लोहागढ़ दुर्ग की एक यात्रा
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लोहिया गेट, भरतपुर |
मथुरा शहर से थोड़ी दूरी पर राजस्थान में भरतपुर शहर है जिसे लोहागढ़ के नाम से भी जाना जाता है, इसका प्रमुख कारण है यहाँ स्थित मजबूत दीवारों वाला किला जो हमेशा ही अजेय रहा। दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाला और हमेशा ही उनकी पहुँच दूर रहने के कारण ही इसे अजेय कहा जाता है। भरतपुर रियासत जाट राजाओं का प्रमुख गढ़ है और यहाँ बना हुआ यह किला उनकी सुरक्षा और विजय का मुख्य कारण रहा है।
कहा जाता है इस किले की दीवारें लोहे के समान मजबूत हैं इसी वजह से इसे लोहागढ़ कहा जाता है। भरतपुर जाने वाली सरकारी बसें भी लोहागढ़ आगार के नाम से ही चलती हैं। अनेकों आक्रमण सहने के बाद भी यह किला आज भी अपनी उचित अवस्था में खड़ा हुआ है। भरतपुर को राजस्थान का पूर्वी सिंह द्धार या प्रवेश द्धार भी कहा जाता है।
भरतपुर की स्थापना रुस्तम जाट द्वारा की गई थी, सन 1733 में महाराजा सूरजमल ने इस पर अधिकार कर लिया और नगर के चारों ओर एक सुरक्षित चारदीवारी का निर्माण करवाया। इसलिए भरतपुर का मुख्य संस्थापक महाराजा सूरजमल को माना जाता है और लोहागढ़ दुर्ग का निर्माणकर्ता भी। चूँकि भरतपुर का अधिकांश क्षेत्र ब्रजभूमि के अंतर्गत शामिल है इसलिए ब्रज और उसके आसपास के क्षेत्र पर महाराज सूरजमल का राज होने कारण शत्रुओं ने कभी इसतरफ अपना रुख करना उचित नहीं समझा और जिन्होंने इस तरफ रुख किया वो कहीं और रुख करने लायक ही नहीं रहे इसलिए महाराजा सूरजमल को जाट जाति का प्लेटो या अफलातून भी कहा जाता है।
भरतपुर का लोहागढ़ दुर्ग चारों ओर बनी खाई और मिटटी के परकोटे के कारण अभेद्द दुर्ग रहा है, ऐसे और भी दुर्ग भरतपुर राज्य के अंतर्गत अत्यंत स्थानों पर भी बनाये गए जिनमे डींग का किला भी प्रमुख है। भरतपुर में लोहागढ़ के अलावा एक प्रसिद्ध गंगा मंदिर भी है जो यहाँ का विशाल मंदिर है इसका निर्माण महाराजा बलवंत सिंह ने कराया था साथ ही यहाँ महाराजा बलवंत सिंह द्वारा बनवाई गई जामा मस्जिद भी देखने योग्य है। इतना ही नहीं गंगा मंदिर की तर्ज पर बना लक्ष्मण मंदिर भी भरतपुर को पर्यटन की दृष्टि से योग्य बनाता है।
पर्यटन के हिसाब से भरतपुर का नाम केवल भारतवर्ष में ही नहीं, बल्कि विश्व में भी बड़े गर्व से लिया जाता है क्योंकि यहाँ स्थित केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भारत का सबसे बड़ा पक्षी अभयारण्य है। केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान 1956 में स्थापित हुआ था तथा 1981 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया। यह अभयारण्य 29 वर्गकिमी में स्थित है जिसमें शीतकाल के दौरान मंगोलिया, चीन, यूरोप, रूस और अन्य देशों से अनेकों पक्षी आते हैं। इसकारण इसे यूनेस्को ने सन 1885 में विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है।
आज शनिवार का अवकाश था इसलिए मेरे साथ काम करने वाला मेरा मित्र शारुख अपनी बाइक लेकर मेरे घर आया और हम दोनों बाइक से भरतपुर की तरफ निकल गए। काफी दिन से हमारा प्लान था एक साथ कहीं बाहर जाने का, परन्तु हिसाब बन नहीं पाता था आज बन गया। हम सबसे पहले लोहागढ़ के दुर्ग पहुंचे और इसके मुख्य द्धार के सामने फोटो लेने के लिए जैसे ही कैमरा निकाला तुरंत धीमी धीमी बरसात शुरू हो गई।
किले में सबसे पहले हम जवाहर बुर्ज पर गए जहाँ मुझे कैमरे से फोटो लेते देख यहाँ के एक कर्मचारी ने कहा यहाँ फोटो लेना वर्जित है हालाँकि मुझे थोड़ा बुरा लगा किन्तु अफ़सोस नहीं हुआ क्योंकि मेरे पास जो मोबाइल था वो भी तो कैमरे का ही काम करता है और मोबाइल से यहाँ फोटो लेना वर्जित नहीं है। अब तक मेरी समझ में यह नहीं आया कि इन पुरानी इमारतों को कैमरे से भला ऐसी क्या तकलीफ होती होगी जो मोबाइल से नहीं होती।
खैर, हम किले के अंदर बाइक से ही भ्रमण कर रहे थे। कुछदेर बाद हम संग्रहालय पहुंचे जिसके खुलने में अभी वक़्त था इसलिए हम आगे बढ़ गए और किशोरी महल पहुंचे। यह महल किले के बीचोंबीच एक ऊँचे स्थान पर है यहाँ महाराजा सूरजमल जी की घोड़े पर बैठी हुई एक आलीशान मूर्ति स्थापित है और इसके आसपास जाट साम्राज्य का गौरवशाली इतिहास पत्थरों के बोर्डों पर अंकित है। मूर्ति के पीछे ही किशोरीमहल स्थित है जहाँ कभी महाराजा रहते होंगे, फ़िलहाल इसके अंदर मरम्मत का कार्य चल रहा था इस वजह से अभी यह पर्यटकों के भ्रमण के लिए बंद था। हम किले के दुसरे दरवाजे पर पहुंचे यह लोहिया गेट के नाम से जाना जाता है इसके पास ही किले वाले हनुमान जी का मंदिर भी स्थित है जो एक ऊँचे टीले पर स्थित है।
इसी गेट के सामने गंगा मंदिर दिखाई देता है। मैंने कुछ देर यहाँ आराम किया और शारुख भरतपुर की छोटी छोटी कचौड़ी खाने चला गया जो इसे सब्जी के साथ ना मिलकर कड़ी के साथ मिली जो उसके लिए एक नई और आश्चर्य वाली बात थी। अब मैं उसे कैसे समझाता कि यही तो राजस्थान का नाश्ता है जिसमे खुछ भी खाओ परन्तु मिलता कड़ी के साथ ही है।
वैसे हमारे यहाँ कड़ी को बेशन भी कहा जाता है क्योंकि यह बेशन से ही बनी होती है। नाश्ता करके जब शारुख आ गया तो हम गंगा मंदिर गए, शारुख नहीं गया, मुझे लगा शायद कट्टर मुसलमान है परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं था इसका एहसास मुझे तब हुआ जब हम गंगा मंदिर देखने के बाद प्रसिद्ध जामा मस्जिद देखने पहुंचे और शारुख इसके अंदर भी नहीं गया।
हालाँकि एक गैर सम्प्रदाय के धार्मिक स्थल में मुझे प्रवेश करने में थोड़ी हिचक सी महसूस हुई किन्तु शारुख ने मेरा हौंसला बढ़ाया और मैं मस्जिद में दाखिल हो सका और मस्जिद में अपने खुदा को प्रणाम कर इस मस्जिद की कुछ फोटो लेने के बाद मैं वापस बाहर आ गया। शारुख को ना किसी मंदिर में कोई दिलचस्पी थी नहीं मस्जिद में। उसे तो केवल सेल्फी पॉइंट्स ही पसंद थे फिर वो चाहे कहीं भी हो परन्तु धार्मिक स्थलों को उसने कभी भी सेल्फी पॉइंट नहीं समझा और उसकी यही बात मुझे बहुत पसंद आई।
इसके बाद हम लक्ष्मण मंदिर भी पहुंचे परन्तु अधिकांश स्थानों की तरह यह भी हमें बंद मिला और जैसे ही हमने अपनी बाइक इस मंदिर के दरवाजे के सामने रोकी अचानक कुछ लोग हमारी तरफ झपटे। पहले तो मैं डर गया और सोचने लगा शायद यह इस मंदिर को दिखने वाले गाइड तो नहीं है परन्तु बाद में एहसास हुआ वो तो सीमेंट पत्थरों का काम करने वाले रोजमर्रा के मजदूर थे जो हमें ग्राहक समझ कर हमारे पास आये और काम मांगने लगे।
अब वक़्त हो चला था भरतपुर से बाहर निकलने का और फतेहपुर सीकरी की तरफ पलायन करने का। अटलबंद दरवाजे के कुछ फोटो लेने के बाद हम राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 11 पर थे। यह राजमार्ग आगरा से बीकानेर के लिए गया है जिसका मुख्य उपयोग मुग़ल काल में शहंशाह अकबर ने अधिकतर किया था। रास्ते में हमें एक स्थान पर सम्राट अकबर की एक मूर्ति भी शेरों के साथ देखने को मिली और यहाँ कुछ फोटो लेने के बाद हम फतेहपुर सीकरी के लिए रवाना हो गए।
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लोहागढ़ दुर्ग |
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शारुख |
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मैं और लोहागढ़ |
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अष्टधातु दरवाजा |
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जवाहर बुर्ज के लिए रास्ता |
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जवाहर बुर्ज |
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लोहागढ़ के महल |
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महाराजा सूरजमल की एक प्रतिमा उनके महल के साथ |
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महाराजा सूरजमल |
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महाराजा सूरजमल और मैं |
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किशोरी महल और जाटों का इतिहास |
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किशोरी महल |
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किशोरी महल |
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किशोरी महल |
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किशोरी महल और शारुख |
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लोहागढ़ की मजबूत दीवारें |
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लोहागढ़ |
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भरतपुर की जामा मस्जिद |
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गंगा मंदिर, भरतपुर |
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गंगा मंदिर, भरतपुर |
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गंगा मंदिर का इतिहास |
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गंगा मंदिर |
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अटलबंध दरवाजा, भरतपुर |
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अटलबंध दरवाजा |
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शारुख खान |
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शारुख को सेल्फी की जगह मिल ही गई |
अगली यात्रा -
फतेहपुर सीकरी
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भरतपुर का नाम लोहागढ़ है यह बात नई जानने को मिली....शारुख ने जो किया उससे उसके लिए सम्मान बढ़ा.... छोटी छोटी कचौड़िया कढ़ी के साथ मुँह ने पानी लाने के लिए काफी है....
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