Saturday, January 14, 2023

MAKAR SAKARANTI TRIP 2023


 रिश्तों के सफ़र पर - मकर सक्रांति यात्रा 2023 

नववर्ष की शुरुआत हो चुकी थी, सर्दियाँ भी अपने जोरों पर थीं। तमिलनाडु से लौटे हुए एक सप्ताह गुजर चुका था, अब अपनों से मिलने की ख्वाहिश मन में उठी और एक बाइक यात्रा का प्लान फाइनल किया। प्रत्येक साल पर पहला हिन्दू पर्व  मकर सक्रांति होता है, दान के हिसाब से इस पर्व का अत्यधिक महत्त्व है जिसमें गुड़ और तिल से बनी गज़कखाने और दान देने की परंपरा है, इसलिए मैंने भी 10 - 15 डिब्बे गजक के खरीद लिए और अगले दिन मकर सक्रांति को मैं अपनी बाइक लेकर रिश्तों के सफर पर निकल चला। 

आज शनिवार का अवकाश था और साथ ही मकर सक्रांति का प्रथम हिंदू पर्व भी। इस त्योहार के मैने हमेशा अपने निजी रिश्तों के साथ साझा किया है।
आज के अवकाश और त्योहार के अवसर पर मैंने मथुरा से हाथरस की ओर अपने रिश्तों से एक भेंट करने लिए यात्रा प्लान की।
यह यात्रा मैने और मेरी पत्नी कल्पना दोनो ने प्लान की थी, किंतु कल्पना का स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण फिर यह यात्रा मैने अकेले ही पूरी की।
इस यात्रा का उद्देश्य केवल इतना था कि मैं इस नववर्ष और मकर सक्रांति पर अपने सभी रिश्तेदारों से मिलना चाहता था, उन्हें देखना चाहता था।
यह यात्रा केवल मेरे रिश्तेदारों से मिलने हेतु ही प्लान की गई थी। नातेदार इस यात्रा में शामिल नहीं थे।
आज मोबाइल का प्रयोग केवल फोटो खींचने के लिए ही हुआ, काफी दिनों बाद अपनों के पास जाकर, उनसे मिलकर उनकी बातें सुनकर और कुछ समय बिताकर बहुत अच्छा लगा। इस यात्रा में बाइक का प्रयोग महत्वपूर्ण था।
मौसम आज बहुत ठंडा रहा, धूप बहुत ही कम देखने को मिली। कोहरा नही था किंतु बादल और हवा ने ठंडक बढ़ाए रखी थी।
माना कि पैसा जरूरी है और समय बेशकीमती है किंतु समय से भी बढ़कर है जिंदगी और जिंदगी बिना रिश्तों के बेरंग होती है, अगर जीवन में रंग भरने हैं तो अपने रिश्तों से जुड़े रहना जरूरी है ।
और रिश्तों से जुड़े रहने के लिए मोबाइल निकालना नही बल्कि समय निकालना जरूरी होता है।

पहला पड़ाव  - ग्राम आयराखेड़ा 

रिश्तों के सफर पर मेरी पहली यात्रा मेरी ननिहाल ग्राम आयरा खेड़ा की हुई, यह मेरी माँ का गाँव है जो मथुरा से कुछ दूर राया के निकट है, मैं मथुरा से करीब 25 किमी दूर आ चुका था और यहाँ अपने बड़े मामाजी, मामीजी से मिला और भेंट स्वरूप एक गजक का डिब्बा भेंट किया। 

यहीं किशोर मामा जी और अमृत मामा जी से भी मुलाक़ात हुई। सभी मुझे यूँ नएसाल के पहले त्यौहार पर अपने निकट देखकर बहुत प्रसन्न हुए। थोड़ी देर यहाँ रुककर मैं अपने सफर पर आगे बढ़ चला। 



आयराखेड़ा मार्ग 



मेरे बड़े मामा जी श्री राम खिलाड़ी शर्मा और उनका पुत्र हरेंद्र ( भोला )

मैं,  किशोर और अमरत मामाजी के साथ 







दूसरा पड़ाव : -  ग्राम रतमानगढ़ी  

मेरा दूसरा यात्रा केंद्र मेरी छोटी मौसी का गाँव रतमान गढ़ी था, यहाँ मेरे मौसाजी रहते हैं जिनका नाम श्री अनिल उपाध्याय है। मैं अपने मौसाजी से अत्यधिक प्रेम करता हूँ और उनसे मिलने की चाह ही मुझे यहाँ तक ले आती है। मैंने अपनी पिछली पोस्ट में उनके बारे में और इस गाँव के बारे में वर्णन किया था। मेरे मौसाजी पेशे से किसान हैं और आलू उनकी मुख्य उपज है। जनवरी की सुनहरी धूप में मैं अपने मौसी और मौसा जी के पास बैठा, मुझे वह मुलाकत बहुत अच्छी लगी क्योंकि रोज की भागदौड़ की जिंदगी में से कुछ सुकून के पल अपनों के साथ दिए जाएँ तो वह जीवन भर की यादगार बन जाते हैं। यहाँ मेरे दो भाई भी हैं दिलीप और वीके। अभी दिलीप तो यहाँ नहीं था किन्तु छोटे भाई वीके से जरूर भेंट हो गई और मौसी को एक गजक का डिब्बा भेंट कर मैं अगली मंजिल की तरफ बढ़ चला। 






तीसरा पड़ाव :- हाथरस 

मेरी अगली मंजिल मेरी छोटी बुआ जी का घर था जो हाथरस की आदर्श नगर कॉलोनी में रहती हैं।  मेरी चार बुआ जी हैं जिनमें सबसे बड़ी बीना देवी हैं और उनसे छोटी कमलेश बुआ जी है, यह दोनों अमोखरी गाँव में रहती हैं और बाकी दोनों छोटी बुआ जी सरोज और उर्मिला हैं जो हाथरस में रहती हैं। मैं पहले अपनी दोनों छोटी बुआ जी के यहाँ पहुंचा था, दोनों बुआएँ मुझे देखकर काफी खुश हुईं, और आज अपनी दोनों छोटी बुआओँ से मिलकर मुझे भी बहुत ख़ुशी हुई। 









चौथा पड़ाव - ग्राम बहटा 

बुआ जी और फूफाजी से मिलने के बाद अब मैं अपनी बड़ी मौसी के यहाँ उनके गाँव आया।  उनके गाँव का नाम बहटा है जो हाथरस जंक्शन से थोड़ा आगे सलेमपुर के निकट पड़ता है। यह मेरे बड़े मौसाजी का गाँव है जिनका नाम श्री रामकुमार उपाध्याय है, मेरे पांच मौसेरे भाई हैं जिनमें गोपाल सबसे बड़ा है और मेरे बचपन का मित्र भी हमौसी जी से एक शानदार भेंट हुई और थोड़ी देर यहाँ बैठकर मैं अब अपने अंतिम पड़ाव की तरफ बढ़ चला। 






पाँचवा पड़ाव - ग्राम अमोखरी 

हाथरस से निकलकर अब मैं अपनी दोनों बड़ी बुआओँ के यहाँ रवाना हो चला जिनका गाँव हाथरस जंक्शन के पास अमोखरी है। मैं पिछली मकर सक्रांति पर भी यहाँ आया था और अपने फूफाजी से मिला था और तभी से मैंने प्रत्येक मकर सक्रांति पर अपने रिश्तों से मिलने का नियम शुरू किया था। आज मैं पुनः अपनी दोनों बुआओँ से मिलने आया था, बुआओँ ने मेरी काफी अच्छी खातिरदारी की और खूब प्यार किया। मेरे बड़े फूफाजी का नाम श्री दयाशंकर रावत है जो अब इस दुनिया में नहीं हैं, मैं बचपन से ही उनसे डरता था किन्तु वे मुझे बहुत प्यार करते थे। मेरे छोटे फूफाजी श्री उमाशंकर रावत जी हैं जो बड़े फूफाजी की तरह ही मुझे प्यार करते हैं। 











अंतिम पड़ाव - ग्राम धौरपुर 

शाम हो चुकी थी, सूरज के ढलते ही सर्दी ने भी अपना प्रकोप दिखाना शुरू कर दिया था, सर्दियों में रात के  अँधेरे में बाइक चलना मुझे उचित नहीं लगता और दूसरी तरफ अब मैं बहुत थक भी चूका था इसलिए मैं अपने पैतृक गाँव धौरपुर पहुंचा जहाँ रात को मैं अपने चाचाजी श्री सुरेश चंद्र शर्मा के पास ही उनके कमरे में सोया। काफी देर रात तक उनसे बातें करते करते मेरी कब आँख लग गई पता ही नहीं चला और अगली सुबह अपने सभी रिश्तेदारों से मिलकर मैं वापस मथुरा आगया था। 






यह मेरी सिर्फ रिश्तेदारों से मिलने की यात्रा था, मेरे नातेदार इस यात्रा में शामिल नहीं थे।    

🙏

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