तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर…. भाग - 5
प्राचीन चोल राजधानी - गंगईकोन्ड चोलापुरम
2 JAN 2023
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सम्राट राजेंद्र प्रथम ( 1014 - 1044 ई. )
महान चोल सम्राट राजराज प्रथम की तरह उनका पुत्र राजेंद्र प्रथम भी एक योग्य उत्तराधिकारी हुआ जिसने ना सिर्फ अपने पिता के द्वारा निर्मित चोल साम्राज्य के वैभव को बनाये रखा बल्कि उसकी सीमाओं का दूर दूर तक विस्तार भी किया। वह एक योग्य पिता का योग्य पुत्र था। राजराज प्रथम उनकी प्रतिभा और सैन्य पराक्रम को देखते हुए अपने जीवनकाल में ही उसे चोल साम्राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
राजेंद्र प्रथम ने अपने जीवन काल में अनेकों उपाधियाँ धारण कीं, जिनमें सबसे अधिक श्रेय उसे गंगईकोंड की उपाधि से मिला जिसका अर्थ है गंगा को जीतने वाला। यह उपाधि उसने बंगाल को जीतने के बाद धारण की। दरअसल अपने नजदीकी राज्यों को जीतने के बाद उसने अपना रुख उत्तर भारत की ओर किया और इसे गंगाघाटी अभियान का नाम दिया।
इस अभियान का लक्ष्य गंगा नदी का जल लाना था। किन्तु इस अभियान से पूर्व उसने अपनी सेना के सैन्य परीक्षण के उद्देश्य से कलिंग पर आक्रमण किया और कलिंग जीतने के बाद उसने बंगाल पर चढ़ाई शुरू कर दी। इस समय बंगाल का तत्कालीन शासक महिपाल प्रथम था जो चोलसेना से बुरी तरह पराजित हुआ और अब चोलों की धाक उत्तर भारत के बंगाल तक जम गई।
गंगाघाटी अभियान के विजयोपरांत राजेंद्र प्रथम ने गंगईकोंड की उपाधि धारण की और साथ उसने तंजौर से दूर कावेरी के उसपार एक नई राजधानी का निर्माण किया जिसका नाम उसने गंगईकोंड चोलापुरम रखा।
गंगईकोंड चोलपुरम
तंजौर से उत्तर दिशा की तरफ 80 किमी दूर, कावेरी नदी के दूसरी तरफ गंगईकोंड चोलपुरम नामक एक छोटा गाँव है जो प्राचीन समय में चोलसाम्राज्य की राजधानी था। यहाँ राजेंद्र प्रथम ने एक नगर का निर्माण किया था और इसे अपनी राजधानी बनाया था।
कालांतर में यहाँ राजेंद्र प्रथम द्वारा निर्मित बृहदीश्वर मंदिर दर्शनीय है जो उसने अपने पिता राजराज प्रथम द्वारा तंजौर में बनाये गए बृहदेश्वर मंदिर के समान ही निर्मित कराया था। इसके अलावा यहाँ और भी ऐसे अनेकों ऐतिहासिक स्थान हैं जो चोल काल के दौरान ही निर्मित हुए हैं।
यहाँ राजेंद्र प्रथम द्वारा निर्मित एक विशाल झील है जिसे चोल तालाब के नाम से जाना जाता है और साथ यहाँ से राजेंद्र प्रथम के प्राचीन महलों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
बृहदीश्वर मंदिर
राजेंद्र प्रथम ने गंगईकोंड चोलपुरम नाम नई राजधानी का निर्माण करने के बाद यहाँ अपने पिता की तरह ही एक विशाल शिव मंदिर का निर्माण कराया जो देखने में तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर के समान लगता है। इसका विमान आठ मंजिला है एवं इसकी ऊंचाई 186 फ़ीट है।
इस मंदिर के निर्माण में भी इंटरलॉकिंग पद्धति का प्रयोग हुआ है किन्तु यह ग्रेनाइट के पत्थरों से निर्मित नहीं है। मंदिर के ठीक सामने नंदी की बैठी हुई विशाल मूर्ति है एवं सिंह के मुख के आकर का एक सिंह मंदिर भी है। तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर की तरह ही इसके प्रांगण में चार छोटे छोटे मंदिर भी दर्शनीय हैं। मंदिर के चारों तरफ किले की दीवार का परकोटा है परन्तु इस मंदिर में प्रवेश द्वार के रूप में गोपुरम नहीं है।
तंजावुर से कुम्भकोणम
तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर को देखने के बाद अब मैंने भी अपना रुख गंगईकोंड चोलपुरम की ओर किया और तंजौर के बस स्टैंड से एक बस द्वारा मैं कुम्भकोणम के लिए रवाना हो लिया। कुम्भकोणम से ही गंगईकोंड चोलपुरम जाने के लिए बसें मिलती हैं।
तंजौर से कुम्भकोणम की इस बस यात्रा के दौरान मुझे तमिलनाडू प्रदेश को नजदीक से देखने और जानने का मौका मिला। तंजौर के बाद यह तमिलनाडू के ग्रामीण क्षेत्रों से होते हुए जा रही थी। यहाँ प्राचीन समय के अनेकों अवशेष इस यात्रा के दौरान मैंने देखे। मैं तमिलनाडू राज्य परिवहन निगम की बस में बैठा था।
नारियल की इस भूमि पर, यहाँ के निवासियों के दिल भी नारियल की तरह ही होते हैं, अंदर से नरम और बाहर से देखने पर सख्त मालूम होते हैं। इन तमिलभाषी लोगों को उत्तर भारत के हिंदी भाषी लोगों से ना कोई विशेष लगाव है और नाही कोई आपत्ति।
तमिल के लोगों की भाषा तो मैं नहीं समझ पाता था किन्तु उनके व्यवहार और स्वभाव ने मुझे इतना अवश्य ज्ञात करा दिया था कि यहाँ के लोग झूठ, बेईमानी, चोरी और लूटपाट से बहुत दूर थे और मेरी भाषा को ना समझते हुए भी, मेरी बात को समझ लेते थे।
रोडवेज़ बस का कंडक्टर भी बहुत ईमानदार व्यक्ति था, उसने मुझे उचित टिकट देकर मेरे बाकी पैसे मेरे बिना मांगे बाद में दे दिए थे। यह बस तंजौर से कुम्भकोणम की ओर एक ऐसे रास्ते से जा रही थी जो कावेरी नदी की तराई का क्षेत्र था, हरे भरे वृक्षों की यहाँ काफी भरमार थी, और रास्ते में तमिलनाडु प्रदेश के ग्रामीण घरों को देखकर यात्रा का आनंद दुगना प्रतीत हो रहा था।
मैं गूगल मैप के सहारे अपनी प्रत्येक लोकेशन पर नजर बनाये हुए था। कुछ ही समय में मैं कुम्भकोणम में था।
कुम्भकोणम
कुम्भकोणम मंदिरों का नगर है, यहाँ ऊँचे ऊँचे गोपुरम वाले अनेकों मंदिर दर्शनीय हैं, साथ ही ऐरावतेश्वर मंदिर तो चोलकाल का एक महान मंदिर है। मैं समयाभाव के कारण इस मंदिर को नहीं देख सका क्योंकि मेरी मंजिल आज कुछ और थी।
कुम्भकोणम चोलकालीन नगर है और यहाँ चोल राजाओं का कोषागार भी स्थित था। कुम्भकोणम में बस स्टैंड पर हल्का नाश्ता करने के बाद मैं गंगईकोंड चोलपुरम जाने वाली बस में बैठ गया। एक बड़ी सी नहर के रूप में यहाँ कावेरी नदी भी बहती है।
कुम्भकोणम से गंगईकोंड चोलपुरम
कावेरी नदी को पार करने के बाद बस गंगईकोंड चोलपुरम की ओर बढ़ चली थी, यह एक शानदार हाइवे था और अभी इसके चौड़ीकरण का कार्य चल रहा था। बेशक मैं एक ऐसी यात्रा पर था जहाँ की वेशभूषा, खानपान और भाषा, कुछ भी मेरी समझ का नहीं था किन्तु फिर भी मैं इस यात्रा को पूरे दिल से और ख़ुशी से इंजॉय कर रहा था। इसका कारण था इस तमिलभूमि का सुन्दर इतिहास और इसकी पावन धरा पर स्थित प्राचीन हिन्दू मंदिर और इतना ही नहीं यहाँ के लोग भी, जिन्होंने अपनी इन प्राचीन धरोहरों को सहेज कर रखा है, जिन्होंने इन मंदिरों को अपनी संस्कृति और भक्ति से जोड़े रखा है।
कुछ ही समय बाद मुझे कावेरी नदी का विहंगम दृश्य दिखाई दिया। जहाँ जहाँ तक मेरी नजर जा रही थी, वहां वहां तक सिर्फ कावेरी ही नजर आ रही थी। इसके अथाह जल को देखकर एकबार को मैं भी डर सा गया था किन्तु जब थोड़ी देर बाद बस एक ऐसे बैराज से होकर गुजरी जो कावेरी नदी पर बना था और इकहरा था मतलब इसमें एकबार में एक तरफ के ही वाहन आ जा सकते हैं।
हमारी बस बैराज से गुजरने के पूर्व थोड़ी देर के लिए खड़ी हुई थी और विपरीत दिशा से आने वाले वाहनों की बारी ख़त्म होने की प्रतीक्षा कर रही थी। यह बैराज काफी प्राचीन और मजबूत है।
कावेरी नदी को पार करने के कुछ समय बाद बस के ड्राइवर ने मुझे उतरने का इशारा दिया। एक छोटे से गाँव के किनारे बस का ड्राइवर मुझे क्यों उतार रहा था, यह सोचकर मैं परेशान सा हो गया किन्तु बस से उतरने के पश्चात ही मुझे बृहदीश्वर का प्राचीन मंदिर दिखाई दे गया। यह मंदिर सड़क के किनारे ही स्थित था। इस मंदिर के सम्मुख प्रवेश द्वार के रूप में कोई गोपुरम नहीं था, मंदिर में प्रवेश करते ही नंदी की बैठी हुई विशाल प्रस्तर की मूर्ति है और उसके सम्मुख भगवान शिव को समर्पित विशाल मंदिर है।
मेलिगुई मेडु ( प्राचीन उत्खनन स्थल )
मंदिर और इसके प्रांगण को पूरी तरह देखने के बाद मैं अब गंगईकोंड चोलपुरम की प्राचीन राजधानी के अवशेष भी देखना चाहता था। गूगल मैप की सहायता से मुझे ज्ञात हुआ कि यहीं से थोड़ी दूरी पर राजा राजेंद्र प्रथम के महलों के अवशेष अब भी देखे जा सकते हैं। इस स्थान का नाम मेलीगुई मेडु था और यह स्थान बृहदीश्वर मंदिर से लगभग 5 किमी दूर था।
एक बस के द्वारा मैं मेलीगुई मेडु जाने वाली सड़क पर उतर गया और पैदल पैदल एक गाँव के छोटे से रास्ते पर बढ़ने लगा। मुख्य हाईवे अब मैंने पीछे छोड़ दिया था और मैं तमिलनाडु के एक ग्रामीण रास्ते पर अकेला बढ़ता जा रहा था। एक दो मोटर साइकिल वाले मुझे यहाँ आते जाते दिखे, मैप की लोकेशन के अनुसार मैं जल्द ही उस स्थान पर पहुँच गया जहाँ खुदाई में राजा राजेंद्र प्रथम के महल के अवशेष प्राप्त हुए थे।
यहाँ समय समय पर पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई की जाती रही है जिसमें अनेकों चोलकालीन वस्तुएं प्राप्त हुई हैं, इन सभी का विवरण यहाँ लगे बड़े बड़े बोर्डों पर पढ़े जा सकते हैं।
मेलिगी मेडु नामक यह गाँव किसी समय में गंगईकोंड चोलपुरम नामक, चोल साम्राज्य की राजधानी था। यह स्थान पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। प्राचीन ईंटों से निर्मित, महलों की भरी हुई नीवों द्वारा इसकी पहचान की जाती है कि किसी समय में यह स्थान कितना भव्य रहा होगा।
त्रिची की ओर
संध्या हो चुकी थी, सूर्यदेव अब अस्त होने की कगार पर थे और मैं अभी भी शहर से काफी दूर एक निर्जन स्थान पर था। इस स्थान को देखने के बाद मैं पुनः हाईवे की तरफ बढ़ चला और एक ऑटो वाले से लिफ्ट लेकर जल्द ही हाईवे पहुँच गया। यहाँ काफी देर इंतज़ार करने के बाद मुझे एक बस मिल गई जिसमें अधिकतर स्कूल के बच्चे छुट्टी होने के बाद अपने अपने घर जा रहे थे। तमिलनाडु प्रदेश में चलने वाली यह सरकारी और प्राइवेट बसें ही यहाँ के ग्रामीण लोगों के आवागमन का मुख्य साधन हैं।
आगे चलकर यह बस कहीं और जाने के रास्ते पर मुड़ गई और मैं इसमें से उतरकर दूसरी बस में बैठ गया जोकि कुम्भकोणम की ओर जा रही थी। कुम्भकोणम पहुंचकर मैंने रेलवे स्टेशन से त्रिची की एक टिकट ली और ट्रैन द्वारा मैं रात को 9 बजे तक त्रिची शहर पहुंचा जहाँ आज सुबह मैंने अपने लिए एक होटल में कमरा बुक किया था। आज मैं बहुत थक गया था, स्टेशन के नजदीक से ही ओल्ड मोंक की एक शीशी और एक डोसा पैक कराकर मैं अपने कमरे पर पहुंचा और आज डोसे के साथ रम के जाम लिए। मेरी अधिकतर शारीरिक थकावट दूर हो चुकी थी और मैं सुकून की नींद लेकर सो गया अगली सुबह एक नई यात्रा के लिए।
तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर…
तंजौर बस स्टैंड |
कुम्भकोणम |
TO GANGAIKOND CHOLAPURAM |
NATIONAL HIGHWAY - 36 |
राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 36 |
KAVERI RIVER |
KAVERI RIVER |
GANGAIKOND CHOLAPURAM |
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बहुत बहुत धन्यवाद।एक विरासत के दर्शन आपने अपने लेख के माध्यम से कराए हैं बहुत अच्छा और रोचक लेख है।
ReplyDeleteअभी भी बहुत कुछ जानकारी शेष है।यदि यह पाषाण बोलते होते तो शायद इतिहास बदल जाता।कितनी ही अधूरी और अपूर्ण जानकारी पूरी हो जाती।
ReplyDeleteआप सबके प्रयासों से बहुत कुछ मालूम होता है।
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