अलवर के ऐतिहासिक स्थल और बाला किला
करीब 2 महीने पैर में चोट लगने और प्लास्टर चढ़ा रहने के कारण मैं कहीं की यात्रा करना तो दूर अपने घर से बाहर निकल भी नहीं पा रहा था, पर आज जब दो महीने बाद मुझे प्लास्टर से मुक्ति मिली तो मैं खुद को यात्रा पर जाने से नहीं रोक पाया। दीपावली निकल चुकी थी, पिछले दिनों अपनी ननिहाल आयराखेड़ा से लौटा था और आज जब शनिवार की छुट्टी हुई तो सर्दियों में सुबह की इस सुनहरी धुप में मैंने अपनी बाइक राजस्थान की तरफ दौड़ा दी। आज संग में जाने के लिए कोई भी सहयात्री मुझे अपने साथ नहीं मिला तो मैं अकेला ही रवाना हो गया।
मथुरा से सौंख होते हुए मैंने राजस्थान की सीमा में प्रवेश किया और थोड़ी ही देर में कुम्हेर पहुंचा। पिछली साल मैं और उदय
कुम्हेर का किला देखते हुए भानगढ़ तक यहीं होकर गए थे। आज मुझे यहाँ आकर उदय की याद आ गई मैंने उदय से भी अपने साथ चलने के लिए कहा था परन्तु काफी काम होने की वजह से वो मेरे साथ इस यात्रा पर नहीं आ सका। कुम्हेर में कुछ देर रुकने के बाद मैं डींग की तरफ चल पड़ा। यह राजस्थान का स्टेट हाईवे है जो काफी शानदार बना हुआ है। सर्दियों का आगाज शुरू हो चुका है, धीमी धीमी सर्दी का एहसास मुझे बाइक चलाते वक़्त हो रहा था, जैकेट के अंदर गर हवा को थीड़ो सी भी घुसने की जगह मिल जाती तो ऐसा लगता मानो जैसे कोई सुई सी चुभा रहा हो।
कुछ ही समय बाद मैं जलमहलों की नगरी डींग में था, यहाँ का विशाल किला इस नगर के गौरवशाली इतिहास की याद दिलाता है। डींग में कुछ देर रुकने के बाद मैं अलवर की तरफ बढ़ चला था जो अब यहाँ से 60 किमी दूर था, सुबह के ११:३० बज चुके थे अलवर अभी भी दूर था इसलिए बाइक में फर्राटा भरा और मैं अलवर की राह पर था, अगला बड़ा क़स्बा नगर आया। पिछली बार जब मैं और उदय नगर में आये थे तब यहाँ के बड़े बड़े जलेबा खाये थे। आज बिना जलेबा खाये ही मैं आगे बढ़ चला और जब अरावली की पहली पहाड़ी मेरी राह में आयी तो मैं रूक गया और इस पहाड़ी के कुछ फोटोग्राफ लेने के बाद मैं फिर से अलवर की तरफ बढ़ गया।
अलवर का किला, बाला किला के नाम से जाना जाता है यह एक ऊँचे पहाड़ पर बना हुआ है, जब मैं इस किले को देखने के लिए पहाड़ पर बाइक सहित चढ़ने लगा तो सामने एक गेट नजर आया, यह क्षेत्र सरिस्का टाइगर रिज़र्व के अंतर्गत शामिल है और यहाँ से किले को देखने के लिए टिकट खरीदना पड़ता है। टिकट खरीदकर मैं भी आगे बढ़ चला, गोल गोल घुमावदार रास्ते शुरू हो गए और कुछ ही देर बाद किले की चारदीवारी मुझे पहाड़ पर बनी हुई नजर आने लगी, इसे देखकर एकबार तो ऐसा लगा जैसे कोई बड़ी पूंछ वाला जानवर पहाड़ पर अपनी पूँछ फैलाकर बैठा हो। यहाँ आकर अरावली पर्वतों की श्रृंखला देखने में बहुत खूबसूरत लगती है।
सबसे पहले मुझे इसका पहला गेट नजर आया जिसका नाम जय पोल था। इसके पश्चात एक करणी माता का मंदिर भी रास्ते में देखने को मिलता है जो पहाड़ की तलहटी में स्थित है। यहाँ जाने के लिए मुझे पैदल ही जाना पड़ता जो इस समय मेरे लिए एक असंभव कार्य था। इसलिए माता को ऊपर से ही प्रणाम करके मैं आगे बढ़ चुका था। कुछ समय बाद मैं किले के दरवाजे तक पहुँचा और अपनी बाइक किले के बाहर खड़ी करके अंदर गया। चौकोर आकार में किले का आँगन ही दर्शकों के लिए खुला हुआ है जिसमे इस किले के राजाओं की तोपें आज भी सुरक्षित रखी हुई हैं। महल तक जाने के लिए आम लोगों का प्रवेश निषेध है इसलिए इस आँगन में ही कुछ देर रुकने के बाद मैं बाहर आ गया।
कहते हैं इस किले का निर्माण 15 वीं शताब्दी में में हसन मेवाती ने कराया था उसके बाद यह किला मराठाओं के कब्जे में रहा और उसके बाद इस किले पर कछवाहा राजपूतों का शासन रहा। इस किले को लेकर कभी कोई युद्ध नहीं हुआ। मुग़ल काल में जहाँगीर ने यहाँ कुछ समय भी बिताया था। किले के बाहर बने चौकोर आँगन में एक हनुमान जी का मंदिर भी है इन्हें तोप वाले हनुमानजी कहा जाता है। हनुमान जी भक्तों के लिए मंगलवार और शनिवार किले में प्रवेश निशुल्क रहता है।
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अरावली की पहली श्रृंखला |
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डींग से 14 किमी आगे |
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बाला दुर्ग की ओर |
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दुर्ग की मजबूत दीवारें |
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अरावली |
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अलवर दुर्ग का एक व्यू |
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जय पोल |
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नीचे भी कुछ था , क्या। ... |
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वहां तक पहुंचना है |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला , अलवर |
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बाला किला , अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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बाला किला, अलवर |
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करणी माता मंदिर |
अब वक़्त था मूसी रानी की छतरी देखने का, इसलिए किले से उतरकर जब मैं नीचे शहर में आया तब एक बोर्ड लगा दिखाई दिया जिसपर मूसी रानी की छतरी जाने के लिए लोकेशन दे रखी थी। उसी लोकेशन के आधार पर मैं भी चल दिया और कुछ देर बाद मैंने अपने आप को अलवर न्यायलय परिसर और कचहरी में पाया। कहीं भी कोई छतरी नजर नहीं आई। कुछ लोगों से मैंने पुछा तो उन्होंने बताया, बाइक यहीं खड़ी कर दो और पैदल चले जाओ, वो सामने झीना बना है उससे होकर छतरी तक पहुँच जाओगे।
न्यायलय परिसर एक ऐसी जगह होती है जहाँ सर्वाधिक चोरियां होती है मैं अपनी बाइक को किसी भी रिस्क पर अकेला नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए मैं न्यायलय परिसर से बाहर आया और गलियों में होते हुए आख़िरकार छतरी के समीप पहुंचा। मेरे सामने किसी का घर था और रास्ता समाप्त। घर में खड़े एक भाई ने जब मुझे बताया कि बाइक यहाँ खड़ी कर दो, छतरी इस घर के पीछे ही है। मैंने बाइक वहीँ खड़ी कर छतरी तक पहुंचा तो जाना यह छतरी तक आने का पीछे वाला मार्ग था मुझे घूमते हुए आगे वाले मार्ग से आना चाहिए था। खैर जो भी हो पहुँच तो गया ही था, उत्तर से नहीं तो दक्षिण ही सही।
मूसी महारानी की छतरी अलवर के मुख्य सुन्दर स्थानों में से एक है। यह काफी सुन्दर और बलुआ पत्थरों से बनाई गई शानदार ईमारत है जिसमें संगमरमर का काफी शानदार प्रयोग किया गया है। मूसी महारानी अलवर के महाराज बख्तियार सिंह की पत्नी थी और उनकी मृत्यु उपरांत मूसी महारानी भी इसी स्थान पर सती हो गईं जिनकी याद में विनय सिंह जी ने इस खूबसूरत छतरी का निर्माण कराया।
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मूसी महारानी की छतरी |
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मूसी महारानी की छतरी |
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मूसी महारानी की छतरी |
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मूसी महारानी की छतरी |
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मूसी महारानी की छतरी |
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मूसी महारानी की छतरी |
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अलवर महल |
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मूसी महारानी की छतरी |
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सती स्थल |
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अलवर का भाई जिसने मेरे फोटो खींचे |
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सुधीर उपाध्याय , मूसी महारानी के पास |
अलवर रेलवे स्टेशन के ठीक बाहर एक पांच मंजिला ऐतिहासिक ईमारत दिखाई देती है जो फ़तेह जंग का मकबरा है। फतेहजंग, मुग़ल बादशाह शाहजहाँ के मंत्री थे जो राजपुताना अभियान पर उनके साथ थे। मेवात विजय के दौरान शाहजहां ने उन्हें अलवर का सूबेदार नियुक्त कर दिया था। उन्हीं के याद में यह मकबरा आज भी अपनी बहुमंज़िलों के साथ स्थित है। मैं जब इसके अंदर गया तो मुख्य कब्र का रास्ता बंद था और मैं इसे बाहर से ही देखकर वापस आ गया।
राजस्थान के अन्य किले :-
बहुत सुंदर लेख,आप जब बाल किले से नीचे उतरे तो रास्ते में करनी माता का मंदिर भी था आप उसको भी देखते वो किले से भी सुन्दर लगता श्रीमान जी,बाकि किले में टी एक तोप के अलावा कुछ भी नही ह और आने जाने के 20 किलोमीटर और सायद 20 का टिकट ह
ReplyDeleteबहुत बढ़िया पॉस्ट
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