जाने क्यों हमारी आँखों में आँसू से आ गए।
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सवाई माधोपुर रेलवे स्टेशन सुबह के वक़्त |
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सवाई माधोपुर एक टाइगर रिज़र्व स्थान है उसी की एक झलक रेलवे स्टेशन पर |
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शिवाड़ की तरफ रेल यात्रा |
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ईसरदा रेलवे स्टेशन |
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ईसरदा रेलवे स्टेशन |
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शिवाड़ प्रवेश द्धार |
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शिवाड़ की एक झलक |
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शिवाड़ |
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शिवालय सरोवर |
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ज्योतिर्लिंग प्रवेश द्धार |
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श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवाड़ |
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श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवाड़ |
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श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवाड़ |
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श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवाड़ |
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श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवाड़ |
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श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवाड़ |
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श्री घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग, शिवाड़ |
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आक्रमणों में ध्वस्त मूर्तियाँ |
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और प्राचीन मंदिर के अवशेष |
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शिवालय |
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देवलोक की तरफ |
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शिवाड़ का एक दृश्य |
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अमरनाथ गुफा की एक झलक |
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आदिगुरु शंकराचार्य |
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जय बाबा बर्फानी |
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देवगिरि पर्वत और शिवाड़ किला |
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पार्क से दुर्ग का एक दृश्य |
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सामने पहाड़ पर दिखाई देता सारसोप का किला |
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शिवाड़ का विशाल दुर्ग |
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ईसरदा रेलवे स्टेशन |
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स्टेशन पर मिला एक मित्र |
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भाई नई जगह की नई जानकारी...हर हर महादेव वैसे सवाई माधोपुर में एक चौथ माता का मंदिर भी है
ReplyDeleteअगली बार चौथ माता के दर्शन करने अवश्य जाऊँगा भाई जी, इसबार समय पर्याप्त न था
Deleteराजस्थान की बात ही nirali है
ReplyDeleteबिलकुल सत्य कहा त्रिपाठीजी
Deleteबहुत ही बढ़िया भाई जी ! कई बार सवाई माधोपुर से होता हुआ गया हूँ लेकिन इस जगह के बारे में पहले पता ही नहीं था !! अगले चक्कर में जरूर जाना चाहूंगा
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जगह है भाई, आप अवश्य एकबार यहाँ होकर आइये
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी और फोटोज तो एक से एक मस्त
ReplyDeleteजी धन्यवाद
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