UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
TRIP DATE :- 05 JAN 2021
कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 11
आदिलशाही राज्य बीजापुर
इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।
दक्षिण भारत में मुहम्मद बिन तुगलक के लौट जाने के बाद बहमनी सल्तनत की शुरुआत हुई थी, यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी सल्तनत थी किन्तु सल्तनत चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, उसके शासक कितने भी शक्तिशाली क्यों ना हो, हमेशा स्थिर नहीं रहती। एक ना एक दिन उसे इतिहास के पन्नों में समाना ही होता है और ऐसा ही बहमनी सल्तनत के साथ हुआ। बहमनी सल्तनत का, महमूद गँवा की मृत्यु के बाद से ही पतन होना प्रारम्भ हो गया था और जब इस सल्तनत को कोई योग्य सुल्तान नहीं मिला तो यह पांच अलग अलग प्रांतों में विभाजित हो गई। इनमें से ही एक बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत थी जिसके दमन का प्रमुख कारण मराठा और मुग़ल थे।
बीजापुर सल्तनत और उसके सुल्तान
युसूफ आदिलशाह ( 1489 -1510 ई. )
बीजापुर में आदिलशाही सल्तनत की स्थापना 1489 ई. में युसूफ आदिलशाह ने की थी। प्रारम्भ में युसूफ आदिलशाह, महमूद गँवा की सेना में अपनी योग्यता के बल पर उच्च पद पर पहुँच गया था। बहमनी सल्तनत के पतन के पश्चात् वह बीजापुर का स्वतंत्र शासक बन गया। वह बड़ा ही उदार एवं न्यायप्रिय शासक था। उसने अपने दरबार में हिन्दुओं को उच्च एवं महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया था।
इस्माइल आदिलशाह ( 1510 - 1534 ई. )
युसूफ आदिलशाह की मृत्यु के बाद इस्माइल आदिलशाह बीजापुर का सुल्तान बना। उसने इस्लाम धर्म के शिया सम्प्रदाय की ओर अपना रुख किया और शिया सम्प्रदाय ही सल्तनत का प्रमुख सम्प्रदाय बन गया।
मल्ल आदिलशाह ( 1534 -1534 ई. )
हालांकि यह अल्प समय के लिए ही बीजापुर का सुल्तान बना अतः इस शासक के बारे में भारतीय इतिहास में अधिक वर्णन नहीं मिलता है परन्तु इतना अवश्य है कि यह अत्यंत ही दुष्ट प्रवति का शासक था अतः इसे अँधा करके गद्दी से उतार दिया गया।
इब्राहिम आदिलशाह I ( 1534 - 1557 ई. )
इब्राहिम आदिलशाह प्रथम ने शिया धर्म को त्यागकर सुन्नी धर्म को सल्तनत का मुख्य सम्प्रदाय चुना। उसने अपने शासनकाल को बहुत शांतिपूर्ण तरीके से चलाया और नजदीकी राज्यों की यात्रायें भी कीं।
अली आदिलशाह I ( 1557 - 1580 ई. )
अली आदिलशाह प्रथम बीजापुर के आदिलशाही वंश के पाँचवे सुल्तान थे। उसने सुन्नी धर्म को हटाकर शियाधर्म को महत्व दिया। 1558 ई. में आदिलशाह प्रथम ने, विजय नगर के राजा राम के साथ मिलकर अहमद नगर पर चढ़ाई की और नगर को लूटा। अहमदनगर के शासक हुसैन निजामशाह ने अपनी पुत्री चाँदबीबी का विवाह अली आदिलशाह के कर दिया। विजयनगर के शासक राजा राम ने अहमदनगर की जनता के साथ दुर्व्यवहार किया जिस कारण अली आदिलशाह, विजय नगर साम्राज्य के खिलाफ हो गया।
गोलकुंडा के कुतुबशाही, बीदर के बरीदशाही, बीजापुर के आदिलशाही और अहमदनगर के निजामशाही आदि इस्लामिक राज्यों ने मिलकर हिन्दू शाही साम्राज्य विजय नगर पर मिलकर आक्रमण कर दिया और इस तालिकोट के युद्ध में राजा रामराय को पराजित कर उसकी हत्या कर दी। विजय नगर पर विजय प्राप्त करने के बाद इन्होने इस हिन्दू राज्य को लूट कर नष्ट भ्रष्ट कर दिया। एकमात्र इस्लामिक राज्य बरार इस युद्ध में सम्मिलित नहीं हुआ था। 1580 ई. में अली आदिलशाह की मृत्यु हो गई।
चाँदबीबी
चाँदबीबी, बीजापुर के सुल्तान अली आदिलशाह प्रथम की पत्नी थी। अपने पति की मृत्यु के बाद उसने हमेशा के लिए बीजापुर त्याग दिया और अपने पैतृक राज्य अहमदनगर वापस आ गई। चाँदबीबी के जीते जी, अकबर की मुग़ल सेना अहमदनगर पर कब्ज़ा नहीं कर पाई थी। चाँदबीबी की मृत्यु के चार महीने बाद अहमदनगर पर मुग़ल सेना का अधिकार हो गया और निजामशाही सल्तनत का पतन हो गया।
इब्राहिम आदिलशाह II ( 1580 - 1627 ई. )
इब्राहिम आदिलशाह II, बीजापुर का छटवाँ सुल्तान था। यह नाबालिग अवस्था में बीजापुर का सुल्तान बना। इब्राहिम की माँ, अहमदनगर की शहजादी चाँदबीबी थी। 1584 ई. तक बीजापुर पर संरक्षक के रूप में कार्य करने के बाद चाँदबीबी अहमदनगर वापस लौट गई थी। इब्राहिम आदिलशाह II, अत्यंत ही विद्वान और धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था। उसने अपने राज्य में हिन्दुओं को पूरी धार्मिक आजादी दे रखी थी।
इब्राहिम आदिलशाह ने बीजापुर में अनेक इमारतों का निर्माण करवाया। बीजापुर का प्रसिद्ध इब्राहिम रोजा, इसी सुल्तान का भव्य मक़बरा है।
मुहम्मद आदिलशाह ( 1627 - 1656 ई. )
मुहम्मद आदिलशाह बीजापुर का सातवां सुल्तान हुआ जिसने बीजापुर सल्तनत का दक्षिण में काफी विस्तार किया। मुहम्मद आदिलशाह का शासनकाल, मुगलों और मराठाओं से युद्ध करते हुए गुजरा। अंत में 1636 ई. में मुहम्मद आदिलशाह ने मुग़ल सम्राट शाहजहाँ की अधीनता स्वीकार कर ली थी। बीजापुर का प्रसिद्ध गोल गुम्बज, सुल्तान मुहम्मद आदिलशाह का भव्य मकबरा है।
अली आदिलशाह II ( 1656 - 1673 ई. )
बीजापुर का आठवाँ सुल्तान अली आदिलशाह II अठारह वर्ष की आयु में बीजापुर के तख़्त पर आसीन हुआ। मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने उसे अपने अधीन रखने के लिए अपने पुत्र औरंगजेब को मुग़ल सेना लेकर बीजापुर भेजा। मुग़ल सेना ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया जिसके फलस्वरूप अली आदिलशाह को मुगलों के साथ संधि करके अपनी जान बचानी पड़ी। इस संधि के तहत बीदर और कल्याणी राज्य मुगलों को सौपने पड़े। मुगलों से संधि करने के बाद उसका ध्यान मराठाओं की ओर गया और वह छत्रपति शिवाजी का दमन करने में जुट गया जिन्होंने उसके कई किलों पर अधिकार कर रखा था।
1659 ई. में सुल्तान अली आदिलशाह ने अपने सेनापति अफ़ज़ल खां के नेतृत्व में वीर शिवाजी के खिलाफ एक विशाल सेना भेजी। प्रतापगढ़ किले में शिवाजी के द्वारा अफ़ज़ल खां मृत्यु को प्राप्त हुआ और बीजापुर की सेना मराठाओं द्वारा बुरी तरह से पराजित हुई। सुल्तान अली आदिलशाह को मुगलों और मराठाओं दोनों में से किसी के भी खिलाफ सफलता नहीं मिली और इन दोनों शक्तियों के बीच रहकर उसने अपने राज्य को बचाये रखा।
सिकंदर आदिलशाह ( 1673 - 1685 ई. )
सिकंदर आदिलशाह, बीजापुर सल्तनत का आखिरी सुल्तान था। 1685 ई. में मुग़ल सम्राट औरंगजेब ने सिकंदर आदिलशाह को पराजित कर बंदी बना लिया और बीजापुर सल्तनत का पूर्णतः अंत कर दिया।
यात्रा क्रमशः
कलबुर्गी से रात को हैदराबाद - हुबली स्पेशल पकड़ कर में रात को बारह बजे ही बीजापुर पहुँच गया था। एक छोटा स्टेशन होने के कारण यहाँ वेटिंग रूम की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। प्लेटफार्म पर ही दरी बिछाकर और चादर ओढ़कर मैं सो गया। सुबह पांच बजे के आसपास मेरी ऑंख खुली तो देखा स्टेशन पर सवारियों का आना शुरू हो चुका था। मैं उठकर यहाँ बने बाथरूम में गया और पेड सर्विस के तहत नहा धोकर तैयार हो गया। इस स्टेशन पर क्लॉकरूम की सुविधा भी मुझे नहीं मिली।
स्टेशन के बाहर ही गोलगुम्बज दिखाई देता है जो बीजापुर का ही नहीं बल्कि समस्त भारत का सबसे बड़ा गुम्बज है। स्टेशन के बाहर बानी चाय की दुकान पर से मैंने चाय और नाश्ता किया और इसी दुकानदार के पास अपना बैग रख दिया। नाश्ते में मिली पूड़ियाँ और सब्जी बेहद ही स्वादिष्ट थीं। यहीं पास में ही कर्नाटक की सिटी बस भी खड़ी हुई थी। जिसमें जाकर मैंने पहली सीट अधिग्रहित की।
BREAKFAST TIME AT VIJYAPUR
|
BREAKFAST AT VIJYAPUR |
|
SUDHIR UPADHYAY AT BIJAPUR |
बीजापुर के ऐतिहासिक स्थल
बीजापुर सल्तनत के सुल्तानों को इमारतें बनवाने का बहुत शौक था। उन्होंने बीजापुर शहर में अनेक महलों, मकबरों, जलाशयों और मस्जिदों का निर्माण करवाया जिनमें सुप्रसिद्ध गोलगुम्बज सबसे मुख्य आकर्षण का केंद्र है।
|
TOURIST POINT OF VIJYAPUR |
🕌 इब्राहिम रोजा
दक्षिण का ताजमहल कहा जाने वाला इब्राहिम रोजा, बीजापुर की सबसे सुन्दर इमारतों में से एक है। यह बीजापुर के छठवें सुल्तान इब्राहिम आदिलशाह II का मकबरा है जिसके ठीक बराबर में सुन्दर जामा मस्जिद दिखाई देती है। अधिकतर आदिलशाही सुल्तानों के मकबरे के बराबर में मस्जिद के निर्माण का प्रचलन था, उनका मानना था कि सुल्तान दफ़न होने के बाद भी खुदा की इबादत करता रहेगा। इब्राहिम रोजा बहुत ही सुन्दर ईमारत है। इसके बारे में कहा जाता है कि शाहजहां ने ताजमहल का निर्माण इसी मकबरे से प्रेरित होकर किया था।
इब्राहिम रोजा देखने के बाद मैंने फिर से सिटी बस पकड़ी और शहर से दूर संगीत महल देखने के लिए निकल पड़ा।
|
IBRAHIM ROZA TOMB AT VIJYAPUR |
|
SUDHIR UADHYAY AT IBRAHIM ROZA |
|
IBRAHIM ROZA GATE |
|
IBRAHIM ROZA
|
|
IBRAHIM ROZA
|
|
IBRAHIM ROZA
|
|
IBRAHIM ROZA
|
|
IBRAHIM ROZA
|
|
IBRAHIM ROZA
|
|
IBRAHIM ROZA
|
۩ संगीत महल
इब्राहिम आदिलशाह II द्वारा निर्मित संगीत महल, बीजापुर में संगीत को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से बनाया गया था। सुल्तान इब्राहिम आदिलशाह II, संगीत प्रेमी थे और उन्हें संगीत से विशेष लगाव था। बीजापुर शहर से 8 किमी दूर यह महल आज वीरान अवस्था में है। महल के ठीक सामने जल से भरा तालाब विशेष दर्शनीय है जो इस महल की शोभा को बढ़ाता है। बीजापुर के अन्य सुल्तानों की संगीत में कोई रूचि न होने के कारण इस महल का महत्त्व समाप्त हो गया।
परन्तु आज भी इस महल को देखकर लगता है कि अपने समय में यह कितना भव्य रहा होगा। महल के चारों ओर विशाल चारदीवारी का घेरा है। आधुनिक समय में यहाँ नवरोज़ उत्सव का समारोह होता है जो कि सल्तनतकाल से ही प्रचलन में हैं।
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SUDHIR UPADHYAY AT SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
|
SANGEET MAHAL |
यात्रा क्रमशः
गूगल मैप के अनुसार, अब मुझे तलाश थी अफजल खां की तिरेसठ बीबीयों की कब्रों की, जो कि बीजापुर और संगीत महल के बीच रास्ते में ही कहीं स्थित थीं इसलिए मैं संगीत नारी महल से पैदल ही बीजापुर की तरफ चल दिया। रास्ते में एक जगह नारियल पानी की दुकान देखकर मैं थोड़ी देर के लिए यहाँ रुका और नारियल पानी पिया। अपनी दक्षिण की इस यात्रा में मैंने पहली बार यहाँ नारियल पानी पिया था और बाद में इसकी मलाई भी खाई जिसे खाने और पीने के बाद मुझमें फिर से एक नई ताजगी सी आ गई।
मैं यात्रा के दौरान हमेशा भोजन कम और फल फ्रूट ज्यादा खाता हूं। शरीर के लिए लाभदायक भी होते हैं और यात्रा में शरीर को चुस्त भी रखते हैं । यात्रा में ज्यादा भोजन करने के बाद नींद आती है जो यात्रा को उबाऊ बना देती है। इसलिए भोजन केवल शाम को। अब दक्षिण भारत की यात्रा पर हूँ तो मलाई वाला नारियल पानी लेना तो बनता है।
|
SUDHIR UPADHYAY AT VIJYAPUR |
⛼ अफ़जल ख़ान की 63 बीबीयों की कब्रें
गूगल मैप की लोकेशन मुझे अब ऐसी तरफ इशारा कर रही थी जहाँ ना कोई सड़क दिख रही थी और नाही कोई गली। इन कब्रों का रास्ता बीजापुर की कॉलोनियों में से होते हुए घनी झाड़ियों से घिरे खेतों में से होकर गुजर रहा था। मानव बस्तियां समाप्त होने के बाद मैं एक वीरान और सन्नाटे में से होकर कँटीली झाड़ियों को हाथ से हटाता हुआ आगे बढ़ रहा था। यहाँ मुझे जंगली जानवर या सांप बिच्छू का भी भय लगा किन्तु मंजिल पाने के होंसलें से भय को मुझसे दूर ही रखा। मैं थोड़ा और आगे बढ़ा तो मुझे झाड़ियों में छिपी आदिलशाही मस्जिद दिखाई दी और उससे थोड़ा आगे बढ़कर आख़िरकार मैं कब्रों तक पहुँच ही गया।
पुरातत्व विभाग के अधीन यह स्थान आज सरकार द्वारा उपेक्षा का शिकार है। हालांकि पुरातत्व विभाग ने इस स्थान के चारों ओर लोहे की बड़ी बड़ी रेलिंगें लगाकर इसे राष्ट्रीय स्मारक क्षेत्र घोषित कर दिया है किन्तु आज भी यह स्थान पर्यटकों की जानकारी और उनके यहाँ आने को लेकर उपेक्षित है।
इस्लाम के बड़े बड़े योद्धाओं की क्रूरता की कहानी कहने वाले इस स्थान के बारे मे बीजापुर आने वाले सभी पर्यटकों को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि यहाँ अली आदिलशाह के सेनापति अफ़ज़ल ख़ान ने अपनी 63 पत्नियों की हत्या सिर्फ इस वहम में कर दी कि कहीं वे उसकी मृत्यु के बाद दूसरी शादी ना कर लें।
दरअसल बीजापुर सल्तनत के सुल्तान अली आदिलशाह II के शासनकाल के दौरान मुग़ल शासक औरंगजेब और मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज उसके लिए बड़ी चुनौती बन चुके थे। इसलिए सबसे पहले सुल्तान ने अपने सेनापति अफ़ज़ल खां को, शिवाजी को मारने का हुक्म दिया। अफ़ज़ल खान ने सुल्तान के आदेश का पालन करने के लिए एक बड़ी सेना तैयार की परन्तु उसके मन में कहीं ना कहीं अपनी पराजय को लेकर संशय उत्पन्न हो चुका था। वह भविष्यवाणी और ज्योतिष में विशेष विश्वास रखता था अतः युद्ध पर जाने से पूर्व उसने राज्य के ज्योतिषाचार्य से इस युद्ध का परिणाम पूछा, जिसमें ज्योतिषाचार्य ने उसे बताया कि वह इस युद्ध से लौटकर नहीं आ पायेगा और मृत्यु को प्राप्त होगा।
युद्ध का परिणाम जानने के बाद वह अपनी 63 बेगमों सहित बीजापुर शहर से 5 किमी दूर एक सुनसान स्थान पर पहुँचा जहाँ एक पुरानी और अत्यंत गहरी बाबड़ी बनी हुई थी। अफ़ज़ल खां ने अपनी बेगमों को एक एक करके इस बाबड़ी में धकेलना शुरू कर दिया। उसके इस कृत्य को देखकर उसकी दो बेगमों ने भागने की कोशिस की जिनकों उसके हुक्म पर सैनिकों द्वारा पकड़ लिया गया और मार दिया गया।
सभी 63 पत्नियों को मारने के बाद उसने वहीँ उनकी कब्रें बनबा दी और उन्हें दफ़न कर दिया। उसने ज्योतिष पर यकीन करके अपनी पत्नियों को सिर्फ इसलिए मार दिया ताकि वह उसकी मृत्यु के बाद दूसरी शादी ना कर लें। इस्लामी शासकों का यह अविश्वास और क्रूरता ही उनकी ऐसी मानसिकता को दोहराता है।
हालांकि अपनी पत्नियों को मारने के बाद उसने अपने लिए भी एक कब्र खुदवाई परन्तु उसकी यह इच्छा पूरी ना हो सकीय क्योंकि प्रतापगढ़ किले में शिवाजी द्वारा उसे मृत्यु प्राप्त हुई और वहीँ किले के एक भाग में उसे दफ़न कर दिया गया था। अफ़ज़ल खान जैसा विशालकाय सेनापति जब भविष्यवाणी सुनकर अपनी पत्नियों को मारकर शिवाजी से युद्ध करने आया तो भला वह शिवाजी जैसे वीर योद्धा से कैसे विजयी हो सकता था जिसने युद्ध से पहले ही भविष्वाणी सुनकर अपनी पराजय स्वीकार कर ली थी और अपनी पत्नियों की हत्या कर दी थी।
हालांकि इतिहास में उसकी पत्नियों की हत्या के अनेक तरीके बताये गए हैं जिनमें जहर देकर मारने या तलवार से हत्या करना आदि हैं पर जो भी हो इतना तो सत्य है कि उसने अपनी पत्नियों की हत्या तो की ही थी।
यह कब्रें काले पत्थर से निर्मित हैं जो अब जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं। वह बाबड़ी भी यहीं थोड़ी दूर पर स्थित है। मैं जब इस स्थान को देखकर आगे बढ़ा तो झाड़ियों में छिपी हुई आदिलशाही मस्जिद भी दिखाई दी।
|
GRAVEYARD OF AFZAL KHAN WIVES |
|
GRAVEYARD OF AFZAL KHAN WIVES |
|
GRAVEYARD OF AFZAL KHAN WIVES |
|
GRAVEYARD OF AFZAL KHAN WIVES |
|
GRAVEYARD OF AFZAL KHAN WIVES |
|
GRAVEYARD OF AFZAL KHAN WIVES |
|
GRAVEYARD OF AFZAL KHAN WIVES |
|
यही वो बाबड़ी है जहाँ अफ़ज़ल खां ने अपनी बेगमों को मारा था। |
🕌 आदिलशाही मस्जिद
|
आदिलशाही मस्जिद |
|
ADILSHAHI MOSQUE |
|
ADILSHAHI MOSQUE |
|
ADILSHAHI MOSQUE |
🗽शिवाजी चौक
सिटी बस द्वारा मैं शिवाजी चौक पर उतरा। यहाँ चौराहे के बीच भगवा ध्वज लहराता हुआ दिखा जिसे देखकर मुझे इस इस्लामिक शहर में राष्ट्रीय एकता का एहसास हुआ। सल्तनतें समाप्त हो गईं और आज बीजापुर हिन्दू मुस्लिम सम्प्रदाय के सौहार्द का प्रतिक बनकर कर्नाटक का मुख्य शहर कहलाता है। यहीं इसी चौराहे पर छत्रपति शिवाजी महाराज की भव्य प्रतिमा भी शोभनीय है।
|
SHIVAJI CHOWK AT VIJYAPUR |
|
SHIVAJI CHOWK AT VIJYAPUR |
बीजापुर किला
बीजापुर का मुख्य शहर ही अपने आप में एक किला है जिसमें अलग अलग स्थानों पर आदिलशाही सुल्तानों के भव्य मकबरे और महल स्थित हैं। एक विशाल चारदीवारी इस शहर को एक दुर्ग में परवर्तित करती है। वर्तमान में यह दीवार अब भी यहाँ देखी जा सकती है।
|
BIJAPUR FORT |
|
BIJAPUR FORT WALL |
मलिक ए मैदान तोप
बीजापुर के शाह बुर्ज पर शेर के मुख वाली विशाल तोप रखी हुई है जिसका वजन 55 टन है। यह तोप 1549 में मुहम्मद बिन हुसैन रूमी द्वारा बनाई गई थी जो कि अहमदनगर के सुल्तान बुरहान निजाम शाह I की सेवा करने वाला एक तुर्की इंजीनियर था। सुल्तान ने अपने दामाद अली आदिल शाह को यह तोप भेंट की।
1565 ई. में बीजापुर के सुल्तान अली आदिल शाह I ने तालिकोट के युद्ध में पहली बार इस तोप का उपयोग किया गया था, जिसमें विजयनगर साम्राज्य के राजा रामराय की मृत्यु हो गई थी। इस जीत के बाद तोप का नाम " मलिक-ए-मैदान" रखा गया।
इस विशालकाय तोप पर औरंगजेब ने भी अपना अभिलेख इस तोप पर लिखवाया जिसमें उसने तोप पर अपना अधिकार जताया है।
इस विशाल तोप की खाशियत है कि यह तेज चिलचिलाती धुप में भी गर्म नहीं होती है।
|
MALIK E MAIDAN AT VIJYAPUR |
|
MALIK E MAIDAN CANON |
|
MALIK E MAIDAN AT VIJYAPUR |
|
MALIK E MAIDAN AT VIJYAPUR |
|
MALIK E MAIDAN AT VIJYAPUR |
|
MALIK E MAIDAN AT VIJYAPUR |
|
MALIK E MAIDAN AT VIJYAPUR |
|
MALIK E MAIDAN AT VIJYAPUR |
|
SUDHIR UPADHYAY AT MALIK E MAIDAN IN VIJYAPUR |
उपली बुर्ज
शहर के मध्य में यह बुर्ज स्थित है जिसपर आदिलशाह सल्तनत की दो तोपें रखी हुई हैं। हैदर खान द्वारा लगभग 1584 में निर्मित, विजयपुरा में ईदगाह के उत्तर में एक 80 फुट ऊंचा (24 मीटर) टॉवर है। यह एक गोलाकार संरचना है जिसमें पत्थर की सीढ़ियाँ हैं। टॉवर के शीर्ष पर शहर का एक शानदार दृश्य देखा जा सकता है। इसे "हैदर बुर्ज", के रूप में भी जाना जाता है। उपली बुर्ज के ऊपर विशाल आकार की दो बंदूकें हैं। निगरानी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस टॉवर को अब बंद कर दिया गया है। शीर्ष पर पहुँचने के लिए एक गोलाकार सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं।
|
UPLI BURJ |
|
ALI BURJ OR UPLI BURJ |
|
CANON AT UPLI BURJ |
|
VIJYAPURI COW |
गाँधी चौक
विजयपुर शहर के मध्य यह बड़ा चौराहा है जहाँ बीजापुर का मुख्य बाजार स्थित है।
|
GANDHI CHOWK AT VIJYAPUR |
|
GANDHI CHOWK AT VIJYAPUR |
|
GANDHI CHOWK AT VIJYAPUR |
बड़ा कामा ( अली आदिलशाह II का मकबरा )
लगभग शहर के केंद्र में, और गढ़ के उत्तर-पश्चिम में, एक बड़ा वर्ग भवन है, छत रहित और अंधेरे बेसाल्ट में अधूरा मेहराब के साथ। यह अली आदिल शाह II (1656-72) का मकबरा है। 1656 में सिंहासन पर बैठने के बाद ही अली आदिलशाह ने इसका निर्माण शुरू करवा दिया जिसे वो अपने पिता मुहम्मद आदिल शाह के मकबरे गोलगुंबज से भी विशाल बनबाना चाहता था।
इस इमारत की कल्पना एक शानदार पैमाने पर की गई थी, लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया था। इसका मंच 20 फीट ऊंचा है। यह महान ऊंचा तलघर, जिस पर इस अधूरे ढाँचे के स्टैंड की मेहराब 215 फीट वर्ग है, जबकि गोल गुम्बज 158 फीट का है।
केंद्र में, एक उभरे हुए मंच पर, अली आदिल शाह II और उनके परिवार के कुछ सदस्यों की कब्रें हैं, जो नीचे के तहखाना में हैं, जो पूर्व की ओर एक दरवाजे से प्रवेश करती है। अगर यह पूरा हो गया होता, तो विजयापुर में एक सबसे सुंदर स्मारक होता।
स्मारक के चारों ओर सुंदर बगीचे के साथ इमारत का रखरखाव किया जाता है। इसे लोगों द्वारा BARA KAMAN कहा जाता है।
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
ALI ADILSHAH II GRAVE |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
SUDHIR UPADHYAY AT BARA KAMA |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
|
BARA KAMA AT VIJYAPUR |
गगन महल
आदिलशाही सल्तनत का यह मुख्य दरबार हॉल था जहाँ आदिलशाही सुल्तान, सल्तनत से संबंधित महत्वपूर्ण फैसले देते थे। गगन महल सबसे सुन्दर महल था जिसका निर्माण 1561 ई. में पूर्ण हुआ। इस महल की मुख्य स्थापत्य विशेषता इसके महान केंद्रीय मेहराब हैं, जिनकी लंबाई 60 फीट 9 इंच है।यहाँ पर, औरंगजेब ने शहर पर कब्जा करने के बाद, बदकिस्मत राजा, सिकंदर आदिल शाह को चांदी की जंजीरों में उनके सामने आने की आज्ञा दी। हालांकि यह इमारत बिना छत का एक लोकप्रिय स्थान है, क्योंकि यह सार्वजनिक रूप से बड़े बगीचे में स्थित है।
मैं एक बड़ा सा अमरुद लेकर इस महल के बगीचे में काफी देर तक बैठा रहा था और अमरुद खाता रहा था।
|
SUDHIR UPADHYAY AT VIJYAPUR |
|
GAGAN MAHAL |
असर महल
आसार महल को मोहम्मद आदिल शाह ने लगभग 1646 में बनवाया था, जिसका उपयोग हॉल ऑफ जस्टिस के रूप में किया जाता था। कहा जाता है इस इमारत में पैगंबर की दाढ़ी का बाल सुरक्षित रखा है। ऊपरी मंजिल पर कमरे भित्तिचित्रों से सजाए गए हैं और सामने एक चौकोर टैंक है। यहां महिलाओं को अंदर जाने की अनुमति नहीं है। हर साल इस स्थान पर उर्स का आयोजन किया जाता है। असर महल के पीछे अभी भी गढ़ के अवशेष देखे जा सकते हैं।
|
ASAR MAHAL AT VIJYAPUR |
|
ASAR MAHAL AT VIJYAPUR |
|
ASAR MAHAL AT VIJYAPUR |
|
ASAR MAHAL AT VIJYAPUR |
|
ASAR MAHAL AT VIJYAPUR |
गोल गुम्बज
गोल गुंबज बीजापुर का सबसे प्रसिद्ध स्मारक है। यह मोहम्मद आदिल शाह (1627-1657 शासित) की कब्र है। यह अब तक का दूसरा सबसे बड़ा गुंबद है, जिसका आकार रोम में स्थित सेंट पीटर की बेसिलिका के समान है। गोल गुम्बज, भारत का सबसे बड़ा गुम्बज है। इस स्मारक के अंदर ध्वनि की आवाज 7 बार गूंजती है जो अपने आप में एक आश्चर्य है। इस मकबरे के चारों किनारों पर 7 मंजिल की मीनारें बनी हुईं हैं जिनपर चढ़कर गुम्बद तक पहुंचा जा सकता है। गुम्बद की दीवारों के अंदर भी गूंजती हुई ध्वनि से प्रतीत होती है।
गोल गुम्बज के बाहर इसका बड़ा प्रवेश द्वार है जिसे अब पुरातत्व विभाग ने संग्रहालय का रूप दे दिया है। गोलगुम्बज के दाईं तरफ एक मस्जिद स्थित है।
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
A MOSQUE NEAR GOL GUMBAZ |
|
MUHAMMAD ADILSHAH GRAVE |
|
A MOSQUE NEAR GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
VIJYAPUR CITY VIEW |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
GOL GUMBAZ |
|
SUDHIR UPADHYAY AT GOL GUMBAZ |
|
SUDHIR UPADHYAY |
आदिलशाही सल्तनत की तोपें
आदिलशाही सल्तनतों की अधिकतर तोपें गोलगुम्बज स्थित संग्रहालय के बाहर रखी हुई हैं।
यात्रा क्रमशः
गोलगुम्बज देखने के बाद मैंने अपनी माँ और पत्नी कल्पना से वीडियो कॉल पर बात की, जिससे मेरा मन थोड़ा हल्का हो गया क्योंकि आज घर से निकले हुए मुझे ठीक सात दिन हो चुके थे और मुझे अब अपने परिवार और घर की याद सताने लगी थी। मैं कभी भी इतने दिन अपने घर से बाहर इतनी दूर अकेला नहीं रहा था। परन्तु कर्नाटक के इतिहास को मन में संजोयें इन इमारतों ने मेरा मन लगाए रखा था।
गोलगुम्बज के नजदीक ही रेलवे स्टेशन स्थित है। मैं पैदल पैदल ही रेलवे स्टेशन पहुंचा और जिस दुकान पर मैंने अपना बैग रखा था वहां से वापस लेकर स्टेशन पहुंचा। मेरी ट्रेन में अभी बहुत समय था क्योंकि अब आगे की यात्रा मुझे उसी ट्रेन से करनी थी जिससे मैं रात को कलबुर्गी से बीजापुर पहुंचा था मतलब हैदराबाद - हुबली स्पेशल। मैं प्लेटफॉर्म की सीट पर आराम से बैठ गया और अपने गीले कपडे यहाँ वहां सूखा दिए।
गदग से मुंबई जाने वाली स्पेशल ट्रेन के जाने के बाद आरपीएफ वालों ने मुझे स्टेशन परिसर से बाहर बैठने को कहा। अभी शाम के सात बज चुके थे और मैं टिकट घर के बाहर बैठकर अपने मोबाइल को चार्ज करने में लगा हुआ था। यहाँ बड़े बड़े मच्छर भी थे जो मुझे एक जगह बैठने ही नहीं दे रहे थे। हैदराबाद से हुबली जाने वाली ट्रेन का समय यहाँ रात को साढ़े बारह बजे था, तब तक मैंने बीजापुर से होतगी जंक्शन जाने वाली पैसेंजर ट्रेन का टिकट ले लिया और इस पैसेंजर ट्रेन में, मैं सवार हो गया। कोरोना काल के बाद पैसेंजर ट्रेन में यह मेरी पहली यात्रा थी जो मेरी इस कर्नाटका यात्रा के प्लान में नहीं थी। मैंने केवल समय गुजारने के लिए इस दस रूपये वाली यात्रा को चुना।
हैदराबाद से हुबली जाने वाली ट्रैन का समय होतगी जंक्शन पर रात सवा दस बजे का है और इस हुबली से सोलापुर जाने इस पैसेंजर का होतगी पहुँचने का समय रात दस बजे का है। इसलिए मैं ख़ुशी ख़ुशी इस पैसेंजर ट्रेन में सवार हो गया जो एकदम खाली पड़ी हुई थी। इसी ट्रैन में मैंने अपने कैमरे की बैटरी और मोबाइल को फुल चार्ज कर लिया और साथ ही अपने गीले कपडे भी सूखा लिए। दस बजे से कुछ मिनट पहले यह पैसेंजर होतगी के आउटर पर खड़ी हो गई जहाँ से स्टेशन नजर नहीं आ रहा था।
मैंने मोबाइल में रेलवे एप्स में अपने लौटने की ट्रेन की लोकेशन चेक की तो वह कबकी होतगी आ चुकी थी और सही सवा दस बजे छूटने के लिए तैयार थी। मैंने ट्रेन के दरवाजे के पास जाकर देखा तो यह डबल लाइन थी जिसका मतलब था मेरी ट्रैन आराम से छूट सकती है चाहे यह पैसेंजर होतगी स्टेशन पहुंचे या ना पहुंचे। अब मेरे लिए एक एक मिनट भारी हो चला था।
मैं अपनी इस गलती पर बहुत पछता भी रहा था और मुझे सबसे ज्यादा डर उस ट्रेन के छूटने का था जिसमें मुझे अपने आगे का सफर तय करना था अन्यथा मेरा आगे का सारा कार्यक्रम रद्द होने की कगार पर था। मैं श्री बांके बिहारी जी से हाथ जोड़कर विनती की, कि मुझे मेरी वह ट्रेन मिलवा देना जिससे मुझे अपना आगे का सफर करना है और भगवान् ने मेरी सुन ली। सही दस बजकर दस मिनट पर पैसेंजर को हरे सिग्नल मिले और यह पैसेंजर होतगी की ओर रवाना हुई। मेरी ट्रेन प्लेटफार्म पर तैयार खड़ी हुई थी जिसे मैंने चलती पैसेंजर से उतरकर पकड़ा और भगवान को धन्यवाद दिया।
|
VIJYAPUR RAILWAY STATION |
कर्नाटक यात्रा से सम्बंधित यात्रा विवरणों के मुख्य भाग :-
वाह बहुत सुंदर यात्रा वृतांत
ReplyDeleteकाफी विस्तृत है
खूबसूरत फोटो
🙏🙏
वाह बहुत सुंदर यात्रा वृतांत
ReplyDeleteकाफी विस्तृत है
खूबसूरत फोटो
🙏🙏