श्री राजराजेश्वरी कैलादेवी मंदिर - करौली
यात्रा दिनाँक :- 05 फरवरी 2022
भारतवर्ष में अनेकों हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर हैं जिनमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग, भगवान विष्णु के चार धाम और आदि शक्ति माँ भवानी के 51 शक्तिपीठ विशेष हैं। इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है माँ कैलादेवी का भवन, जो राजस्थान राज्य के करौली जिले से लगभग 25 किमी दूर अरावली की घाटियों के बीच स्थित है। माँ कैलादेवी के मन्दिर का प्रांगण बहुत ही भव्य और रमणीय है। जो यहाँ एकबार आ जाता है उसका फिर लौटने का मन नहीं करता किन्तु सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के चलते भक्तों का यहाँ आने और जाने का सिलसिला निरंतर चलता ही रहता है।
कैलादेवी मंदिर का इतिहास
चौदहवीं शताब्दी में यहाँ केदारगिरी नामक परम तेजस्वी बाबा का निवास था, जो अरावली के पर्वतों की घाटी में एक गुफा में निवास करते थे और माँ चामुंडा की आराधना किया करते थे। यहाँ के नजदीकी ग्रामवासियों की बाबा में अटूट श्रद्धा थी। इसी क्षेत्र में लोहासुर नामक दैत्य का भारी आतंक था जो इस निर्जन स्थान से गुजरने वाले मनुष्यों और पशुओं को खा जाता था जिससे यहाँ के ग्रामवासी अत्यंत दुखी थे।
यहाँ के ग्रामवासियों ने अपनी समस्या बाबा केदारगिरी के समक्ष रखी तो उन्होंने अपने तपोबल से जान लिया कि इस दैत्य का वध माँ जगदम्बा ही कर सकती हैं, अतः माँ को प्रसन्न करने और ग्रामवासियों को दैत्य के आतंक से छुटकारा दिलाने हेतु बाबा एक पर्वत पर तपस्या करने के लिए चले गए। बाबा की तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने बाबा को दर्शन दिए और कहा कि जल्द ही वह उस दैत्य का संहार कर देंगीं। इधर ग्रामवासी बाबा के यूँ अचानक चले जाने से और भयभीत हो गये।
माता से वरदान प्राप्त करने के बाद बाबा अपने निवास पर लौट आये, बाबा को अपने समीप देखकर ग्रामवासियों की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा और बाबा के जाने के बाद उनके मन में जो डर उत्पन्न हुआ था वह दूर हो गया। कुछ दिनों बाद माता जगदम्बा एक बालिका के रूप में प्रकट हुईं और बाबा केदारगिरी के साथ रहने लगी। बाबा उस बालिका को अपने साथ रखकर बड़े ही लाड़ प्यार से उसकी सेवा करने लगे। अब तो पूरा दिन बाबा उसी कन्या के साथ खेलते और उसका ध्यान रखते।
एकदिन लोहासुर का सामना बालिका रूपी माँ जगदम्बा से हो गया और घोर युद्ध के पश्चात माता ने उस दैत्य का संहार किया और ग्रामवासियों को उसके आतंक से मुक्त कराया। समय बीतता गया और एक दिन माँ बालिका के रूप को त्याग अंतर्ध्यान हो गईं। बाबा केदारगिरी माँ के अचानक अंतर्ध्यान होने से बहुत व्याकुल रहने लगे। उनकी व्याकुलता को समझकर माँ ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि आने वाले समय में एक योगीबाबा मेरी मूर्ति लेकर यहाँ आएंगे। यहाँ आने के बाद तुम उस मूर्ति की स्थापना कर देना जिससे आने वाले समय में तुम्हारे साथ साथ मेरे अन्य भक्त भी मेरे दर्शन कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकेंगे।
इस स्वप्न के बाद बाबा की आँखे खुल गईं और उन्हें थोड़ा संतोष हुआ परन्तु वह इस बात से बेहद अधीर थे कि आखिर वह योगीबाबा मूर्ति को लेकर कब आएंगे। एक दिन वह समय भी आ गया जब एक योगीबाबा अपनी बैलगाड़ी लेकर बाबा की गुफा के नजदीक गुजरे तो देखा कि देर शाम हो चली है अँधेरा होने को है और जंगल में भयानक शेर चीतों की दहाडे भी सुनाई देने लगी। तब योगीबाबा ने बाबा की गुफा में ही रात गुजारने का निश्चय किया। रात को उन्होंने बाबा को बताया कि वह नगरकोट से यहाँ पधारे हैं, विदेशी आतततियों से माता की मूर्ति को खतरा न हो इसलिए वो राजा खींची के राज्य तिमनगढ़ में स्थित चामुंडा मंदिर में इस मूर्ति को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं।
बाबा केदारगिरी को अपने स्वप्न में आईं माता की बात का स्मरण हो आया और प्रातः काल जब योगीबाबा मूर्ति लेकर बैलगाड़ी को हांकने लगे तो बैलगाड़ी में रखी माता की मूर्ति इतनी भारी हो गई की बैल इसे खींचने में असमर्थ हो गए। बाबा केदारगिरी ने अपने स्वप्न की बात योगीबाबा के समक्ष रखी और माता की इच्छा जान योगीबाबा ने उस मूर्ति को बाबा केदारगिरी को सौंपकर अपने स्थान को प्रस्थान किया। बाबा ने उस मूर्ति को पूरी प्राण प्रतिष्ठा के साथ अपनी गुफा से थोड़ी दूर एक चबूतरे पर प्रतिष्ठित कराया। कालान्तर में वह चबूतरा ही माँ कैलादेवी का भवन कहलाता है और वह मूर्ति आज भी श्री राजराजेश्वरी कैलादेवी के रूप में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं।
माँ कैला देवी यदुवंशियों की कुलदेवी हैं और भगवान् श्री कृष्ण की बहिन हैं। यह वही देवी हैं जिन्होंने गोकुल में मैया यशोदा के गर्भ से जन्म लिया और बसुदेव जी के जरिये मथुरा पहुँची और जब कंस इन्हें देवकी की आठवीं संतान जानकार मारने वाला ही था कि उसके हाथ से छूटकर आकाश में अष्टभुजा रूप धारण करके उसे चेतावनी देकर अंतर्ध्यान हो गईं। श्री भागवत पुराण में इन्हें योगमाया के नाम से जाना गया है।
माँ कैला देवी की महिमा दूर दूर तक विख्यात है, चैत्र की नवरात्री पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है जिसमें दूर दूर से आये भक्तों की भीड़ यहाँ एकत्रित होती है। आगरा, धौलपुर, भरतपुर से लोग पैदल चलकर माता के भवन तक पहुँचते हैं जो इस कलियुग में आज भी कठिन भक्ति का एकमात्र उदाहरण है। माता के सच्चे मन से दर्शन करने से सभी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती हैं।
हमारी यात्रा
मेरी पत्नी कल्पना पिछले कई दिनों से मुझसे माँ कैलादेवी के दर्शन करने के लिए बोलती रही किन्तु मैंने उसकी बातों पर कभी ध्यान नहीं दिया परन्तु जब उसकी जिद बढ़ती गई तो मैंने भी माता की इच्छा जान उसे माता के भवन तक लाने का विचार किया। हम अपनी बाइक से ही मथुरा से भरतपुर, बयाना, हिंडौन होते हुए करौली पहुँचे, और उसके बाद माता कैलादेवी के मंदिर।
यहाँ माता के दर्शन करने के पश्चात ही हमने मंदिर प्रांगण में बने भोजनालय में दोपहर का भोजन किया और काफी देर माता के भवन में घूमते रहे। बोहरा नामक एक भगत जो इस जंगल में भेड़ बकरियां चराता था, उसेभी माता ने बालिका के रूप में दर्शन दिए थे और लोहासुर दैत्य का माता को पता बताया था। बोहरा भगत का मंदिर एवं मूर्ति आज भी माता के भवन में दर्शनीय है।
केदारगुफा की ओर
माता के दर्शन करने के पश्चात हम केदारबाबा की गुफा को देखने के लिए चल दिए। बाबा की गुफा तक पहुँचने के लिए माँ कैलादेवी राष्ट्रीय उद्यान से होकर गुजरना पड़ता है। केदार बाबा की यह गुफा, कैलादेवी भवन से लगभग 3 किमी आगे है। यह वियावान जंगल में स्थित है और इसके चारों तरफ अरावली पर्वतमालाएं हैं। जब हम यहाँ पहुंचे तो देखा यहाँ चारों तरफ माता की खंडित प्रतिमाएं रखी हुईं हैं जिन्हें यहाँ विसर्जित किया जाता है। पहाड़ से नीचे उतरकर बाबा केदारगिरी की गुफा के दर्शन होते हैं। इस स्थान को माता कैलादेवी का प्रथम स्थान भी कहा जाता है क्योंकि माता साक्षात् यहाँ बालिका के रूप में केदारबाबा के साथ रहीं थीं।
इसी स्थान पर केदारबाबा का समाधी स्थल भी बना हुआ है। हमें यहाँ माता की शाम की आरती में शामिल होने का सुअवसर मिला और इसके पश्चात हम वापस कैलादेवी मंदिर से करौली और हिंडौन होते हुए मथुरा की ओर रवाना हो गए।
कल्पना और पीछे बयाना का दुर्ग |
माँ कैला देवी के भवन |
माँ कैलादेवी भवन का प्रांगण |
दीप स्थल |
बोहरा भगत जी का मंदिर |
माँ कैलादेवी मंदिर - करौली |
धन्यवाद
🙏
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