Saturday, April 28, 2018

Chamunda Devi : 2018



माँ चामुंडा के दरबार में वर्ष - २०१८

चामुंडा 2018 


इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

         काँगड़ा से बस द्वारा हम चामुंडा पहुंचे, बस वाले ने हमें ठीक चामुंडा के प्रवेश द्धार के सामने ही उतारा था। यहाँ मौसम काँगड़ा की अपेक्षा काफी ठंडा था और बादल भी हो रहे थे। यह मेरी और माँ की चामुंडा देवी के दरबार में तीसरी हाजिरी थी। पिछले वर्षों की तुलना में यहाँ आज कार्य प्रगति पर था मंदिर के सौंदर्यीकरण का कार्य चल रहा है, जब मैं और माँ यहाँ 2010 में आये थे तब यह अत्यंत ही खूबसूरत था परन्तु अत्यधिक बरसात होते रहने के कारण यहाँ बनी मुर्तिया और तालाब अब थोड़े से धूमिल हो चुके थे परन्तु मंदिर की शोभा और गलियारा आज भी वैसा ही है। चामुंडा देवी की कथा का विवरण मैंने अपनी पिछली पोस्टों में किया है। हम सभी मंदिर के बाहर बने प्रांगण में बैठे हुए थे।  माँ को यहाँ शरीर में सूजन थोड़ी ज्यादा आ गई थी इसलिए मंदिर के प्रांगण में बने सरकारी चिकित्सालय से माँ को मुफ्त कुछ दवाइयां दिलवा लाया।



         चामुंडा मंदिर के पास ही पहाड़ों से आती हुई एक शीतल जल की नदी है जिसमे हम सभी लोगों ने जमकर स्नान किया और उसके बाद देवी माता के दर्शन किये।  अन्य वर्षों की तुलना में आज यहाँ भीड़ बिलकुल नहीं थी, काफी लोग आ जा रहे थे और माता के दर्शन करके अपने को धन्य महसूस कर रहे थे। मौसम पूरी तरह से बदल चुका था।  बड़े मामाजी का कोई पता नहीं था कि वो कहाँ है फिर मैंने जब थोड़ा दिमाग दौड़ाया और मोबाइल में टाइम देखा तब याद आया कि उन्हें भूख लगी थी,  हो न हो वो लंगर खाने के लिए गए हों। देवियों के अन्य स्थानों की तरह यहाँ भी लंगर प्रतिदिन चलता है, लंगर भवन मंदिर से थोड़ी दूरी पर स्थित है, माँ को मंदिर के प्रांगण में बिठाकर हम सभी लंगर भवन की तरफ बढ़ चले।

       लंगर भवन के परिसर में एक विशाल पर्वत शिला रखी हुई थी जिसका उद्देश्य कुछ भी नहीं है, बस इतना है कि ये अत्यंत ही बड़ा और विशाल है और इसको इधर उधर खिसकाना बहुत ही टेडी खीर है अतः उस शिला के साथ ही इस भवन का निर्माण हुआ। यहाँ आने वाले श्रद्धालु  इस शिला को भी श्रद्धा की दृष्टि से ही देखते हैं। 

 बड़े मामाजी लंगर भवन से भोजन कर जब बाहर निकले तो मैंने सभी से कहा देखो मानते हो ना, मैंने कहा था कि हो न हो मामाजी यहीं मिलेंगे।  मामाजी अपने पेट पर हाथ फिराते हुए मुस्कुराते हुए यह कह कर निकल लिए भई बहुत ही शानदार भोजन है तुम लोग भी जल्दी खाकर आओ मैं वहीँ मंदिर के प्रांगण में ही मिलूंगा।

          भोजन वाकई अति स्वादिष्ट था, भोजन करने के पश्चात् हम टहलते और फोटो खींचते हुए वापस आ ही रहे थे कि अचानक जोरदार बारिश शुरू हो गई। मंदिर प्रांगण में बैठकर हमने इस बारिश को कई घंटों तक बरसते देखा और हमारी अगली बैजनाथ यात्रा  का प्लान अब चौपट हो गया।  बारिश के साथ साथ ओले भी भारी मात्रा में गिर रहे थे। इस धरती के प्राणियों के लिए बारिश जितनी लाभदायक है ओले उतने ही विनाशकारी हैं, ये सिवाय नुकसान के कुछ नहीं देके जाते।

खैर बरसात बंद हुई और हम अपनी अगली यात्रा की तरफ रवाना हो चले, मंदिर के प्रवेश द्धार के बाहर मुझे एक हिमालयी कुत्ता मिला जिसको मैंने टोस्ट और बिस्किट खिलाये।  ये हिमालयी कुत्ते इतने शांत और वफादार होते हैं कि इन्हे जरा सा प्यार दिखने पर ही ये भी इंसान से उतना ही प्यार करते हैं। यहाँ से एक बस द्वारा हम मलां पहुंचे।  यहाँ चामुंडा मार्ग रेलवे स्टेशन से है अब अगली यात्रा ट्रेन द्वारा ही होगी।

काँगड़ा से चामुंडा देवी की ओर 

बस की एक यात्रा में कल्पना 

रास्ते के कुछ नज़ारे 

चामुंडा देवी प्रवेश द्धार 

चामुंडा देवी प्रांगण 

मामाजी, ठन्डे पानी की नाली में पैरों को रहत देते हुए 

नदी में स्नान का लुफ्त उठाता कुमार 

साथ में कपिल भी है 

और मैं भी 

चामुंडा मंदिर में एक शिव मंदिर 


जय माँ चामुंडा 

को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो 

जय माता दी 


लंगर भवन के बाहर किशोर भारद्धाज अपने पुत्र यतेंद्र के साथ 




किशोर भारद्धाज 




कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती, पैरों को अभी और आवश्यकता है चलने की ,
मंजिलें यूँही नहीं मिला करती, दिल में जरुरत होती है हौंसला बनने की।
गीता उपाध्याय 

हिमाचली श्वान 

मैं भी साथ चलूँगा तुम्हारे 

वापसी की ओर 


मलां 



माँ इस यात्रा में शरीर की सूजन से बहुत परेशां थीं, चलने में उसास बहुत परेशां कर रहा था, फिर भी माँ ने यह सम्पूर्ण यात्रा पूरी की।

जय माता दी

अगली यात्रा  -  चामुंडा मार्ग से ज्वालामुखी रोड नेरोगेज रेल यात्रा

No comments:

Post a Comment

Please comment in box your suggestions. Its very Important for us.