विश्व शांति स्तूप - इंद्रप्रस्थ, दिल्ली
अब 2017 से 2018 में आ गए, जनवरी का महीना भी है। बाहर कोहरे की चादर चारोंतरफ तनी हुई है, इंसान को इंसान नहीं दिख रहा, सामने सड़क में गड्डा नजर नहीं आ रहा। यमुना एक्सप्रेस वे की खबरे जोरों पर हैं, सर्दी के मारे गाड़ियां एकदूसरे में घुसी जा रहीं हैं, रेलगाड़ियों की गति धीमी हो चली है, कल सुबह आने वाली ट्रेन आज शाम तक आएगी। बाइक पर कहीं जाना तो दूर पैदल निकलने की हिम्मत नहीं हो रही और ऐसे में मन कह रहा है क्यों न कहीं घूम कर आया जाए।
बस यही सोच रहा था कि अचानक मोबाइल में मैसेज आया कि पासपोर्ट की फाइल आगे बढ़ चुकी है गाजियाबाद आ जाइये। बस फिर क्या था शुक्रवार की छुट्टी लेकर सुबह 4 बजे ही दिल्ली के लिए निकल पड़ा। घर से पैदल स्टेशनं की ओर जा रहा था किरास्ते में आउटर पर इंदौर - दिल्ली सराय रोहिल्ला इंटरसिटी एक्सप्रेस खड़ी हुई दिखी। सुबह सुबह मथुरा उतरने वाले पैसेंजर, दरवाजे खोलकर झांक रहे थे कि वो कहाँ पहुँच गए और ट्रेन अभी कहाँ खड़ी हुई है, कोहरा ही इतना है और सुबह चार बजे अँधेरा भी रहता है। मैं ट्रेन के करीब आते दिखा तो मुझसे ही पूछ बैठे भाई कौन सी जगह है, मथुरा कितनी दूर है ? मैंने ट्रेन में चढ़ते हुए कहा कि चिंता मत करो मथुरा में ही खड़े हो स्टेशन के आउटर पर ही खड़ी है ट्रेन।
तसल्ली हो गई उन लोगों को मेरा जवाब सुनकर। सर्दी बहुत तेज थी, एक खाली बर्थ देखकर मैं भी सो लिया।
सुबह जब आँख खुली तो देखा ट्रैन अभी फरीदाबाद ही पहुंची थी। धीरे धीरे सरकते हुए साढे आठ बजे तक ट्रैन ने मुझे तिलक ब्रिज स्टेशन पर उतार दिया, यहाँ से एक लोकल शटल से मैं गाजियाबाद पहुँच गया। अब तक दस बज चुके थे। नास्ता करने का मन था, स्टेशन के बाहर निकला तो एक वेज बिरयानी वाले के पास पहुंचा। मैं शाकाहारी हूँ इसलिए वेज बिरयानी लिखा देखकर ही मैंने बिरयानी ली परन्तु उसमे पड़े कुछ टुकड़ों को देखकर मन कुछ संकोच सा हुआ और दिल से भी मेरी उसे देखकर खाने की इच्छा नहीं हुई, मैंने उससे कई बार पुछा भैया ये क्या है वो बस एक ही बात बोलता रहा कुछ नहीं भाई जी सोयाबीन है। सोयाबीन की वेज बिरयानी मैं पहले भी कई बार खा चूका हूँ पर ये सोयाबीन जैसा नहीं था। मैं बिना खाये ही बिरयानी के पैसे देकर आगे बढ़ चला। हापुड़ चुंगी स्थित पासपोर्ट कार्यालय पहुँचकर अपना काम ख़तम किया।
यहाँ से मैं अपनी बहिन के घर ग्रेटर नोयडा चला गया, एक रात अपने प्रिय भांजों के साथ रहकर मेरा दिल खुश हो गया, उन्हें छोड़कर आने को दिल ही नहीं कर रहा था। जैसे तैसे दिल पक्का करके मैं वहां से निकल आया और बोटानिकल गार्डन मेट्रो स्टेशन पहुंचा। यहाँ अचानक मेरा मन बदल गया और मेट्रो से ना जाकर मैंने नोएडा डिपो की बस पकड़ी जो सीधे नई दिल्ली स्टेशन जा रही थी। इंद्रप्रस्थ पार्क देखकर मैं बस में से उतर गया, यहाँ से निजामुद्दीन स्टेशन नजदीक ही है। इंद्रप्रस्थ पार्क में विश्व शांति स्तूप है। राजगीर के बाद दिल्ली में मैंने ये दूसरा स्तूप देखा था जो लगभग राजगीर स्तूप के जैसा है। स्तूप घूमने के बाद मैं एक ऑटो पकड़कर चाँदनी चौक पहुंचा, चांदनी चौक घूमने के बाद में नई दिल्ली स्टेशन पहुंचा, मालवा एक्सप्रेस पांच नंबर पर खड़ी हुई है। पहुंचकर ट्रेन में स्थान जमाया और मथुरा आने तक सो लिए। रात बारह एक बजे घने कोहरे के साथ ही घर भी पहुँच लिए जहाँ रजाई में दुबकने के बाद ही शांति की अनुभूति हुई।
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दिल्ली में प्रवेश |
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चाँदनी चौक स्थित शीशगंज गुरुद्वारा |
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दिल्ली का एक दृश्य |
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विश्व शांति स्तूप, इंद्रप्रस्थ दिल्ली |
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मैं और यश त्रिवेदी |
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मैं और गौरव त्रिवेदी |
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गौरव त्रिवेदी |
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परीचौक पर एक सेल्फी |
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मामा और भांजा |
दिल्ली कभी दिलवालों की होती थी, आज गिने चुने बचे है।
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