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कर्नाटक यात्रा का अंतिम भाग
गुंतकल से मथुरा - कर्नाटका स्पेशल ट्रेन
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पूरा दिन हम्पी घूमने के बाद अंत में मैंने भगवान विरुपाक्ष जी के दर्शन किये और अपनी कर्नाटक की इस ऐतिहासिक यात्रा को विराम दिया। आज के दिन के मैंने जो किराये पर साइकिल ली थी उसे जमा कराकर मैं बस स्टैंड पर पहुंचा। यहाँ होस्पेट जाने के लिए अभी कोई बस उपलब्ध नहीं थी। होसपेट स्टेशन से मेरी ट्रेन रात को साढ़े आठ बजे थी जिससे मुझे गुंतकल पहुंचना है और वहां से कर्नाटक एक्सप्रेस द्वारा अपने घर मथुरा जंक्शन तक। इसप्रकार मेरी वापसी यात्रा शुरू हो चुकी थी।
शाम ढलने की कगार पर थी और विजयनगर मतलब हम्पी अब धीरे धीरे अँधेरे के आगोश में समाने लगा था। शाम के साढ़े छ बज चुके थे, बस स्टैंड पर ऑटो वालों का ताँता लगा हुआ था जो हम्पी के नजदीक कमलापुर के लिए सवारियां ढूढ़ने में लगे हुए थे। काफी देर तक जब कोई बस यहाँ नहीं आई, तो मुझे थोड़ी चिंता होने लगी और अब मुझे ट्रेन के निकलने का डर सताने लगा था। मैंने आसपास के दुकानदारों से होस्पेट जाने वाली बस के बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि शाम को सात बजे आखिरी बस आती है जो होस्पेट जाती है। यह सुनकर मुझे थोड़ा सुकून मिल गया, किन्तु कहीं ना कहीं डर अब भी था।
जब काफी समय तक कोई बस नहीं आई तो मैंने एक ऑटो वाले से होस्पेट जाने के बारे में पूछा तो उसने 500 /- किराया बताया, जिसे सुनकर मेरे होश फाख्ता हो गए। जहाँ बस में होस्पेट के 20 रूपये लगते हैं, उसकी जगह 500 /- रूपये चुकाना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी, और अब मेरे पास इतने रूपये बचे भी नहीं थे। मैंने भगवान् से हाथ जोड़कर बस आने की विनती की और जल्द ही वो आखिरी बस हम्पी के बस स्टैंड पहुंची जिसे देखकर मेरी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था।
ईश्वर को धन्यवाद करके मैंने बस में अपनी जगह ग्रहण की और होसपेट की एक टिकट ली। जल्द ही मैं होसपेट पहुँच गया, मेरी ट्रेन में अभी थोड़ा समय था इसलिए एटीएम से पैसे निकालकर मैं बस स्टैंड पर बनी कैंटीन पहुंचा जहाँ 100 /- की भोजन थाली का आर्डर दिया। कुछ ही समय बाद गर्मागर्म खाना मेरे सामने था। आप कभी भी होसपेट जाओ तो बस स्टैंड की कैंटीन का भोजन अवश्य करना। बहुत स्वादिष्ट भोजन होता है इस कैंटीन का। खाना खाकर मैं पैदल ही रेलवे स्टेशन की ओर रवाना हो चला।
थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद ट्रेन भी आ चुकी थी, मेरा रिजर्वेशन सामान्य कोच में था जिसमें मुझे साइड वाली खिड़की की सीट मिली थी। इस पूरे कूपे में किन्नरों ने अपना डेरा जमा रखा था, जिनमें से एक मेरी सीट पर भी था। मैंने नम्रता के साथ उसे अपनी सीट खाली करने को कहा और उसने भी बिना देर किये मेरी सीट मुझे सौंप दी।
हुबली से गुंतकल मेन लाइन पर होसपेट स्टेशन पड़ता है, जिस पर उत्तर भारत अथवा दिल्ली की कोई ट्रैन नहीं चलती है, इसलिए मुझे गुंतकल से दिल्ली जाने वाली कर्नाटक एक्सप्रेस पकड़नी थी जो रात को एक बजे के आसपास गुंतकल पहुँचती है। मैं जिस ट्रेन से गुंतकल जा रहा हूँ यह हम्पी एक्सप्रेस है जो हुबली से मैसूर तक अपनी सेवा देती है। मैसूर पहुंचकर इसे गोलगुम्बज एक्सप्रेस बनाकर फिर से हुबली और सोलापुर के लिए रवाना कर दिया जायेगा। इस प्रकार यह ट्रैन पूरे कर्नाटक का एक गोल चक्कर लगा लेती है।
कुछ ही समय बाद इस लाइन का सबसे बड़ा और मुख्य स्टेशन बल्लारी जंक्शन आया। यहाँ TTE ट्रैन में आया और सबकी टिकटें चेक हुईं। मेरी भी टिकट पर SIGN हो गए और मेरी गलत फहमी दूर हो गई कि सामान्य कोच में TTE नहीं आते। रात 12 बजे तक ट्रेन गुंतकल जंक्शन पहुँच गई। मैं कर्नाटक से निकलकर अब आंध्र प्रदेश में आ चुका था। नईदिल्ली से बेंगलोर सिटी जाने वाली राजधानी एक्सप्रेस आ चुकी थी। बहुत दिनों बाद अपने यहाँ से आने वाली ट्रेन को देखकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई और अनाउंसमेंट में नई दिल्ली का नाम सुनकर भी।
कुछ ही समय में कर्नाटक एक्सप्रेस भी आ गई, ट्रेन में चढ़ने से पहले मैंने उसे मन ही मन प्रणाम किया और कोच की चौखट को छूकर मैंने ट्रेन में प्रवेश किया। आधी रात का समय था, सब अस्त व्यस्त सोये पड़े थे। यह सामान्य कोच था, ऊपर की एक खाली पड़ी सीट पर मैंने अपना बिस्तर लगाया और मैं सो गया।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो देखा ट्रेन कलबुर्गी स्टेशन पर खड़ी थी। यह कर्नाटक का आखिरी शहर था, इसके बाद कर्नाटका एक्सप्रेस अपना राज्य छोड़कर महाराष्ट्र में प्रवेश करने वाली थी। यहीं से एक लड़का मेरी सीट पर आकर बैठ गया। मैंने उससे उसकी सीट का नंबर पुछा तो वह मेरी ही सीट को अपनी बताने लगा और जब उसने अपना टिकट दिखाया तो पता चला कि उसका ऑनलाइन रिजर्वेशन था किन्तु आज की तारीख का नहीं बल्कि अगले दिन का। इस प्रकार वह बिना टिकट ही कलबुर्गी से नईदिल्ली तक आया।
इस बीच ट्रेन में मुझे एक मुख्य अनुभव यह हुआ कि, इस एक - दो दिवसीय यात्रा में मेरे नजदीकी सहयात्री आपस में मित्र जैसे बन गए। ट्रेन में जब एक स्थान पर टिकट चेकिंग वाले आये तो उन्होंने उस लड़के को बिना देर किये अगले कोच में जाने को कहा और उनकी बात मानकर वह चला भी गया और जब चेकिंग वाले चले गए तो वह फिर से वापस आ गया। यात्रा में ऐसे अनगिनत रिश्ते बन जानते हैं। जिन्हें हम जानते नहीं वह दो पल के सफर में हमारे इतने करीब हो जाते हैं कि उन्हें हमारी फ़िक्र होने लगती है। मुझे इसीलिए रेलयात्रा अच्छी लगती है कि इसमें अनजाने भी कब अपने हो जाते हैं पता ही नहीं चलता।
अगले दिन मैं मथुरा पहुँच गया, दो दिन से मैं जिन यात्रियों के साथ यात्रा कर रहा था, ना जाने क्यों अब उनसे बिछड़ने में दुःख सा होने लगा था। मैं घर पहुँचने की ख़ुशी को एक पल के लिए भूल ही गया था। अपने इन सहयात्रियों से भविष्य में मिलने की उम्मीद देकर मैं अपने होम स्टेशन मथुरा जंक्शन उतर गया। स्टेशन से मुझे मेरी पत्नी का भाई श्याम लेने आ गया और मैं जब घर पहुंचा तो मुझे देखकर मेरी माँ और पत्नी की आँखों में ख़ुशी के आँसू थे। क्योंकि आज मैं सही बारह दिन बाद इतनी दूर की यात्रा करके अपने घर जो पहुंचा था।
कर्नाटक यात्रा समाप्त
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HOSPETE RAILWAY STATION |
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TORANGALLU RAILWAY STATION |
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BALLARI JUNCTION |
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GUNTKAL JUNCTION |
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MY LAST ARRIVAL STATION - GUNTKAL JN. |
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A VIEW OF KOPARGAON RAILWAY STATION |
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JHELUM EXPRESS CROSSED KARNATAKA EXP. AT KOPARGAON |
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VIEW OF ANKAI FORT |
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MY CO-PASSENGER IN KARNATAKA EXPRESS |
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