चम्बल की घाटियों में एक सैर
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ज्येष्ठ की तपती दोपहरी में, देश में लगे लॉकडाउन के दौरान आज मैं और बड़े भाई बाइक लेकर खानवा घूमने के बाद, धौलपुर के लिए रवाना हो गए। भरतपुर से धौलपुर वाला यह रास्ता बहुत ही शानदार और अच्छा बना हुआ है। खानवा के बाद हमारा अगला स्टॉप रूपबास था। लोक किंवदंती के नायक 'रूप बसंत' की यह ऐतिहासिक नगरी है। यहाँ का लालमहल प्रसिद्ध है जिसे मैं बहुत पहले ही देख चुका हूँ। रूपबास से आगे एक घाटी पड़ती है जो राजस्थान और उत्तर प्रदेश की सीमा भी है। इस घाटी को पार करने के बाद अब हम उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में प्रवेश कर चुके थे। यहाँ मौसम काफी खुशनुमा हो गया था और जल्द ही हम आगरा के सरेंधी चौराहे पर पहुंचे।
सरेंधी चौराहा आगरा जिले में आगरा - जगनेर - तांतपुर राजमार्ग पर स्थित है जहाँ इसे भरतपुर - धौलपुर राजमार्ग क्रॉस करता है। मैं बहुत पहले जब जगनेर पेपर देने आता था तब मैं यहीं सरेंधी चौराहे पर ही कचौड़ी समोसे का नाश्ता करता था। आज जब यहाँ काफी सालों बाद आया हूँ तो बचपन की भूख फिर से सताने लगी और भाई के साथ मैंने यहाँ दोपहर का नाश्ता किया। कुछ देर यहाँ रुकने के बाद हम यहाँ से रवाना हो गए और अगला स्टॉप हमने सहपऊ में लिया और इसके बाद हम मुंबई - आगरा राजमार्ग पर पहुंचे जहाँ भरतपुर से आने वाला यह मार्ग समाप्त हो गया।
हम धौलपुर जिले में थे और भाई के मोबाइल पर उस गाँव की लोकेशन भी आ गई जहाँ हमें पहुंचना था। यह गाँव चम्बल के बीहड़ों में धौलपुर से भी 22 किमी आगे था। अब यहाँ से हमारा सफर रोमांचक होने वाला था क्योंकि अब हमारी बाइक चम्बल घाटियों में से होकर गुजरने वाली थी जहाँ कभी डकैतों का वास रहा करता था। मैंने बचपन से ही इन बीहड़ों को देखा है क्योंकि मेरे पिताजी मुझे लेकर अक्सर आगरा से मुरैना जाया करते थे और मैं ट्रेन में से इन बीहड़ों को देखकर डर जाया करता था। उस समय तक चम्बल के बीहड़ों में डकैतों का निवास निश्चित माना जाता था। चम्बल नदी के ऊपर बना रेलवे का पुल भी सबसे अधिक ऊँचा था और सबसे अधिक मगरमच्छों को संरक्षण देने वाली नदी भी चम्बल ही है।
धौलपुर से पूर्व दिशा की ओर राजस्थान का आखिरी क़स्बा राजाखेड़ा है। हम धौलपुर से राजाखेड़ा वाले मार्ग पर कुछ दूरी तक चले और इसके बाद हम इस मार्ग को छोड़कर चम्बल नदी की ओर बढ़ चले। चम्बल की घाटियों अथवा बीहड़ों में बसे छोटे छोटे गाँव और चम्बल की घाटियों के रेतीले टीले हमारे सफर को और रोमांचक बना रहे थे। भारतभूमि में अनेकों राज्य हैं और सभी राज्यों की एक अलग ही खूबसूरती है। हिमाचल के बर्फीले पहाड़ों से लेकर पंजाब की हरी भरी भूमि को देखकर, हरियाणा की बोली को सहकर दिल्ली के बाजारों की महक तक, उत्तरप्रदेश की भीड़भाड़ से दूर मध्य प्रदेश के मैदानी इलाकों तक और राजस्थान की रेतीली मिटटी से लेकर छत्तीसगढ़ के जंगलों तक एक अलग ही आनंद प्राप्त होता है।
चम्बल की घाटियों के बीच इन ऊँचे नीचे रास्तों में बाइक की सवारी को जो आनंद आज मुझे प्राप्त हुआ वह अविस्मरणीय है। कुछ ही समय बाद हम भैया के पास आई हुई लोकेशन पर पहुंचे। यह लोकेशन एक नितांत बीहड़ में दिखाई दे रही थी जहाँ सिवाय इन रेतीले टीलों के अलावा कुछ भी नहीं था, यहीं से थोड़ी दूरी पर चम्बल नदी की लोकेशन भी दिखाई दे रही थी। भैया को यहाँ चल रही चेन वाली मशीन की तलाश थी जिसमें आई प्रॉब्लम को दूर करने के लिए ही मैं और भाई यहाँ आये थे। बाइक को एक स्थान पर खड़ी करके हम पैदल ही घाटियों में से होकर नदी की तरफ बढ़ चले।
कुछ दूर चलने के पश्चात भैया को मशीन के चलने की आवाज सी आने लगी। यहाँ से थोड़ी दूर हमें एक ऊँचे टीले पर बैठा हुआ एक गड़रिया दिखाई दिया जो यहीं बीहड़ों में अपनी भेड़ बकरियां चरा रहा था। भैया ने उसे तेज आवाज लगाते हुए मशीन की लोकेशन पूछी। उसने भी वहीँ से बैठे बैठे मशीन की ओर हाथ से इशारा करते हुए चिल्लाकर कहा - इहाँ है उह मशीन, इते ही चले आओ। मैं और भैया एक ऊँची घाटी को पार करके जब उस तरफ पहुंचे तो हमें इन घाटियों को मैदानों में बदलती हुई वह मशीन दिखाई दी। गर्मीं के मारे हाल बेहाल था, भाई की बोतल में पानी भी ख़त्म हो चुका था और बढ़ती प्यास से अब जान सी जाने लगी थी। मशीन तो मिल गई अब सबसे ज्यादा जिस ओर मन व्याकुल हो रहा था, वह थी चम्बल नदी।
मैं और भाई, मशीन को देखकर अब चम्बल नदी की ओर बढ़ चले और एक घाटी से उतरकर हमें चम्बल नदी के प्रथम दर्शन हुए जिसकी सुंदरता की व्याख्या मैं अपने शब्दों में नहीं कर सकता। शांत शीतल जल के साथ प्रवाहित होती चम्बल नदी और इसके दूसरी बनी घाटियों की सुंदरता देखते ही बनती थी। मैंने सुना है चम्बल नदी एक शापित नदी है और इसका पानी पीने योग्य नहीं है। आज इस कहावत को झूठा साबित करने का वक़्त था क्योंकि आज इस मई के महीने की तपती दोपहरी में जो हमारा हाल था और प्यास के मारे गला भी सूखा जा रहा था उससे आज यह चम्बल नदी ही हमें बचने वाली थी।
नदी के किनारे पहुंचकर मैंने चम्बल नदी को पहले प्रणाम किया और फिर उसके जल को जीभर कर तब तक पिया जब तक गर्मी से लगी प्यास से आत्मा तृप्त नहीं हो गई। इसके बाद एक ऊँचा सा स्थान देखकर, अपने कपडे उतारकर हम चम्बल नदी में कूद गए। आज चम्बल में नहाने में जो आनंद आ रहे थे वह किसी फाइव स्टार होटल के स्विमिंग पूल में भी कभी नहीं आ सकते थे। हम लेट कर, बैठकर और चम्बल में घूम घूम कर नहाने का आनंद ले रहे थे। गर्मी, मई, ज्येष्ठ, धुप और दोपहरी कहाँ गायब थी पता ही नहीं था। भाई जल्दी ही नहाकर निकल गए किन्तु मैं करीब दो घंटे तक चम्बल नदी में ही आराम करता रहा। चाहकर भी नदी से दूर जाने का मन ही नहीं किया किन्तु जब याद आया कि मैं यात्रा में हूँ और यात्रा कभी नहीं रूकती, मुझे मजबूरन नदी में से बाहर निकलना पड़ा।
नदी में पाए जाने वाले छोटे छोटे सफ़ेद पत्थर भी मैंने चुनकर अपने रुमाल में बाँध लिए और घर आकर उन्हें अपने घर की बालकनी में बने शिव मंदिर में रख दिया। आज जब भी मैं उन पत्थरों को देखता हूँ तो मुझे अपनी यह यात्रा याद आ जाती है। आज चम्बल नदी के पार्टी दिल में छुपा वो बचपन वाला डर भी कहीं गम हो गया था और एक अजीब सा रिश्ता आज इस नदी के साथ जुड़ सा गया था। मैंने गंगा और यमुना की तरह ही चम्बल नदी को भी माँ कहकर पुकारा और एकबार पुनः इस नदी को प्रणाम करके नदी से विदा ली। नदी के किनारे कुछ मछुआरे भी मछलियां पकड़ रहे थे जिनसे भाई ने उनकी आमदनी का आंकलन पूछा जिसके अनुसार प्रतिदिन वह यहाँ से मछलियां पकड़कर बाजार और अपनी रोजी रोटी चलाते।
इसके अलावा हम नदी के जिस किनारे पर थे वहां दूर दूर तक कोई घड़ियाल या मगरमच्छ नहीं था अन्यथा नदी में स्नान का लुफ्त उठाना तो दूर हम नदी का पानी भी नहीं पी सकते थे और वैसे भी मछुआरे ने बताया था कि मगर का कोई धर्म अथवा सीमा तो होती नहीं है वह तो जल का राजा है कभी भी कहीं भी पहुँच सकता है इसलिए सावधानी से नहाना। नदी से विदा होकर हम पुनः घाटियों में पहुंचे। अब मशीन के पास भरतपुर से आये इंजीनियर भी आगये थे किन्तु मशीन की सर्विस का ख़िताब भाई के ही खाते में गया। अब शाम हो चली थी, घड़ी में देखा तो पांच बज चुके थे और जल्द ही चम्बल की घाटियों में अँधेरा अपना साम्राज्य फ़ैलाने वाला था। इससे पहले अँधेरा हो मैंने भाई से कहा कि अब हमें निकल जाना चाहिए।
भाई को किसी का इंतज़ार था, इसलिए घाटियों से निकलकर हम अपनी बाइक तक पहुंचे और फिर सड़क पर। यहीं थोड़ी दूरी पर एक गाँव था जिसके बाहर एक शिव मंदिर सड़क के किनारे ही बना था। इसी मंदिर पर रुककर भाई उसका इंतज़ार करने लगे और मैं भाभी के हाथ का बनाया हुआ खाना खाने के लिए टिफिन खोलने लगा। भाभी जी ने आलू -बैगन की सब्जी बनाई थी जो बहुत ही स्वादिष्ट थी और इसके अलावा मिटटी के चूल्हे पर सिकी रोटियों के तो कहने ही क्या थे। पता नहीं भाई इस टिफिन को गाडी की दिग्गी में ही रखा क्यों छोड़ गए थे, मुझे पहले पता होता तो आज भोजन भी चम्बल के किनारे ही बैठकर होता।
अब शाम के छः बज चुके थे, सूरज की तपिश कम हो चली थी और पश्चिम दिशा में वह अस्त होने लिए तैयार था, बस देखने में ऐसा लग रहा था जैसे कि वह हमें समय दे रहा हो कि मेरे ढलने से पहले तुम्हें इन बीहड़ों से दूर निकल जाना चाहिए। भाई ने समय की परवाह करते हुए अपनी बाइक यहाँ से रवाना कर दी और अँधेरा होने से पहले ही हम धौलपुर पहुँच गए। लौटते हुए बाइक मैंने चलाई और धौलपुर में एक स्थान पर एक दच्ची आई भी अपने वजन वाले बैग के साथ बाइक से अनियंत्रित होकर गिर गए। इस घटना ने भाई के हाथ में थोड़ा सा जख्म पहुँचा दिया जिसे भाई ने मुझे धौलपुर के घण्टाघर के पास आकर दिखाया।
धौलपुर में ज्यादा देर ना रुककर हम पुनः भरतपुर वाले रोड पर पहुंचे और रात दस बजे तक हम अपने घर मथुरा पहुँचे। चम्बल की यह यात्रा इस लॉक डाउन में मेरे लिए एक यादगार यात्रा बनकर रह गई जब सारा देश अपने अपने घरों में कैद है तब हम चम्बल की घाटियों में गर्मी की छुट्टी का आनंद ले रहे थे।
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भरतपुर - धौलपुर राजमार्ग पर पहला स्टॉप - मैं और धर्मेंद्र भाई |
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खानवा से रवानगी |
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भरतपुर - धौलपुर राजमार्ग |
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सरेंधी चौराहे पर दोपहर का नाश्ता करने के पश्चात |
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धौलपुर के निकट आगरा - मुंबई राजमार्ग पर |
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भाई और उनकी बाइक के साथ एक सेल्फी फोटो |
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आगरा - मुंबई राजमार्ग संख्या 3 |
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धौलपुर से रवानगी |
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चम्बल की घाटियों में यात्रा शुरू |
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चम्बल में खेत और नीम का पेड़ |
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घाटियों का दौर शुरू |
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चम्बल की घाटियाँ |
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एक सड़क चम्बल की |
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खूबसूरत चम्बल की घाटियां |
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अब बीहड़ों के बीच पैदल यात्रा |
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पेड़ की छाँव में थोड़ा विश्राम |
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मशीन की तलाश में बड़े भाई |
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अपुन चम्बल नदी की तलाश में |
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मशीन इस टीले के दूसरी तरफ है |
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यह खड़ी मशीन |
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चम्बल नदी के प्रथम दर्शन |
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चम्बल नदी की ओर |
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चम्बल नदी और बड़े भाई |
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CHAMBAL RIVER |
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चम्बल नदी में जलक्रीड़ा |
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चम्बल नदी में स्नान |
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चम्बल नदी का किनारा |
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शांत बहती चम्बल |
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चम्बल नदी |
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भरतपुर की टीम और बड़े भाई |
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चम्बल के बीहड़ों में एक यात्रा
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गाँव और शिव मंदिर |
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CLOCK TOWER - DHOLPUR |
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हाथ का जख्म दिखाते बड़े भाई धर्मेंद्र कुमार शर्मा |
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