Friday, December 30, 2022

Grand Truck Express : MTJ TO MAS 2022

 

तमिलनाडु की ऐतिहासिक धरा पर - भाग 1 

मथुरा से चेन्नई - ग्रैंड ट्रक एक्सप्रेस 

30 DEC 2022

    आख़िरकार एक लम्बे समय के बाद वो वक़्त आ ही गया जब मैं फिर से अपनी दक्षिण भारत की ऐतिहासिक यात्रा के लिए एकदम से तैयार था। पिछली बार कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा करने के बाद मैंने इस बार तमिलनाडू राज्य को अपनी यात्रा के लिए चुना क्योंकि तमिलनाडु राज्य भी प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म का ऐतिहासिक केंद्र रहा है जहाँ चोलों ने अपनी वास्तुकला और स्थापत्य के ऐसे उदाहरण छोड़े हैं, जिन्हें देखने भर से उनकी महानता और सर्वोच्चता के साथ साथ भविष्य को लेकर उनकी दूर दृष्टि का बोध होता है। 

चोल साम्राज्य के साथ साथ तमिलनाडु की भूमि चेर, पांडय और पल्लवों के महान साम्राज्य और उनकी विजयों का भी गुणगान करती है। बस इन्ही राज्यों से मिलने की तमन्ना लिए मैंने ब्रजभूमि से तमिल भूमि की ओर प्रस्थान किया। 

आँग्ल नववर्ष आने में अब दो दिन ही शेष बचे थे, मेरी तमिलनाडु यात्रा की सभी तैयारियाँ लगभग पूर्ण हो चुकी थीं, नई साल का पहला दिन तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में मनाने का पूरा प्रबंध किया हुआ था। 

30 दिसंबर की शाम, मथुरा से चेन्नई के लिए मैंने ग्रैंड ट्रक एक्सप्रेस से अपनी यात्रा शुरू की।

Sunday, December 11, 2022

RAISEN FORT : MADHYA PRADESH 2022


रायसेन का किला 


यात्रा - 11 दिसंबर 2022,         सहयात्री - कुमार भाटिया और कल्पना उपाध्याय 


    प्राचीन काल से ही भारत, एक हिन्दू राष्ट्र रहा है और यहाँ के वीर हिन्दू शासकों की वीरता और उनके बलिदान की गाथाएँ भारतीय इतिहास में अमर हैं। वक़्त के साथ देश में राजाओं और रजवाड़ों का युग तो समाप्त हो गया परन्तु उनके द्वारा बनाये गए गढ़, किले आज भी उनके वजूद की यादों को समेटे हुए हैं। भारत वर्ष में अधिकांश किले ऊँची पहाड़ियों पर निर्मित होते थे, जिससे शत्रु सेना आसानी से किले तक ना पहुँच सके और दूसरी ओर किले के समतल स्थान की अपेक्षा ऊंचाई पर होने का एक कारण यह भी था कि किलेदारों को बहुत दूर से ही शत्रु सेना के आने का पता चल जाता था जिससे उन्हें युद्ध की तैयारी के लिए उचित समय मिल जाता था। ऐसा ही एक किला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किमी दूर रायसेन के नाम से एक पहाड़ी पर स्थित है जिसका भारतीय इतिहास में विशेष महत्त्व है। 

BHOPAL : MADHYA PRADESH 2022

सेठ जी परिवार के साथ, भोपाल की दो जश्न 'ए' शाम 

यात्रा तिथि - 11 DEC 2022 and 12 DEC 2022 




मैं और मेरे मित्र रूपक जैन जी 

अभी गत दिनों दीपावली के त्यौहार की खुशियां मनाकर मन भरा ही था कि आज फिर से एक खुश खबरी सुनने को मिल गई और यह खुश खबरी मुझे मेरी यात्रापटल के माध्यम से मेरे प्रिय घुमक्कड़ मित्र रूपक जैन जी की तरफ से प्राप्त हुई। रूपक जैन जी एक सफल व्यापारी होने के साथ साथ देश के बहुत बड़े घुमक्कड़ों में से एक हैं जिन्होंने समस्त भारतवर्ष में शायद ही कोई जगह छोड़ी हो जो अपनी आँखों से ना देखी हो। ऊँचे ऊँचे बर्फीले पहाड़ों से लेकर समुद्र तक और इसके अलावा देश के छोटे बड़े सभी शहरों की खाने पीने की मशहूर दुकानों तक उन्होंने घुमक्कड़ी में ऊँचा मुकाम हाँसिल किया है। 

करीब तीन साल पहले उन्होंने मुझे यात्रापटल के माध्यम से फेसबुक की आभासी दुनिया से निकालकर, अपनी वास्तविक दुनिया में अपना मित्र बनाया था और मुझे भी उनकी मित्रता पाकर काफी खुशी महसूस हुई। हमारी पहली मुलाकात मथुरा में हुई, जहाँ वह अक्सर अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने आते रहते हैं। 

इसके बाद मैं भी अपने बचपन के मित्र कुमार के साथ उनके यहाँ भोपाल गया था, जहाँ उन्होंने हमारी काफी अच्छे से आवभगत की और अपने प्रेम और स्नेह से हम दोनों को सदा के लिए अपने प्रेम का ऋणी बना लिया। उन्होंने अपनी गाड़ी से ही हमें भीमबेटका की गुफाएँ और भोजपुर शिव मंदिर का दर्शन कराया जहाँ उनके पुत्र शुभ जैन भी हमारे साथ हमारे सहयात्री थे और अगले दिन उन्होंने हमें साँची स्तूप के साथ साथ उदयगिरि की प्राचीन गुफाओं के दर्शन भी कराये। 

इसके बाद हम साथ में चंदेरी की यात्रा पर भी गए और फिर जैन साब मथुरा पधारे और उसके बाद हम हाथरस की यात्रा पर भी गए, जहाँ जैन साब ने हाथरस की मशहूर चाट और हन्नो लाला की रबड़ी का भी भरपूर स्वाद लिया। इसके बाद उन्हें मैं अपना गाँव भी दिखाकर लाया जो हाथरस से थोड़ी दूर ही था। शाम को हम मथुरा के लिए वापस हो लिए, रास्ते में मुरसान में हमने एक विवाह समारोह में प्रतिभोज का आनंद लिया। 

रात को हम वापस मथुरा आ गए। रात को जैन साब मेरे पास ही रुके, इस तरह इन मुलाकातों के दौरान जैन साब से अब दिली रिश्ता बन गया था, मैंने मन ही मन बिहारी जी को धन्यवाद किया कि उन्होंने अपनी कृपा से जैन साब के रूप में इतना अच्छा मित्र दिया, जिनके साथ रहने पर मुझे सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। 

रूपक जैन जी खुद भी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर के निवासी हैं और अगले दो महीने बाद उन्होंने मुझे अपने बड़े पुत्र शुभ जैन के विवाह समारोह में आमंत्रित करने के लिए विशेष आग्रह किया, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया। इस वैवाहिक कार्यक्रम में मेरे अलावा मेरा बचपन का दोस्त कुमार भाटिया और मेरी पत्नी कल्पना भी शामिल थे। 

Friday, November 18, 2022

CHITRAKOOT DHAM : UTTAR PRADESH 2022

चित्रकूट धाम यात्रा 

  

                           


    त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ ने अपनी तीसरी पत्नी कैकई को दिये दो वरों को पूरा करने के कारण, अत्यंत ही  विवश और दुखी होकर अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को चौदह वर्ष का वनवास दिया और कैकई पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी। तब श्री राम अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ पिता के वचन को पूरा करने के लिए वन को चले गए। अयोध्या से उन्होंने दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया और तमसा नदी को पार करने के बाद श्रृंगवेरपुर पहुंचे जो उनके मित्र निषादराज का राज्य था। 

   इसके पश्चात उन्होंने केवट की नाव द्वारा गंगा नदी को पार किया और प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुंचे। भारद्वाज ऋषि ने भगवान श्री राम को दक्षिण दिशा में यमुना नदी को पार करने के बाद वन में कुटिया बनाकर रहने का सुझाव दिया और श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण और भार्या सीता के साथ यमुना पार करके कामदगिरि के निकट पहुंचे। इसी स्थान को उन्होंने अपने निवास हेतु चुना और यहीं अपनी पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। यही स्थान चित्रकूट कहलाता है जो कामदगिरि पर्वत और मन्दाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है। 

    इधर जब भरत अपने भाई शत्रुघन के साथ अयोध्या पहुंचे तो उन्हें अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु और बड़े भाई के वनवास चले जाने के जानकारी हुई। वह फूट फूट कर रोने लगे और अपनी माता की गलती के कारण पश्चाताप भी करने लगे। इसी पश्चाताप और अपने धर्म के साथ वह अपने बड़े भाई राम, लक्ष्मण और सीता जी को वन से वापस लाने के लिए और उनका राज्य उन्हें सौंपने के लिए वन को चल दिए। 

    उनके साथ अयोध्या की प्रजा भी साथ थी, निषादराज से मिलने के बाद उन्होंने चित्रकूट में आकर प्रभु श्री राम से भेंट की और उनसे अयोध्या लौट चलने का आग्रह किया किन्तु वचनबद्ध होने के कारण श्री राम ने अयोध्या लौटने से इंकार कर दिया। भरत के चित्रकूट से चले जाने के बाद प्रभु श्री राम भी लक्ष्मण और माता सीता के साथ चित्रकूट छोड़कर दंडकारण्य के घने वनों की तरफ चले गए। इस प्रकार चित्रकूट उनकी रज और निवास के कारण एक पावन धाम बन गया। 

कलियुग में गोस्वामी तुलसीदास जी ने चित्रकूट में मन्दाकिनी नदी के घाट पर बैठकर ही राम चरित मानस की रचना की। चित्रकूट के समीप ही अत्रि मुनि का भी आश्रम था जहाँ वे अपनी पत्नी माता अनुसुइया के साथ रहा करते थे। 

Saturday, March 19, 2022

NARESHWAR TEMPLES : GWALIOR 2022

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

गुर्जर प्रतिहार कालीन - नरेश्वर मंदिर समूह 


     छठवीं शताब्दी के अंत में,सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के साथ ही भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का पूर्ण पतन प्रारम्भ हो गया। भारतभूमि पर पुनः वैदिक धर्म अपनी अवस्था में लौटने लगा था, नए नए मंदिरों के निर्माण और धार्मिक उत्सवों की वजह से लोग वैदिक धर्म के प्रति जागरूक होने लगे थे। सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ होते ही अखंड भारत अब छोटे छोटे प्रांतों में विभाजित हो गया और इन सभी प्रांतों के शासक आपस में अपने अपने राज्यों की सीमाओं का  विस्तार करने की होड़ में हमेशा युद्धरत रहते थे।

भारतभूमि में इसप्रकार आपसी द्वेष और कलह के चलते अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों की नजरें अब हिंदुस्तान को जीतने का ख्वाब देखने लगी थीं और इसी आशा में वह हिंदुस्तान की सीमा तक भी आ पहुंचे थे किन्तु शायद उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि बेशक भारत अब छोटे छोटे राज्यों में विभाजित हो गया हो, बेशक इन राज्यों के नायक आपसी युद्धों में व्यस्त रहते हों परन्तु इन नायकों की देशप्रेम की भावना इतनी सुदृढ़ थी कि अपने देश की सीमा में विदेशी आक्रांताओं की उपस्थिति सुनकर ही उनका खून खौल उठता था और वह विदेशी आक्रमणकारियों को देश की सीमा से कोसों दूर खदेड़ देते थे। 

इन शासकों का नाम सुनते ही विदेशी आक्रांता भारतभूमि पर अपनी विजय का स्वप्न देखना छोड़ देते थे। भारत भूमि के यह महान वीर शासक राजपूत कहलाते थे और भारत का यह काल राजपूत काल के नाम से जाना जाता था। राजपूत काल के दौरान ही सनातन धर्म का चहुंओर विकास होने लगा क्योंकि राजपूत शासक वैदिक धर्म को ही राष्ट्र धर्म का दर्जा देते थे और वैदिक संस्कृति का पालन करते थे। राजपूत शासक अनेक राजवंशों में बंटे थे जिनमें गुर्जर प्रतिहार शासकों का योगदान सर्वोपरि है। 

Thursday, February 24, 2022

VYOMASUR CAVE : KAMAN 2022


 व्योमासुर की गुफा 

   व्योमासुर की गुफा एक पौराणिक स्थल है जो द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली से सम्बंधित है। व्योमासुर की गुफा, ब्रज क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान के भरतपुर जिले में कामा नामक स्थान से एक किलोमीटर दूर कलावटी ग्राम के नजदीक अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित है।  दिल्ली से लगभग  160 किमी दूर यह एक प्राकृतिक मनोरम स्थान है। यहाँ चारोंतरफ अरावली पर्वत श्रृंखला बिखरी हुई दिखाई देती है। कामा, ब्रज के बारह वनों में से एक वन है जिसे काम्यवन भी कहा जाता है। व्योमासुर की गुफा देखने के लिए लगभग 65 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। 

KIRTI MANDIR - BARSANA 2022

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कीर्ति मंदिर  



श्री राधारानी की माता और महाराज वृषभान जी की पत्नी महारानी कीर्ति को समर्पित कीर्ति मंदिर का निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज के सानिध्य में जगद्गुरु कृपालु परिषद द्वारा किया गया। सन 2006 में जगद्गुरु कृपालु महाराज ने स्वयं अपने हाथों से इस मंदिर की नीवं रखी थी।

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 यह मंदिर ब्रज क्षेत्र में मथुरा जिले के बरसाना में स्थित है और रंगीली महल के नजदीक प्रांगण में निर्मित है। इस मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है जो अनायास ही भक्तों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। कीर्ति मंदिर का सम्पूर्ण प्रांगण सफ़ेद रंग की संगमरमर से निर्मित है और भक्तगण यहाँ घंटों बैठकर श्री राधारानी का चिंतन करते हैं। इस मंदिर की भव्यता दूर से देखते ही बनती है। 

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 ना केवल ब्रज क्षेत्र में बल्कि समस्त भारतवर्ष में महारानी कीर्ति का यह एकमात्र मंदिर है जिसमें महारानी कीर्ति की गोद में बैठी श्री राधारानी के सुन्दर और वात्सल्य छवि के दर्शन होते हैं। 

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Saturday, February 5, 2022

SHRI KAILADEVI TEMPLE : KARAULI 2022


 श्री राजराजेश्वरी कैलादेवी मंदिर - करौली 


यात्रा दिनाँक :- 05 फरवरी 2022 

     भारतवर्ष में अनेकों हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर हैं जिनमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग, भगवान विष्णु के चार धाम और आदि शक्ति माँ भवानी के 51 शक्तिपीठ विशेष हैं। इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है माँ कैलादेवी का भवन, जो राजस्थान राज्य के करौली जिले से लगभग 25 किमी दूर अरावली की घाटियों के बीच स्थित है। माँ कैलादेवी के मन्दिर का प्रांगण बहुत ही भव्य और रमणीय है। जो यहाँ एकबार आ जाता है उसका फिर लौटने का मन नहीं करता किन्तु सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के चलते भक्तों का यहाँ आने और जाने का सिलसिला निरंतर चलता ही रहता है। 

Thursday, September 2, 2021

CHAMBAL VALLEY'S : DHOLPUR 2021


चम्बल की घाटियों में एक सैर



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ज्येष्ठ की तपती दोपहरी में, देश में लगे लॉकडाउन के दौरान आज मैं और बड़े भाई बाइक लेकर खानवा घूमने के बाद, धौलपुर के लिए रवाना हो गए। भरतपुर से धौलपुर वाला यह रास्ता बहुत ही शानदार और अच्छा बना हुआ है। खानवा के बाद हमारा अगला स्टॉप रूपबास था। लोक किंवदंती के नायक 'रूप बसंत' की यह ऐतिहासिक नगरी है। यहाँ का लालमहल प्रसिद्ध है जिसे मैं बहुत पहले ही देख चुका हूँ। रूपबास से आगे एक घाटी पड़ती है जो राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा भी है। इस घाटी को पार करने के बाद अब हम उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में प्रवेश कर चुके थे। यहाँ मौसम काफी खुशनुमा हो गया था और जल्द ही हम आगरा के सरेंधी चौराहे पर पहुंचे। 

Wednesday, September 1, 2021

KHANUA BATTLE FEILD : RAJSTHAN 2021

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

खानवा का मैदान 

यात्रा दिनाँक - 24 मई 2021 

सहयात्री - धर्मेंद्र भारद्वाज 

आज लॉक डाउन का चौबीसवाँ दिन था, चौबीस दिन से अधिक हो गए थे घर से कहीं बाहर निकले, इसलिए मन अब कहीं बाहर घूमने के लिए बहुत ही बैचैन था। इस वर्ष कोरोना की इस दूसरी लहर ने तो हर तरफ हाहाकार सा मचा दिया था। पिछली साल की तुलना में कोरोना अब अधिक विकराल रूप ले चुका था और इस वर्ष इसने लोगों की श्वास ही रोक दी थी, भारी मात्रा में इस वर्ष आक्सीजन की कमी के चलते लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा था। समाचारों में बस पूरे देश के अलग अलग प्रांतों में मरने वाले लोगों की संख्या ही बताई जा रही थी। अब जब सरकार ने अपने अथक प्रयासों के चलते कोरोना को काबू में करने की कोशिस की तब जाकर कहीं सभी ने राहत की साँस ली। 

Friday, July 23, 2021

VISHNU VARAH - KARITALAI 2021

 विष्णु वराह मंदिर और कच्छ - मच्छ की प्रतिमा  - कारीतलाई 

यात्रा दिनांक -  12 जुलाई 2021 

सतयुग में जब हिरण्याक्ष नामक एक दैत्य पृथ्वी को पाताललोक के रसातल में ले गया तो भगवान विष्णु को वराह रूपी अवतार धारण करना पड़ा और हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को रसातल से बाहर लेकर आये। उनका यह अवतार वराह भगवान के रूप में पृथ्वी पर पूजा जाने लगा जो कालांतर में भी पूजनीय है। किन्तु पाँचवी से बारहवीं शताब्दी के मध्य, भारतवर्ष में भगवान विष्णु का यह अवतार सबसे मुख्य और सबसे अधिक पूजनीय रहा। 

अनेकों हिन्दू शासकों ने वराह भगवान को अपना ईष्ट देव चुना और वराहरूपी प्रतिमा को अपना राजचिन्ह। इसी समय में मध्य भारत में भगवान वराह की अनेक प्रतिमाओं और मंदिरों का निर्माण भी कराया गया। इन्ही में से एक मंदिर मध्य प्रदेश के बघेलखण्ड प्रान्त के छोटे से गाँव कारीतलाई में भी स्थित था जिसके अवशेष आज भी यहाँ देखने को मिलते हैं। 

Thursday, July 22, 2021

RATANPUR : CHHATTISGARH 2021


 रतनपुर के ऐतिहासिक मंदिर और किला 

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लाफा चैतुरगढ़ की यात्रा करने के बाद, मैंने एवेंजर बाइक का रुख रतनपुर की ओर कर दिया। रतनपुर, छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानियों में से एक है और इसे कल्चुरी शासकों की खूबसूरत राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। आज भी यहाँ कल्चुरी राजाओं की राजधानी के अवशेष, किले के खंडहरों के रूप में आज भी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा समय समय पर विभिन्न शासकों ने यहाँ और इसके आसपास के प्रदेशों ऐतिहासिक मंदिरों का निर्माण भी कराया। इन्हीं में से महामाया देवी का विशाल मंदिर रतनपुर में आज भी पूजनीय है और इसके आसपास स्थित ऐतिहासिक मंदिर, रतनपुर के ऐतिहासिक होने का बख़ान करते हैं। 

Tuesday, July 20, 2021

LAFA CHATURGARH FORT : CHHATTISGARH 2021

लाफा और चैतुरगढ़ किले की एक यात्रा 


मानसून की तलाश में एक यात्रा भाग - 5,       यात्रा दिनाँक - 11 अगस्त 2021 

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पाली पहुँचने के बाद मैंने एक दुकान से कोकाकोला की किनली की एक पानी की बोतल खरीदी और यहीं पास में खड़े एक चाट वाले से समोसे और कचौड़ी की मिक्स चाट बनवाकर आज के दोपहर का भोजन किया। मैं इस समय चैतुरगढ़ मार्ग पर था। पाली अंतिम बड़ा क़स्बा था और इसके बाद का सफर छत्तीसगढ़ के जंगल और पहाड़ों के बीच से गुजरकर होना था। मैंने चाट वाले से आगे किसी पेट्रोल पंप के होने के बारे में पूछा तो उसने स्पष्ट शब्दों में बता दिया कि आगे कोई पेट्रोल पंप नहीं है। अगर चैतुरगढ़ जा रहे हो तो यहीं पाली से ही पेट्रोल भरवाकर जाओ क्योंकि आगे घना जंगल है और रास्ते भी पहाड़ी हैं। वहां आपको कुछ भी नहीं मिलेगा। पाली से चैतुरगढ़ जाने के लिए एक मात्र विकल्प अपना साधन ही है। पाली से चैतुरगढ़ जाने के लिए कोई साधन नहीं मिलता है। 

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Monday, July 19, 2021

BILASPUR : CHHATTISGARH 2021

बिलासपुर शहर और पाली का महादेव मंदिर  

मानसून की तलाश में एक यात्रा भाग - 4 

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चन्द्रेह से वापस लौटने के बाद मैं ट्रेन के चलने से सही दस मिनट पहले ही रीवा स्टेशन पहुँच गया था। स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म पर ही बिलासपुर जाने वाली ट्रेन खड़ी हुई थी। मेरी अब अगली यात्रा बिलासपुर के लिए होनी थी जहाँ मुझे लाफा चैतुरगढ़ के पहाड़, ऐतिहासिक मंदिर और किला  देखना था और इसके साथ ही मुझे छत्तीसगढ़ की प्राचीन राजधानी रतनपुर को भी देखना था, जिसके बारे में मैंने सुना है कि यह कल्चुरी शासकों की प्राचीन राजधानी है जिसे बाद में बिलासपुर नामक शहर बसाने के बाद यहाँ स्थानांतरित कर दिया गया। रतनपुर में आज इन्हीं शासकों का पुराना किला और इनके द्वारा बनबाये गए प्राचीन मंदिर दर्शनीय हैं। 

Sunday, July 18, 2021

CHANDREH TEMPLE : MADHYA PRADESH 2021


 चन्द्रेह मंदिर और भँवरसेन का पुल 

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मानसून की तलाश में एक यात्रा - भाग 3 

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पिछले भाग में आपने पढ़ा कि मैं भरहुत स्तूप देखने के बाद सतना के लिए रवाना हो गया और अब मैं सतना के बस स्टैंड पर पहुँच चुका था। अब अपनी ''ऐतिहासिक मंदिरों की एक खोज की श्रृंखला'' को आगे बढ़ाते हुए मेरी अगली मंजिल नौबीं शताब्दी का ऐतिहासिक चन्द्रेह शिव मंदिर था जो रीवा से लगभग 35 किमी आगे मध्य प्रदेश के सीधी जिले में स्थित है। यह मंदिर मुख्य शहरों और बाजारों से कोसों दूर एक वियावान स्थान पर एक नदी के किनारे स्थित था। मुख्य राजमार्ग से भी इसकी दूरी लगभग दस किमी के आसपास थी। यहाँ तक पहुँचने से पहले मेरे मन में अनेकों चिंताएं और जिज्ञासाएं थीं। 

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Saturday, July 17, 2021

BHARHUT STUP : MADHYA PRADESH 2021


भरहुत स्तूप और उसके अवशेष 




मानसून की तलाश में एक यात्रा भाग - 2      यात्रा  दिनाँक - 10 Jul 2021 
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मैहर धाम से अब रवाना होने का वक़्त था, मैहर मंदिर के दर्शन करने के पश्चात मैं मंदिर से नीचे उतर आया और एक ऑटो से बस स्टैंड पहुंचा। सतना के नजदीक चौमुखनाथ और भूमरा के ऐतिहासिक मंदिर हैं। चौमुखनाथ का मंदिर वाकाटक शासकों की पूर्ववर्ती राजधानी नचना कुठार में स्थित हैं। मेरा इस स्थान को देखने का बड़ा ही मन था। यह स्थान पन्ना और सतना के मध्य कहीं स्थित था। चौमुखनाथ का मंदिर बड़ा ही भव्य मंदिर है, मैं जानता था कि इस मंदिर की यात्रा, फेसबुक पर हमारे परम मित्र मुकेश पांडेय चन्दन जी कर आये हैं, इसलिए मैंने तुरंत उनसे संपर्क किया और यहाँ तक पहुँचने का मार्ग जाना। उन्होंने मुझे मार्ग तो बतला दिया किन्तु इस मंदिर तक पहुँचने के लिए मुझे आज पूरा दिन लगाना पड़ता इसलिए इस मंदिर को भविष्य पर छोड़ मैं भरहुत स्तूप के लिए बस में बैठ गया। 

Friday, July 16, 2021

SHARDA TEMPLE : MAIHAR 2021

मानसून की तलाश में एक यात्रा - भाग 1 

 शारदा माता के दरबार में - मैहर धाम यात्रा 


यात्रा दिनांक - 10 जुलाई 2021 

अक्सर मैंने जुलाई के महीने में बरसात को बरसते हुए देखा है किन्तु इसबार बरसात की एक बूँद भी सम्पूर्ण ब्रजभूमि दिखाई नहीं पड़ रही थी। बादल तो आते थे किन्तु हवा उन्हें कहीं और रवाना कर देती थी। काफी दिनों से समाचारों में सुन भी रहा था कि भारत के इस राज्य में मानसून आ गया है, यहाँ इतनी बारिश पड़ रही है  कि सड़कें तक भर चुकीं हैं। पहाड़ी क्षेत्रों से बादल फटने तक की ख़बरें भी सामने आने लगीं थीं किन्तु ब्रज अभी भी सूखा ही पड़ा था और समस्त ब्रजवासी गर्मीं से हाल बेहाल थे। इसलिए सोचा क्यों ना हम ही मानसून को ढूढ़ने निकल पड़ते हैं। मानसून के मौसम में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ से भला और कौन सी जगह उचित हो सकती थी इसलिए बघेलखण्ड और रतनपुर की यात्रा का प्लान बन गया। 

Thursday, July 8, 2021

SHRI JAGANNATH PURI

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S


मैं, माँ और हमारी जगन्नाथ पुरी की चमत्कारिक यात्रा 


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पिछले भाग में आपने पढ़ा कि रात को ट्रेन में अचानक माँ की तबियत ख़राब हो गई और वह अपनी सुध बुध खो बैठीं। अपनी सीट को छोड़कर वह अन्य कोचों में चलती जा रही थीं। एक सहयात्री के कहे अनुसार मैं उन्हें देखने अन्य कोचों में गया और भगवान श्री जगन्नाथ जी की कृपा से वह मुझे मिल गईं। वह मुझे मिल तो गईं थीं किन्तु अब वह बिलकुल भी ऐसी नहीं थीं जैसी कि वह कल यात्रा के वक़्त अथवा यात्रा से पूर्व घर पर थीं। वह अपनी सुध खो चुकीं थीं। 

लगभग मुझे भी पहचानना अब उन्हें मुश्किल हो रहा था। वह कहाँ हैं, क्या कर रही हैं, कहाँ जा रही हैं, अब उन्हें कुछ  भी ज्ञात नहीं था। माँ की ऐसी हालत देखकर मैं बहुत डर सा गया था। काफी कोशिशों के बाद मैं उन्हें अपने कोच तक लेकर आ पाया था। इधर ट्रेन खोर्धा रोड स्टेशन छोड़ चुकी थी और अपनी आखिरी मंजिल पुरी की तरफ दौड़ी जा रही थी। 

Wednesday, June 30, 2021

UTKAL KALINGA EXP : MTJ - PURI - MTJ

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S


कलिंग उत्कल एक्सप्रेस से एक सफर 



मेरी माँ ने देश के दो धामों द्वारिका और रामेश्वरम के दर्शन करने के पश्चात तीसरे धाम श्री जगन्नाथ पुरी के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। माँ का स्वास्थ, अब पहले की अपेक्षा काफी कमजोर हो चुका है, अभी छः माह पहले ही उन्होंने अपने दोनों घुटनों का ओपरेशन भी करवाया है, इसके बाद जब वह चलने फिरने में समर्थ हो गईं तो एक बार फिर से उनका मन अपने भगवान से मिलने को व्याकुल हो उठा और मुझे तुरंत होली के बाद श्री पुरी जी की यात्रा का कार्यक्रम तय करना पड़ा। मथुरा से पुरी जाने के लिए अभी एकमात्र ट्रेन कलिंग उत्कल एक्सप्रेस ही थी जो अब  हरिद्वार के स्थान पर नए बने योग नगरी ऋषिकेश स्टेशन से आने लगी थी। 

Tuesday, June 8, 2021

HANUMAN STATUE : FARIDABAD

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S


दिल्ली लिंक रोड और हनुमान जी की विशाल प्रतिमा 

22 FEB 2021, देश में अनेकों स्थानों पर हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर और प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं, ऐसी ही एक प्रतिमा मैंने फरीदाबाद से दिल्ली जाने के एक रास्ते में देखी। दरअसल, आज मेरी कंपनी का ट्रेनिंग प्रोग्राम दिल्ली के होटल में था जो छतरपुर ब्लॉक में स्थित था। मुझे सुबह तड़के ही कंपनी की गाडी से दिल्ली के लिए निकलना था इसलिए मैं सुबह जल्दी उठा और तैयार होकर हाईवे पहुँच गया। कुछ ही समय बाद कंपनी की गाडी भी आ गई और हम दिल्ली के लिए निकल पड़े। मेरे साथ मेरी कम्पनी में काम करने वाले और भी लड़के साथ थे।

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 हम फरीदाबाद से दिल्ली के लिए एक लिंक रोड से गए जो दिल्ली के सीमावर्ती इलाके से होकर गुजरता है। यह एक शानदार रास्ता है और यहाँ ट्रैफिक भी बहुत ही कम दिख रहा था। रास्ते में लगे बोर्ड के अनुसार यह दिल्ली का जंगली इलाका है और हम इसवक्त जंगल से ही होकर गुजर रहे थे। इसी रास्ते पर हमें हनुमान जी का एक बहुत बड़ा स्टेचू दिखाई दिया। हम हनुमान जी की इस प्रतिमा के दर्शन करना चाहते थे किन्तु हमें  ट्रेनिंग अटेंड करने के लिए समय से पहुंचना आवश्यक था इसलिए हमने लौटते वक़्त यहाँ थोड़ी देर रुकने का निर्णय लिया।

Thursday, May 27, 2021

GTL TO MTJ : KARNATAKA SPECIAL 2021

 UPADHYAY TRIPS PRESENT 

कर्नाटक यात्रा का अंतिम भाग 

 गुंतकल से मथुरा - कर्नाटका स्पेशल ट्रेन 


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पूरा दिन हम्पी घूमने के बाद अंत में मैंने भगवान विरुपाक्ष जी के दर्शन किये और अपनी कर्नाटक की इस ऐतिहासिक यात्रा को विराम दिया। आज के दिन के मैंने जो किराये पर साइकिल ली थी उसे जमा कराकर मैं बस स्टैंड पर पहुंचा। यहाँ होस्पेट जाने के लिए अभी कोई बस उपलब्ध नहीं थी। होसपेट स्टेशन से मेरी ट्रेन रात को साढ़े आठ बजे थी जिससे मुझे गुंतकल पहुंचना है और वहां से कर्नाटक एक्सप्रेस द्वारा अपने घर मथुरा जंक्शन तक। इसप्रकार मेरी वापसी यात्रा शुरू हो चुकी थी।

 शाम ढलने की कगार पर थी और विजयनगर मतलब हम्पी अब धीरे धीरे अँधेरे के आगोश में समाने लगा था। शाम के साढ़े छ बज चुके थे, बस स्टैंड पर ऑटो वालों का ताँता लगा हुआ था जो हम्पी के नजदीक कमलापुर के लिए सवारियां ढूढ़ने में लगे हुए थे। काफी देर तक जब कोई बस यहाँ नहीं आई, तो मुझे थोड़ी चिंता होने लगी और अब मुझे ट्रेन के निकलने का डर सताने लगा था। मैंने आसपास के दुकानदारों से होस्पेट जाने वाली बस के बारे में पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि शाम को सात बजे आखिरी बस आती है जो होस्पेट जाती है। यह सुनकर मुझे थोड़ा सुकून मिल गया, किन्तु कहीं ना कहीं डर अब भी था।

Wednesday, May 26, 2021

VIJAY NAGAR : KARNATAKA 2021

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विजय नगर साम्राज्य के अवशेष - हम्पी 

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तेरहवीं शताब्दी में भारत वर्ष की अधिकांश भूमि पर इस्लाम के वाशिंदों का राज्य स्थापित हो चुका था, साम्राज्य अब सल्तनतों में तब्दील होने लगे थे। भारतीय हिन्दू सम्राटों की जगह अब देश की बागडोर तुर्की मुसलमानों के हाथों में आ चुकी थी जो स्वयं को सम्राट की बजाय सुल्तान कहलवाना पसंद करते थे। 

भारत का मुख्य केंद्रबिंदु दिल्ली, अब इन्हीं तुर्कों के अधीन थी और ये तुर्क समस्त भारत भूमि को अपने अधीन करने का सपना देखने लगे थे। भारत देश अब नए नाम से जाना जाने लगा था जिसे तुर्की लोग हिंदुस्तान कहकर सम्बोधित करते थे। हर तरफ इस्लामीकरण का जोर चारों ओर था, हिन्दुओं को जबरन तलवार के बल पर इस्लाम कबूल कराया जाने लगा था। हिन्दुओं पर अत्याचार, अब आम बात हो चली थी। 

भारतीय हिन्दू अब वैदिक धर्म को खोने लगे थे, सल्तनत की सीमायें बढ़ती जा रही थीं और अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल में दिल्ली सल्तनत की सीमायें, दक्षिण भारत को छूने लगी थीं, जहाँ अभी तक हिन्दू अपने धर्म और संस्कृति को बचाये हुए थे। इस्लाम के प्रसार को रोकने और वैदिक धर्म को क्षीणता से बचाने के लिए आखिरकार दक्षिण भारत में एक नए महान साम्राज्य की स्थापना हुई जिसे विजय नगर साम्राज्य के नाम से जाना गया। 

Monday, May 3, 2021

HAMPI : KARNATAKA 2021

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विजय नगर साम्राज्य और होसपेट की एक रात 

7 JAN 2021

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कुकनूर से कोप्पल होते हुए रात साढ़े नौ बजे तक, बस द्वारा मैं होस्पेट पहुँच गया था। बस ने मुझे होसपेट के मुख्य बस स्टैंड पर उतारा था जो कि बहुत बड़ा बस स्टैंड था किन्तु रात्रि व्यतीत करने हेतु मुझे कोई स्थान तो चाहिए था आखिरकार आज मैं सुबह से यात्रा पर था और आज एक ही दिन में अन्निगेरी, गदग, डम्बल, लकुण्डी और इत्तगि की यात्रा करके थक भी चुका था। हालांकि मैंने हम्पी में एक होटल में अपना बिस्तर बुक कर रखा था किन्तु इस वक़्त हम्पी जाने के लिए कोई बस या साधन अभी यहाँ से उपलब्ध नहीं था। मैंने सीधे अपना रुख रेलवे स्टेशन की ओर किया और वहीँ रात बिताने के इरादे से मैं होसपेट रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ चला। 

होसपेट बस स्टैंड से रेलवे स्टेशन एक या दो किमी के आसपास है, इसलिए मैं पैदल ही स्टेशन की ओर जा रहा था। रास्ते में एक अच्छा खाने का रेस्टोरेंट मुझे दिखाई दिया जहाँ तंदूरी रोटियां भी सिक रहीं थीं। आज काफी दिनों बाद मुझे उत्तर भारतीय भोजन की महक आई थी, मुझे भूख भी जोरों से लगी थी, इसलिए मैंने बिना देर किये दाल फ्राई और तंदूरी रोटी का आर्डर दिया। खाना महँगा जरूर था किन्तु बहुत ही स्वादिष्ट था।

 खाना खाने के बाद मैं रेलवे स्टेशन की ओर रवाना हो चला। होसपेट में एक से एक होटल हैं परन्तु मेरे बजट के हिसाब से कोई नहीं था क्योंकि पिछले आठ दिवसीय कर्नाटक यात्रा में अब मेरा बजट भी समाप्त होने की कगार पर था और जो शेष था उससे मुझे अभी घर भी पहुंचना था इसलिए मैंने होसपेट में कोई कमरा लेना उचित नहीं समझा। 

Wednesday, April 21, 2021

KUKNOOR : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 17 

कुकनूर की एक शाम 

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दिन ढलने से पहले ही एक लोडिंग ऑटो, जिसमें पीछे बैठने के लिए लकड़ी के बड़े बड़े तख्ते लगे हुए थे, से मैं इत्तगि से कुकनूर के लिए रवाना हो गया। इत्तगि से कुकनूर की यह दूरी लगभग 10 किमी थी। मेरे कुकनूर पहुँचने तक अँधेरा हो चला था। कुकनूर से पहले, वाड़ी से कोप्पल आने वाली नई रेल लाइन का पुल भी पार किया जहाँ कुकनूर का रेलवे स्टेशन बनाने का काम जोरो पर चल रहा था। इसी पुल के समीप एक ऐतिहासिक मंदिर भी दिखलाई पड़ रहा था जो रात के अँधेरे में मुझे साफ़ नहीं दिखपाया परन्तु इसके बारे में जब बाद में पता किया तो जाना कि यह कालीनतेश्वर मंदिर था जिसके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी।  

Sunday, April 18, 2021

ITTAGI : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 16 

इत्तगि का महादेवी मंदिर 

6 JAN 2021

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लकुण्डी के मंदिर देखने के बाद अपना बैग लेकर मैं बस स्टैंड पर पहुँच गया। अब मेरी अगली यात्रा इत्तगि गाँव की ओर होनी थी जहाँ ऐतिहासिक महादेवी का मंदिर मुझे देखना था, इसके लिए मैंने अपने नजदीक बैठी सवारी से  इत्तगि जाने वाली बस के बारे में पूछा, तो उसने कहा इत्तगि की बस आएगी। काफी देर तक इत्तगि जाने वाली कोई बस नहीं आई तो गुजरते वक़्त को देखकर मेरे मन में शंका उत्पन्न होने लगी और अब बार बार यही ख्याल आने लगा था कि क्या मैं आज इत्तगि पहुँच पाउँगा। मैं कर्नाटक यात्रा का जैसा कार्यक्रम बनाकर चला था क्या उसमें से इत्तगि की यात्रा पूर्ण हो पायेगी। मुझे इस बस स्टैंड पर कोई भी संतोष जनक जवाब नहीं मिल रहा था। 

LAKUNDI : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 15 

लकुण्डी के ऐतिहासिक मंदिर 

6 JAN 2021

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आज 6 जनवरी है और मैं आज तीन ऐतिहासिक मंदिर घूम चुका हूँ जिनमें अन्निगेरी का अमृतेश्वर मंदिर, गदग का त्रिकुटेश्वर मंदिर और डम्बल का दौड़बासप्पा मंदिर शामिल हैं। अभी आधा दिन गुजर चुका है और मैं वापस डम्बल से गदग पहुँच चुका हूँ। अब मेरी अगली यात्रा लकुण्डी की होनी है जिसके लिए मैं गदग के बस स्टैंड पर बस का इंतज़ार कर रहा हूँ। दोपहर होने को है और भूख भी लगी है इसलिए यहाँ मैंने पार्लेजी का बिस्कुट का पैकेट ले लिया है। कुछ ही समय में लकुण्डी जाने वाली बस आ गई और लकुण्डी की सवारियां बस में सवार होने लगीं। इन्हीं सवारियों के साथ मैं भी लकुण्डी जाने के लिए इस बस में सवार हो गया। 

Thursday, April 15, 2021

DAMBAL : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर भाग - 14 

डम्बल का दौड़बासप्पा शिव मंदिर 

TRIP DATE - 06 JAN 2021

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गदग से डम्बल जाने के लिए मैं बस में बैठ गया। गदग से 25 किमी दूर डम्बल गाँव है जो कि एक ऐतिहासिक गाँव है। यहाँ भगवान शिव का प्राचीन दौड़बासप्पा नामक मंदिर स्थित है। मुझे यही मंदिर देखना था और इसीलिए मैं कर्नाटक के सुदूर में स्थित इस गाँव में जा रहा था। यह बस भी डम्बल तक के लिए ही जा रही थी। इसमें टिकट का एक तरफ से किराया 39 रूपये है। डम्बल की और भी सवारियां गदग बस स्टैंड पर इस बस का इंतज़ार कर रही थीं। जब यह बस आई तो यह पूर्ण रूप से भर गई। मैं पीछे खिड़की वाली सीट पर कंडक्टर के नजदीक बैठ गया। 

Tuesday, April 13, 2021

GADAG CITY : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर,  भाग - 13 

गदग का त्रिकुटेश्वर शिव मंदिर 

TRIP DATE :- 06 JAN 2021

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सुबह 9 बजे तक मैं बल्लारी पैसेंजर से गदग स्टेशन पहुँच गया था। स्टेशन पर बने वेटिंग रूम में नहाधोकर तैयार हो गया। आज मेरा कर्नाटक यात्रा का सातवाँ दिन था और अभी दो दिन मेरी इस यात्रा को पूर्ण होने में शेष थे इसलिए ये अगले दो दिन मुझे विजय नगर साम्राज्य मतलब हम्पी और किष्किंधा को देखने में गुजारने थे और आज के पूरे दिन की यात्रा मुझे कर्नाटक के छोटे छोटे गाँवों में स्थित मंदिरों की खोज करने में करनी थी। जिसमें से मैं अन्निगेरी की आज की यात्रा पूर्ण कर चुका था। 

अब मुझे घर की और माँ की याद आने लगी थी इसलिए मैंने अपने अगले दो दिन बाद के रिजर्वेशन को एक दिन बाद का करवा लिया था। अपने घर लौटने की टिकट मैंने गदग स्टेशन पर ही करवा ली। इस प्रकार हम्पी के लिए अब कल का ही दिन मेरे पास शेष बचा था और कल ही रात से मेरी कर्नाटक से वापसी की यात्रा शुरू हो जाएगी। 

Saturday, April 10, 2021

ANNIGERI : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर, भाग - 12 

अन्निगेरी का अमृतेश्वर शिव मंदिर 

TRIP DATE - 06 JAN 2021

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सल्तनतों से बाहर निकलकर अब मैं अपनी प्राचीन सांस्कृतिक धरोहरों की ओर रवाना हो चुका था जिन्हें खोजने और देखने की लालसा लिए ही मैं कर्नाटक की इस यात्रा पर आया था। बीजापुर की इस्लामिक छवि देखने के बाद अब मुझे उस महान साम्राज्य की तरफ बढ़ना था जिसे मिटाने के लिए इस्लाम की चार सल्तनतों को मिलकर एकजुट होना पड़ा था, तब जाकर कहीं वह विजय नगर जैसे अकेले महान हिन्दू साम्राज्य का मुकाबला कर सके थे। परन्तु विजय नगर पहुँचने से पूर्व मुझे कुछ मुख्य ऐतिहासिक हिन्दू मंदिर भी देखने थे जिनमें सर्वप्रथम मैंने धारवाड़ जिले में अन्निगेरी के अमृतेश्वर शिव मंदिर को चुना। 

मेरी ट्रेन सुबह चार बजे ही गदग स्टेशन पहुँच चुकी थी। इस ट्रेन के सामान्य श्रेणी के सभी कोच लगभग खाली से ही पड़े थे। यह ट्रेन गदग से अब अपने आखिरी गंतव्य हुबली की तरफ जाने को तैयार थी। गदग से हुबली की तरफ जाने पर अगला स्टेशन अन्निगेरी ही था, जहाँ के लिए मेरा रिजर्वेशन इस ट्रेन में था। जनवरी के माह की इस खुशनुमा सुबह में, मैं इस ट्रेन के जरिये गदग को पीछे छोड़ चुका था और जल्द ही अन्निगेरी के छोटे से स्टेशन पर उतर गया। 

Monday, April 5, 2021

VIJYAPUR : KARNATAKA 2021

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कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा पर  भाग - 11 

आदिलशाही राज्य बीजापुर 

TRIP DATE :- 05 JAN 2021

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     दक्षिण भारत में मुहम्मद बिन तुगलक के लौट जाने के बाद बहमनी सल्तनत की शुरुआत हुई थी, यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी सल्तनत थी किन्तु सल्तनत चाहे कितनी भी बड़ी क्यों ना हो, उसके शासक कितने भी शक्तिशाली क्यों ना हो, हमेशा स्थिर नहीं रहती। एक ना एक दिन उसे इतिहास के पन्नों में समाना ही होता है और ऐसा ही बहमनी सल्तनत के साथ हुआ। बहमनी सल्तनत का, महमूद गँवा की मृत्यु के बाद से ही पतन होना प्रारम्भ हो गया था और जब इस सल्तनत को कोई योग्य सुल्तान नहीं मिला तो यह पांच अलग अलग प्रांतों में विभाजित हो गई। इनमें से ही एक बीजापुर की आदिलशाही सल्तनत थी जिसके दमन का प्रमुख कारण मराठा और मुग़ल थे।