तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर … भाग - 7
विजयालय चोलेश्वरम मंदिर - नारतामलाई
3 JAN 2023यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये।
वर्तमान में तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर और गंगईकोंड चोलपुरम का बृहदीश्वर मंदिर चोल स्थापत्य के मुख्य उत्कृष्ट उदाहरण तो हैं ही किन्तु इसके निर्माण से भी सैकड़ों वर्षों पूर्व भी एक साधारण से गाँव की विशाल चट्टान पर, प्रथम चोल सम्राट विजयालय ने अपनी विजयों के फलस्वरूप आठवीं शताब्दी में एक शानदार शिव मंदिर का निर्माण कराया, जिसे उन्होंने अपने ही नाम से सम्बोधित किया ''विजयालय चोलेश्वर कोविल'' जिसका अर्थ है विजयालय चोल के ईश्वर का मंदिर। मंदिर की वास्तुकला और शैली बेहद शानदार है इसी कारण यह इतने वर्षों के पश्चात भी ज्यों का त्यों स्थित है।
तिरुमयम किला देखने के बाद मैं त्रिची की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर पहुंचा, क्योंकि इसी राजमार्ग पर स्थित नारतामलाई नामक स्थान पर मुझे पहुंचना था जहाँ आठवीं शताब्दी में प्रथम चोल सम्राट विजयालय ने द्रविड़ शैली में एक शानदार शिव मंदिर का निर्माण कराया था।
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वक़्त के धारों में चोल शासक, उनका शासन और राज्य तो समाप्त हो गए किन्तु उनके द्वारा निर्मित चोलकालीन स्थापत्य की यह शानदार शिल्पकला आज भी उस समय की महत्ता को उजागर करती है जब आधुनिक युग के मुकाबले सभी साधन सीमित थे। जब मशीनरी का दूर दूर तक कोई नाम नहीं था। अगर कुछ था, तो वह था सम्राटों की दूरदर्शी सोच और उनके बुलंद हौंसले, जिन्होंने उन सम्राटों को इतिहास में सदा सदा के लिए अमर कर दिया था।
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मध्यकाल के दौरान दक्षिण भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार करने के लिए, इस्लामी कट्टरपंथियों और शासकों ने अपना पूरा जोर लगाया था, किन्तु दक्षिण भारतीय लोगों की अपने धर्म के प्रति आस्था और संस्कृति के चलते, वे दक्षिण भारत में हिन्दू मंदिरों का विनाश करने में असफल रहे, यही कारण था कि दक्षिण भारत में प्राचीन हिन्दू मंदिर आज भी अपनी ऐतिहासिक यादों को सहेजे हुए, गर्व से खड़े हैं। विजयालय चोलेश्वर शिव मंदिर इसका जीता जागता उदाहरण सिद्ध होता है।
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तिरुमयम से एक खाली बस मुझे पुडुकोट्टई आने के लिए मिल गई और कुछ समय बाद मैं पुडुकोट्टई में था। यहाँ का मौसम काफी गर्म था जबकि यह जनवरी का महीना था। मैंने एक जूस की दुकान पर जाकर मौसमी का जूस पिया और पुडुकोट्टई बस स्टैंड पहुंचा।
त्रिची के बाद पुडुकोट्टई एक मुख्य जंक्शन पॉइंट है, जहाँ चारों दिशाओं में चोलकालीन सभ्यता के अवशेष बिखरे पड़े हैं। तिरुकट्टलई का ऐतिहासिक मंदिर पुडुकोट्टई में स्थित है जोकि चोलकालीन है और चोल राजाओं द्वारा निर्मित है।
बस स्टैंड पर ही एक शानदार रेस्टोरेंट है जोकि तमिलनाडू ट्रांसपोर्ट विभाग द्वारा ही संचालित है। यह काफी साफ़ सुथरा और शाकाहारी भोजनालय है। मैंने यहाँ केले के पत्ते पर भरपेट भोजन किया। भोजन बेहद ही स्वादिष्ट था जिसमें सबसे मुख्य मेरे फेवरेट चावल भी थे।
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मेरे परिवार में मेरी माँ और मुझे चावल खाना बहुत पसंद है, बाकी मेरी पत्नी और मेरे रिश्तेदार किसी को चावल इतने प्रिय नहीं हैं। मेरे पिताजी भी चावल ज्यादा पसंद नहीं करते थे। उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक प्रत्येक राज्य में भोजन के रूप चावल का मिलना आम है।
हम उत्तर भारतीय हैं, हमारे यहाँ गेंहू बहुत होता है और हम सिर्फ चावल पर निर्भर नहीं रह सकते, किन्तु दक्षिण भारतीय लोगों का जीवन शाकाहारी रूप से केवल चावल पर ही निर्भर है क्योंकि यहाँ की जमीन केवल धान ही देती है।
बिहार, बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू और केरल मुख्य रूप से धान उपज प्रदेश हैं। जब पूरे भारत में चावल मुख्य भोजन है तो इसे राष्ट्रीय अनाज कहने में कोई हर्ज़ नहीं है।
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खाना खाने के बाद मैंने नारतामलै के लिए बस पकड़ ली, और जल्द ही बस ने मुझे नारतामलै जाने वाली सड़क पर उतार दिया। नारतामलै की दूरी यहाँ से लगभग तीन किमी दूर थी, यहाँ एक ऑटो वाला खड़ा था जो गांव तक जाने के 70 रूपये मांग रहा था। इसलिए मैं पैदल ही गाँव की तरफ बढ़ चला, अब मेरे चोट वाले पैर में तेज दर्द शुरू हो गया और मैं अब पैदल चलने में असमर्थ था।
एक पेड़ के नीचे बैठकर मैंने थोड़ी देर आराम किया, कुछ समय बाद एक दूसरा ऑटो वाला भी मुझे आता हुआ दिखाई दिया, मैंने उसे हाथ दिखाया तो उसने अपना ऑटो रोककर मुझे बैठा लिया, इसबार मैंने इससे किराया नहीं पुछा, सिर्फ वो मंदिर दिखाया जहाँ मुझे जाना था किन्तु शायद वह भी इस प्राचीन मंदिर के बारे कुछ भी नहीं जानता था और दूसरी तरफ हम दोनों एक दूसरे की भाषा भी समझने में असमर्थ थे।
एक स्थान पर ऑटो रोककर उसने कुछ गांव वाले लड़कों को मंदिर का फोटो दिखाया, फोटो को देखकर उन लड़कों ने तुरंत एक ऊँची पहाड़ी की ओर इशारा करते हुए अपनी भाषा में ऑटो वाले से कुछ कहा। ऑटो वाले ने मुझे पहाड़ी की ओर रास्ता दिखाते हुए तमिल में ही मंदिर की ओर जाने को कहा और साथ में सौ रूपये लेकर वो आगे चला गया।
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मेरे सामने अब कोई रास्ता नहीं था बल्कि एक बहुत लम्बी चट्टानी पहाड़ी थी जिस पर बड़ी आसानी से चला जा सकता था। उस प्राचीन मंदिर तक पहुँचने का यही एक मात्र मार्ग था। मैं पहाड़ी पर मंदिर को ओर बढ़ चला, एक स्थान पर तमिल समाज की काफी सारी महिलाएं और पुरुषों का जमावाड़ा था, वह अपनी संस्कृति के अनुकूल किसी कार्यक्रम में कार्यरत थे।
पहाड़ी के दूसरी तरफ एक बहुत बड़ा तालाब था, जिसके किनारे गाँव से पहाड़ी तक आता हुआ एक रास्ता भी है। मैं पहाड़ी पर बढ़ता ही जा रहा था और मैंने देखा कि इस चट्टानी पहाड़ी पर जगह जगह पानी से भरे हुए गड्ढे भी थे जिनमें कमल के पुष्प की लता बिखरी हुई थी। यही एक प्राचीन गणेश जी का मंदिर दिखाई दिया और मैं गणेश जी को प्रणाम करके कुछ देर यहाँ बैठ गया।
काफी आकर्षक नजारा था इस पहाड़ी पर जहाँ चारों और दूर दूर तक नारतामलै की पहाड़ियां नजर आ रही थी, तेज हवा सारे पसीने को सोख ले रही थी और इस जनवरी के माह में भी मार्च और अप्रैल जैसा अनुभव हो रहा था। अब मुझे प्राचीन मंदिर का शिखर दिखाई देने लगा था, मेरे क़दमों ने मंजिल को देखते ही रफ़्तार सी पकड़ ली और मैं जल्द ही इस प्राचीन मंदिर तक जा पहुंचा।
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आठवीं शताब्दी की एक प्राचीन धरोहर अब मेरे सामने थी जिसे देखकर मेरे मन मस्तिष्क में ख़ुशी की लहर सी दौड़ गई। मंदिर की वास्तुकला इतनी शानदार थी कि मेरी निगाहें हटने का नाम ही नहीं ले रही थी। चोल सम्राट विजयालय द्वारा बनवाया गया यह प्राचीन मंदिर एक अद्भुत स्थान पर निर्मित है जो कि बहुत ही शांत और प्राकृतिक वातावरण में स्थित है।
मंदिर के सम्मुख चट्टान में गुफा मंदिर भी बनाये गए हैं जिनमे ब्रहा विष्णु महेश सहित कुछ जैन प्रतिमाएं भी हैं। यह मंदिर भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन है और पर्यटन योग्य है। मैं इस मंदिर के फोटो खींचने में व्यस्त था तभी एक लड़का और एक लड़की मंदिर प्रांगण में आये और एक पीपल के वृक्ष नीचे ठंडी छाया में बैठकर आपस में तमिल में बात करने लगे।
हम तीनों के सिवा अन्य कोई भी यहाँ नहीं था। उन्हें देखकर मुझे भगवान शिव और माता पार्वती का स्मरण हो आया जो कि इसी तरह भ्रमणशील रहते हैं। मैं मंदिर के चारों कोनों से फोटो लिए और प्रांगण से बाहर निकलकर एक ऊँचे स्थान पर खड़े होकर मंदिर के और फोटो लेने लगा तभी एक तमिल व्यक्ति अपने सर पर लकड़ियों का बोझ सा लादे मेरे समीप आया और नीचे की तरफ मुझे अपनी भाषा में कुछ दिखाने और समझाने लगा।
मैं उसकी बात तो नहीं समझा किन्तु अपने क़दमों के नीचे देखा तो जाना कि वहां प्राचीन लिपि में इस मंदिर का इतिहास लिखा था। आज तमिल भाषा का ज्ञान ना होने के कारण मैं उस व्यक्ति से वो महत्वपूर्ण जानकारी नहीं ले पाया जो उसने तमिल में मुझे बताईं। यहाँ क्या लिखा था, शायद वो व्यक्ति जानता था।
काफी देर मंदिर को देखने के बाद मैं यहाँ से रवाना हो चला, तालाब के निकट पुरातत्व विभाग का बोर्ड लगा हुआ था जिसपर इस मंदिर की जानकारी लिखी थी और साथ में प्राचीन शिलालेख भी। मंदिर के समीप लिखे शिलालेख के अलावा यह दूसरे शिलालेख थे जिनपर सुरक्षा की दृष्टि से एक मंडप बनाया हुआ है। मंदिर तक पहुँचने का यही मुख्य मार्ग था जो मुझे अपनी वापसी की यात्रा में दिखा।
मैं अब नारतामलै गाँव में था, तमिलनाडू के इस प्राचीन गाँव को देखना भी कम रोमांचक नहीं है, मैं गाँव की मुख्य सड़क पर पहुंचा जहाँ से राष्टीय राजमार्ग अभी दूर था। मैं बहुत थक गया था, एक स्थान पर पानी का नल देखकर मैं पानी पीने लगा तो एक छोटी सी तमिल लड़की ने मुझे कुछ इशारा किया और अपने मुंह पर हाथ रखकर वह हँसने लगी।
उसकी इस प्रतिक्रिया से मैं समझ गया कि यह पानी पीने योग्य नहीं था तभी एक बाइक वाले भाई से लिफ्ट लेकर मैं आधे रास्ते तक आया जो गांव से केवल यहाँ पीने का पानी लेने आया था। अब मुझे पूरी तरह से समझ आ गया था कि वो लड़की मुझे पानी पीते हुए देखकर क्यों हंसी थी। यहाँ आकर मैंने खूब पानी पिया और हाथ मुंह धोकर मैं फिर से किसी दूसरी बाइक का इंतज़ार करने लगा।
मैं जिसके साथ बाइक पर यहाँ आया था, उसी ने एक दूसरी बाइक मेरे लिए रुकवाकर मुझे हाईवे तक पहुँचने में मेरी सहायता की, मैं पहली किसी विकलांग व्यक्ति की बाइक पर लिफ्ट लेकर बैठा था, और जल्द ही उस व्यक्ति ने मुझे हाईवे तक पहुंचा दिया। किरनूर तक जाने के लिए एक खाली बस मुझे मिल गई और उसके बाद दूसरी बस से मैं शामतक त्रिची पहुँच गया।
पुडुकोट्टई में प्रवेश |
पुडुकोट्टई बस स्टैंड |
पुडुकोट्टई बस स्टैंड का प्रवेश द्वार |
पुडुकोट्टई में आज दोपहर का भोजन |
नारतामलै रेलवे स्टेशन जो अब प्रयोग में नहीं है। |
चट्टानी रास्ता और तमिल समाज का जमावडा |
दूर दिखाई देता प्राचीन मंदिर का शिखर |
गणेश जी का मंदिर |
मंदिर की प्राचीन सीढ़ी |
श्री गणेश प्रतिमा |
गणेश मंदिर से आगे का दृश्य |
नारतामलै गाँव और प्राचीन तालाब |
चट्टान और प्राचीन मंदिर का शिखर |
विजयालय चोलेश्वरम मंदिर |
विजयालय चोलेश्वरम मंदिर |
कमल के पुष्प की लताएं |
विजयालय चोलेश्वरम मंदिर |
विजयालय चोलेश्वरम मंदिर |
प्राचीन गुफा मंदिर |
विजयालय चोलेश्वरम मंदिर |
द्रविड़ शैली |
अन्य छोटे छोटे प्राचीन चोल मंदिर |
विजयालय चोलेश्वर महादेव शिवलिंग |
मंदिर के नजदीक चट्टान पर लिखे शिलालेख |
इन्हीं ने मुझे मंदिर का इतिहास तमिल में बतलाया। |
नारतामलै गाँव का एक दृश्य |
तमिलनाडू की रोडवेज बस |
नारतामलै चौक |
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