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भानगढ़ - प्रसिद्ध हॉन्टेड पैलेस
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भानगढ़ |
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अजबगढ़ से निकलते ही शाम हो चली थी, घडी इसवक्त चार बजा रही थी और अभी भी हम भानगढ़ किले से काफी दूर थे। सुना है इस किले में सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के पश्चात प्रवेश करना वर्जित है। अर्थात हमें यह किला दो घंटे के अंदर घूमकर वापस लौटना था। मैंने सोचा था कि भानगढ़ किला भी अजबगढ़ की तरह वीरान और डरावना सा प्रतीत होता होगा परन्तु जब यहाँ आकर देखा तो पता चला कि इस किले को देखने वाले हम ही अकेले नहीं थे, आज रविवार था और दूर दूर से लोग यहाँ इस किले को देखने आये हुए थे। किले तक पहुँचने वाले रास्ते पर इतना जाम था कि लग रहा था कि हम किसी किले की तरफ नहीं बल्कि किसी बिजी रास्ते पर हों।
गोला का बास से भानगढ़ किले की दूरी लगभग एक किमी है और इस किले का पुरातत्व विभाग का दफ्तर किले से बाहर गोला का बास में ही बना है, जबकि अबतक हमने किसी अन्य ऐतिहासिक किले या ईमारत के पुरातत्व विभाग का दफ्तर हमेशा उसी किले या ईमारत के पास ही बना देखा है। कहते हैं कि यह एक हॉन्टेड पैलेस है जहाँ इस किले में रहने वाले लोगों की आत्माएं किसी श्राप की वजह से आज भी इसी किले में भटकती हैं, जो भी इंसान रात को यहाँ रुका है वह अगले दिन इस धरती पर रुकने लायक नहीं रहा है। इस किले के भवन पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त हैं और खंडहरों में तब्दील हो चुके हैं।
किले के अंदर प्रवेश करते ही सबसे पहले हनुमानजी का मंदिर पड़ता है। किले के पांच प्रवेश द्वारों में से यह मुख्य प्रवेश द्धार है जिसे हनुमान द्धार कहते हैं। हनुमानजी को प्रणाम करके हम आगे बढ़ गए, सामने एक बाजार के खंडहर नजर आते हैं, यह जौहरी बाजार कहलाता है। जब इस किले में आबादी बस्ती होगी तो सचमुच माना जा सकता है की इसकी ख़ूबसूरती की तुलना किसी अन्य किले से नहीं की जा सकती होगी। एक श्राप के कारण इस किले की ख़ूबसूरती और रचनाएँ आज खंडहरों में बदल चुकी हैं। यही वक़्त की शक्ति का प्रमाण है कि कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, वक़्त से बड़ा नहीं हो सकता। समय सर्वदा बलवान था और हमेशा रहेगा।
जौहरी बाजार के बाद हम किले के मुख्य क्षेत्र में पहुँचते है, एक द्धार पार करने के बाद सामने हरी भरी घास के पार्क देखकर मन खुश हो जाता है, इस किले की देखरेख भारत सरकार के पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है। हमारेसीधे हाथ की तरफ एक मंदिर देखने को मिला, यह गोपीनाथ मंदिर है। इसी मंदिर के पीछे पहाड़ की तलहटी में एक राजमहल स्थित है जो किसी समय सात मंजिला था भी खंडहरों में तब्दील हो चुका है और इसकी केवल अब चार मंजिलें ही देखी जा सकती हैं। यहाँ चमगादड़ों का राज है जो अँधेरे कमरों में दीवारों से चुपकी रहती हैं। यहाँ रानी रत्नावती का महल भी हमने देखा जो किले के इतिहास का प्रमुख पात्र थीं।
राजमहल से निकलकर हम सोमेश्वर मंदिर के दर्शन करने पहुंचे, यह भगवान शिव् का मंदिर है यहीं एक पहाड़ से आती एक नदी के पानी स्त्रोत भी स्थित है जिसका पानी एक कुंड में भरा रहता है। यहीं से एक राट्स जंगलों के बीच होकर एक अन्य मंदिर के तरफ जाता है यह केशव राय मंदिर है और इसी के ठीक सामने स्थित है मंगलादेवी का मंदिर स्थित है। एक खास बात इन खूबसूरतों मंदिरों में से किसी भी मंदिर में कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं है।
हां मंगलादेवी मंदिर में दीवार पर हमें देवी माँ की एक तस्वीर उभरी हुई जरूर दिखाई दी। कहते हैं यह एक डरावनी जगह है पर मुझे यहाँ डर जैसी कोई फीलिंग नहीं हुई बल्कि यह किला देखने के बाद मैं इस किले की तारीफ़ ही करना चाहूंगा कि वाकई जब इस किले में जीवन होता होगा तो क्या जीवन होता होगा वो। किले को देखने के बाद हम दौसा की तरफ रवाना हो गए और दो घंटे के पश्चात् मथुरा पहुँच गए।
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जौहरी बाजार अवशेष , भानगढ़ |
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जौहरी बाजार , भानगढ़, राजस्थान |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ ,राजस्थान |
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भानगढ़ निवासी |
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पुराना बरगद, भानगढ़ |
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गोपीनाथ मंदिर , भानगढ़ |
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भानगढ़ का एक दृशय |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ अवशेष |
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गोपीनाथ मंदिर , भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ और सुधीर उपाध्याय |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ |
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मंगलादेवी मंदिर , भानगढ़ और सुधीर उपाध्याय |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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भानगढ़ |
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पुरातत्व विभाग दफ्तर, भानगढ़ |
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भानगढ़ से वापसी |
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भानगढ़ में नए मित्र |
इस यात्रा के सभी भाग लिंक के रूप में नीचे उपलब्ध हैं 👇THANKS YOUR VISIT
🙏
सैटिंग बदलाव करने पर आपका धन्यवाद भाई।
ReplyDeleteभानगढ के भूत मिले या नहीं,
हमें तो नहीं मिले थे भाई
हमें भी नहीं मिले। बस जगह थोड़ी डरावनी सी थी।
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