Monday, October 23, 2017

JARA DEVI TEMPLE : MOTHER OF JARASANDH

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S


जरासंध और ज़रा देवी मंदिर



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      सप्तपर्णी गुफा देखने के बाद मैं वापस पर्वत से नीचे आया और आगे बढ़ने लगा। एक तांगे वाले बाबा से अन्य स्थलों को घुमाने के लिए 200 रूपये में राजी किया। और तांगे में बैठकर में राजगीर की अन्य प्राचीन धरोहरों को देखने के लिए निकल पड़ा, इस समय देश में हर जगह पर्यटन पर्व चल रहा था। यह मेरी ऐतिहासिक और पौराणिक स्थल भ्रमण यात्रा थी। ताँगे वाले सबसे पहले ज़रा देवी के मंदिर पहुंचे और मंदिर से निकलने के बाद उन्होंने जरासंध और ज़रा देवी की कथा शुरू की।


       महाभारत कालीन राजा बृहद्रथ, जिन्होंने मगध साम्राज्य की स्थापना सर्वप्रथम की और राजगीर को अपनी राजधानी बनाया, निःसंतान थे। अपने विशाल मगध साम्राज्य के उत्तराधिकारी के लिए चिंतित थे। इसी चिंता के साथ राजगीर के जंगलों में विचरण  एक महात्माजी के पास पहुंचे। महात्मा जी उच्चकोटि के विद्धान थे राजा का चेहरा देखते ही पहचान गए कि राजा को क्या परेशानी है। महात्माजी राजा के तरफ प्रसन्न मुद्रा से देखते हुए बोले हे राजन मैं जानता हूँ कि तुम्हारी चिंता क्या है,  ये लो ये फल अपनी रानी को दे देना और सालभर के भीतर ही तुम्हे पुत्र  प्राप्ति होगी।

      राजा महात्मा की बात सुनकर अत्यंत प्रसन्न हुए और फल  लेकर खुशी ख़ुशी महल लौट आये।  महल आकर उन्हें एहसास कि उनके तो दो रानियाँ हैं और फल सिर्फ एक ही मिला है, यह फल किस रानी को दिया जाये यह उनके लिए धर्मसंकट था। वह वापस उन्ही महात्मा के पास पहुंचे परन्तु महात्मा अब वहां नहीं थे, निराश होकर वापस महल लौटे राजा ने फल दोनों  रानियों को आधा आधा काट कर दे दिया।
वह महात्मा साक्षात् महादेव थे जो चिंता का निवारण कर अपने धाम जा चुके थे।  

       कुछ वर्षों के बाद  राजा के यहाँ एक पुत्र हुआ जो दो भागों में दोनों रानियों से उत्पन्न हुआ था, जब यह खबर राजा को मिली तो राजा को बहुत दुःख हुआ। उसने दुखी होकर सैनिकों को आदेश दिया कि इसे श्मशान में फेंक आओ। राजगीर के जंगलों में उनदिनों जरा नाम की राक्षसी का अत्यंत खौफ था। वह प्रतिदिन एक मनुष्य का भोजन करती थी। आज उस राक्षसी को कहीं अपना भोजन नहीं मिला तो वह मुर्दे को खाने के इरादे से श्मशान पहुंची। वहाँ उसे कोई मुर्दा तो नहीं मिला परन्तु दो टुकड़ों में विभाजित उस शिशु के शव देखकर अत्यंत खुश हुई और उसे उठाकर अपने निवास पर ले आई। उसने अपने तंत्र मन्त्र की शक्ति से उन दोनों टुकड़ों को जोड़ दिया।

        दोनों टुकड़े आपस में जुड़कर एक जीवित शिशु के रूप में परवर्तित हो गए। तभी अचानक एक घटना घटी,  जीवित होते ही जरा के वक्ष से दुग्ध की धार शिशु के मुहँ तक पहुँचने लगी और जरा के अंदर  अनायास  मातृत्व की भावना जागृत हुई। उसने उस शिशु को गोद में उठाकर सोचा कि मैं एक राक्षसी हूँ इसका पालन पोषण करना मेरे वश की बात नहीं। इस राज्य के राजा यहाँ कोई पुत्र नहीं है इसे स्वीकार करके वह अत्यंत ही खुश होगा ऐसा विचार करके वह राजा के दरबार में पहुंची और घोषणा की, हे राजन यह मेरा पुत्र भविष्य में अत्यंत ही बलशाली और महारथी होगा जो आपके राज्य को एक विशाल साम्राज्य में परवर्तित करेगा। इसके सामान इस पृथ्वी पर कोई बलबान नहीं होगा। जरा का यह पुत्र संधि द्वारा जुड़ा है अतः यह जरासंध के नाम से विख्यात होगा।

         जब राजा को पता चला कि यह वही पुत्र है जिसे उन्होंने श्मशान में फिकवा दिया था, आज जीवित उनके सामने है। वह अत्यंत ही प्रसन्न हुए। उनकी समस्या का निवारण हो चुका था।  उन्हें मगध का उत्तराधिकारी मिल चुका था। बड़ा होकर जरासंध बड़ा ही वीर और बलबान हुआ अनेकों राज्यों को हराकर उसने मगध की सीमाओं का विस्तार किया और मगध को शक्तिशाली राज्य बनाया। उसके पास सत्रह हजार अक्षोहिणी सेना थी। एक अक्षोहिणी सेना में 21870 हाथी,  21870 रथ, 65610 घोड़े और 109350 पैदल होते थे। इतनी विशाल सेना के साथ उसने मथुरा पर सत्रह बार आक्रमण किया और भगवान कृष्ण को मथुरा छोड़कर द्धारिका जाने पर विवश किया था। यह लड़ाई उसने अपने जमाता कंस के मारे जाने पर शुरू की थी।

         मृत्यु एक सच है और इस पृथ्वी पर हर किसी को एक न एक दिन आनी है, जब जरासंध का समय आया तो साक्षात् भगवन को उसके वध के लिए अवतार लेना ही पड़ा था अन्यथा इस पृथ्वी पर कोई ऐसा वीर नहीं था जो जरासंध का वध कर सके। भगवान  कृष्ण पांडवों को लेकर मगध पहुंचे और जरासंध को युद्ध करने की चुनौती दी। सबसे पहले अर्जुन जरासंध से युद्ध करने पहुंचा तो जरासंध ने उसे अपने एक बाजू में दबा लिया और इसी प्रकार नकुल, सहदेव और युधिष्ठर को भी परास्त कर दिया।  अब मल्ल्युद्ध में भीम से जरासंध का सामना हुआ और भयंकर यद्ध हुआ क्यूंकि जरासंध में बारह हजार हाथियों का बल था तो भीम में दस हजार हाथियों का।
अंत में भीम को भी अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा।

        अब भगवन कृष्ण जरासंध की मृत्यु का समाधान ढूंढते  हुए जरा के पास पहुंचे और उसे अपने अवतार लेने का प्रयोजन बताया। जरा ने भगवन कृष्ण को जरासंध के मृत्यु का रहस्य बताया इसप्रकार बताया कि वह संधि द्वारा दो भागों में जुड़ा है जब तक उसको दो टुकड़ों में विभाजित नहीं किया जायेगा और उन दोनों टुकड़ों को विपरीत दिशा में नहीं फेंका जायेगा तब तक उसकी मृत्यु असंभव है। भगवन कृष्ण उसकी मृत्यु का राज जानकार वापस युद्धक्षेत्र पहुंचे। उन्होंने भीम को फिर से जरासंध से युद्ध करने के लिए भेजा। और एक पीपल के पत्ते को हाथ में लेकर भीम को इशारा किया। पीपल के पत्ते को बीच मे से चीरकर दोनों भागो को अलग अलग फेंक दिया, भीम ने इशारा समझ कर जरासंध को बीच में से चीर दिया और दोनों भागों को विपरीत दिशा में फेंक दिया। इस प्रकार जरासंध का अंत हुआ। जरा देवी भी जरासंध के मरते अपने धाम को चली गई।

       कहा जाता है कि महादेव के आशीर्वाद को असफल होते देख पार्वती ने जरा का रूप धारण किया था और जरासंध को पुनः जीवित करके महादेव के आशीर्वाद को सफल बनाया था।

                                                   
JARA TEMPLE

JARA DEVI MATA 

JARA TEMPLE


JARA DEVI TEMPLE

JARASANDH TEMPLE

MAGADH KING JARASANDH 


JARASNADH

JARASANDH 

बिहार यात्रा के भाग 
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