गिर्राज धाम श्री गोवर्धन पर्वत
गोवर्धन परिक्रमा 1 - दानघाटी मंदिर और दानीराय जी का मंदिर
आज कंपनी का इवेंट फिर से गोवर्धन में लगा। इवेंट में हरेंद्र को बैठकर मैं गिर्राज जी के दर्शन को पैदल ही निकल पड़ा। दानघाटी के दर्शन करते हुए मैं गोवर्धन परिक्रमा मार्ग पर निकल पड़ा ब्रज की उस अनमोल धरोहर को देखने, जिसके लिए देश के कोने कोने से लाखों भक्त हर दिन यहाँ आते हैं और कठिन परिस्थिति में भी गोवर्धन पर्वत की 21 किमी की परिक्रमा पैदल पूरी करते हैं। गोवर्धन पर्वत की कथा भी कम रोचक नहीं है गोवर्धन पर्वत ने बड़ी चतुराई से स्वयं को ब्रज में स्थापित किया था।
गोवर्धन पर्वत का जन्म भारत वर्ष के पश्चिम दिशा में शाल्मली द्धीप के भीतर द्रोणाचल की पत्नी के गर्भ से हुआ था। एक दिन पुलस्त्य ऋषि काशी से चलकर शाल्मली द्धीप पहुंचे और सुगन्धित लता पताओ से सुशोभित द्रोणाचल के पुत्र गोवर्धन को देखा। ऋषि ने पुत्र को अपने साथ ले जाने को कहा। तब गोवर्धन ने पुलस्त्य ऋषि से कहा - हे ऋषिवर ! आप मुझे अपने धाम काशी अवश्य ले जा रहे हैं किन्तु आप काशी से पहले मुझे जहाँ रख देंगे मैं वहां से फिर नहीं हटूँगा।
पुलस्त्य मुनि गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ में उठाये ब्रजमंडल से गुजरने लगे,तब पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण गोवर्धन को यह भूमि दिव्य लगी और अपने शरीर का भार बढ़ाना शुरू कर दिया। मुनि को जब पर्वत का भर अत्यधिक लगने लगा तो उन्होंने उसे भूमि पर रख दिया। जब उन्होंने गोवर्धन को उठाने की कोशिश की तो गोवर्धन कहा कि हे ऋषिवर !आप अपना वचन भूल गए हैं अब मैं यहाँ से नहीं उठूंगा। तब श्री ने क्रोध में आकर गोवर्धन को तिल तिल भर क्षीण होने का श्राप दिया। इसकारण आज भी गोवर्धन पर्वत प्रतिदिन तिल भर क्षीण होता है।
गोवर्धन की पूरी परिक्रमा दो चरणों में पूरो होती है पहला चरण की परिक्रमा कुल चार कोस की है। एक कोस में 3 किमी होते है अर्थ 12 किमी जिसमे आन्यौर ग्राम के बाद पूँछरी के लौठा का मंदिर आता है जो राजस्थान की सीमा में आता है राजस्थान की सीमा के बाद परिक्रमार्थी पुनः उत्तरा प्रदेश की सीमा में आ जाते है और जतीपुरा होते हुए दानघाटी के मंदिर पर परिक्रमा समाप्त करते हैं और यहाँ से दुसरे चरण की परिक्रमा शरू होती है जो तीन कोस की है अर्थात 9 किमी। जिसमे राधाकुंड, कुसुम सरोवर होते हुए मानसी गंगा में स्नान करते है और मुखारबिन्दु की पूजा करते है और दानघाटी आकर परिक्रमा समाप्त करते हैं।
मैंने जब पहले चरण की परिक्रमा शुरू की तो सबसे पहले दानघाटी मंदिर पहुंचा। यहाँ द्धापर युग में श्री कृष्ण ने गोपियों से दान लिया था तभी से यह स्थान दानघाटी कहलाता है और गोवर्धन पर्वत के बीचोबीच स्थित है और गोवर्धन का मुख्य मंदिर है। उसके बाद मैं परिक्रमा मार्ग पर आ गया यहाँ मेरी नजर पर्वत पर स्थित एक पुराने खंडहर पर गई, इस खंडहर को देखने के लिए मैं जूते उतार कर गोवर्धन पर्वत पर चढ़ा और पास जाकर देखा तो पता चला यह दानी राय का मंदिर है जो अब जीर्णशीर्ण अवस्था में गोवर्धन पर्वत पर स्थित है।
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जय श्री गिर्राज जी |
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दानघाटी, गोवर्धन |
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दानघाटी मंदिर, गोवर्धन |
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दानघाटी मंदिर |
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श्री गिर्राज जी मंदिर, दानघाटी गोवर्धन |
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परिक्रमा मार्ग स्थित दानी राय का मंदिर |
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दानी राय का मंदिर |
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दानीराय मंदिर के अवशेष |
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श्री गोवर्धन पर्वत |
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दानीराय मंदिर से दानघाटी का एक दृश्य |
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दानीराय मंदिर के अबशेष |
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किसी ज़माने में भव्य मंदिर होगा |
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दानीराय मंदिर |
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दानीराय जी की मूर्ति सिकंदर लोदी के समय यहाँ से स्थानांनतरित हो गई और मंदिर को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था। |
इसके बाद मैंने वापस आकर अपने जूते पहने और परिक्रमा मार्ग पर आगे बढ़ चला। परिक्रमा मार्ग पर सबसे पहला कुंड प्राचीन चरणामृत कुंड है पर इसकी दशा अभी अच्छी नहीं है। चरणामृत कुंड के नजदीक ही प्रसिद्द संत गया प्रसाद समाधी स्थल है। गया प्रसाद जी के ऊपर भगवान कृष्ण की परम कृपा थी और इनहे युगल सरकार का साक्षात्कार हुआ था। अपने जीवन के अंतिम दिनों को गोवर्धन के लक्ष्मी नारायण मंदिर में व्यतीत कर वह पैदल ही बिहारी जी के दर्शनों को वृंदावन जाते थे और बिहारी जी के दर्शन करते थे। सन 1994 में इन्होने नित्यलीला में प्रवेश लिया।
यहीं नजदीक में कार्ष्णि कुंड भी दर्शनीय है और यहाँ से गोवर्धन परिक्रमा के दो रास्ते अलग अलग हो जाते हैं एक रास्ता कच्चा और रेतीला है जो गोवर्धन पर्वत के नजदीक तलहटी से होकर गुजरता है और सुरम्य वनो से हरा भरा है। यहाँ के प्राकृतिक वातावरण को देखकर यही लगता है कि हम कलियुग से निकलकर द्वापर युग में आ गए हो। वंशीवट वाले बाबा ने यहाँ वृक्षारोपण का कार्य किया है और अलग अलग वनो का नाम दिया है मैं फ़िलहाल सांडिल्य वन से होकर गुजर रहा हूँ।
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चरणामृत कुंड |
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गोवर्धन परिक्रमा मार्ग |
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परिक्रमा मार्ग स्थित मुकुंद पैलेस के अंदर रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति |
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समाधी की ओर |
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गया प्रसाद जी की समाधी |
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गया प्रसाद जी का समाधी स्थल |
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गोवर्धन स्थित गीता भवन |
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कार्ष्णि कुंड |
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कच्चा परिक्रमा मार्ग |
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सांडिल्य वन |
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गोवर्धन परिक्रमा मार्ग |
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ब्रज की रज |
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गोवर्धन पर्वत |
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गोवर्धन पर्वत |
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गोवरधन पर्वत
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अगले भाग में जारी रहेगा। .....
- आन्यौर ग्राम
- श्री नाथ जी का प्राकट्योत्सव
- गोविन्द कुंड
- संकर्षण कुंड
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