UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
गुर्जर प्रतिहार कालीन - नरेश्वर मंदिर समूह
छठवीं शताब्दी के अंत में,सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के साथ ही भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का पूर्ण पतन प्रारम्भ हो गया। भारतभूमि पर पुनः वैदिक धर्म अपनी अवस्था में लौटने लगा था, नए नए मंदिरों के निर्माण और धार्मिक उत्सवों की वजह से लोग वैदिक धर्म के प्रति जागरूक होने लगे थे। सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ होते ही अखंड भारत अब छोटे छोटे प्रांतों में विभाजित हो गया और इन सभी प्रांतों के शासक आपस में अपने अपने राज्यों की सीमाओं का विस्तार करने की होड़ में हमेशा युद्धरत रहते थे।
भारतभूमि में इसप्रकार आपसी द्वेष और कलह के चलते अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों की नजरें अब हिंदुस्तान को जीतने का ख्वाब देखने लगी थीं और इसी आशा में वह हिंदुस्तान की सीमा तक भी आ पहुंचे थे किन्तु शायद उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि बेशक भारत अब छोटे छोटे राज्यों में विभाजित हो गया हो, बेशक इन राज्यों के नायक आपसी युद्धों में व्यस्त रहते हों परन्तु इन नायकों की देशप्रेम की भावना इतनी सुदृढ़ थी कि अपने देश की सीमा में विदेशी आक्रांताओं की उपस्थिति सुनकर ही उनका खून खौल उठता था और वह विदेशी आक्रमणकारियों को देश की सीमा से कोसों दूर खदेड़ देते थे।
इन शासकों का नाम सुनते ही विदेशी आक्रांता भारतभूमि पर अपनी विजय का स्वप्न देखना छोड़ देते थे। भारत भूमि के यह महान वीर शासक राजपूत कहलाते थे और भारत का यह काल राजपूत काल के नाम से जाना जाता था। राजपूत काल के दौरान ही सनातन धर्म का चहुंओर विकास होने लगा क्योंकि राजपूत शासक वैदिक धर्म को ही राष्ट्र धर्म का दर्जा देते थे और वैदिक संस्कृति का पालन करते थे। राजपूत शासक अनेक राजवंशों में बंटे थे जिनमें गुर्जर प्रतिहार शासकों का योगदान सर्वोपरि है।
गुर्जर प्रतिहार वंश के शासकों में मिहिरभोज सबसे प्रतापी सम्राट थे जिन्होंने अपने शासनकाल में अनेकों मंदिर समूहों का निर्माण करवाया था। इनके काल के स्थापत्य मध्य प्रदेश और राजस्थान में देखने को मिलते हैं। मिहिरभोज से संबंधित प्रशस्ति ग्वालियर से प्राप्त हुई है जिसके अनुसार मिहिरभोज ने ग्वालियर क्षेत्र के आसपास अनेकों मंदिर समूहों का निर्माण करवाया जिनमें बटेश्वर के प्राचीन मंदिर समूह, ग्वालियर किले में स्थित सासबहू का मंदिर एवं तेली का मंदिर मुख्य हैं।
कालांतर में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा, ग्वालियर के निकट एक और मंदिर समूह की खोज की गई जो नरेश्वर ग्राम के नजदीक पहाड़ियों के बीच खोजे गए हैं इसलिए इन्हें नरेश्वर मंदिर समूह नाम दिया गया है। यहाँ अनेकों मंदिरों की प्राचीन एवं सुन्दर श्रृंखला है और यहाँ मिले अभिलेख से इस बात की पुष्टि होती है कि इन मंदिरों का निर्माण गुर्जर प्रतिहार वंश के शासनकाल के दौरान हुआ। इसप्रकार यह मंदिर समूह आठवीं - नौवीं शताब्दी के मध्य निर्मित माने जाते हैं।
मैंने इन मंदिरों के बारे में भारतीय इतिहास की पुस्तक में पढ़ा था कि ग्वालियर के निकट नरेश्वर मंदिर समूह स्थित है जो गुर्जर प्रतिहार कालीन हैं और बटेश्वर मंदिर समूह की तरह ही यह दूसरा मंदिर समूह है। बस तभी से मुझे इसे देखने की जिज्ञासा थी इसलिए अब होली के अगले दिन मैंने ग्वालियर जाने का निर्णय लिया। चूँकि मार्च से ही तापमान में वृद्धि शुरू हो चुकी थी किन्तु मैंने यहाँ जाने का विचार पक्का कर लिया था इसलिए मैं शनिवार की अगली सुबह मथुरा से ग्वालियर के लिए निकल पड़ा।
ग्वालियर में मेरे चचेरे बड़े भाई यतेश उपाध्याय की ससुराल है इसलिए आज मुझे भाई की ससुराल घूमने का भी मौका मिला। बड़े भाई की ससुराल में मेरा स्वागत खूब जोरों से हुआ। भैया के साले साहब रेलवे में कार्यरत हैं उन्हीं की बाइक लेकर मैं नरेश्वर की तरफ घूमने निकल पड़ा। ग्वालियर से भिंड रोड पर लगभग 20 किमी दूर आगरा - झाँसी राजमार्ग है जिससे नरेश्वर गाँव का रास्ता अलग होता है। यह गाँव राजमार्ग से लगभग 4 किमी की दूरी पर है और पहाड़ों की तलहटी के बीच बसा हुआ है। इसी गाँव से आगे सड़क तो ख़त्म हो जाती है और इसकी जगह पगडंडियां ले लेती हैं।
मैं इन्हीं पगडंडियों पर बाइक चलाता जा रहा था किन्तु उन प्राचीन मंदिर समूहों से मैं अभी काफी दूर था। एक स्थान पर आकर ये पगडंडियां भी अदृश्य हो गईं और मैं मार्ग भटक गया। यहाँ दूर दूर तक कोई मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा था जिससे मैं आगे का मार्ग पूछ लेता और मोबाइल से नेटवर्क ने भी अपना साथ छोड़ दिया था। मैं जहां खडा था वहीँ एक ऊँची पहाड़ी थी जिसपर चढ़कर मैंने मोबाइल में नेटवर्क लाने की कोशिश की किन्तु असफलता ही हाथ लगी।
गर्मी से हाल तो बेहाल था ही, साथ ही प्यास से गला भी सूख रहा था। जब कोई मार्ग दिखाई नहीं देता तो स्वयं को ईश्वर के अधीन छोड़ देना चाहिए, मैंने अभी ऐसा ही किया और स्वयं को भगवान के भरोसे छोड़ दिया। मैं जमीन से बहुत ऊपर पहाड़ की चोटी पर खड़ा था कि तभी मेरी नजर कुछ दूर घास चरती गाय भैंसों पर पड़ी। मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, शायद ईश्वर ने मुझे मार्ग दिखा दिया था। मैं बिना देर किये पहाड़ से नीचे उतरा और बाइक लेकर गाय भैंसों की तरफ चल पड़ा।
मुझे पता था कि अगर यहाँ गाय भैंस हैं तो यक़ीनन इनके साथ कोई इंसान भी जरूर होगा जो मुझे मंदिरों का पता बता देगा। कँटीली झाड़ियों और बमूर के वृक्षों के बीच से गुजरता हुआ मैं उस मैदान की तरफ बढ़ता जा रहा था जहाँ मुझे गाय भैंस चरती हुई दिखाई दी थीं। कुछ ही समय बाद मैं उसी घास के मैदान में गाय भैंसो के नजदीक था, मेरा अनुमान ठीक था यहाँ मुझे एक पीपल के पेड़ के नीचे एक लड़का बैठा मिला जिसके पास जाकर मैंने उन मंदिरों के बारे में उससे पूछा। उसने ठीक सामने की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वो रहे वो मंदिर। मैंने जैसे ही पलटकर देखा तो मुझे दो पहाड़ों की तलहटी के बीच प्राचीन काल के उन मंदिरों की शृंखला दिखाई दी और मैं उस लड़के का धन्यवाद कर मंदिरों की तरफ बढ़ चला।
इन मंदिरों को देखकर लगता था कि यह प्राचीन धरोहर अभी हाल ही में खोजी गई है इसलिए यह अभी पर्यटकों और घुमक्कड़ों की दृष्टि से छुपी हुई है। पुरातत्व विभाग द्वारा इसके जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है किन्तु अभी यहाँ मुझे कोई भी दिखाई नहीं दिया। मंदिरों के समूह के ऊपर की और जाती हुई सीढ़ियां आपको प्राकृतिक मनोरम स्थान की ओर ले जाती हैं जहाँ मंदिरों की शृंखला आपको दिखाई देती रहती है। इन मंदिरों का निर्माण दो पहाड़ों के बीच बहती एक छोटी से नदी के किनारे पर हुआ है जिसका मुहाना यहाँ से थोड़ी दूरी पर ही होगा।
इसी नदी पर ऊपर की और बाँध बनाकर इसके जल को एकत्र करके तालाब का रूप दिया गया है जिसके किनारों पर छोटे छोटे मंदिरों का निर्माण देखने को मिलता है। यह नदी बरसात मे प्रगट होती है और तब यहाँ का नजारा देखने लायक होता है यही फ़िलहाल यह नदी और तालाब दोनों सूखे पड़े हैं। इन मंदिरों के बीच मुझे एक हनुमान जी की मूर्ति भी देखने को मिली जो सबसे अलग और प्राचीन काल की प्रतीत होती है। मंदिरों की दीवारों पर अभिलेख भी देखने को मिलते हैं।
मंदिरों का भ्रमण करने के बाद मैं जब वापस उस मैदान में आया तो मैंने कल्पना की, कि हो ना हो आठवीँ शताब्दी के उस दौर में जब इन मंदिरों का निर्माण हुआ होगा तब यहाँ धार्मिक अनुष्ठानों के अलावा धार्मिक उत्सवों और मेलों का आयोजन भी होता होगा। मंदिर समूह के ठीक सामने स्थित यह हरी घास का मैदान इस बात की पुष्टि करता है कि यहाँ कभी धार्मिक उत्सवों के अवसर पर मेलों का आयोजन अवश्य होता होगा। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरा हुआ है अतः यह एक अत्यंत ही मनोरम स्थल है।
नरेश्वर के मंदिरों को घूमने के बाद मैं वापस नरेश्वर गाँव पहुंचा और यहाँ बैठे लड़के से कोई अन्य ऐतिहासिक स्थल के होने के बारे में पूछा। सर्वप्रथम वह मेरे लिए अंदर जाकर जग भरके ठंडा जल लेकर आया और उसके बाद उसने गाँव के पीछे की पहाड़ी पर भोलेनाथ का मंदिर होने की जानकारी दी। मैं उसका धन्यवाद करके उस मंदिर की तरफ बढ़ चला, भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर एक पहाड़ की कंदरा में स्थित है। मावई ग्राम के नजदीक यह एक गुफा मंदिर है और इस गुफा में भगवान शिव का प्राचीन ऐतिहासिक शिवलिंग स्थापित है। मैं कुछ देर यहाँ बैठा और यहाँ के पुजारी जी से प्रसाद प्राप्त कर अपनी अगली मंजिल की तरफ बढ़ चला।
यात्रा दिनाँक :- 19 मार्च 2022
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मथुरा जंक्शन की एक सुबह |
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ससुराल में आज का भोजन |
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नरेश्वर ग्राम की तरफ |
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नरेश्वर रोड |
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नरेश्वर ग्राम |
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नरेश्वर गांव के बाद मंदिरों की खोज में |
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एक पहाड़ की चोटी से |
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प्यास से व्याकुल आपका घुमक्कड़ |
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नरेश्वर मंदिर समूह की पहली झलक |
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बाइक के पीछे ही वह मैदान है जहाँ वो चरवाह मिला था |
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प्राचीन मंदिरों की प्रथम झलक |
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गुर्जर प्रतिहार कालीन नरेश्वर मंदिर समूह |
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पहाड़ काटकर बनाई गई बैठक |
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यह शिव मंदिर प्रतीत होता है |
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हनुमान मंदिर |
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हनुमान जी की प्राचीन प्रतिमा |
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हनुमान जी की प्रतिमा के अलावा शिवलिंग भी है |
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नरेश्वर के मंदिर समूह में यह सबसे बड़ा मंदिर है, प्रतीत होता है कि सबसे महत्वपूर्ण मंदिर रहा होगा क्योंकि इस मंदिर की ओर जाती हुई सीढ़ियां और पुरातत्व विभाग द्वारा इसका संरक्षण यह दर्शाता है। |
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इस मंदिर में यह प्रतिमा स्थापित है जो माता महिषासुर मर्दिनी की प्रतीत होती है क्योंकि आठवीं शताब्दी में शक्ति सम्प्रदाय बहु प्रचलित था और देवी आद्यशक्ति को अभी शासक विशेष स्थान देते थे। |
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मंदिर समूह के मध्य एक नदी |
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नरेश्वर मंदिर समूह |
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अभिलेख प्राप्त मंदिर |
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ऐतिहासिक अभिलेख |
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शिव मंदिर |
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गुर्जर प्रतिहार स्थापत्य |
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विचारणीय है कि इन दो मंदिरों का मुख आदिशक्ति मंदिर की तरफ है जबकि आखिरी मंदिर का मुख दूसरी तरफ |
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गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा लिखवाया गया अभिलेख |
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मूर्तिविहीन तीसरा मंदिर |
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हनुमान जी का मंदिर |
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यहाँ अनेकों मंदिरों की शृंखलाएँ हैं |
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आदिशक्ति मंदिर के सम्मुख के तीन मंदिर |
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अब ऊपर की ओर चलते हैं। |
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ऊपर की श्रृंखला में पहला दृश्य |
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नदी के जल को एकत्र करने हेतु बना तालाब और उसके किनारे के मंदिर |
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अनुमान है कि यह सभी शिव मंदिर थे और इनमें से सिर्फ यह तीन ही बचे हैं। |
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शिव मंदिरों में जल निकासी हेतु नालियाँ |
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यहाँ कभी शिव मंदिर निर्मित थे |
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तालाब के किनारे के मंदिर |
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वर्तमान में तालाब के किनारे शिव मंदिरों की श्रृंखला में बचे हुए तीन मंदिर |
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तालाब से ऊपर चोटी पर एक मंदिर |
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तालाब से आगे बढ़ने पर |
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सबसे आखिरी में एक मंदिर |
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शिव मंदिर |
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यह नदी है जो अभी सूखी पड़ी है |
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वापसी की राह |
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जुड़वाँ मंदिर |
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प्राचीन मंदिरों के ध्वस्त अवशेष |
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मुख्य मंदिर का शिखर |
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नरेश्वर धाम |
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नदी के ऊपर रखा पत्थर |
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नरेश्वर धाम का मुख्य दृश्य |
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नदी के जल निकासी की सुविधा |
अगली मंजिल - मावई का शिव मंदिर
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इन्ही पगडंडियों के सहारे नरेश्वर मंदिरों तक पहुंचा जा सकता है |
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पगडंडियां |
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मावई का शिव मंदिर |
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प्राचीन खंडहर |
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मावई का शिव मंदिर |
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ऐतिहासिक शिवलिंग |
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कुंड |
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मंदिर के मुख्य पुजारी के साथ प्राचीन समय के ऋषि की प्रतिमा |
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जंगलों के बीच |
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मंदिर के निकट जलसरोवर |
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ग्वालियर की ओर |
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आगरा - झाँसी राष्ट्रीय राजमार्ग |
अगली यात्रा :- विवस्वान सूर्य मंदिर , ग्वालियर।
गुर्जर प्रतिहार वंश के अन्य मंदिर समूह
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पुनः आगमन प्रार्थनीय है।
Good information as well as photos
ReplyDeleteबहुत बढ़िया । जल्दी ही जाने का सोचना पड़ेगा
ReplyDeleteReally a great trip with very good pictures. It would reach to more people if you can explain in English. Have great expedition ahead. Thank you.
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