तीर्थराज भांजा बटेश्वर धाम - आगरा
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अब शाम करीब ही थी और मैं अभी भी आगरा से 72 किमी दूर बाह में ही था। नौगांवा किले से लौटने के बाद अब हम भदावर की प्राचीन राजधानी बाह में थे। मैंने सुना था कि यहाँ भी एक विशाल किला है परन्तु कहाँ है यह पता नहीं था। बस स्टैंड के पास पहुंचकर राजकुमार भाई को भूख लग आई पर उनका एक उसूल था कि वो जब तक मुझे कुछ नहीं खिलाएंगे खुद भी नहीं खाएंगे इसलिए मजबूरन मुझे भी कुछ न कुछ खाना ही पड़ता था। रक्षा बंधन का त्यौहार नजदीक था इसलिए मिठाइयों की दुकानें घेवरों से सजी हुई थीं। मैंने अपने लिए घेवर लिया और भाई ने वही पुरानी समोसा और कचौड़ी। दुकानदार से ही हमने किले के बारे में और बटेश्वर के लिए रास्ता पूछा। उसने हमें बाजार के अंदर से होकर जाती हुई एक सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये रास्ता सीधे बटेश्वर के लिए गया है इसी रास्ते पर आपको बाह का किला भी देखने को मिल जायेगा।
हम दुकानदार की बताई गई सड़क पर रवाना हो गए, बाह का मुख्य बाजार निकलजाने के बाद बाह क़स्बा भी समाप्त हो गया परन्तु किला हमें अभी तक नजर नहीं आया। एक ईंटों के भट्टे के पास पहुंचकर ताश खेल रहे कुछ लोगों से हमने किले के बारे में पुछा तो वो हमें ही बड़े आश्चर्य से देखने लगे और हमसे ज्यादा हमारी बाइक को। स्थिति कुछ गड़बड़ सी दिखी तो बिना देर लगाए बाइक का सेल्फ दबाया और हम आगे की तरफ रवाना हो गए। रास्ते में आई एक साधारण सी दुकानपर एक बूढी महिला बैठी हुई थी।
हमने उसी से पूछना उचित समझा तो उसने हमें उसी भट्टे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि उस ईंट के भट्टे के बराबर से एक रास्ता बाह के किले के लिए गया है जिस पर तुम्हे इस किले के अवशेष देखने को जरूर मिलेंगे क्यूँकि किला तो अब रहा नहीं है। हम वापस उस ईंटों के भट्टे की तरफ जाना तो नहीं चाहते थे पर मंजिल तक ना पहुँचते तो बड़ा अफ़सोस रहता। हिम्मत करके वापस हम उन्हीं लोगों की तरफ बढ़ चले जो वहां ताश खेल रहे थे।
हमने उसी से पूछना उचित समझा तो उसने हमें उसी भट्टे की तरफ इशारा करते हुए कहा कि उस ईंट के भट्टे के बराबर से एक रास्ता बाह के किले के लिए गया है जिस पर तुम्हे इस किले के अवशेष देखने को जरूर मिलेंगे क्यूँकि किला तो अब रहा नहीं है। हम वापस उस ईंटों के भट्टे की तरफ जाना तो नहीं चाहते थे पर मंजिल तक ना पहुँचते तो बड़ा अफ़सोस रहता। हिम्मत करके वापस हम उन्हीं लोगों की तरफ बढ़ चले जो वहां ताश खेल रहे थे।
जैसे ही उन लोगों ने हमें वापस अपनी तरफ आते देखा वो सभी उठ खड़े हुए पर हम बिना रुके अब उस रोड पर मुड़ चुके थे जो उस महिला ने हमें बताया था। यह रास्ता बाह की एक बस्ती की तरफ गया था और जब हम उस बस्ती में पहुंचे तो पता चला किला तो यहीं था पर अब नहीं रहा हाँ उस समय का एक विशाल द्धार जरूर हमें देखने को मिला जो अपने गौरवशाली इतिहास का वर्णन कर रहा था।
कुछ देर इस द्धार को देखने के बाद हम अब अब बटेश्वर की तरफ रवाना हो लिए। बटेश्वर यमुना नदी के किनारे बना एक हिंदू तीर्थ स्थान है साथ ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी का गांव भी है और इतना ही नहीं भगवान श्री कृष्ण के पिता बसुदेव जी का राज्य भी यही था। बसुदेव जी यहीं से देवकी से विवाह हेतु मथुरा गए थे उस समय यह स्थान शूरसेन के नाम से प्रसिद्ध था।
कुछ देर इस द्धार को देखने के बाद हम अब अब बटेश्वर की तरफ रवाना हो लिए। बटेश्वर यमुना नदी के किनारे बना एक हिंदू तीर्थ स्थान है साथ ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी का गांव भी है और इतना ही नहीं भगवान श्री कृष्ण के पिता बसुदेव जी का राज्य भी यही था। बसुदेव जी यहीं से देवकी से विवाह हेतु मथुरा गए थे उस समय यह स्थान शूरसेन के नाम से प्रसिद्ध था।
कुछ समय बाद हम यमुना के विशाल बीहड़ों के बीच से निकलकर बटेश्वर धाम में थे। बरसात के दिन थे इसलिए यमुना अपने तीव्र बहाब में बह रही थी। यहाँ यमुना के किनारे क्रमानुसार शिवजी के 108 मंदिरों की श्रृंखला है जिसमें द्वादश ज्योतिर्लिंग दर्शनीय हैं और सबसे बड़ा मंदिर श्री बटेश्वर नाथ जी का है। पुराने किलों और खण्डहरों की यहाँ भरमार है। जैसा कि मैंने पहले भी बताया था कि यह स्थान भगवान कृष्ण के समय में शूरसेन कहलाता था और बाद में तीर्थस्थान होने की वजह से भदावर राजाओं ने बटेश्वर नाथ जी को अपने कुलदेवता के रूप में स्थान भी दिया और यहाँ आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए अनेकों सराय बनवाई। यही सराय आज यहाँ किलों के रूप में दिखी देती हैं। यहाँ काफी ऊँचे ऊँचे मिटटी के बीहड़ है और चारों और से एक दीवार के परकोटे से घिरे हैं इसलिए यह देखने में किले जैसे प्रतीत होते हैं।
बटेश्वर में देखने को बहुत कुछ था परन्तु समय की माँग थी कि हमें अँधेरा होने से पहले आगरा की तरफ कूच कर देना चाहिए था। श्रावण का महीना लग चूका था और कल श्रावण का पहला सोमवार था इसलिए भोलेबाबा के भक्त दूर दूर से काँवर लाकर लाइन लगाकर खड़े हुए थे और रात के बारह बजने का इंतज़ार कर रहे थे। इसलिए अभी फ़िलहाल बटेश्वर नाथ जी के मंदिर में कोई भीड़ नहीं थी हमने बड़े आराम से दर्शन किये और कुछ देर यमुना जी के दर्शन भी किये। दर्शन करने के पश्चात हम आगरा की तरफ वापस रवाना हो गए।
वापस बाह की तरफ |
बाह के किले का एकमात्र अवशेष यह द्धार |
बाह किले प्रवेश द्वार |
बटेश्वर की तरफ |
बटेश्वर द्धार |
बटेश्वर |
बटेश्वर |
बटेश्वर में यमुना |
बटेश्वर |
प्राचीन किला |
नौका विहार |
बटेश्वर मंदिर समूह |
बटेश्वर किले के अवशेष |
बटेश्वर किले के अवशेष |
बटेश्वर धाम |
बटेश्वर में यमुना |
कभी इनमे दुकाने हुआ करती थीं और यहाँ बटेश्वर का बाजार सजता था |
बटेश्वर |
बटेश्वर मंदिर समूह |
बटेश्वर धाम |
बटेश्वर धाम और यमुना |
बटेश्वर धाम |
बटेश्वर नाथ जी द्वार |
बटेश्वर धाम |
कतारों में खड़े काँवरिये |
बटेश्वर मंदिर |
बटेश्वर मंदिर |
बटेश्वर मंदिर |
बटेश्वर मंदिर |
श्री बटेश्वर नाथ जी |
गौरी शंकर मंदिर |
बटेश्वर नाथ जी मंदिर |
गौरी शंकर जी गणेश जी के साथ |
बटेश्वर मंदिर |
बटेश्वर मंदिर |
बटेश्वर रेलवे स्टेशन |
बटेश्वर रेलवे स्टेशन |
बटेश्वर रेलवे स्टेशन |
भदावर यात्रा समाप्त
धन्यवाद
वाह भदावर की राजधानी बाह...और यह नियम गलत है जब तक खुद नही खाएंगे वाला..अलग तरीके की जगह की बढ़िया जानकारी और बढ़िया फोटोस..
ReplyDeleteA small, but crisp & interesting blog. Well written.. Keep writing....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लिखा है एक बार जाना तो बनता है
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लेख और चित्र
ReplyDeleteBadhiya jankari mili.
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