Monday, November 20, 2023

NILGIRI RAILWAY MUSEUM

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर …  भाग - 9

नीलगिरि रेल संग्रहालय 

दक्षिण रेलवे की नीलगिरि घाटी रेलवे की ऐतिहासिक विरासतें आज भी नीलगिरि रेल संग्रहालय में सुरक्षित हैं और पर्यटकों के देखने हेतु उपलब्ध हैं।  यह संग्रहालय मेट्टुपालयम स्टेशन के सामने ही स्थित है। 

1. मेट्टुपालयम रेलवे स्टेशन और संग्रहालय 

नीलगिरि रेलवे म्यूजियम 

Saturday, November 18, 2023

AN EVENING OF COIMBATORE & CHERAN EXPRESS


तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरती पर…     भाग - 10 

कोयंबटूर की एक शाम और चेरान एक्सप्रेस 



 कोयंबटूर नगर और ईशा कोविल का प्लान 

शाम को करीब पांच बजे मैं कोयंबटूर पहुंचा, मैं यहाँ से ईशा कोविल जाना चाहता था जहाँ भगवान शिव की शानदार मूर्ति के दर्शन होते हैं  किन्तु अब ईशा कोविल जाना मुश्किल था क्योंकि मैंने अपने जीजाजी बासुदेव को फोन किया जो कुछ ही समय पहले यहाँ से अपने गाँव गए थे।  वे कोयंबटूर शहर में ही रहते हैं और यहीं कार्यरत हैं किन्तु छुटियों में वे इगलास अपने गाँव चले जाते हैं, उन्हें कोयंबटूर शहर के बारे में अच्छी जानकारी है।  

उन्होंने ही मुझे बतलाया कि अगर मैं इस समय ईशाकोविल जाऊँगा तो सुबह से पहले नहीं लौट पाउँगा जबकि रात को चेन्नई के लिए मेरी ट्रेन है वो निकल जाएगी। अतः बिना देर किये मैं ईशा कोविल जाने वाली बस में से उतरा और वापस रेलवे स्टेशन पहुंचा। 

रेलवे स्टेशन के बाहर ही काफी बड़ा और अच्छा बाजार है। मैं खाना खाने से पहले आज की सारी थकान दूर करना चाहता था इसलिए मुझे जाम की आवश्यकता थी। जाम की दुकान स्टेशन से कुछ ही मिनट की दुरी पर थी, मैं वहां पहुंचा और कुछ मूल्य देने के बाद मुझे एक बियर की बोतल प्राप्त हुई। जाम पीने के बाद मैं वापस स्टेशन पहुंचा और अपना बैग लेकर स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर पहुंचा। 

NILGIRI RAILWAY

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरती पर…     भाग - 8

नीलगिरि रेलवे की एक रेल यात्रा 

मेट्टुपालयम से उदगमंडलम मीटर गेज रेल यात्रा

4 JAN 2024

चेर राज्य और कोंगु प्रदेश 

      प्राचीन चेर राज्य के अंतर्गत समस्त कोंगू प्रदेश शामिल था जिसमें नीलगिरि की ऊँची वादियाँ, प्राकृतिक झरने, चाय के बागान और ऊंटी जैसा हिल स्टेशन शामिल है। प्राचीन चेर राज्य की राजधानी वनजी थी, जो करूर, इरोड, कोयंबटूर और तिरूप्पर के बीच कहीं स्थित थी, अब इसके अवशेष देखने को नहीं मिलते हैं। चेर राज्य के शासकों का स्थापत्य कला में कोई मुख्य योगदान नहीं रहा है, या ऐसा भी कह सकते हैं कि अगर चेर के कुछ शासकों ने स्थापत्य की दृष्टि से कुछ भवनों या मंदिरों का निर्माण कराया भी होगा तो वक़्त के साथ बदलते साम्राज्यों में यह ढेर हो गए किन्तु आज भी केरल में चेर शासकों के स्थापत्य के निर्माण मौजूद हैं। 

Monday, August 21, 2023

ROCKFORT TEMPLE, TRICHI

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर   भाग - 8 

रॉकफोर्ट मंदिर और त्रिची की एक शाम 



3 JAN 2023

यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

तमिलनाडू के मध्य भाग में स्थित त्रिची एक बड़ा और सुन्दर नगर है। यह नगर कावेरी नदी के किनारे स्थित है।  प्राचीनकाल में यह चोल शासकों की प्रथम राजधानी भी रहा है जिसे उरैयूर के नाम से जाना जाता था। चोल सभ्यता के अलावा यहाँ पल्लवकालीन सभ्यता के अवशेष भी देखने को मिलते हैं। 

नगर के बीचोबीच एक ऊँची चट्टान पर रॉकफोर्ट स्थित हैं जहाँ से अनेक पल्लवकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। चट्टान के सबसे ऊपरी शिखर पर श्री गणेश जी का मंदिर स्थित है जहाँ गणेश जी को दूब ( घास ) चढाने का विशेष महत्त्व है। यहाँ से समूचे नगर का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है और साथ ही कावेरी की अविरल धाराएं भी यहाँ से स्पष्ट नजर आती हैं। 

कावेरी के मध्य में स्थित भगवान विष्णु का धाम श्री रंगम जी का मंदिर भी दिखलाई पड़ता है। 

Saturday, August 19, 2023

VIJAYALAY CHOLESHWARAM TEMPLE

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर … भाग - 7 

विजयालय चोलेश्वरम मंदिर - नारतामलाई 

3 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

वर्तमान में तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंड चोलपुरम का बृहदीश्वर मंदिर चोल स्थापत्य के मुख्य उत्कृष्ट उदाहरण तो हैं ही किन्तु इसके निर्माण से भी सैकड़ों वर्षों पूर्व भी एक साधारण से गाँव की विशाल चट्टान पर, प्रथम चोल सम्राट विजयालय ने अपनी विजयों के फलस्वरूप आठवीं शताब्दी में एक शानदार शिव मंदिर का निर्माण कराया, जिसे उन्होंने अपने ही नाम से सम्बोधित किया ''विजयालय चोलेश्वर कोविल'' जिसका अर्थ है विजयालय चोल के ईश्वर का मंदिर। मंदिर की वास्तुकला और शैली बेहद शानदार है इसी कारण यह इतने वर्षों के पश्चात भी ज्यों का त्यों स्थित है। 

Thursday, July 20, 2023

Tirumayam Fort

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर …. भाग - 6  

तिरुमयम किला 


3 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

   अब वक़्त हो चला था त्रिची से आगे बढ़ने का और उस मंजिल पर पहुँचने का जिसके लिए विशेषतौर पर, मैं इस यात्रा पर आया था। यह वह स्थान था जहाँ आठवीं शताब्दी में चोल वंश के प्रथम सम्राट विजयालय ने नारतामलै नामक स्थान पर चोलेश्वर शिव मंदिर का निर्माण करवाया था। सम्राट विजयालय के शासनकाल में पूर्णतः द्रविड़ शैली में निर्मित यह मंदिर चोलकालीन सभ्यता का उत्कृष्ट उदाहरण है। 

   नारतामलै, त्रिची से दक्षिण दिशा की तरफ तीस किमी दूर स्थित है। इस स्थान तक पहुँचने के लिए रेलमार्ग और सड़कमार्ग दोनों ही सुगम हैं।

 मैंने अपनी यात्रा के लिए रेलमार्ग को चुना और सुबह होटल से नहाधोकर चेकआउट करने के बाद, मैं त्रिची रेलवे स्टेशन पहुंचा। हालांकि इससे पूर्व मेरा एक और प्लान था कि मैं रेंट पर बाइक लेकर, उससे सभी चुनिंदा ऐतिहासिक स्थलों को देखकर शाम तक त्रिची वापस आ जाता किन्तु रेंट पर मिलने वाली कोई बाइक मुझे यहाँ नहीं दिखी और फिर मैंने रेलमार्ग द्वारा ही अपनी यात्रा को आगे बढ़ाया। 

Saturday, April 22, 2023

BRIHDEESHWAR TEMPLE : GANGAIKOND CHOLAPURAM

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर…. भाग - 5 

प्राचीन चोल राजधानी - गंगईकोन्ड चोलापुरम 


2 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

सम्राट राजेंद्र प्रथम ( 1014  - 1044 ई. )

महान चोल सम्राट राजराज प्रथम की तरह उनका पुत्र राजेंद्र प्रथम भी एक योग्य उत्तराधिकारी हुआ जिसने ना सिर्फ अपने पिता के द्वारा निर्मित चोल साम्राज्य के वैभव को बनाये रखा बल्कि उसकी सीमाओं का दूर दूर तक विस्तार भी किया। वह एक योग्य पिता का योग्य पुत्र था। राजराज प्रथम उनकी प्रतिभा और सैन्य पराक्रम को देखते हुए अपने जीवनकाल में ही उसे चोल साम्राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। 

राजेंद्र प्रथम ने अपने जीवन काल में अनेकों उपाधियाँ धारण कीं, जिनमें सबसे अधिक श्रेय उसे गंगईकोंड की उपाधि से मिला जिसका अर्थ है गंगा को जीतने वाला। यह उपाधि उसने बंगाल को जीतने के बाद धारण की। दरअसल अपने नजदीकी राज्यों को जीतने के बाद उसने अपना रुख उत्तर भारत की ओर किया और इसे गंगाघाटी अभियान का नाम दिया। 

इस अभियान का लक्ष्य गंगा नदी का जल लाना था। किन्तु इस अभियान से पूर्व उसने अपनी सेना के सैन्य परीक्षण के उद्देश्य से कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग जीतने के बाद उसने बंगाल पर चढ़ाई शुरू कर दी। इस समय बंगाल का तत्कालीन शासक महिपाल प्रथम था जो चोलसेना से बुरी तरह पराजित हुआ और अब चोलों की धाक उत्तर भारत के बंगाल तक जम गई।

 गंगाघाटी अभियान के विजयोपरांत राजेंद्र प्रथम ने गंगईकोंड की उपाधि धारण की और साथ उसने तंजौर से दूर कावेरी के उसपार एक नई राजधानी का निर्माण किया जिसका नाम उसने गंगईकोंड चोलापुरम रखा।  

Sunday, April 2, 2023

BRIHDESHWAR TEMPLE - THANJAVOUR

तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर, भाग - 4 

 बृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मंदिर 

2 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

वैदिक धर्म के विपरीत बौद्ध और जैन धर्म की भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु भारत के नजदीकी देशों में भी प्रसरता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का सबसे अधिक प्रचार प्रसार किया और उसके पुत्र व पुत्री ने श्री लंका में बौद्ध धर्म की पराकाष्ठा बढ़ाई। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में हर्षवर्धन ने भी बौद्ध धर्म को सबसे अधिक महत्त्व दिया, इसकारण भारत अब विभिन्न धर्मों का देश बन चुका था।

 किन्तु दक्षिण भारत की बात अलग थी, यहाँ के राजवंश और शासकों ने शुरू से ही केवल वैदिक धर्म को सर्वोच्च स्थान दिया था। वह वैदिक धर्म के अनुयायी थे और पूर्ण रूप से अपने रीतिरिवाजों और अपनी संस्कृति के साथ अपने धार्मिक अनुष्ठानों को पूर्ण किया करते थे। उनके द्वारा निर्मित अभिलेखों से इस बात की पुष्टि होती है। 

चोल वंश का सबसे प्रतापी सम्राट राज राज प्रथम था जिसका मूल नाम अरिमोलीवर्मन था। उसने अपने साहस और कुशल रणनीति से चोल राज्य को साम्राज्य में बदल दिया था। अपने राज्यभिषेक के सुअवसर पर उसने राजराज की उपाधि धारण की थी। इसके अलावा और भी अनेकों उपाधि थी जो उसने धारण की किन्तु सबसे अधिक प्रसिद्धि उसे राजराज की उपाधि से ही मिली। 

इसी उपाधि के चलते उसने दक्षिण भारत के तंजौर नगर में देश के सबसे बड़े मंदिर का निर्माण कराया जो भगवान शिव को समर्पित है। उसने इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर मंदिर रखा जो कालांतर में बड़ा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। सत्रहवीं शताब्दी में मराठा सरदारों ने इसे बृहदेश्वर मंदिर नाम दिया। जिसका अर्थ होता है सबसे बड़ा मंदिर। 

Saturday, April 1, 2023

CHOLA EMPIRE


 चोल साम्राज्य और उसका अस्तित्व और संगम युग 

चेन्नई में रानी कण्णगी की प्रतिमा 

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

प्राचीन काल से ही अखंड भारत भूमि पर अनेकों साम्राज्य स्थापित हुए और इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़कर सदा के लिए विलीन हो गए। इन अलग अलग साम्राज्यों ने भारत भूमि को अलग अलग द्वीपों और देशों से जोड़कर एक अखंड भारत का निर्माण किया, भारत भूमि की संस्कृति को विश्व के दूसरे भागों में पहुँचाया और साथ ही भारत के वैदिक धर्म का चहुँओर प्रचार प्रसार किया। इन्हीं महत्वकांक्षी साम्राज्यों में से एक दक्षिण भारत का चोल साम्राज्य था, जिसके शासकों ने ना केवल भारत भूमि अपितु विश्व के सबसे बड़े महाद्वीप एशिया के अनेकों देशों को अपने साम्राज्य में मिलाया और वहां अपने देश की संस्कृति और धर्म का प्रसार भी किया। 

Saturday, March 18, 2023

CHENNAI CENTRAL

 तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर .... भाग - 2 

मैं, नई साल और राजधानी चेन्नई

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

SUN - 1 JAN 2023 

चेन्नई अथवा मद्रास 

  बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल पर स्थित चेन्नई, भारत देश का चौथा सबसे बड़ा शहर और तीसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है। चेन्नई, तमिलनाडू प्रदेश की राजधानी है और संस्कृति, आर्थिक और शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण  शहर है। प्राचीन काल में यह पल्लव, चोल, पांडय और विजयनगर के शासकों का मुख्य क्षेत्र रहा है, पंद्रहवीं शताब्दी में पुर्तगालियों ने यहाँ एक बंदरगाह का निर्माण किया। पुर्तगालियों ने चेन्नई में पुलिकट नामक शहर बसाया और वहीँ डच ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की।

  सोलहवीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने चेन्नई में अपनी फैक्ट्री और गोदाम के निर्माण किये और सेंट जॉर्ज किले का निर्माण करवाया। इस बीच फ्रांसीसियों ने सत्तरहवीँ शताब्दी में इस किले पर अपना अधिकार कर लिया किन्तु यह अधिकार कुछ ही समय के लिए था, इसके बाद पुनः यह ब्रिटिश अधिकारियों के नियंत्रण में आ गया और इन्होने यहाँ मद्रास प्रेसीडेंसी की स्थापना की जिसमे तमिलनाडू के साथ साथ कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों को भी शामिल किया गया। इस प्रकार तमिलनाडु की राजधानी मद्रास की स्थापना हुईं।

 सन 1996 में डीऍमके सरकार ने मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई करने का फैसला लिया और सन 1998 में मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई हो गया। नाम बदलने का मुख्य कारण यह था कि चूँकि यह तमिल प्रदेश की राजधानी थी और मद्रास एक तमिल नाम नहीं है अतः तमिल में चेन्नई कहा जाने लगा। 

.... 

Friday, March 10, 2023

Grand Truck Express : MTJ TO MAS

 

तमिलनाडु की ऐतिहासिक धरा पर - भाग 1 

मथुरा से चेन्नई - ग्रैंड ट्रक एक्सप्रेस 

30 DEC 2022

    आख़िरकार एक लम्बे समय के बाद वो वक़्त आ ही गया जब मैं फिर से अपनी दक्षिण भारत की ऐतिहासिक यात्रा के लिए एकदम से तैयार था। पिछली बार कर्नाटक की ऐतिहासिक यात्रा करने के बाद मैंने इस बार तमिलनाडू राज्य को अपनी यात्रा के लिए चुना क्योंकि तमिलनाडु राज्य भी प्राचीन काल से ही हिन्दू धर्म का ऐतिहासिक केंद्र रहा है जहाँ चोलों ने अपनी वास्तुकला और स्थापत्य के ऐसे उदाहरण छोड़े हैं, जिन्हें देखने भर से उनकी महानता और सर्वोच्चता के साथ साथ भविष्य को लेकर उनकी दूर दृष्टि का बोध होता है। 

चोल साम्राज्य के साथ साथ तमिलनाडु की भूमि चेर, पांडय और पल्लवों के महान साम्राज्य और उनकी विजयों का भी गुणगान करती है। बस इन्ही राज्यों से मिलने की तमन्ना लिए मैंने ब्रजभूमि से तमिल भूमि की ओर प्रस्थान किया। 

आँग्ल नववर्ष आने में अब दो दिन ही शेष बचे थे, मेरी तमिलनाडु यात्रा की सभी तैयारियाँ लगभग पूर्ण हो चुकी थीं, नई साल का पहला दिन तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में मनाने का पूरा प्रबंध किया हुआ था। 

30 दिसंबर की शाम, मथुरा से चेन्नई के लिए मैंने ग्रैंड ट्रक एक्सप्रेस से अपनी यात्रा शुरू की।

Thursday, February 23, 2023

CHITRAKOOT DHAM

चित्रकूट धाम यात्रा 

  

                           


    त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ ने अपनी तीसरी पत्नी कैकई को दिये दो वरों को पूरा करने के कारण, अत्यंत ही  विवश और दुखी होकर अपने ज्येष्ठ पुत्र राम को चौदह वर्ष का वनवास दिया और कैकई पुत्र भरत को अयोध्या की राजगद्दी। तब श्री राम अपनी पत्नी सीता और अनुज लक्ष्मण के साथ पिता के वचन को पूरा करने के लिए वन को चले गए। अयोध्या से उन्होंने दक्षिण दिशा की ओर प्रस्थान किया और तमसा नदी को पार करने के बाद श्रृंगवेरपुर पहुंचे जो उनके मित्र निषादराज का राज्य था। 

   इसके पश्चात उन्होंने केवट की नाव द्वारा गंगा नदी को पार किया और प्रयाग में भारद्वाज ऋषि के आश्रम पहुंचे। भारद्वाज ऋषि ने भगवान श्री राम को दक्षिण दिशा में यमुना नदी को पार करने के बाद वन में कुटिया बनाकर रहने का सुझाव दिया और श्री राम अपने अनुज लक्ष्मण और भार्या सीता के साथ यमुना पार करके कामदगिरि के निकट पहुंचे। इसी स्थान को उन्होंने अपने निवास हेतु चुना और यहीं अपनी पर्णकुटी बनाकर रहने लगे। यही स्थान चित्रकूट कहलाता है जो कामदगिरि पर्वत और मन्दाकिनी नदी के किनारे बसा हुआ है। 

    इधर जब भरत अपने भाई शत्रुघन के साथ अयोध्या पहुंचे तो उन्हें अपने पिता राजा दशरथ की मृत्यु और बड़े भाई के वनवास चले जाने के जानकारी हुई। वह फूट फूट कर रोने लगे और अपनी माता की गलती के कारण पश्चाताप भी करने लगे। इसी पश्चाताप और अपने धर्म के साथ वह अपने बड़े भाई राम, लक्ष्मण और सीता जी को वन से वापस लाने के लिए और उनका राज्य उन्हें सौंपने के लिए वन को चल दिए। 

    उनके साथ अयोध्या की प्रजा भी साथ थी, निषादराज से मिलने के बाद उन्होंने चित्रकूट में आकर प्रभु श्री राम से भेंट की और उनसे अयोध्या लौट चलने का आग्रह किया किन्तु वचनबद्ध होने के कारण श्री राम ने अयोध्या लौटने से इंकार कर दिया। भरत के चित्रकूट से चले जाने के बाद प्रभु श्री राम भी लक्ष्मण और माता सीता के साथ चित्रकूट छोड़कर दंडकारण्य के घने वनों की तरफ चले गए। इस प्रकार चित्रकूट उनकी रज और निवास के कारण एक पावन धाम बन गया। 

कलियुग में गोस्वामी तुलसीदास जी ने चित्रकूट में मन्दाकिनी नदी के घाट पर बैठकर ही राम चरित मानस की रचना की। चित्रकूट के समीप ही अत्रि मुनि का भी आश्रम था जहाँ वे अपनी पत्नी माता अनुसुइया के साथ रहा करते थे।