Sunday, August 5, 2018

Bateshwar


तीर्थराज भांजा बटेश्वर धाम - आगरा 


बटेश्वर रेलवे स्टेशन 


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       अब शाम करीब ही थी और मैं अभी भी आगरा से 72 किमी दूर बाह में ही था। नौगांवा किले से लौटने के बाद अब हम भदावर की प्राचीन राजधानी बाह में थे। मैंने सुना था कि यहाँ भी एक विशाल किला है परन्तु कहाँ है यह पता नहीं था। बस स्टैंड के पास पहुंचकर राजकुमार भाई को भूख लग आई पर उनका एक उसूल था कि वो जब तक मुझे कुछ नहीं खिलाएंगे खुद भी नहीं खाएंगे इसलिए मजबूरन मुझे भी कुछ न कुछ खाना ही पड़ता था। रक्षा बंधन का त्यौहार नजदीक था इसलिए मिठाइयों की दुकानें घेवरों से सजी हुई थीं। मैंने अपने लिए घेवर लिया और भाई ने वही पुरानी समोसा और कचौड़ी। दुकानदार से ही हमने किले के बारे में और बटेश्वर के लिए रास्ता पूछा। उसने हमें बाजार के अंदर से होकर जाती हुई एक सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ये रास्ता सीधे बटेश्वर के लिए गया है इसी रास्ते पर आपको बाह का किला भी देखने को मिल जायेगा। 

Noungawa Fort


नौगँवा किला - एक पुश्तैनी रियासत




पिछली यात्रा - पिनाहट किला 
   
     अटेर किला न जा पाने के कारण अब हमने बाह की तरफ अपना रुख किया। पिनाहट से एक रास्ता सीधे भिलावटी होते हुए बाह के लिए जाता है। इस क्षेत्र में अभी हाल ही में रेल सेवा शुरू हुई है जो आगरा से इटावा के लिए नया रेलमार्ग है। इस रेल लाइन का उद्घाटन भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेई के समय में हुआ था किन्तु कुछ साल केंद्र में विपक्ष की सरकार आने की वजह से इस रेल मार्ग को बनाने का काम अधूरा ही रहा। अभी हाल ही में ही रेल लाइन पर रेल सेवा शुरू हुई है। यह रेल मार्ग अब हमारे सामने था, जिसे पार करना हमें मुश्किल दिखाई दे रहा था। रेलवे लाइन के नीचे से सड़क एक पुलिया के जरिये निकलती है जिसमे अभी बहुत अत्यधिक ऊंचाई तक पानी भरा हुआ था इसलिए मजबूरन हमें बाइक पटरियों के ऊपर से उठाकर निकालनी  पड़ी और हम भिलावटी गांव पार करते हुए बाह के रेलवे स्टेशन पहुंचे। 

Pinahat Fort


चम्बल किनारे स्थित -  पिनाहट किला

पिनाहट किला 


    आज मेरा जन्मदिन था और आज सुबह से बारिश भी खूब अच्छी हो रही थी इसलिए आज मैं कहीं घूमने जाना चाहता था इसलिए मैंने भिंड में स्थित अटेर दुर्ग को देखने का प्लान बनाया। परन्तु मैं वहाँ अकेला नहीं जाना चाहता था इसलिए मैंने अपने साथ किसी मित्र को ले जाने के बारे में सोचा। आगरा में मेरे एक मित्र भाई है जिनका नाम है राजकुमार चौहान, मैंने आज कई सालों बाद उन्हें फोन किया तो मेरा फोन आने पर उन्हें कितनी ख़ुशी हुई ये मैं बयां नहीं कर सकता। उनके पास मेरा नंबर नहीं था और आगरा से मथुरा आने के बाद मैंने उनके पास कभी फोन नहीं किया, आज अचानक मेरा फोन आने से वो बहुत खुश हुए। 

Monday, July 23, 2018

MT. ABU


आबू पर्वत की एक सैर



     महीना मानसून का चल रहा था और ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि मानसून आ चुका हो और हम यात्रा पर ना निकलें हों। जुलाई के इस पहले मानसून में मैंने राजस्थान के सबसे बड़े और ऊँचे पर्वत, आबू की सैर करने का मन बनाया। इस यात्रा में अपने सहयात्री के रूप में कुमार को फिर से अपने साथ लिया और आगरा से अहमदाबाद जाने वाली ट्रेन में दोनों तरफ से मतलब आने और जाने का टिकट भी बुक करा लिया। 23 जुलाई को कुमार आगरा फोर्ट से ट्रेन में बैठा और मैं अपनी बाइक लेकर भरतपुर पहुंचा और वहीँ से मैं भी इस ट्रेन में सवार हो लिया और हम दोनों आबू पर्वत की तरफ निकल पड़े।

Saturday, July 14, 2018

Mariam Tomb



मरियम -उज़ -जमानी का मक़बरा 

     सन 1527 में बाबर ने जब फतेहपुर सीकरी से कुछ दूर उटंगन नदी के किनारे स्थित खानवा के मैदान में अपने प्रतिद्वंदी राजपूत शासक राणा साँगा को हराया तब उसे यह एहसास हो गया था कि अगर हिंदुस्तान को फतह करना है और यहाँ अपनी हुकूमत स्थापित करनी है तो सबसे पहले हिंदुस्तान के राजपूताना राज्य को जीतना होगा, इसके लिए चाहे हमें ( मुगलों ) को कोई भी रणनीति अपनानी पड़े। बाबर एक शासक होने के साथ साथ एक उच्च कोटि का वक्ता तथा दूरदर्शी भी था। इस युद्ध के शुरुआत में राजपूतों द्वारा जब मुग़ल सेना के हौंसले पस्त होने लगे तब बाबर के ओजस्वी भाषण से सेना में उत्साह का संचार हुआ और मुग़ल सेना ने राणा साँगा की सेना को परास्त कर दिया और यहीं से बाबर के लिए भारत की विजय का द्धार खुल गया। इस युद्ध के बाद बाबर ने गाज़ी की उपाधि धारण की।  


Friday, June 29, 2018

Nadrai Bridge


काठगोदाम से मथुरा - आखिरी पड़ाव नदरई पुल, कासगंज। 




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   सोरों देखने के बाद हम अपने आखिरी पड़ाव कासगंज पहुंचे। वैसे तो कासगंज कुछ समय पहले तक एटा जिले का ही एक भाग था परन्तु अप्रैल 2008 में इसे उत्तर प्रदेश का 71वां जिला बना दिया गया। बहुजन समाजवादी पार्टी के संस्थापक कांशीराम की मृत्यु वर्ष 2006 में हो गई थी उन्हीं की याद में उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने इसे कांशीराम नगर के नाम से घोषित किया गया। कासगंज पूर्वोत्तर रेलवे का एक मुख्य जंक्शन स्टेशन है जहाँ से बरेली, पीलीभीत, मैलानी तथा फर्रुखाबाद, कानपुर और लखनऊ के लिए अलग से रेलवे लाइन गुजरती हैं। हालाँकि कासगंज गंगा और यमुना के दोआब में स्थित होने के कारण काफी उपजाऊ शील जिला है यहाँ की मुख्य नदी काली नदी है। 

Soron Sookar Kshetra


काठगोदाम से मथुरा - सोरों शूकर क्षेत्र




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     गंगा स्नान के बाद हमारा अगला पड़ाव सोरों शूकर क्षेत्र था।  इस क्षेत्र को शूकर क्षेत्र इसलिए कहते हैं क्योंकि यहाँ भगवान विष्णु के दूसरे अवतार श्री वराह भगवान का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। भगवान विष्णु ने पृथ्वी को दैत्यराज हिरण्याक्ष से बचाने के लिए ब्रह्मा जी की नाक से वराह के रूप में प्रकट होकर पृथ्वी की रक्षा की थी। जब दैत्यराज हिरण्याक्ष पृथ्वी को समुद्र के रसातल में छुपा आया तब भगवान वराह ने अपनी थूथनी की सहायता से पृथ्वी का पता लगाया और समुद्र में जाकर हिरण्याक्ष का वध करके पृथ्वी को अपने दाँतों पर रखकर बाहर आये।

Ganga in Kachhla


काठगोदाम से मथुरा - कछला घाट 



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      कछला घाट पहुंचकर देखा तो रेलवे ने अपना वाला पुराना मार्ग बंद कर दिया है जहाँ से कभी रेलमार्ग और सड़कमार्ग एक होकर गंगा जी को पार करते थे। सड़क मार्ग अलग हो गया, मीटरगेज मार्ग भी बंद हो गया परन्तु पब्लिक है कि आज भी रेलवे के बिज के नीचे ही गंगा जी में नहाना पसंद करती है।  लोग आज भी अपनी उस आदत को नहीं बदला पाए जिसपर वर्षों से वे और उनके पूर्वज चलते आ रहे थे।  इसलिए जब रेलवे ही बदल गई तो मजबूरन लोगों की रेलवे ब्रिज की तरफ जाने की आदत को रेलवे ने ब्लॉक् कर दिया। अब मजबूरन लोगों को कछला नगर की तरफ से होकर ही गंगाजी में स्नान करने जाना पड़ता है और हमें भी जाना पड़ा। 

Kathgodam to Mathura Bike Trip



काठगोदाम से मथुरा की ओर

THANKS VISIT FOR UTTRAKHAND



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      रात को काफी देर से सोने के बाद भी मेरी आँख सुबह जल्दी खुल गई, वेटिंग रूम से बाहर निकलकर देखा तो यात्रियों का आना शुरू हो चुका था। मैंने जल्दी ही अपनी बाइक प्लेटफोर्म से हटाकर बाहर खड़ी कर दी और फिर वापस आकर कल्पना को जगाया। घड़ी में सुबह के पांच बज चुके थे। हम तैयार होकर साढ़े पांच बजे तक फ्री हो गए और मैंने सही साढ़े पांच बजे अपनी बाइक काठगोदाम से मथुरा के लिए रवाना कर दी। काठगोदाम के बाद हल्द्वानी उत्तराखंड का प्रमुख नगर है। यहाँ मैंने इस स्टेशन के भी कुछ फोटो लिए और फिर आगे बढ़ चला। 

Thursday, June 28, 2018

Kathgodam Railway Station



काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर एक रात 




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     नौकुचियाताल के बाद अब हमने घर वापस लौटने की तैयारी शुरू कर ली थी, मैं घर पर माँ को बताकर नहीं आया था कि मैं नैनीताल बाइक से ही जा रहा हूँ, इस यात्रा के दौरान मैं उनसे यही कहता रहा कि मैं ट्रेन से ही आया हूँ हालाँकि मैं यहाँ से और आगे की यात्रायें भी कर सकता था परन्तु अब मुझसे अपनी माँ से सच नहीं छिपाया जा रहा था और मैं इससे अधिक उनसे झूठ भी नहीं बोल सकता था। अब मेरे मन और दिल ने मुझे धिक्कारना शुरू कर दिया था इसीलिए मैंने अब वापसी की राह ही चुनी। मैं शीघ्र से शीघ्र घर लौट जाना चाहता था इसलिए नौकुचिया के बाद मेरी बाइक का रुख अब घर की तरफ हो चला था। 

Bhimtal & Noukuchiyatal



भीमताल और नौकुचियाताल



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    भुवाली से निकलकर मैं वापस पहाड़ों की तरफ चढ़ने लगा था, तभी अचानक मेरी नजर एक स्टीम इंजन पर पड़ी जो सड़क के किनारे खड़ा हुआ था, आश्चर्य की बात थी इतनी ऊंचाई पर रेलवे का स्टीम इंजन। फिर मेरी नजर उसके पास लगे एक बोर्ड पर पड़ी जिसपर लिखा था "WELCOME TO COUNTRY INN". ये वही होटल है जो मथुरा के पास कोसीकलां से कुछ आगे भी हाईवे पर स्थित है और वहां पर भी इसी प्रकार का एक स्टीम इंजन खड़ा हुआ है।  मतलब यह इंजन इस होटल की खास पहचान है, जहाँ कहीं भी ऐसा इंजन आपको ऐसे टूरिस्ट स्थलों पर देखने को मिले तो समझ जाना यह रेलवे की संपत्ति नहीं, कंट्री इन होटल की संपत्ति है।  हालाँकि इस होटल में बड़े बड़े लोगो का ही आना जाना होता है, हम जैसे मुसाफिरों का यहाँ क्या काम।  इसलिए इस इंजन के फोटो खींचे और आगे बढ़ चला।

Kainchi Dham



पर्वतीय फल बाजार भुवाली और कैंची धाम


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     श्री नैना देवी जी के दर्शन करने के पश्चात् दोपहर करीब दो बजे हम खाना खाकर नैनीताल से कैंचीधाम की तरफ निकल पड़े। कैंची धाम से पहले हम नैनीताल से कुछ दूर स्थित भुवाली पहुंचे।  भुवाली समुद्र तल से 1106 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बहुत बड़ा पर्वतीय फल बाजार है। यहाँ से एक रास्ता अल्मोड़ा और रानीखेत के लिए गया है दूसरा मुक्तेश्वर की ओर , तीसरा भीमताल की तरफ और चौथा नैनीताल की तरफ जिस पर से हम अभी होकर आये हैं। सबसे पहले मैंने अपनी बाइक को अल्मोड़ा की तरफ मोड़ दिया जहाँ से मैं रानीखेत जाना चाहता था परन्तु समय की कम उपलब्धता की वजह से कैंची धाम तक ही सफर पूरा किया। भुवाली में पर्यटन दृष्टि से कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है परन्तु यहाँ की सुंदरता और प्राकृतिक वातावरण हर सैलानी को यहाँ आने के लिए विवश कर देते हैं।  

Nainital



नैनीताल की सैर



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       उत्तराखंड राज्य के कुमाँयू मंडल में समुद्र तल से 1938 मीटर की ऊँचाई पर स्थित नैनीताल विश्व पर्यटन के मानचित्र पर एक ऐसा पर्यटन स्थल है जहाँ सबसे अधिक झीलें हैं। नैनीताल उत्तराखंड का एक काफी बड़ा जिला है जिसकी स्थापना 1891 ईसवी में हुई। नैनीताल नगर तीन ओर से टिफिन टॉप, चाइनापीक, स्नोव्यू आदि ऊँची इंची पहाड़ियों से घिरा है। नैनीताल का ऊपरी भाग मल्लीताल और निचला भाग तल्लीताल कहलाता है।  वर्ष 1990 में नैनीताल के मल्लीताल में राजभवन या सचिवालय भवन की स्थापना की गई जिसका उत्तर प्रदेश की ग्रीष्म कालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता था। उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद 9 नवंबर 2000 को इस भवन को उत्तराखंड के उच्च न्यायालय के रूप में परवर्तित कर दिया गया। 

Kaladhungi to Nainital



कालाढूंगी और नैनीताल की ओर बाइक यात्रा


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     बाजपुर से निकलने के बाद जंगली रास्ता शुरू हो जाता है, सड़क के दोनों ओर बड़े बड़े पेड़ों का घना जंगल है। काफी दूर तक यह जंगल हमारे साथ रहा। अगर हम रामनगर की तरफ जाते तो जिम कार्बेट नेशनल पार्क अवश्य जाते, मेरी बड़ी तमन्ना थी कि मैं यह पार्क देखूँ, परन्तु इस बार मंजिल कल्पना ने तय की थी और मुझे उसे उसी मंजिल पर ले जाना था इसलिए हमारी गाड़ी नैनीताल की ही और दौड़ रही थी।

     जिम कार्बेट एक बहुत बड़े शिकारी थे जिन्होंने इस क्षेत्र में कई बाघों को देखा था और उनके ऊपर अनेकों पुस्तकें भी लिखी हैं। हम कालाढूंगी पहुँच चुके थे, यहाँ से एक रास्ता रामनगर की तरफ भी जाता है और दूसरा नैनीताल की ओर। मुझे बाद में पता चला कि कालाढूंगी में जिम कार्बेट का घर भी था जिसे मैं नहीं देख पाया।
अन्यथा यह तो हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात थी कि इतिहास के इतने महान शिकारी और लेखक का घर हमने देखा हो परन्तु कोई बात नहीं अगली बार जब कभी यहाँ आना होगा तो अवश्य देखेंगे।

Bazpur Railway Station



बाजपुर रेलवे स्टेशन और नैनीताल की तरफ 



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     मुरादाबाद की डोरमेट्री में बड़े बड़े मच्छरों के बीच मैं इस रात के ढलने और सुबह होने का इंतज़ार कर रहा था और इंतज़ार करते करते कब आँख लग गई पता ही नहीं चला, जब सुबह उठा तो देखा घडी में पांच बज चुके थे, जल्दी से कल्पना को उठाया और हम तैयार होकर सुबह छः बजे मुरादाबाद से निकल पड़े, मैंने काशीपुर जाने की बजाय कालाढूंगी की तरफ बाइक का रुख कर दिया।

   टाण्डा होते हुए हम कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश की सीमा छोड़ चुके थे और उत्तराखंड में प्रवेश किया। यहाँ से हमें हिमालय के हरे भरे पहाड़ दिखने लगे थे। बाजपुर पहुंचकर मैंने गाड़ी में पेट्रोल डलवाया और पहलीबार मैंने PAYTM के जरिये भुगतान किया। बाजपुर उत्तराखंड में एक छोटा क़स्बा है और यहाँ सड़क के पास ही पूर्वोत्तर रेलवे का बाजपुर रेलवे स्टेशन भी है। इसी रेलवे स्टेशन पर रूककर हमने कुछ देर आराम किया और फिर आगे की और बढ़ चले। 

Wednesday, June 27, 2018

Moradabad Railway Station



 मथुरा से मुरादाबाद - एक बाइक यात्रा



       जून की गर्मी मेरे बर्दाश्त से बाहर थी, काम करते हुए भी काफी बोर हो चुका था, इस महीने का और मई का टारगेट इस महीने पूरा कर ही लिया था इसलिए अब कहीं घूमने जाने का विचार मन में आ रहा था, सोचा क्यों न अबकी बार बद्रीनाथ बाबा के दर पर हो ही आएं और हाँ इसबार केनन का एक कैमरा भी ले लिया था फ्लिपकार्ट से। जिस दिन कैमरा हाथ में आया उसी दिन बाइक और वाइफ को लेकर निकल पड़ा।

       मथुरा से बद्रीनाथ जी की दूरी लगभग 600 किमी के आसपास थी, रास्ता रामनगर होते हुए चुना गया और उसी तरफ बाइक को भी मोड़ दिया गया। मथुरा से निकलकर पहला स्टॉप बिचपुरी पर लिया, यहाँ एक नल लगा हुआ है जिसका पानी अत्यंत ही मीठा है और हर आने जाने वाला यात्री इस नल से पानी पीकर अपनी प्यास अवश्य बुझाता है। कल्पना कुछ आम और घर से खाना बनाकर लाई थी, यहाँ आकर भोजन किया और आम ख़राब हो गए तो यहीं छोड़ दिए। बिचपुरी से एक रास्ता अलीगढ की तरफ जाता है और दूसरा हाथरस होते हुए बरेली की ओर।

Monday, May 14, 2018

Tajbiwi tomb


 इतिहास की मलिका ताज़बीबी और उसका मक़बरा 


   
     ब्रज में ऐतिहासिक धरोहरों की कोई कमी नहीं है। यह पौराणिक तो है ही साथ ही ऐतिहासिक भी है।  यहाँ सदा से ही न सिर्फ हिन्दुओं का वर्चस्व रहा है बल्कि मुसलमानों ने भी ब्रज को वो सम्मान दिया है जो शायद ही किसी अन्य स्थान को मिला हो। हकीकत है कि एकबार जो ब्रजभूमि में आ गया तो वो फिर सारी दुनियादारी को भूलकर बस यहीं का होकर रह जाता है। ब्रजभूमि की धरा पर मंजिलों को तलाश करते हुए आज मैंने उसे तलाश किया जिसने इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी परन्तु बदलते वक़्त के साथ इतिहास ने भी उसे अपने आप से दूर कर दिया परन्तु भगवान् कृष्ण की इस पावन धरती पर हर उस सख्श को स्थान मिला है जिसे कहीं कोई स्थान न मिला हो, फिर चाहे वो कोई गरीब हो या फिर राजमहलों में रहने वाला कोई शाही इंसान। 



Monday, April 30, 2018

Amb Andoura Railway Station


अम्ब अंदौरा स्टेशन पर एक रात 

अम्ब अंडोरा स्टेशन 


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        हम चिंतपूर्णी से लौटने में काफी लेट हो गए थे। हमारा रिजर्वेशन अम्ब अंदौरा स्टेशन से दिल्ली तक हिमाचल एक्सप्रेस में था जिसका छूटने का समय रात आठ बजकर दस मिनट था जबकि हमें सात तो चिंतपूर्णी में ही बज चुके थे।  पर कहा जाता है कि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है, मेरी उम्मीद अभी ख़त्म नहीं हुई थी। मैंने एक टैक्सी किराये पर की और अम्ब के लिए निकल पड़ा। हालाँकि रात के समय में पहाड़ी रास्तों पर टैक्सी वाले ने गाडी खूब तेज चलाई और आठ बजकर दस मिनट पर हमें अब स्टेशन लाकर रख दिया। हमारी ट्रेन हमारी आँखों के सामने सही समय पर छूट चुकी थी और अब हमारे पास इस वीरान स्टेशन पर रुकने के सिवाय कोई रास्ता नहीं था। टैक्सी वाला भी अब तक जा चुका था। अम्ब अंदौरा स्टेशन शहर से काफी दूर एकांत जगह में बना हुआ है। यहाँ आसपास कोई बाजार नहीं था, बस स्टेशन के बाहर दो तीन दुकानें थी जिनका भी बंद होने का समय हो चला था। 

Sunday, April 29, 2018

CHINTPURNI DEVI : 2018


माँ चिन्तपूर्णी जन्मोत्सव
चिंतपूर्णी जन्मदिवस 



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        आज शनिवार है और २९ अप्रैल भी। हम माता चिंतपूर्णी के दर्शन हेतु एक लम्बी लाइन में लगे हुए थे। हमारी लाइन के अलावा यहाँ एक और भी लाइन लगी हुई थी। इस लाइन के व्यक्ति भी माता के दर्शन हेतु ही प्रतीक्षारत थे।  कई घंटे लाइन में लगे रहने के बाद हम मंदिर के बाहर बने बाजार तक पहुंचे।  यहाँ हमें दर्शन हेतु एक पर्ची दी गई।  इस पर्ची का पर्याय यही था कि आप बिना लाइन के माता रानी के दर्शन नहीं कर सकते। पर्ची लेने के बाद भी लेने ज्यों की त्यों ही थी। जब काफी समय हो गया और मुझे गर्मी सी मह्सूस होने लगी तो मैं पास की दुकान में पंखे की हवा खाने चला गया। दुकान में बैठना था इसलिए एक कोक भी पीली। तबतक मेरे अन्य सहयात्री लाइन में काफी आगे तक आ चुके थे। 

Saturday, April 28, 2018

JWALA DEVI : 2018


माँ ज्वालादेवी जी की शरण में

जय माँ ज्वालदेवीजी 


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        काफी देर रानीताल पर खड़े रहने के बाद एक पूरी तरह से ठठाठस भरी हुई एक बस आई, जैसे तैसे हम लोग उसमे सवार हुए और ज्वालाजी पहुंचे।  ये शाम का समय था जब हम ज्वालाजी मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर से मंदिर की तरफ बढ़ रहे थे। बाजार की रौनक देखने लायक थी। मंदिर के नजदीक पहुंचकर हमने एक कमरा बुक किया। कमरा शानदार और साफ़ स्वच्छ था। कुमार किसी दूसरे होटल में अपने परिवार के साथ रूका हुआ था।  नगरकोट की तरह यहाँ भी लाडोमाई जी की गद्दी है।  बड़े मामा और किशोर मामा अपने परिवार के साथ उनके यहाँ रूकने को चले गए।  शाम को सभी लोग मंदिर पर मिले, सबसे अंतिम दर्शन करने वाले मैं और माँ ही थे। इसके बाद मंदिर बंद हो चुका था।

Jwalamukhi Road Railway Station


चामुंडा मार्ग से ज्वालामुखी रोड रेल यात्रा 



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      काँगड़ा वैली रेल यात्रा में जितने भी रेलवे स्टेशन हैं सभी अत्यंत ही खूबसूरत और प्राकृतिक वातावरण से भरपूर हैं। परन्तु इन सभी चामुंडा मार्ग एक ऐसा स्टेशन है जो मुझे हमेशा से  ही प्रिय रहा है, मैं इस स्टेशन को सबसे अलग हटकर मानता हूँ, इसका कारण है इसकी प्राकृतिक सुंदरता।  स्टेशन पर रेलवे लाइन घुमावदार है, केवल एक ही छोटी सी रेलवे लाइन है।  स्टेशन के ठीक सामने हरियाली से भरपूर पहाड़ है और उसके नीचे कल कल बहती हुई नदी मन को मोह लेती है।

 स्टेशन के ठीक पीछे धौलाधार के बर्फीले पहाड़ देखने में अत्यंत ही खूबसूरत लगते हैं। सड़क से स्टेशन का मार्ग भी काफी शानदार है।  यहाँ आम और लीची के वृक्ष अत्यधिक मात्रा में हैं। यहाँ के प्रत्येक घर में गुलाब के फूलों की फुलवारी लगी हुई हैं जिनकी महक से यह रास्ता और भी ज्यादा खुसबूदार रहता है। स्टेशन पर एक चाय की दुकान भी बनी हुई है परन्तु मैं यहाँ कभी चाय नहीं पीता। 

Chamunda Devi : 2018



माँ चामुंडा के दरबार में वर्ष - २०१८

चामुंडा 2018 


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         काँगड़ा से बस द्वारा हम चामुंडा पहुंचे, बस वाले ने हमें ठीक चामुंडा के प्रवेश द्धार के सामने ही उतारा था। यहाँ मौसम काँगड़ा की अपेक्षा काफी ठंडा था और बादल भी हो रहे थे। यह मेरी और माँ की चामुंडा देवी के दरबार में तीसरी हाजिरी थी। पिछले वर्षों की तुलना में यहाँ आज कार्य प्रगति पर था मंदिर के सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है, जब मैं और माँ यहाँ 2010 में आये थे तब यह अत्यंत ही खूबसूरत था परन्तु अत्यधिक बरसात होते रहने के कारण यहाँ बनी मुर्तिया और तालाब अब थोड़े से धूमिल हो चुके थे परन्तु मंदिर की शोभा और गलियारा आज भी वैसा ही है। चामुंडा देवी की कथा का विवरण मैंने अपनी पिछली पोस्टों में किया है। हम सभी मंदिर के बाहर बने प्रांगण में बैठे हुए थे।  माँ को यहाँ शरीर में सूजन थोड़ी ज्यादा आ गई थी इसलिए मंदिर के प्रांगण में बने सरकारी चिकित्सालय से माँ को मुफ्त कुछ दवाइयां दिलवा लाया।

Friday, April 27, 2018

MACLOADGANJ : 2018

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

मैक्लोडगंज की वादियों में 


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        आज का प्लान हमारा मैक्लोडगंज जाने का था, कुमार इसके लिए पूर्णत: तैयार था, मैं, कल्पना और कुमार अपने परिवार सहित मैक्लोडगंज के लिए निकल लिए और साथ ही बुआजी, गौरव और रितु मामी जी भी हमारे साथ थे। हम काँगड़ा के बसस्टैंड पहुंचे, यहाँ एक बस धर्मशाला जाने के लिए तैयार खड़ी हुई थी, बस खाली पड़ी थी तो हम इसी में सवार हो लिए। 

 कुछ ही समय बाद हम धर्मशाला में थे, यहाँ बने एक रेस्टोरेंट में भोजन करने के बाद हम धर्मशाला के बस स्टैंड की तरफ रवाना हुए, मुख्य सड़क से बस स्टैंड काफी नीचे बना हुआ है, सीढ़ियों के रास्ते हम बस स्टैंड पहुंचे, एक मार्कोपोलो मिनी बस मैक्लोडगंज जाने को तैयार खड़ी थी। टेड़े मेढे रास्तों से होकर हम कांगड़ा घाटी में बहुत ऊपर तक आ चुके थे, यहाँ का मौसम काँगड़ा के मौसम की तुलना में बहुत अलग था, चारोंतरफ चीड़ के वृक्ष और सुहावना मौसम मन को मोह लेने वाला था।

Wednesday, April 25, 2018

KANGRA : 2018

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

नगरकोट धाम वर्ष २०१८ 

KANGRA TEMPLE


        इस बार काँगड़ा जाने की एक अलग ही ख़ुशी दिल में महसूस हो रही थी, इसका मुख्य कारण था करीब पांच साल बाद अपनी कुलदेवी माता बज्रेश्वरी के दर्शन करना और साथ ही अपनी पत्नी कल्पना को पहली बार नगरकोट ले जाना। यह सपना तो पहले भी पूरा हो सकता था परन्तु वो कहते है न जिसका बुलाबा जब भवन से आता है तभी वो माता के दर्शन का सुख पाता है। 

इसबार माँ ने मुझे भी बुलाया था और कल्पना को भी साथ इस यात्रा में मेरी माँ मुख्य यात्री रहीं। अन्य यात्रियों में मेरे बड़े मामाजी रामखिलाड़ी शर्मा उनकी पत्नी रूपवती शर्मा, मेरे एक और मामा किशोर भारद्धाज उनकी पत्नी रितु एवं उनके बच्चे गौरव और यतेंद्र। इनके अलावा मेरी बुआजी कमलेश रावत और मेरा दोस्त कुमार भाटिया अपने बेटे क्रियांश और अपनी पत्नी हिना भाटिया और उसके साले साहब कपिल वासवानी अपनी पत्नी रीत वासवानी के साथ थे। 

Saturday, March 31, 2018

Kachhala bridge



यात्रा दिनांक - 31 मार्च 2018 

 पूर्णिमा पर गंगा स्नान - कछला ब्रिज 

कछला ब्रिज - मीटरगेज का स्टेशन 


       चूँकि आज पूर्णिमा थी और मुझे मेरे घर के लिए गंगाजल की आवश्यकता भी थी इसलिए शनिवार की छुट्टी भी थी तो चल दिया आज गंगा स्नानं करने कछला की ओर। आज मेरी कमलेश बुआजी भी अपने गांव अमोखरि जा रही थी तो दोनों चल दिए सुबह सबेरे पांच बजे मथुरा स्टेशन की ओर। स्टेशन पर बाइक खड़ी कर सीधे ट्रेन की तरफ पहुंचे। आगरा कैंट - कोलकाता एक्सप्रेस प्लेटफॉर्म पर खड़ी हुई थी और चलने ही वाली थी, सही वक़्त पर पहुंचकर हमने ट्रेन में सीट में जगह पा ली।  यह वही ट्रेन है जिससे मैं कुछ महीनों पहले बिहार की यात्रा पर गया था, आज इस ट्रेन में यात्रा का मेरा दूसरा मौका था। ट्रेन मथुरा से चलकर सीधे हाथरस सिटी  रुकी, बुआजी यहीं उतर गई, अब आगे की यात्रा मुझे अकेले ही करनी थी। 

Friday, March 23, 2018

Rewari Passenger



  फ़िरोज़पुर से भटिंडा व रेवाड़ी  पैसेंजर यात्रा 



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        हुसैनीवाला से वापस मैं फ़िरोज़पुर आ गया, यहाँ से भटिंडा जाने के लिए एक पैसेंजर तैयार खड़ी हुई थी जो जींद की तरफ जा रही थी परन्तु मैं भटिंडा से रेवाड़ी वाली लाइन यात्रा करना चाहता था इसलिए सीधे भटिंडा का टिकट लेकर ट्रेन में पहुंचा और खाली पड़ी सीट पर जाकर बैठ गया। शाम चार बजे तक भटिंडा पहुँच गया परन्तु चार से पांच बज गए इस ट्रेन को भटिंडा के प्लेटफॉर्म पर पहुँचने में। तभी दुसरे प्लेटफॉर्म पर खड़ी रेवाड़ी पैसेंजर ने अपना हॉर्न बजा दिया, मैं जींद वाली पैसेंजर से उतरकर लाइन पार करके रेवाड़ी पैसेंजर तक पहुंचा , ट्रेन तब तक रेंगने लगी थी, इस ट्रेन में बड़ी जबरदस्त मात्रा में भीड़ थी जबकि ये भटिंडा से ही बनकर चलती है।

Hussaini Wala Border


शहीदी मेला -  भगत सिंह जी की समाधि पर

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जी का समाधी स्थल 


           मैंने सुना था कि पंजाब में एक ऐसी भी जगह है जहाँ साल में केवल एक ही बार ट्रेन चलती है और वो है फ़िरोज़पुर से हुसैनीवाला का रेल रूट। जिसपर केवल वैशाखी वाले दिन ही ट्रेन चलती है, जब मैंने इसके बारे में विस्तार से जानकारी की तो पता चला कि यहाँ साल में एक बार नहीं दो बार ट्रेन चलती है, वैसाखी के अलावा शहीदी दिवस यानी २३ मार्च को भी। इसलिए इसबार मेरा प्लान भी बन गया शहीदी दिवस पर भगत सिंह जी की समाधी देखना और साल में दो बार चलने वाली इस ट्रेन में रेल यात्रा करना। मैंने मथुरा से फ़िरोज़पुर तक पंजाब मेल में रिजर्वेशन भी करवा दिया। अब इंतज़ार था तो बस यात्रा की तारीख का। और आखिर वो समय भी भी आ गया।

Thursday, March 15, 2018

Laakhnu Fort



लाखनूं किले के अवशेष और रियासत

        हाथरस उत्तर प्रदेश का एक छोटा शहर है परन्तु यह शहर अनेक छोटी छोटी रियासतों के कारण इतिहास में काफी योगदान रखता है।  पर्यटन दृष्टि से देखा जाए तो हाथरस में आज सबसे ऊँची चोटी पर स्थित दाऊजी महाराज का भव्य मंदिर है जहाँ देवछठ के दौरान विशाल मेला लगता है। कई बड़े बड़े राजनीतिक लोग, बॉलीवुड सितारे इस मेले के दौरान यहाँ देखे जा सकते हैं। दाऊजी महाराज का मंदिर अंग्रेजों के समय का बना हुआ है उस समय यहाँ हाथरस का विशाल किला स्थित था, किला तो अब नष्ट हो चुका है किन्तु  इसमें बना दाऊजी का विशाल मंदिर आज भी ज्यों का त्यों खड़ा है। यह दाऊजी की ही शक्ति है कि इस मंदिर को गिराने के लिए अंग्रेजों ने अनेक तोपों से गोले दागे परन्तु वह गोले मंदिर की दीवारों में जाकर धँस जाते थे। परन्तु मंदिर का बालबांका भी न कर सके। अंग्रेज भी हार गए दाऊजी की शक्ति के आगे और अपनी हार मानकर चलते बने। आज भी इस मंदिर की दीवारों पर तोपों के गोलों के निशान स्पष्ट देखे जा सकते हैं।

Sunday, March 4, 2018

Katni Junction


                                                             
                माँ जालपा देवी मंदिर - कटनी एवं रेल यात्रा 




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       रायपुर एक शानदार रेलवे स्टेशन है और हो भी क्यों न, आखिरकार यह छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी भी है। रेलवे स्टेशन पर बने भोजनालय में खाना खाकर मैं भूख से निर्वृत हो गया और प्लेटफॉर्म पर टहलने लगा। मुझे अब मथुरा की तरफ वापसी करनी थी इसलिए अब मैं कटनी की तरफ जाने वाली ट्रेन की प्रतीक्षा में था। मोबाइल में ट्रेन का पता किया, रात को सवा बारह बजे एक ट्रेन दिखाई दी गोंदिया - बरौनी एक्सप्रेस जो प्रतिदिन चलती है। इसको यहाँ रात सवा बारह बजे आना चाहिए था, परन्तु यह अपने निर्धारित समय से साढ़े तीन घंटे लेट यानी सुबह पौने चार बजे आई। मेरी पूरी रात ख़राब हो चुकी थी परन्तु सुबह की नींद सबसे ज्यादा अच्छी होती है इसलिए इसके जनरल कोच में खिड़की वाली सीट पर स्थान जमाया और चादर ओढ़ कर सो गया।

Saturday, March 3, 2018

Rajim


 राजीव लोचन मंदिर  - राजिम 



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       सिरपुर से लौटकर हम महासमुंद आ गए, दोपहर के डेढ़ बजे थे और मैंने सिवाय एक समोसे के कुछ भी नहीं खाया था और मैं बिना नहाये कुछ खाना भी नहीं चाहता था। बस स्टैंड पहुंचकर देखा तो राजिम जाने वाली बस तैयार खड़ी थी, राजिम से चलकर यह कुछ देर फिंगेश्वर में खड़ी रही। फिंगेश्वर के बाद सीधे शाम चार बजे हम राजिम पहुँच गए। मुझे लगा था कि यहाँ महानदी पर घाट बने होंगे और मुझे महानदी में नहाने का मौका  मिलेगा परन्तु यहाँ भी मेरी मनोकामना पूर्ण नहीं हो पाई। नदी में पानी तो था परन्तु घाटों से बहुत दूर। राजिम छत्तीसगढ़ का एक मुख्य धार्मिक स्थल है  इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहा जाता है।