रसखान समाधि
महावन घूमने के बाद रमणरेती की तरफ आगे ही बढ़ा था कि रास्ते में एक बोर्ड लगा दिखाई दिया, और उसी बोर्ड की लोकेशन पर मैं भी चल दिया। आज मेरी गाडी घने जंगलों के बीच से निकलकर उस महान इंसान की समाधि पर आकर रुकी जिनके नाम को हम इतिहास में ही नहीं बल्कि अपनी हिंदी की किताब में भी बचपन से पढ़ते आ रहे थे और वो थे कृष्ण भक्त रसखान। आज यहाँ एकांत में रसखान जी की समाधी देखकर थोड़ा दुःख तो हुआ पर ख़ुशी भी हुई कि आज एक ऐसे भक्त के पास आया हूँ जिसने मुसलमान होते हुए भी भगवन कृष्ण की वो भक्ति पाई जो शायद कोई दूसरा नहीं पा सका।
रसखान जी के कुछ पद हमें आज भी याद रहते हैं जैसे कि । ...
या लकुटी अरु कामरिया पर, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख, नंद की धेनु चराय बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सों, ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हू कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
ऐसे ही अनेकों पद महाकवि रसखान जी ने गाये जिनका मतलब समझ कर इस घोर कलियुग में भी हम अपनी संस्कृति बरकरार रखते आये हैं। रसखान जी का इतिहास में भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। रसखान जी के बारे में सम्पूर्ण जानकारी आपको एक फोटो में लिखे संक्षिप्त विवरण में मिल जाएगी। दो धर्मों के मेल की अनूठी मिशाल वाले ऐसे महान भक्त और महाकवि को बारम्बार मेरा प्रणाम।
रसखान जी की समाधी गोकुल से रमणरेती आते समय रास्ते में पड़ती है. भारतीय पुरातत्व विभाग वालों ने इस स्थान को काफी सहेजने की व्यवस्था की है परन्तु किसी पर्यटक या तीर्थ यात्री के यहाँ ना के बराबर आने के कारण यह स्थान आज भी अपेक्षा का शिकार है आइये देखते हैं रसखान समाधि की एक झलक।
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गोकुल मार्ग |
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रसखान समाधी |
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एक विशाल बरगद |
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रसखान समाधी |
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रसखान जी की समाधी |
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रसखान जी की समाधी और सुधीर उपाध्याय |
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रसखान समाधी |
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रसखान समाधी |
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रसखान समाधी के पास वाच टावर |
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रसखान समाधी |
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रसखान समाधी |
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ReplyDeleteमानुष हों तो वहीं रस खान बसों ब्रज गोकुल गाँव......
ReplyDeleteमानुष हों तो वहीं रस खान बसों ब्रज गोकुल गाँव......
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