इतिहास की मलिका ताज़बीबी और उसका मक़बरा
ब्रज में ऐतिहासिक धरोहरों की कोई कमी नहीं है। यह पौराणिक तो है ही साथ ही ऐतिहासिक भी है। यहाँ सदा से ही न सिर्फ हिन्दुओं का वर्चस्व रहा है बल्कि मुसलमानों ने भी ब्रज को वो सम्मान दिया है जो शायद ही किसी अन्य स्थान को मिला हो। हकीकत है कि एकबार जो ब्रजभूमि में आ गया तो वो फिर सारी दुनियादारी को भूलकर बस यहीं का होकर रह जाता है। ब्रजभूमि की धरा पर मंजिलों को तलाश करते हुए आज मैंने उसे तलाश किया जिसने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी परन्तु बदलते वक़्त के साथ इतिहास ने भी उसे अपने आप से दूर कर दिया परन्तु भगवान् कृष्ण की इस पावन धरती पर हर उस सख्श को स्थान मिला है जिसे कहीं कोई स्थान न मिला हो, फिर चाहे वो कोई गरीब हो या फिर राजमहलों में रहने वाला कोई शाही इंसान।
पिछली बार जब रसखान की समाधी पर गया था तो मुझे ज्ञात हुआ था कि यहीं कहीं आसपास इतिहास की मलिका और मुग़ल बादशाह अकबर की बेगम ताज़बीबी का मक़बरा भी है परन्तु वहां जाने का रास्ता कहाँ से है यह नहीं पता था इसलिए बिना देखे ही लौट आया। आज मैं और मेरे साथ काम करने वाला मेरा दोस्त हरेंद्र कंपनी की गाड़ी लेकर गोकुल में रसखान की समाधी पर भी गए। इसी समाधी के पास एक महात्मा जी बैठे हुए थे जब हमने उनसे ताज़बीबी का पता पूछा तो उन्होंने तुरंत बता दिया जबकि मैं जाने कितने लोगों से इसके बारे में पूछ चुका था परन्तु अफ़सोस इतिहास की इस महान हस्ती का लोग नाम तक नहीं जानते थे, पता क्या खाक बता पाते।
रसख़ान की समाधी के प्रांगण के बाहर एक खेत की तरफ इशारा करते हुए महात्मा जी ने बताया कि वो रही ताज़बीबी, जाओ जाकर मिल आओ। मैं नहीं जा सकता, मुझसे उसका दुःख देखा नहीं जाता। हम आश्चर्य में थे और महात्मा जी की तरफ देखते हुए बोले दुःख ? कैसा दुःख? उन्होंने कहा जब जाओगे तो स्वतः ही पता चल जायेगा। हमने गाड़ी उस खेत की तरफ मोड़ दी, अभी हम रसखान के प्रांगण में ही थे और सामने लोहे की कँटीली रेलिंग लिए हुए दीवार खड़ी हुई थी। इसका मतलब था कि अब आगे का सफर हमें बिना गाड़ी के ही तय करना था। हमने अपनी गाड़ी वहीँ लॉक की और आगे बढ़ चले। इस ऊँची दीवार और लोहे की रैलिंग को पार करके जब हम उस खेत की तरफ आगे बढे तो एक ऊँचा सा टीला दिखाई दिया जो चारोंतरफ से कँटीली झाड़ियों से ढका हुआ था। अभी तक हम कुछ भी नहीं समझ पाए थे परन्तु जैसे ही मुझे उन झाड़ियों में पत्थरों के पिलर दिखाई दिए मैं समझ गया, हो न हो हम जिसकी तलाश में हैं वो यहीं है।
जब हम उस टीले के और नजदीक पहुंचे तो पता चला यही वो स्थान है जिसकी हमें तलाश थी परन्तु अभी तक कुछ भी स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था। ताजबीबी का मकबरा पूरी तरह झाड़ियों से ढका हुआ था और मकबरे की तरफ जाने का रास्ता भी हमें बड़ी मुश्किल से खोजना पड़ा। जब हम मकबरे के करीब पहुंचे तो मेरी आँखे फटी की फटी रह गई। इतिहास के इतने महान शासक और मुग़ल साम्राज्य की महारानी के मकबरे को छत तक नसीब नहीं थी। मकबरा के समाधी का पत्थर भी यहीं कहीं झाड़ियों में दबा हुआ पड़ा था। मक़बरा काफी शानदार और गोलाई की आकृति में तराशे हुए पत्थरों का बना हुआ था परन्तु यह फ़िलहाल पुरातत्व विभाग द्वारा अपेक्षा का शिकार था। यहाँ कोई भी सैलानी नहीं आता केवल वही पहुँच पाता है जो इतिहास की गहराइयों में उतरकर ताज़बीबी का पता ढूंढ लाया हो और ब्रज में आकर अपनी मंजिल को खोज लेता है। हम गए तो थे ताज़बीबी से मिलने का उत्साह और ख़ुशी दिल में लेकर परन्तु लोटे थे अपनी आँखों में आंसूं लेकर।
ताज़बीबी
मुग़ल राजघराने में रहने वाली भक्तिभाव में आस्था रखने वाली ताज़बीबी ने एक बार अपने मौलवियों और इमाम से पूछा क्या अल्लाह का दीदार किया जा सकता है। मौलवियों ने उन्हें हाँ में उत्तर दिया और वो अल्लाह के दीदार के लिए काबाशरीफ़ के निकल पड़ीं। राह में जब उनके कदम ब्रज में पड़े और उन्होंने अपना पहला पड़ाव यहाँ डाला तो मंदिरों से आती घंटो घड़ियालों की आवाज सुनकर अपने सैनिकों से पुछा कि यह क्या है ? दीवान ने उत्तर दिया यहाँ कुछ लोगों का छोटा खुदा रहता है। ताज ने उनसे कहा कि वो उस छोटे खुदा से मिलकर ही आगे बढ़ेंगी। जब वह मंदिर के प्रवेश द्धार पर पहुंची तो अलग संप्रदाय का होने के कारण मंदिर के पुरोहित ने उन्हें अंदर प्रवेश नहीं करने दिया। बाहर से ही श्री बाँकेबिहारी जी के दर्शन कर वह सारी दुनियादारी को भूलकर उनमे ऐसे रम गई जैसे कि उन्हें केवल इस छोटे खुदा की ही तलाश थी। अब उन्हें न किसी राजघराने की चिंता रही और नाही किसी धर्म की। भगवान श्रीकृष्ण के भक्तिरस में डूबकर वह गाने लगी। कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने उनके समर्पित भक्तिभाव को देखकर स्वयं दर्शन देकर कृतार्थ किया था। भक्तिमति ताज सदा के लिए अमर हो गई और अंत में गोस्वामी विट्ठलनाथ जी की सेविका बनकर ब्रज में ही निवास करने लगीं। बल्लभ सम्प्रदाय में उन्हें अकबर की पत्नी कहा गया है। उन्होंने कृष्ण भक्ति के कवित्त, छंद और धमार लिखे जो आज भी पुष्टमार्गीय मंदिरोंमें गाये जाते हैं।
सुनो दिलजानी, मेरे दिल की कहानी तुम, हुस्न की बिकानी, बदनामी हू सहूंगी मैं। .
देव पूजा ठानी, मैं निमाज हूँ भुलानी, तजे कलमा कुरान, तेरे गुनन गहूँगी मैं।।
सांवरा सलोना सरताज सर कुल्लेदार, तेरे नेह दाघ में निदाघ ह्वै दहूंगी मैं।
नन्द के फरजंद कुर्बान तानी सूरत पे, हूँ तो मुगलानी, हिन्दुआनी ह्वै रहूँगी मैं।।
( ताज़बीबी )
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रसख़ान समाधी के प्रांगण में वाच टावर |
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ताजबीवी की तलाश में एक रास्ता |
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पहली झलक , ताज़बीबी का मक़बरा |
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समाधी पत्थर के जगह लगे ये पत्थर के टुकड़े |
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ताज़बीबी का मकबरा |
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लौटते हुए वक़्त रास्ता मिल गया था |
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मकबरे के आसपास झाड़ियां |
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दूर से दिखाई देता ताज़बीबी का मक़बरा |
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बेलपत्र का फल तोड़ता हरेंद्र और सामने लगी रेलिंग जिसे हम फलांग कर आये थे |
स्थिति - रमण रेती, गोकुल, मथुरा, उत्तर प्रदेश।
नजदीकी रेलवे स्टेशन - मथुरा जंक्शन
- रसखान जी की समाधी - 500 मीटर
- रमणरेती - गोकुल 500 मीटर
- गोकुल धाम 2 किमी
- चौरासी खम्भा मंदिर - महावन 1 किमी
- नन्द किला - महावन 1 किमी
- ऊखल बंधन आश्रम 700 मीटर
- ब्रह्माण्ड घाट 2 किमी
- श्री चिंता हरण महादेव मंदिर 3 किमी
बढ़िया खोजपरक यात्रा !
ReplyDeleteआभार
Deleteपढ़ कर अच्छा लगा
ReplyDeleteकमेंट करते रहिएगा मुझे भी अच्छा लगेगा
Deleteबाप रे ऐतिहासिक जगह की ऐसी दुर्दशा...ताज बीबी की काबा की रास्ता में ब्रिज का प्रेम पढ़कर कुछ नया पता चला...ऐसी जगहों को लोगो तक पहुचना चहिए....घुमक्कड ही ऐसी जगहों को खोज कर लोगो को बता सकता है इनके बारे में..मुझे आपकी यह यात्रा दिल से बहुत अच्छी लगी...
ReplyDeleteसत्य कहा भ आपने
DeleteExcellent post .
ReplyDeleteThanks ji
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