माँ ज्वालादेवी जी की शरण में
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जय माँ ज्वालदेवीजी |
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काफी देर रानीताल पर खड़े रहने के बाद एक पूरी तरह से ठठाठस भरी हुई एक बस आई, जैसे तैसे हम लोग उसमे सवार हुए और ज्वालाजी पहुंचे। ये शाम का समय था जब हम ज्वालाजी मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर से मंदिर की तरफ बढ़ रहे थे। बाजार की रौनक देखने लायक थी। मंदिर के नजदीक पहुंचकर हमने एक कमरा बुक किया। कमरा शानदार और साफ़ स्वच्छ था। कुमार किसी दूसरे होटल में अपने परिवार के साथ रूका हुआ था। नगरकोट की तरह यहाँ भी लाडोमाई जी की गद्दी है। बड़े मामा और किशोर मामा अपने परिवार के साथ उनके यहाँ रूकने को चले गए। शाम को सभी लोग मंदिर पर मिले, सबसे अंतिम दर्शन करने वाले मैं और माँ ही थे। इसके बाद मंदिर बंद हो चुका था।
माँ ज्वालादेवीजी का मंदिर बड़ा ही भव्य और शानदार है। रात के समय में यह और भी शानदार लगता है। मैं जब भी यहाँ आता हूँ तो इस मंदिर के प्रांगण में अपने सहयात्रियों के साथ घंटो बैठा रहता हूँ। एक अजीब सा सुकून मुझे यहाँ आकर मिलता है। अपने शहर से दूर, रोज की भागदौड़ और नौकरी की टेंशन से अलग यह एक ऐसा स्थान है जहाँ आप घंटों बिना किसी चिंता के निश्चिंत होकर बैठ सकते हो। देवी माता के दर्शन करने वाले भक्तों का यहाँ ताँता सा लगा रहता है। भारत के अलग अलग राज्यों से आये हुए अजनबी लोगों से यहाँ परिचय हो जाता है और सभी लोग अपनी रोज की जिंदगी को भूलकर केवल और केवल माता रानी का ही ध्यान करते है। उनकी बातें करते हैं और हिमाचल की शोभा का व्याख्यान करते हुए नज़र आते हैं। वाकई यह जगह है ही कुछ ऐसी।
यहाँ अपने आप में कई चमत्कार हैं, माँ ज्वालाजी यहाँ ज्योत के रूप में दर्शन देती हैं कहा जाता है यह ज्योत हज़ारों सालों से निरंतर ऐसे ही जल रही है। गोरखडिब्बी में खौलता हुआ पानी देखकर लगता है कि ये कितना गरम होगा परन्तु जब उसे हाथ से स्पर्श किया जाय तो वह अत्यंत ही ठंडा महसूस होता है। अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र आज भी यहाँ सुरक्षित रखा हुआ है, जब अकबर ने इसे यहाँ चढ़ाया था तब यह शुद्ध सोने का था परन्तु अब किस धातु का बन गया है कोई नहीं जानता। तो ऐसे अनगिनत चमत्कार यहाँ देखने को मिलते हैं।
हर इंसान को जीवन में काम से काम एक बार तो यहाँ जरूर आना चाहिए।
मंदिर प्रांगण में काफी समय गुजारने के बाद अब हम लंगर भवन की तरफ रवाना हुए। यहाँ लंगर भवन काफी बड़ा और विशाल बना हुआ है। इतने बड़े हाल में केवल एक ही पिलर है जिस पर यह भवन टिका हुआ है। आज लंगर में चावल के साथ साथ सूजी का हलवा भी खाने को मिला। यह इतना स्वादिष्ट बना था कि मैं इसका वर्णन नहीं कर सकता। भोजन पाने के बाद हम सभी अपने अपने कमरे पर चले गए। सुबह सबेरे नहा धोकर हम फिर से माता के दर्शन के लिए लाइन में लग गए और दर्शन करने के बाद लाडो माई जी के यहाँ पहुंचे। मैं और कल्पना जातीय बनकर यहाँ आये थे तो अपने पूर्वजों की विधि अनुसार हमने यहाँ भी चावल पकाकर थाल लगाया और दीवार पर हाथ के पंजे का थापा लगाकर देवी माँ की पूजा अर्चना की। तत्पश्चात लाडो माई जी से विदा लेकर अपने गंतव्य की तरफ प्रस्थान कर दिया।
जय माँ ज्वाला देवीजी
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माँ ज्वालादेवी प्रवेश द्धार |
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लंगर भवन |
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मातारानी का शयनकक्ष |
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ज्वालाजी प्रांगण |
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जय माँ ज्वाला देवी |
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ज्वालादेवी मुख्य मंदिर |
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श्रद्धालु |
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जय माता दी |
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अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र |
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मेरे मामाजी |
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मैं भी अपनी पत्नी के साथ |
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गोरखडिब्बी के दर्शन हेतु |
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गोरखडिब्बी में लगी एक तस्वीर |
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ज्वालाजी शयन मंदिर |
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पुनः आगमन प्राथनीय है। |
धन्यवाद
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