Monday, March 6, 2023

VARODARA BUS STAND : GUJRAT 2023

गुजरात की एक अधूरी यात्रा - 2023 

 वड़ोदरा बस स्टैंड पर एक दिन 



गिरनार पर्वत की दस हजार सीढ़ियाँ उतरने के बाद मैं जूनागढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचा, यहाँ कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि मेरे पैरों ने काम करना बंद कर दिया है। अब मैं स्टेशन पर बनी एक ब्रेंच से दूसरी ब्रेंच तक जाने में असमर्थ था। इसलिए यहीं सीट पर लेटे लेटे ही मैं ट्रेन का इंतज़ार करने लगा। 

मुझे अगली सुबह वड़ोदरा स्थित चम्पानेर और पावागढ़ की यात्रा करनी थी इसलिए अब मुझे रात को सोमनाथ एक्सप्रेस से अहमदाबाद तक जाना था। इसी बीच रेलवे का मैसेज आया जिसमें लिखा था आपकी सीट कन्फर्म नहीं हुई है, कैंसिल चार्ज काटकर आपका भुगतान वापस कर दिया जायेगा। जब हम घर से कहीं दूर किसी नगर में हों और हमें पूरी रात एक ट्रेन में सफर करना हो तब ऐसा मैसेज आ जाये तो बड़ी ही गुस्सा आती है पर यह ऐसी गुस्सा होती है जिसका किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता। 

Sunday, March 5, 2023

GIRNAR HILL : GUJRAT 2023

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

 गिरनार पर्वत की एक साहसिक यात्रा 

यात्रा दिनाँक - 5 मार्च 2023 

गिरनार पर्वत एक प्राचीन पर्वत है, प्राचीनकाल में यह रैवतक पर्वत कहलाता था और इसके आसपास का भू भाग रैवत प्रदेश कहलाता था जो वर्तमान में सौराष्ट्र प्रान्त है। 

पौराणिक काल के हिसाब से सतयुग में यहाँ महाराज रैवत का राज्य था, उनकी पुत्री रेवती थीं जो द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण के बड़े भ्राता बलराम जी की पत्नी बनी। इसप्रकार भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम ने इस प्रदेश को अपने निवास स्थान के रूप में चुना, यहीं समुद्र से थोड़ी से जगह मांगकर द्वारिका नगरी का निर्माण किया। मगध सम्राट जरासंध ने गिरनार पर्वत तक श्री कृष्ण और बलराम का पीछा  किया और जब वह गिरनार पर्वत पर आकर, जरासंध की नजरों से ओझल हो गए तो उसने इस पर्वत पर आग लगा दी। 

जरासंध यह सोचकर यहाँ से वापस लौट गया कि दोनों भाई इस पर्वत की आग में जलकर भस्म हो गए। किन्तु भगवान् श्री कृष्ण और बलराम यहाँ से बच निकलकर सीधे द्वारिका द्वीप पहुंचे और वहां देवशिल्पी विश्वकर्मा का आहवान कर एक नई नगरी का निर्माण कराया। यही नगरी द्वारिका नगरी के नाम से आज प्रसिद्ध है। 

JUNAGARH : GUJRAT 2023

गुजरात यात्रा - 2023 

 जूनागढ़ - गुजरात का एक ऐतिहासिक नगर 


5 MAR 2023

श्री गिरनार पर्वत की तलहटी में बसा जूनागढ़ नगर, गुजरात के सौराष्ट्र प्रान्त का एक प्रमुख नगर है। जूनागढ़ ना केवल ऐतिहासिक अपितु पौराणिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।पौराणिक काल में यह रैवत प्रदेश कहलाता था, इसलिए गिरनार पर्वत का दूसरा नाम रैवतक पर्वत भी है। जूनागढ़, श्री नरसी जी की भूमि है जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने उनकी अनेकों बार सहायता की थी। 

ऐतिहासिक दृष्टि से जूनागढ़ अथवा गिरनार मौर्य काल से ही इतिहास में अपना योगदान रखता है, सम्राट अशोक, रुद्रदामन, स्कन्द गुप्त जैसे महान सम्राटों के शिलालेख यहाँ देखने को मिलते हैं। 

चूँकि जूनागढ़ नगर का भ्रमण करना, मेरी इस यात्रा का उद्देश्य नहीं था, मैं तो केवल जूनागढ़ से देलवाड़ा जाने वाली मीटर गेज ट्रेन से यात्रा करना चाहता था परन्तु कल वघई से लौटने के बाद, जूनागढ़ आने वाली सौराष्ट्र ट्रेन के निकल जाने के कारण मेरी आगे की यात्रा का सारा कार्यक्रम रद्द हो गया और फिर भी मैं उस ट्रैन के मिलने की उम्मीद लिए जूनागढ़ आ गया। मीटर गेज की ट्रैन सुबह सात बजे यहाँ से रवाना हो गई जबकि मैं यहाँ सुबह दस बजे पहुंचा था। अब मेरे पास जूनागढ़ नगर को देखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। 

Saturday, March 4, 2023

SURAT TO JUNAGARH : GUJRAT 2023

 गुजरात की एक अधूरी यात्रा - भाग 3 

वघई से जूनागढ़ रेल यात्रा 

यात्रा दिनाँक :- 4 MAR 2023 TO 5 MAR 2023 

वघई आने के बाद मेरी यह नेरो गेज रेल यात्रा तो पूरी हो गई किन्तु मुझे अभी मीटर गेज की भी रेल यात्रा करनी थी जिसके लिए मुझे सुबह जल्दी जूनागढ़ पहुंचना होगा और इसके लिए सौराष्ट्र जनता एक्सप्रेस सबसे बेस्ट ट्रेन है जो शाम को साढ़े पांच बजे सूरत से चलकर अगली सुबह चार बजे जूनागढ़ उतार देगी और वहां से सुबह सात बजे मीटरगेज ट्रेन देलवाड़ा के लिए चलती है। 

देलवाड़ा, दीव का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है अतः अब यात्रा दीव तक प्रस्तावित है। इसप्रकार हमारी मीटर गेज रेल यात्रा भी हो जायेगी और दीव शहर भी घूम लिया जायेगा जोकि एक केंद्र शासित प्रदेश है। 

BILIMORA TO WAGHAI NG RAIL TRIP : GUJRAT 2023

 

बिलिमोरा से वघई नेरोगेज रेल यात्रा 
 

4 MAR 2023

बिलिमोरा से वघई रेल लाइन, पश्चिम रेलवे के मुंबई मंडल की एकमात्र नेरोगेज रेल लाइन है। यह गुजरात के एकमात्र हिल स्टेशन सापुतारा रेंज की तरफ सैर कराती हुई ले जाती है। वघई इस रेल लाइन का अंतिम स्टेशन है जो गुजरात के डांग जिले में स्थित है। वघई से 50 किमी दूर गुजरात और महाराष्ट्र राज्य की सीमा के नजदीक सापुतारा, एक खूबसूरत हिल स्टेशन है। वघई रेलवे स्टेशन के नजदीक ही बस स्टैंड है जहाँ से सापुतारा जाने के लिए बस और अन्य साधन उपलब्ध मिलते हैं। रेल शौकीन, इस रेल यात्रा का लुफ्त उठाने के लिए एकबार इसमें अवश्य यात्रा करते हैं। 

तत्कालीन बड़ौदा राज्य के शासक सयाजी राव गायकवाड के निर्देशानुसार सन 1913 में अंग्रेजों ने इस रेल लाइन का शुभारम्भ किया और इसकी शुरुआत बिलिमोरा से रन्कुवा रेलवे स्टेशन के बीच की गई। इस रेलमार्ग की कुल लम्बाई 63 किमी है जोकि बिलिमोरा से वघई तक है। वघई तक का रेलमार्ग 1926 में बनकर तैयार हुआ।  बड़ौदा स्टेट रेलवे के अंतर्गत शामिल इस रेल लाइन को बनाने का मुख्य उद्देश्य जंगल से सागौन की लकड़ियों की ढुलाई करना था, तत्पश्चात इन लकड़ियों को बिलिमोरा बंदरगाह से अन्य देशों को भेजा जाता था। देश की आजादी के बाद इस रेल लाइन का भारतीय रेलवे में विलय कर दिया गया। 

सन 2020 में पश्चिम रेलवे ने इस रेल लाइन को अनिश्चित काल के लिए बंद करने का फैसला लिया किन्तु कुछ समय पश्चात ही यहाँ के स्थानीय लोगों ने इसे बंद करने के चलते भारतीय रेलवे और स्थानीय राजनीती का विरोध करना शुरू कर दिया। अंततः गुजरात के राजनीतिक दबाब के चलते भारतीय रेलवे ने इसका पुनः सुचारु रूप से सञ्चालन करना शुरू कर दिया और आज वर्तमान में यह हेरिटेज सेवा के रूप में स्थानीय यात्रियों और पर्यटकों हेतु पूर्ण रूप से संचालित है। इसमें पर्यटकों हेतु एक वातानुकूलित विस्टाडैम कोच भी लगाया गया है जिसमें कि सापुतारा रेंज के साथ साथ पूर्णा वन्यजीव अभयारण्य के शानदार नजारों को देखते हुए सफर का आनंद लिया जा सकता है। 

Friday, March 3, 2023

GARIBRATH EXPRESS : MTJ TO SURAT 2023

 गुजरात की यात्रा पर - भाग 1 

गरीबरथ एक्सप्रेस और सूरत रेलवे स्टेशन 

3 MARCH 2023

    भारतीय रेलवे बहुत ही शीघ्रता के साथ आमान परिवर्तन का कार्य कर रही है, जिसका मतलब है कि देश की पुरानी मीटर गेज और नेरो गेज की पटरियों को उखाड़कर उन्हें ब्रॉड गेज में बदलना, जिसके बाद ब्रिटिश काल में बिछाई गई सभी पटरियां और उसी समय में बनाये गए रेलवे स्टेशन एक इतिहास बनकर रह जायेंगे और उनकी जगह आधुनकिता ही सिर्फ देखने को मिलेगी। 

अभी भी देश में कुछ ऐसी पुरानी मीटर गेज और नेरो गेज की रेलवे लाइन बची हैं जो आज भी संचालित और भविष्य में कभी भी आमान परिवर्तन हेतू हमेशा के लिए बंद हो जाएँगी। अधिकतर ये रेलवे लाइन गुजरात में संचालित है जहाँ किसी समय केवल मीटर गेज और नेरो गेज का ही राज था। इसलिए इस बार इन रेल लाइन पर यात्रा करने हेतु मैंने गुजरात की यात्रा का प्लान किया। 

Saturday, January 14, 2023

MAKAR SAKARANTI TRIP 2023


 रिश्तों के सफ़र पर - मकर सक्रांति यात्रा 2023 

नववर्ष की शुरुआत हो चुकी थी, सर्दियाँ भी अपने जोरों पर थीं। तमिलनाडु से लौटे हुए एक सप्ताह गुजर चुका था, अब अपनों से मिलने की ख्वाहिश मन में उठी और एक बाइक यात्रा का प्लान फाइनल किया। प्रत्येक साल पर पहला हिन्दू पर्व  मकर सक्रांति होता है, दान के हिसाब से इस पर्व का अत्यधिक महत्त्व है जिसमें गुड़ और तिल से बनी गज़कखाने और दान देने की परंपरा है, इसलिए मैंने भी 10 - 15 डिब्बे गजक के खरीद लिए और अगले दिन मकर सक्रांति को मैं अपनी बाइक लेकर रिश्तों के सफर पर निकल चला। 

Thursday, January 5, 2023

TAMILNADU EXPRESS 2023

 

तमिलनाडु की ऐतिहासिक धरा पर  … अंतिम भाग 

तमिलनाडू एक्सप्रेस और घर वापसी 

5 JAN 2023

महाबलीपुरम घूमने के बाद मैं वापस बस स्टैंड आ गया।  मेरे मोबाइल की बैटरी अब लगभग समाप्त होने को थी। मैं बस में बैठने से पूर्व मोबाइल को चार्ज करना चाहता था, इसके लिए बस स्टैंड के सामने स्थित एक चाय की दुकान पर मैंने अपने मोबाइल को चार्जर में लगा दिया और एक कप चाय लेकर मैं आधे घंटे से अधिक समय तक उस दुकान पर बैठा रहा। इस बीच अनेकों बसें चेन्नई की अलग अलग दिशाओं के लिए आई और चली गई। 

चाय बेचने वाला दुकानदार, एक अच्छा इंसान था। उसने ना सिर्फ मेरे फोन को चार्ज करवाया बल्कि उसने मुझे चेन्नई पहुँचने के लिए टूटी फूटी हिंदी भाषा में बसों की जानकारी भी दी। मोबाइल चार्ज होने के बाद मैं एक बस मैं बैठकर चेन्नई के लिए रवाना हो चला। तमिलनाडू की पूरी यात्रा करने करने के बाद अब मेरी घर की वापसी यात्रा शुरू हो चुकी थी।

 यह बस महाबलीपुरम से तांबरम के लिए जा रही थी और मेरे घर वापसी की यह पहली सवारी थी। एक डेढ़ घंटे की यात्रा करने के बाद मैं तांबरम बाजार पहुंचा। यात्रा के शुरुआत में, मैं इस बाजार में घूमने आया था और यहीं से अन्तोदय एक्सप्रेस से मैं त्रिची के लिए रवाना हुआ था। तब सोचा था कि लौटते हुए ही मैं यहाँ से घर के लिए कुछ खरीद के लेकर जाऊँगा। 

MAHABALIPURAM 2023

 तमिलनाडु की ऐतिहासिक धरा पर …   भाग - 11 

 महाबलीपुरम - पल्लवों की ऐतिहासिक विरासत 


5 JAN 2023

चेन्नई से दक्षिण की ओर समुद्र के किनारे मामल्लापुरम नामक स्थान है जिसे महाबलीपुरम भी कहते हैं।  इस स्थान पर पल्लवकालीन अनेकों अवशेष स्थित हैं जिनमें शोर मंदिर और पांडव रथ महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान में यह एक शानदार पर्यटक स्थल है जहाँ समुद्र के बीच के साथ साथ भारतीय इतिहास की एक शानदार झलक देखी जा सकती है। 

चेन्नई से महानगरीय बसें सीधे मामल्लापुरम पहुँचती हैं और प्रत्येक आधे घंटे के अंतराल पर उपलब्ध हैं। चेन्नई से मामल्लपुरम की दूरी लगभग 40 किमी है। महाबलीपुरम में अनेकों प्राचीन प्रस्तर कलाओं के ऐतिहासिक अवशेष देखने को मिलते हैं जो सातवीं शताब्दी में निर्मित किये गए थे। यह पल्लवकालीन हैं और पल्लव शासकों ने अलग अलग समय पर इनका निर्माण कराकर अपने समय की अमिट छाप छोड़ी थी। 

Wednesday, January 4, 2023

AN EVENING OF COIMBATORE & CHERAN EXPRESS : 2023


तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरती पर…     भाग - 10 

कोयंबटूर की एक शाम और चेरान एक्सप्रेस 



 कोयंबटूर नगर और ईशा कोविल का प्लान 

शाम को करीब पांच बजे मैं कोयंबटूर पहुंचा, मैं यहाँ से ईशा कोविल जाना चाहता था जहाँ भगवान शिव की शानदार मूर्ति के दर्शन होते हैं  किन्तु अब ईशा कोविल जाना मुश्किल था क्योंकि मैंने अपने जीजाजी बासुदेव को फोन किया जो कुछ ही समय पहले यहाँ से अपने गाँव गए थे।  वे कोयंबटूर शहर में ही रहते हैं और यहीं कार्यरत हैं किन्तु छुटियों में वे इगलास अपने गाँव चले जाते हैं, उन्हें कोयंबटूर शहर के बारे में अच्छी जानकारी है।  

उन्होंने ही मुझे बतलाया कि अगर मैं इस समय ईशाकोविल जाऊँगा तो सुबह से पहले नहीं लौट पाउँगा जबकि रात को चेन्नई के लिए मेरी ट्रेन है वो निकल जाएगी। अतः बिना देर किये मैं ईशा कोविल जाने वाली बस में से उतरा और वापस रेलवे स्टेशन पहुंचा। 

रेलवे स्टेशन के बाहर ही काफी बड़ा और अच्छा बाजार है। मैं खाना खाने से पहले आज की सारी थकान दूर करना चाहता था इसलिए मुझे जाम की आवश्यकता थी। जाम की दुकान स्टेशन से कुछ ही मिनट की दुरी पर थी, मैं वहां पहुंचा और कुछ मूल्य देने के बाद मुझे एक बियर की बोतल प्राप्त हुई। जाम पीने के बाद मैं वापस स्टेशन पहुंचा और अपना बैग लेकर स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। 

NILGIRI RAILWAY : TAMILNADU 2023

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरती पर…     भाग - 8

नीलगिरि रेलवे की एक रेल यात्रा 

मेट्टुपालयम से उदगमंडलम मीटर गेज रेल यात्रा

4 JAN 2023

चेर राज्य और कोंगु प्रदेश 

      प्राचीन चेर राज्य के अंतर्गत समस्त कोंगू प्रदेश शामिल था जिसमें नीलगिरि की ऊँची वादियाँ, प्राकृतिक झरने, चाय के बागान और ऊंटी जैसा हिल स्टेशन शामिल है। प्राचीन चेर राज्य की राजधानी वनजी थी, जो करूर, इरोड, कोयंबटूर और तिरूप्पर के बीच कहीं स्थित थी, अब इसके अवशेष देखने को नहीं मिलते हैं। चेर राज्य के शासकों का स्थापत्य कला में कोई मुख्य योगदान नहीं रहा है, या ऐसा भी कह सकते हैं कि अगर चेर के कुछ शासकों ने स्थापत्य की दृष्टि से कुछ भवनों या मंदिरों का निर्माण कराया भी होगा तो वक़्त के साथ बदलते साम्राज्यों में यह ढेर हो गए किन्तु आज भी केरल में चेर शासकों के स्थापत्य के निर्माण मौजूद हैं। 

NILGIRI RAILWAY MUSEUM : 2023

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर …  भाग - 9

नीलगिरि रेल संग्रहालय 

दक्षिण रेलवे की नीलगिरि घाटी रेलवे की ऐतिहासिक विरासतें आज भी नीलगिरि रेल संग्रहालय में सुरक्षित हैं और पर्यटकों के देखने हेतु उपलब्ध हैं।  यह संग्रहालय मेट्टुपालयम स्टेशन के सामने ही स्थित है। 

1. मेट्टुपालयम रेलवे स्टेशन और संग्रहालय 

नीलगिरि रेलवे म्यूजियम 

Tuesday, January 3, 2023

ROCKFORT TEMPLE : TIRUCHHIRAPALLI 2023

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर   भाग - 8 

रॉकफोर्ट मंदिर और त्रिची की एक शाम 



3 JAN 2023

यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

तमिलनाडू के मध्य भाग में स्थित त्रिची एक बड़ा और सुन्दर नगर है। यह नगर कावेरी नदी के किनारे स्थित है।  प्राचीनकाल में यह चोल शासकों की प्रथम राजधानी भी रहा है जिसे उरैयूर के नाम से जाना जाता था। चोल सभ्यता के अलावा यहाँ पल्लवकालीन सभ्यता के अवशेष भी देखने को मिलते हैं। 

नगर के बीचोबीच एक ऊँची चट्टान पर रॉकफोर्ट स्थित हैं जहाँ से अनेक पल्लवकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। चट्टान के सबसे ऊपरी शिखर पर श्री गणेश जी का मंदिर स्थित है जहाँ गणेश जी को दूब ( घास ) चढाने का विशेष महत्त्व है। यहाँ से समूचे नगर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है और साथ ही कावेरी की अविरल धाराएं भी यहाँ से स्पष्ट नजर आती हैं। 

कावेरी के मध्य में स्थित भगवान विष्णु का धाम श्री रंगम जी का मंदिर भी दिखलाई पड़ता है। 

VIJAYALAY CHOLESHWARAM TEMPLE : TAMILNADU 2023

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर … भाग - 7 

विजयालय चोलेश्वरम मंदिर - नारतामलाई 

3 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

वर्तमान में तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंड चोलपुरम का बृहदीश्वर मंदिर चोल स्थापत्य के मुख्य उत्कृष्ट उदाहरण तो हैं ही किन्तु इसके निर्माण से भी सैकड़ों वर्षों पूर्व भी एक साधारण से गाँव की विशाल चट्टान पर, प्रथम चोल सम्राट विजयालय ने अपनी विजयों के फलस्वरूप आठवीं शताब्दी में एक शानदार शिव मंदिर का निर्माण कराया, जिसे उन्होंने अपने ही नाम से सम्बोधित किया ''विजयालय चोलेश्वर कोविल'' जिसका अर्थ है विजयालय चोल के ईश्वर का मंदिर। मंदिर की वास्तुकला और शैली बेहद शानदार है इसी कारण यह इतने वर्षों के पश्चात भी ज्यों का त्यों स्थित है। 

TIRUMAYAM FORT : TAMILNADU 2023

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर …. भाग - 6  

तिरुमयम किला 


3 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

   अब वक़्त हो चला था त्रिची से आगे बढ़ने का और उस मंजिल पर पहुँचने का जिसके लिए विशेषतौर पर, मैं इस यात्रा पर आया था। यह वह स्थान था जहाँ आठवीं शताब्दी में चोल वंश के प्रथम सम्राट विजयालय ने नारतामलै नामक स्थान पर चोलेश्वर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। सम्राट विजयालय के शासनकाल में पूर्णतः द्रविड़ शैली में निर्मित यह मंदिर चोलकालीन सभ्यता का उत्कृष्ट उदाहरण है। 

   नारतामलै, त्रिची से दक्षिण दिशा की तरफ तीस किमी दूर स्थित है। इस स्थान तक पहुँचने के लिए रेलमार्ग और सड़कमार्ग दोनों ही सुगम हैं।

 मैंने अपनी यात्रा के लिए रेलमार्ग को चुना और सुबह होटल से नहाधोकर चेकआउट करने के बाद, मैं त्रिची रेलवे स्टेशन पहुंचा। हालांकि इससे पूर्व मेरा एक और प्लान था कि मैं रेंट पर बाइक लेकर, उससे सभी चुनिंदा ऐतिहासिक स्थलों को देखकर शाम तक त्रिची वापस आ जाता किन्तु रेंट पर मिलने वाली कोई बाइक मुझे यहाँ नहीं दिखी और फिर मैंने रेलमार्ग द्वारा ही अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया। 

BRIHDESHWAR TEMPLE - THANJAVOUR 2023

तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर, भाग - 4 

 बृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मंदिर 

2 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

वैदिक धर्म के विपरीत बौद्ध और जैन धर्म की भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु भारत के नजदीकी देशों में भी प्रसरता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का सबसे अधिक प्रचार प्रसार किया और उसके पुत्र व पुत्री ने श्री लंका में बौद्ध धर्म की पराकाष्ठा बढ़ाई। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में हर्षवर्धन ने भी बौद्ध धर्म को सबसे अधिक महत्त्व दिया, इसकारण भारत अब विभिन्न धर्मों का देश बन चुका था।

 किन्तु दक्षिण भारत की बात अलग थी, यहाँ के राजवंश और शासकों ने शुरू से ही केवल वैदिक धर्म को सर्वोच्च स्थान दिया था। वह वैदिक धर्म के अनुयायी थे और पूर्ण रूप से अपने रीतिरिवाजों और अपनी संस्कृति के साथ अपने धार्मिक अनुष्ठानों को पूर्ण किया करते थे। उनके द्वारा निर्मित अभिलेखों से इस बात की पुष्टि होती है। 

चोल वंश का सबसे प्रतापी सम्राट राज राज प्रथम था जिसका मूल नाम अरिमोलीवर्मन था। उसने अपने साहस और कुशल रणनीति से चोल राज्य को साम्राज्य में बदल दिया था। अपने राज्यभिषेक के सुअवसर पर उसने राजराज की उपाधि धारण की थी। इसके अलावा और भी अनेकों उपाधि थी जो उसने धारण की किन्तु सबसे अधिक प्रसिद्धि उसे राजराज की उपाधि से ही मिली। 

इसी उपाधि के चलते उसने दक्षिण भारत के तंजौर नगर में देश के सबसे बड़े मंदिर का निर्माण कराया जो भगवान शिव को समर्पित है। उसने इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर मंदिर रखा जो कालांतर में बड़ा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। सत्रहवीं शताब्दी में मराठा सरदारों ने इसे बृहदेश्वर मंदिर नाम दिया। जिसका अर्थ होता है सबसे बड़ा मंदिर। 

Monday, January 2, 2023

BRIHDEESHWAR TEMPLE : GANGAIKOND CHOLAPURAM 2023

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर…. भाग - 5 

प्राचीन चोल राजधानी - गंगईकोन्ड चोलापुरम 


2 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

सम्राट राजेंद्र प्रथम ( 1014  - 1044 ई. )

महान चोल सम्राट राजराज प्रथम की तरह उनका पुत्र राजेंद्र प्रथम भी एक योग्य उत्तराधिकारी हुआ जिसने ना सिर्फ अपने पिता के द्वारा निर्मित चोल साम्राज्य के वैभव को बनाये रखा बल्कि उसकी सीमाओं का दूर दूर तक विस्तार भी किया। वह एक योग्य पिता का योग्य पुत्र था। राजराज प्रथम उनकी प्रतिभा और सैन्य पराक्रम को देखते हुए अपने जीवनकाल में ही उसे चोल साम्राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। 

राजेंद्र प्रथम ने अपने जीवन काल में अनेकों उपाधियाँ धारण कीं, जिनमें सबसे अधिक श्रेय उसे गंगईकोंड की उपाधि से मिला जिसका अर्थ है गंगा को जीतने वाला। यह उपाधि उसने बंगाल को जीतने के बाद धारण की। दरअसल अपने नजदीकी राज्यों को जीतने के बाद उसने अपना रुख उत्तर भारत की ओर किया और इसे गंगाघाटी अभियान का नाम दिया। 

इस अभियान का लक्ष्य गंगा नदी का जल लाना था। किन्तु इस अभियान से पूर्व उसने अपनी सेना के सैन्य परीक्षण के उद्देश्य से कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग जीतने के बाद उसने बंगाल पर चढ़ाई शुरू कर दी। इस समय बंगाल का तत्कालीन शासक महिपाल प्रथम था जो चोलसेना से बुरी तरह पराजित हुआ और अब चोलों की धाक उत्तर भारत के बंगाल तक जम गई।

 गंगाघाटी अभियान के विजयोपरांत राजेंद्र प्रथम ने गंगईकोंड की उपाधि धारण की और साथ उसने तंजौर से दूर कावेरी के उसपार एक नई राजधानी का निर्माण किया जिसका नाम उसने गंगईकोंड चोलापुरम रखा।  

Sunday, January 1, 2023

CHOLA EMPIRE : TAMILNADU 2023


 चोल साम्राज्य और उसका अस्तित्व और संगम युग 

चेन्नई में रानी कण्णगी की प्रतिमा 

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

प्राचीन काल से ही अखंड भारत भूमि पर अनेकों साम्राज्य स्थापित हुए और इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़कर सदा के लिए विलीन हो गए। इन अलग अलग साम्राज्यों ने भारत भूमि को अलग अलग द्वीपों और देशों से जोड़कर एक अखंड भारत का निर्माण किया, भारत भूमि की संस्कृति को विश्व के दूसरे भागों में पहुँचाया और साथ ही भारत के वैदिक धर्म का चहुँओर प्रचार प्रसार किया। इन्हीं महत्वकांक्षी साम्राज्यों में से एक दक्षिण भारत का चोल साम्राज्य था, जिसके शासकों ने ना केवल भारत भूमि अपितु विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया के अनेकों देशों को अपने साम्राज्य में मिलाया और वहां अपने देश की संस्कृति और धर्म का प्रसार भी किया। 

CHENNAI CENTRAL : TAMILNADU 2023

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर .... भाग - 2 

मैं, नई साल और राजधानी चेन्नई

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

SUN - 1 JAN 2023 

चेन्नई अथवा मद्रास 

  बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल पर स्थित चेन्नई, भारत देश का चौथा सबसे बड़ा शहर और तीसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है। चेन्नई, तमिलनाडू प्रदेश की राजधानी है और संस्कृति, आर्थिक और शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण  शहर है। प्राचीन काल में यह पल्लव, चोल, पांडय और विजयनगर के शासकों का मुख्य क्षेत्र रहा है, पंद्रहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने यहाँ एक बंदरगाह का निर्माण किया। पुर्तगालियों ने चेन्नई में पुलिकट नामक शहर बसाया और वहीँ डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की।

  सोलहवीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने चेन्नई में अपनी फैक्ट्री और गोदाम के निर्माण किये और सेंट जॉर्ज किले का निर्माण करवाया। इस बीच फ्रांसीसियों ने सत्तरहवीँ शताब्दी में इस किले पर अपना अधिकार कर लिया किन्तु यह अधिकार कुछ ही समय के लिए था, इसके बाद पुनः यह ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में आ गया और इन्होने यहाँ मद्रास प्रेसीडेंसी की स्थापना की जिसमे तमिलनाडू के साथ साथ कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को भी शामिल किया गया। इस प्रकार तमिलनाडु की राजधानी मद्रास की स्थापना हुईं।

 सन 1996 में डीऍमके सरकार ने मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई करने का फैसला लिया और सन 1998 में मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई हो गया। नाम बदलने का मुख्य कारण यह था कि चूँकि यह तमिल प्रदेश की राजधानी थी और मद्रास एक तमिल नाम नहीं है अतः तमिल में चेन्नई कहा जाने लगा। 

....