Friday, March 23, 2018

Hussaini Wala Border


शहीदी मेला -  भगत सिंह जी की समाधि पर

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जी का समाधी स्थल 


           मैंने सुना था कि पंजाब में एक ऐसी भी जगह है जहाँ साल में केवल एक ही बार ट्रेन चलती है और वो है फ़िरोज़पुर से हुसैनीवाला का रेल रूट। जिसपर केवल वैशाखी वाले दिन ही ट्रेन चलती है, जब मैंने इसके बारे में विस्तार से जानकारी की तो पता चला कि यहाँ साल में एक बार नहीं दो बार ट्रेन चलती है, वैसाखी के अलावा शहीदी दिवस यानी २३ मार्च को भी। इसलिए इसबार मेरा प्लान भी बन गया शहीदी दिवस पर भगत सिंह जी की समाधी देखना और साल में दो बार चलने वाली इस ट्रेन में रेल यात्रा करना। मैंने मथुरा से फ़िरोज़पुर तक पंजाब मेल में रिजर्वेशन भी करवा दिया। अब इंतज़ार था तो बस यात्रा की तारीख का। और आखिर वो समय भी भी आ गया।

Thursday, March 15, 2018

Laakhnu Fort



लाखनूं किले के अवशेष और रियासत

        हाथरस उत्तर प्रदेश का एक छोटा शहर है परन्तु यह शहर अनेक छोटी छोटी रियासतों के कारण इतिहास में काफी योगदान रखता है।  पर्यटन दृष्टि से देखा जाए तो हाथरस में आज सबसे ऊँची चोटी पर स्थित दाऊजी महाराज का भव्य मंदिर है जहाँ देवछठ के दौरान विशाल मेला लगता है। कई बड़े बड़े राजनीतिक लोग, बॉलीवुड सितारे इस मेले के दौरान यहाँ देखे जा सकते हैं। दाऊजी महाराज का मंदिर अंग्रेजों के समय का बना हुआ है उस समय यहाँ हाथरस का विशाल किला स्थित था, किला तो अब नष्ट हो चुका है किन्तु  इसमें बना दाऊजी का विशाल मंदिर आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है। यह दाऊजी की ही शक्ति है कि इस मंदिर को गिराने के लिए अंग्रेजों ने अनेक तोपों से गोले दागे परन्तु वह गोले मंदिर की दीवारों में जाकर धँस जाते थे। परन्तु मंदिर का बालबांका भी न कर सके। अंग्रेज भी हार गए दाऊजी की शक्ति के आगे और अपनी हार मानकर चलते बने। आज भी इस मंदिर की दीवारों पर तोपों के गोलों के निशान स्पष्ट देखे जा सकते हैं।

Sunday, March 4, 2018

Katni Junction


                                                             
                माँ जालपा देवी मंदिर - कटनी एवं रेल यात्रा 




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       रायपुर एक शानदार रेलवे स्टेशन है और हो भी क्यों न, आखिरकार यह छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी भी है। रेलवे स्टेशन पर बने भोजनालय में खाना खाकर मैं भूख से निर्वृत हो गया और प्लेटफॉर्म पर टहलने लगा। मुझे अब मथुरा की तरफ वापसी करनी थी इसलिए अब मैं कटनी की तरफ जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा में था। मोबाइल में ट्रेन का पता किया, रात को सवा बारह बजे एक ट्रेन दिखाई दी गोंदिया - बरौनी एक्सप्रेस जो प्रतिदिन चलती है। इसको यहाँ रात सवा बारह बजे आना चाहिए था, परन्तु यह अपने निर्धारित समय से साढ़े तीन घंटे लेट यानी सुबह पौने चार बजे आई। मेरी पूरी रात ख़राब हो चुकी थी परन्तु सुबह की नींद सबसे ज्यादा अच्छी होती है इसलिए इसके जनरल कोच में खिड़की वाली सीट पर स्थान जमाया और चादर ओढ़ कर सो गया।

Saturday, March 3, 2018

Rajim


 राजीव लोचन मंदिर  - राजिम 



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       सिरपुर से लौटकर हम महासमुंद आ गए, दोपहर के डेढ़ बजे थे और मैंने सिवाय एक समोसे के कुछ भी नहीं खाया था और मैं बिना नहाये कुछ खाना भी नहीं चाहता था। बस स्टैंड पहुंचकर देखा तो राजिम जाने वाली बस तैयार खड़ी थी, राजिम से चलकर यह कुछ देर फिंगेश्वर में खड़ी रही। फिंगेश्वर के बाद सीधे शाम चार बजे हम राजिम पहुँच गए। मुझे लगा था कि यहाँ महानदी पर घाट बने होंगे और मुझे महानदी में नहाने का मौका  मिलेगा परन्तु यहाँ भी मेरी मनोकामना पूर्ण नहीं हो पाई। नदी में पानी तो था परन्तु घाटों से बहुत दूर। राजिम छत्तीसगढ़ का एक मुख्य धार्मिक स्थल है  इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है।

Sirpur



सिरपुर  - एक ऐतिहासिक नगर 



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        सुबह दस बजे के आसपास हम महासमुंद पहुँच गए थे, यह रायपुर के नजदीक छत्तीसगढ़ का जिला है।  मैं और आकाश, निधि को बेंच पर बैठाकर स्टेशन के आरक्षण केंद्र पहुंचे। यहाँ हमने अपने लौटने के लिए गोंडवाना में दो दिन बाद का रिजर्वेशन कराया। इसके बाद स्टेशन से थोड़ी दूरी पर बने बस स्टैंड पहुंचे। हालाँकि मध्य प्रदेश की तरह यहाँ भी रोडवेज बसें नहीं चलती किन्तु प्राइवेट बसें बहुत थीं। हमें सिरपुर जाना था जो यहाँ से करीब 37 किमी दूर है।

Friday, March 2, 2018

Mahasamund



महासमुंद की ओर



         पिछली बार जब छत्तीसगढ़ की यात्रा पर दुर्ग गया था तो मेरे पिताजी मेरे साथ थे। यह मेरे साथ मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा थी। इस यात्रा से लौटने के तीन माह बाद ही पिताजी मुझे इस संसार में हमेशा के लिए अकेला छोड़ गए। पिताजी तो नहीं रहे पर उनकी यादें हमेशा मेरे साथ रहती हैं। अब तीन साल हो चुके हैं और मुझे छत्तीसगढ़ फिर से बुला रहा था। यात्रा करने के लिए मुझे सबसे ज्यादा परेशानी ऑफिस से छुट्टी लेने में आती है। आसानी से नहीं मिलती, प्राइवेट नौकरी है इसलिए कोई उपाय सोचना पड़ता है।

Tuesday, February 27, 2018

Sankarshan Kund


गोवर्धन परिकर्मा प्रथम चरण 
आन्यौर ग्राम स्थित श्रीनाथ का प्राकट्य स्थल और संकर्षण कुंड।

      अब मैं गोवर्धन पर्वत की तलहटी के बिलकुल नजदीक पहुँच गया था, मेरे दूसरी तरफ आन्यौर ग्राम था। यहाँ से एक रास्ता गोवर्धन पर्वत के ऊपर स्थित एक मंदिर को जाता है। मैं फिर से अपने जूते उतार कर गोवर्धन पर्वत पर चढ़ा और मंदिर पर पहुंचा। यहाँ मैंने गोवर्धन पर्वत के दूसरी तरफ देखा तो ये जतीपुरा था जो यहाँ से परिक्रमा मार्ग के अनुसार काफी दूर था। आन्यौर और  जतीपुरा के लोग पैदल के रूप में जाने जाने के लिए गोवर्धन पर्वत का इस्तेमाल करते हैं। इस मंदिर के बारे में अगले पोस्ट में जिक्र किया जायेगा।

Saturday, February 17, 2018

Bahulavan




बहुलावन - ग्राम बाटी 


       ब्रज के बारह वनो में से एक बहुलावन ब्रज का चौथा वन है जहाँ बहुला बिहारी के साथ साथ बहुला गौ माता के दर्शन हैं। मथुरा से आठ किमी दूर स्थित ग्राम बाटी में स्थित  ब्रज का पौराणिक स्थल बहुलावन अत्यंत ही प्राकृतिक और ब्रज की धार्मिक धरोहर के रूप में व्यवस्थित है। यहाँ भगवान् श्री कृष्ण ने बहुला गाय की बाघ से रक्षा की थी। इसकी कथा निम्नप्रकार है -

Thursday, February 8, 2018

Goverdhan



गिर्राज धाम श्री गोवर्धन पर्वत
गोवर्धन परिक्रमा 1  -  दानघाटी मंदिर और दानीराय जी का मंदिर 



        आज कंपनी का इवेंट फिर से गोवर्धन में लगा। इवेंट में हरेंद्र को बैठकर मैं गिर्राज जी के दर्शन को पैदल ही निकल पड़ा। दानघाटी के दर्शन करते हुए मैं गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर निकल पड़ा ब्रज की उस अनमोल धरोहर को देखने,  जिसके लिए देश के कोने कोने से लाखों भक्त हर दिन यहाँ आते हैं और कठिन परिस्थिति में भी गोवर्धन पर्वत की 21 किमी की परिक्रमा पैदल पूरी करते हैं। गोवर्धन पर्वत की कथा भी कम रोचक नहीं है गोवर्धन पर्वत ने बड़ी चतुराई से स्वयं को ब्रज में स्थापित किया था।

Friday, January 5, 2018

Indraprastha



विश्व शांति स्तूप - इंद्रप्रस्थ, दिल्ली



       अब 2017 से 2018 में आ गए, जनवरी का महीना भी है। बाहर कोहरे की चादर चारोंतरफ तनी हुई है, इंसान को इंसान नहीं दिख रहा, सामने सड़क में गड्डा नजर नहीं आ रहा। यमुना एक्सप्रेस वे की खबरे जोरों पर हैं, सर्दी के मारे गाड़ियां एकदूसरे में घुसी जा रहीं हैं, रेलगाड़ियों की गति धीमी हो चली है,  कल सुबह आने वाली ट्रेन आज शाम तक आएगी। बाइक पर कहीं जाना तो दूर पैदल निकलने की हिम्मत नहीं हो रही और ऐसे में मन कह रहा है क्यों न कहीं घूम कर आया जाए।

Tuesday, October 24, 2017

MAGADH EXPRESS : ISLAMPUR

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मगध एक्सप्रेस -  इस्लामपुर से नईदिल्ली 

इस्लामपुर रेलवे स्टेशन 
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       राजगीर से दोपहर दो बजे दानापुर इंटरसिटी चलती है, मुझे इसी ट्रेन से वापस पटना लौटना था क्योंकि मेरा रिजर्वेशन आज शाम को मगध एक्सप्रेस में था जो शाम को साढ़े छः बजे पटना से रवाना होगी। मैं सही वक़्त पर राजगीर स्टेशन पहुँच गया और मेरे आते ही ट्रेन भी चल पड़ी, मुझे इस सफर में बस यही अफ़सोस रहा कि मैं नालंदा का विश्व विध्यालय नहीं देख पाया जिसे मोहम्मद गौरी के सेनापति बख़्तियार ख़िलजी ने नष्ट कर दिया था, परन्तु कोई बात नहीं नालंदा अभी मेरी यात्राओं की लिस्ट में शामिल रहेगा। 

Monday, October 23, 2017

RAJGIR STOOP

UPADHYAY TRIPS PRESENTS


विश्व शांति स्तूप - राजगीर




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      जीवक का दवाखाना देखने के बाद हमारी घोड़ागाड़ी राजगीर के गिद्धकूट पर्वत की तरफ बढ़ चली।  कहा जाता है कि यही वो पर्वत है जिस पर बैठकर महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्यों को उपदेश दिया था। उन्ही की याद में यहाँ एक विशाल स्तूप का निर्माण कराया गया है जो राजगीर स्तूप के नाम से जाना जाता है, इसे विश्व शांति स्तूप भी कहते हैं। यह पिकनिक के लिए बेहद खूबसूरत स्थान है यहाँ स्तूप तक जाने के लिए रोपवे की व्यवस्था है यह रोपवे एक सीट का है इसलिए यह अन्य रोपवे से थोड़ा अलग और एडवेंचर लगता है। स्तूप के चारों तरफ महात्मा बुद्ध की मूर्तियां स्वर्णिम रूप में व्यवस्थित हैं। 

SON BHANDAR CAVE : RAJGIR

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सोन भंडार या स्वर्ण भंडार गुफा 




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      मनियार मठ से आगे चलते ही रास्ता और भी रोमांचक हो गया था, बड़े बड़े वनों के बीच से गुजरते हुए अचानक एक ढलान आई, यह एक नदी थी जो इन दिनों सूखी पड़ी हुई थी, टाँगे वाले बाबा इस पर खेद प्रकट करते हुए बोले गर सरकार इस पर एक ब्रिज बना देता तो हमका काफी सहूलियत रहता। गाडी उतर जाती तो है पर चढ़ने में घोडा को काफी दिक्कत होता है। इसके बाद एक हिरन पार्क मिला जो इनदिनों बंद था, इसमें कोई भी हिरन नहीं था। अब हमारे सामने स्वर्ण भंडार गुफा थी जो राजगीर या वैभारगिरि पर्वत को काटकर बनाई गई थी।

JARA DEVI TEMPLE : MOTHER OF JARASANDH

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जरासंध और ज़रा देवी मंदिर



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      सप्तपर्णी गुफा देखने के बाद मैं वापस पर्वत से नीचे आया और आगे बढ़ने लगा। एक तांगे वाले बाबा से अन्य स्थलों को घुमाने के लिए 200 रूपये में राजी किया। और तांगे में बैठकर में राजगीर की अन्य प्राचीन धरोहरों को देखने के लिए निकल पड़ा, इस समय देश में हर जगह पर्यटन पर्व चल रहा था। यह मेरी ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल भ्रमण यात्रा थी। ताँगे वाले सबसे पहले ज़रा देवी के मंदिर पहुंचे और मंदिर से निकलने के बाद उन्होंने जरासंध और ज़रा देवी की कथा शुरू की।

SAPTPARNI CAVE

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वैभारगिरि पर्वत और सप्तपर्णी गुफा 

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     ब्रह्मकुंड में स्नान करने के बाद मैं इसके पीछे बने पहाड़ पर चढ़ने लगा, यह राजगीर की पांच पहाड़ियों में से एक वैभारगिरि पर्वत है जिसे राजगीर पर्वत भी कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी पर्वत पर वह ऐतिहासिक गुफा स्थित है जहाँ अजातशत्रु के समय प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था। इसे सप्तपर्णी गुफा कहते हैं। माना जाता है प्रथम बौद्ध संगीति महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाण के अगले वर्ष मगध सम्राट अजातशत्रु द्वारा राजगृह की सप्तपर्णी गुफा में आहूत की गई जिसमे 500 से भी अधिक बौद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया था तथा जिसकी अध्यक्षता महाकश्यप द्वारा की गई।

     इसी के साथ ही यहाँ जैन सम्प्रदाय के कुछ पूजनीय मंदिर भी स्थित हैं। और इनके अलावा एक महादेव का मंदिर भी इस पर्वत स्थित है। इसप्रकार यह पर्वत तीनों धर्मो के लिए विशेष महत्त्व रखता है।

RAJGIR 2018

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   राजगीर या राजगृह - एक पर्यटन यात्रा 



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      मेरी ट्रेन सुबह ही राजगीर पहुँच गई थी, जनरल कोच की ऊपर वाली सीट पर मैं सोया हुआ था, एक बिहारिन आंटी ने मुझे नींद से उठाकर बताया कि ट्रेन अपने आखिरी स्टेशन पर खड़ी है। मैं ट्रेन से नीचे उतरा तो देखा एक बहुत ही शांत और खूबसूरत जगह थी ये, सुबह सुबह राजगीर की हवा मुझे एक अलग ही एहसास दिला रही थी कि मैं रात के चकाचौंध कर देने वाले गया और पटना जैसे शहरों से अब काफी दूर आ चुका था। हर तरफ हरियाली और बड़ी बड़ी पहाड़ियाँ जिनके बीच राजगीर स्थित है। यूँ तो राजगीर का इतिहास बहुत ही शानदार रहा है, पाटलिपुत्र ( पटना ) से पूर्व मगध साम्राज्य की राजधानी गिरिबज्र या राजगृह ही थी जिसका कालान्तर में नाम राजगीर हो गया।

Buddha Poornima Express

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बुद्धपूर्णिमा एक्सप्रेस - गया से पटना और राजगीर




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   रोहतासगढ़ से लौटने के बाद मैं डेहरी ऑन सोन स्टेशन पर आ गया था, यहाँ से गया जाने के लिए मुझे झारखण्ड स्वर्णजयंती एक्सप्रेस मिल गई और सोन नदी पुल पार करके मैं गया पहुँच गया। गया पहुँचने तक मुझे शाम हो चुकी थी, स्टेशन पर उतरकर मुझे अनायास ही एहसास हुआ कि यह एक तीर्थ स्थान है और मुझे माँ को यहाँ लेकर आना चाहिए था। स्टेशन से बाहर निकलकर मैं बाजार पहुंचा और विष्णुपद मंदिर की तरफ रवाना हो गया। काफी चलने के बाद जब मैं थक गया तो एक हेयर सैलून में अपने बाल कटवाने पहुँच गया।

   बाल कटवाने के बाद मैं फिर से विष्णुपद मंदिर की तरफ रवाना हुआ फिर मन में सोचा कि अब रात भी हो चुकी है और पटना जाने वाली ट्रेन का समय भी होने वाला है, किसी दिन माँ के साथ ही आऊंगा तभी विष्णु जी के दर्शन भी हो जायेंगे और फल्गु नदी को भी देख लेंगे इसके अलावा बौद्ध गया का मंदिर भी देख लेंगे, अभी गया घूमने का उपयुक्त समय नहीं है इसलिए बिना दर्शन किये ही वापस स्टेशन आ गया।

Sunday, October 22, 2017

Rohtasgarh Road


UPADHYAY TRIPS PRESENTS

                             रोहतासगढ़ की तरफ एक यात्रा 


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     सुबह दस बजे के करीब मैं वापस सासाराम स्टेशन आ गया, अब मुझे रोहतास के किले को देखने जाना था, रोहतास जाने के लिए डेहरी होकर जाना पड़ता है और डेहरी जाने के लिए ट्रेन ही सर्वोत्तम है जो दस मिनट में सासाराम से डेहरी पहुंचा देती है। स्टेशन पर दीक्षाभूमि एक्सप्रेस आ रही थी जो अगले स्टेशन देहरी जाने के लिए तैयार थी। कुछ ही देर बाद मैं डेहरी स्टेशन पर था। यहाँ स्टेशन के बाहर लगे बोर्ड पर रोहतास के किले को देखकर मन और भी रोमांचित हो उठा।

SHERSHAH SURI TOMB

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शेरशाह सूरी और उसका मक़बरा 



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      बिहार की ऐतिहासिक धरती पर इतिहास को खोजते हुए मैं, इतिहास के महान शासक शेरशाह सूरी तक जा पहुँचा, जिसने अपने शासन काल में भारतीय इतिहास के सबसे बड़े और विशाल साम्राज्य  'मुग़ल साम्राज्य ' को छिन्न भिन्न कर दिया। बाबर द्वारा स्थापित मुग़ल साम्राज्य की जमीं नींव को उखाड़ फेंकने और दिल्ली की गद्दी पर किसी मुग़ल शासक को हटाकर खुद दिल्ली का शासक बनने और मुग़ल वंश को हटाकर सूरी वंश की स्थापना करने का श्रेय महान शासक शेरशाह सूरी को ही जाता है।

Tarachandi Devi Temple

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माँ ताराचंडी देवी शक्तिपीठ धाम




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           मैं रात दो बजे सासाराम स्टेशन उतर गया था, यहाँ आकर स्टेशन पर बने एक बोर्ड पर मैंने देखा कि यहाँ ताराचंडी देवी का शक्तिपीठ धाम है। सासाराम के बारे में कहा जाता है कि यह महान ऋषि परशुराम की भूमि है। सहस्रराम, सहसराम, सासाराम = परशुराम। रात को तो स्टेशन पर बने ब्रिज पर मैं सो गया परन्तु सुबह पांच बजे में उठकर देवी ताराचंडी की तरफ निकल गया। स्टेशन से इस दिव्यधाम की दूरी मात्रा पांच किमी ही है सोचा था पैदल ही नाप दूंगा।

Saturday, October 21, 2017

KOLKATA EXPRESS : MTJ TO SASARAM

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बिहार की तरफ एक सफ़र



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      आज भैया दौज का त्यौहार था, अपनी बहनो से सुबह पाँच बजे ही टीका करवाकर मैं अकेला ही उस सफर पर निकल पड़ा जहाँ जाने के लिए ना जाने कब से मैं विचार बना रहा था। सुबह सुबह हलकी ठण्ड सी लगने लगी थीं। मैं पैदल ही स्टेशन पहुँच गया था। आगरा कैंट से चलकर कोलकाता जाने वाली 13168 कोलकाता एक्सप्रेस मुझे मथुरा स्टेशन पर तैयार खड़ी हुई मिली। यह ट्रेन आगरा से तो खाली आती है परन्तु मथुरा आकर यह फुल हो जाती है। अधिकतर बंगाल के लोग इस ट्रेन का उपयोग कोलकाता से मथुरा आने के लिए ही करते हैं और साथ ही मथुरा से कोलकाता जाने के लिए। खैर मैं आज बिना रिजर्वेशन था, जनरल कोच में मुझे जगह नहीं दिखी इसलिए रिजर्वेशन कोच में मैंने खड़े खड़े ही अपना सफर शुरू कर दिया।

Friday, October 20, 2017

BIHAR TRIP 2017

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अबकी बार - बिहार 


         घूमने का जज़्बा दिल में हो तो मंजिलें मिल ही जाती हैं, बस जरुरत है तो उनतक पहुँचने की। मेरे भी मन में कुछ ऐसी मंजिलें थी जहाँ तक मैं पहुंचना चाहता था। सो इस दीपावली पर ठान लिया था कि जरूर जाऊँगा अबकी बार बिहार। इस बार अकेला ही था कोई साथ में जाने वाला नहीं था इसलिए रिजर्वेशन की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। साधना को गोवर्धन पूजा वाले दिन ही बुला लिया था ताकि भाई दौज का त्यौहार मना सकूँ। दौज को सुबह पांच बजे निधि और साधना भाई दौज पूरी की और माँ का आशीर्वाद लेकर सुबह साढ़े पाँच बजे अकेला ही निकल पड़ा अपने देश के इतिहास और संस्कृति को देखने के लिए ऐतिहासिक राज्य बिहार की तरफ।

Saturday, October 14, 2017

Akber Tomb




जोधाबाई की समाधि  


       यूँ तो आगरा शहर की स्थापना 1504 ईसवी में सिकंदर लोदी ने की थी। आगरा से कुछ दूर दिल्ली मार्ग पर उसने सिकंदराबाद नामक शहर बसाया था जो कालांतर में सिकंदरा ने नाम से आज भी स्थित है। परन्तु यह सिकंदरा आज सिकंदर लोदी के कारण नहीं बल्कि मुग़ल सम्राट अकबर के मकबरे के कारण विश्व भर में विख्यात है। यूँ तो आगरा शहर की स्थापना का श्रेय सिकंदर लोदी को जाता है किन्तु आगरा शहर को पहचान मुग़ल शासक अकबर के शासनकाल में ही मिली, उसने इसे अपनी राजधानी बनाया और आगरा किला का निर्माण कराया। अकबर ने अपनी मृत्यु से पूर्व ही अपने मकबरे का भी निर्माण भी आगरा में ही कराया था।  

Thursday, October 12, 2017

RADHAKUND : A NIGHT OF AHOI ASHTAMI



 राधाकुंड मेला - अहोई अष्टमी की एक रात


       माना जाता है कि अहोई अष्टमी की मध्य रात्रि को राधाकुंड में स्नान किया जाये तो एक वर्ष के अंदर संतान प्राप्ति का सुख निश्चित प्राप्त होता है। कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्य रात्रि राधाकुंड में स्नान करने का पौराणिक महत्त्व है इस दिन ब्रज की अधिष्ठात्री देवी श्री राधारानी इस कुंड में एक साथ स्नान करने वाले भक्तो को संतान प्राप्ति का फल देती हैं और साल भर के भीतर उनके यहाँ संतान जन्म लेती है। इस दिन गोवर्धन मथुरा स्थित राधाकुंड में विशाल मेला लगता है। 

     राधाकुंड का निर्माण स्वयं भगवान कृष्ण ने अपनी बांसुरी की नोक से खोदकर किया था जब उन्होंने बछड़े का रूप लेकर आये महादैत्य अरिष्टासुर का वध किया था जिससे उन्हें गोहत्या का पाप लगा। राधारानी के कहने पर इस पाप से मुक्ति पाने के भगवान कृष्ण ने सभी तीर्थों का जल राधाकुंड में मिलकर उसमे स्नान किया और गोहत्या के पाप से मुक्ति पाई साथ ही राधारानी को यह वरदान दिया कि कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि जो भी इस कुंड में स्नान करेगा उसे संतान की प्राप्ति अवश्य होगी। 

Saturday, October 7, 2017

Pagalbaba Temple


पागलबाबा मंदिर 



     मेरी माँ बचपन से ही हर अमावस्या को श्री ठाकुर जी के दर्शन करने आगरा से वृन्दावन जाती थीं, मथुरा से वृन्दावन जाते समय एक बहुमंजिला मंदिर पड़ता था जिसे देखकर मैं माँ से पूछता था कि माँ यह मंदिर किसका है, माँ जवाब दे देती थी पागल बाबा का। भच्पन बहुत ही चंचल होता है जानने की बड़ी  इच्छा होती थी कि  इन्हे पागलबाबा क्यों कहते हैं।  धीरे धीरे समय गुजर गया और मैं बड़ा हो गया, आज जब ठाकुरजी की कृपा से अपना आशियाना और नौकरी ब्रज में ही है तो क्विड लेकर मांट से सीधे कालिंदी के किनारे पहुँचा एक पीपों से बने हुए पल को पारकर मैं वृन्दावन पहुँचा और मथुरा रोड पर स्थित पागलबाबा के दर्शन किये।  और वहां जाकर जाना कि पागलबाबा कौन थे। गूगल पर जाकर आपको इनकी कहानी पढ़ने को मिल जाएगी। हम तो घुम्मकड़ हैं बस अपनी यात्रा का विवरण ही दे सकते हैं। 

Sunday, October 1, 2017

Dauji Temple : Baldev




दाऊजी मंदिर - बलदेव धाम 


     यूँ तो मथुरा को भगवान कृष्ण और राधा की लीलास्थली के रूप में जाना जाता है किन्तु भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलभद्र जी भी थे जो कि शेषनाग के अवतार थे। कृष्ण जी उन्हें बड़े प्यार से दाऊ भईया कह कर पुकारते थे। त्रेतायुग में भगवान् राम के छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में शेषनाग जी ने अवतार लिया था और द्वापर युग में बलभद्र के रूप ये देवकी की सातवीं संतान थे जो संकर्षण के जरिये बसुदेव जी की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ से जन्मे थे जिस कारन इन्हे संकर्षण भगवान भी कहा जाता है। मथुरा से सादाबाद मार्ग पर 20  किमी आगे बलदेव नामक स्थान जहाँ दाऊजी का विशाल मंदिर है। यहाँ दूर दूर से काफी संख्या में लोग दाऊजी के दर्शन करने आते हैं।

Friday, September 29, 2017

Kusum Sarovar


गोवर्धन परिक्रमा एवं कुसुम सरोवर

कुसुम सरोवर 


       अभी कुछ ही दिनों पहले मेरी कंपनी का गोवर्धन क्षेत्र में एक इवेंट लगा जिसकी मुनियादी गोवेर्धन क्षेत्र के आसपास कराई जानी थी जिसकी जिम्मेदारी मुझे सौंपी गई। मैंने एक टिर्री बुक की, जिसमे स्पलेंडर बाइक फिट थी और पीछे आठ दस सवारियों के बैठने की जगह थी। इस टिर्री के साथ मैंने मुनियादी करने  के लिए  गोवर्धन परिक्रमा क्षेत्र को चुना। मौसम आज सुहावना था, सुबह सुबह खूब तेज बारिश पड़ी इसलिए मौसम में काफी ठंडक भी थी। गोवर्धन का परिक्रमा मार्ग कुल 21 किमी का है जो  दो भागों में विभाजित है बड़ी परिक्रमा और छोटी परिक्रमा। बड़ी परिक्रमा कुल चार कोस की है, मतलब 12 किमी और छोटी 3 कोस की मतलब 9 किमी की।   

Monday, September 18, 2017

SHANTANU KUND




शांतनु कुंड -  एक पौराणिक स्थल , सतोहा 


         भगवान श्री कृष्ण की ब्रजभूमि में ऐसे कई स्थान हैं जिनका सीधा सम्बन्ध या तो इतिहास से है और सर्वाधिक पुराणों से है। मैंने सभी पुराण तो नहीं पढ़े हैं परन्तु रामायण और श्रीमद भागवत का अध्ययन और श्रवण कई बार किया है, इसलिए मुझे उन स्थानों पर जाने और उन्हें देखने में विशेष रूचि है। आज ऐसे ही एक स्थान पर मैं कंपनी की गाडी क्विड से नीरज के साथ मथुरा के सतोहा ग्राम में पहुंचा जहाँ एक पौराणिक कुंड ब्रज की अनमोल धरोहर है। इस कुंड का नाम महाभारत युद्ध से पूर्व हिस्तनापुर के सम्राट महाराज शांतनु के नाम पर है। माना जाता है कि महाराज शांतनु ने इस स्थान पर रहकर तपस्या की थी।

Sunday, September 3, 2017

Ramtal




रामताल - एक पौराणिक स्थल 



        अभी कुछ ही दिनों पहले सुर्खियों में एक खबर आई थी कि वृन्दावन के सुनरख गाँव के पास एक कुंड मिला है जिसका नाम रामताल है , बताया जाता है कि ये 2500 बर्ष से भी पुराना है और उसी समय की काफी वस्तुएं भी पुरातत्व विभाग को वहां खुदाई के दौरान मिली। पुरातत्व विभाग ने यहाँ उत्खनन सन 2016 में शुरू कराया तो एक प्राचीन और पौराणिक धरोहर के रूप में रामताल को जमीन के अंदर पाया। यह खबर सुनकर मेरा मन भी बैचैन हो उठा और आखिरकार मैं भी रामताल देखने निकल पड़ा। हालाँकि ड्यूटी पर ही था किसी काम से कंपनी की गाडी लेकर मैं और नीरज वृन्दावन आये और यहीं से हम रामताल पहुंचे।

Saturday, September 2, 2017

Kans Fort : Mathura


कंस किला और वेदव्यास जी का जन्मस्थान


     कई बार सुना था कि मथुरा में कहीं कंस किला है, पर देखा नहीं था। आज इरादा बना लिया था कि जो चाहे हो देखकर रहूँगा। मैं अपनी बाइक से मथुरा परिक्रमा मार्ग पर गया और पाया कि आज ब्रज की अनमोल धरोहरों का आज मैं अकेला अवलोकन कर रहा हूँ। सबसे पहले मेरी बाइक चक्रतीर्थ पहुंची जहाँ भगवान शिव् का भद्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन हुए और मंदिर के ठीक सामने चक्रतीर्थ स्थित है। इसके बाद कृष्ण द्वैपायन भगवान वेदव्यास जी की जन्मस्थली पहुंचा। यहाँ भी सुन्दर घाट बने हुए थे पर अफ़सोस यमुना यहाँ से भी काफी दूर चली गई थी और यमुना में से निकली एक नहर इन घाटों को छूकर निकल रही थी।