Thursday, January 5, 2023

MAHABALIPURAM 2023

 तमिलनाडु की ऐतिहासिक धरा पर …   भाग - 11 

 महाबलीपुरम - पल्लवों की ऐतिहासिक विरासत 


5 JAN 2023

चेन्नई से दक्षिण की ओर समुद्र के किनारे मामल्लापुरम नामक स्थान है जिसे महाबलीपुरम भी कहते हैं।  इस स्थान पर पल्लवकालीन अनेकों अवशेष स्थित हैं जिनमें शोर मंदिर और पांडव रथ महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान में यह एक शानदार पर्यटक स्थल है जहाँ समुद्र के बीच के साथ साथ भारतीय इतिहास की एक शानदार झलक देखी जा सकती है। 

चेन्नई से महानगरीय बसें सीधे मामल्लापुरम पहुँचती हैं और प्रत्येक आधे घंटे के अंतराल पर उपलब्ध हैं। चेन्नई से मामल्लपुरम की दूरी लगभग 40 किमी है। महाबलीपुरम में अनेकों प्राचीन प्रस्तर कलाओं के ऐतिहासिक अवशेष देखने को मिलते हैं जो सातवीं शताब्दी में निर्मित किये गए थे। यह पल्लवकालीन हैं और पल्लव शासकों ने अलग अलग समय पर इनका निर्माण कराकर अपने समय की अमिट छाप छोड़ी थी। 


1. चेन्नई सेंट्रल से मामल्लपुरम 

चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन से कोई भी महानगर बस सीधे महाबलीपुरम नहीं जाती है।  इसके लिए मैंने तीन भागों में यात्रा की थी जिसमें पहली बस यात्रा मैंने सेंट्रल स्टेशन से थिरुवन्मयूर बस स्टैंड तक की और उसके बाद अगली बस पकड़कर मैं कोवलम बीच बस स्टैंड पहुंचा और इसके बाद मुझे सीधे महाबलीपुरम की महानगर बस मिली।

2. मामल्लपुरम बस स्टैंड 

मामल्लपुरम या महाबलीपुरम के बस स्टैंड पर उतरते ही पल्लव कालीन सभ्यता के अवशेष दिखना शुरू हो गए, सर्वप्रथम मेरी नजर एक चार खम्भों के एक मंडप पर गई जिसका शिखर द्रविड़ शैली में निर्मित था और यह इसका प्रवेश द्वार प्रतीत हो रहा था। बस स्टैंड के आसपास अनेकों दुकानें और ठहरने हेतु प्रत्येक बजट के होटल और धर्मशालाएं भी बनी हैं। चूँकि यह समुद्र के किनारे स्थित एक पर्यटक स्थल है इसलिए यहाँ बहुत सोच विचार कर ही किसी पर विश्वास करना उचित रहेगा। 

बस स्टैंड के नजदीक ही एक पौराणिक मंदिर है जो पेरुमल मंदिर के नाम से प्रसिद्द है और अभी फ़िलहाल इसका पुनः निर्माण का कार्य प्रगति पर था। इसके ठीक पीछे ही पुरात्तव विभाग का पार्क दिखाई देता है जिसमें पल्लवकालीन अवशेषों के साथ साथ अन्य साम्राज्यों के कालों में निर्मित प्रस्तरकलाएं भी दिखाई देती हैं। इस पार्क में एक संतुलित पत्थर की शिला भी दर्शनीय है जिसे कृष्ण जी का माखन लड्डू या अंग्रेजी में कहें तो, कृष्णा बटर बॉल भी कहते हैं। 

पुरातत्व विभाग द्वारा इस पार्क को देखने के लिए उचित टिकट निर्धारित है और मुझे बाद में ज्ञात हुआ कि यह टिकट ना केवल इसी पार्क की है बल्कि इस टिकट के द्वारा, पांडव के पांच रथ और तटवर्ती मंदिर भी देखा जा सकता है। महाबलीपुरम की सभी ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए केवल एक बार टिकट लेना होता है। 

मैं अपूर्ण जानकारी के कारण बिना टिकट ही पुरातत्वीय उद्यान में प्रवेश कर गया और सर्वप्रथम में कृष्णा मंडप के समीप पहुंचा जहाँ अनेकों प्रस्तर कलाएं, चट्टानों पर उकेरी हुईं थीं जिनमें भगवान श्री कृष्ण की लीलाएं, राजा भगीरथ द्वारा गंगा जी को प्रसन्न करके धरती पर लाना और अर्जुन की तपस्या मुख्य हैं। आइये एक नजर, इन प्रस्तर कलाओं को चित्रों के माध्यम से देखते हैं। 

भगवान श्री कृष्ण, गौचारण करते हुए 

गौचारण करते हुए भगवन कृष्ण और ग्वाल सखा 

गाय का दूध दुहते श्री कृष्ण 

गोवर्धन पर्वत धारण किये हुए भगवान् श्री कृष्ण 

श्री कृष्ण मंडप, जिसके अंदर यह आकृतियां दिखाई देती हैं। 


गंगा जी के लिए तपस्या करते भगीरथ और हाथियों का समूह 





वानर शिला समूह 

त्रिमूर्ति गुफा  / THIRUMURTHY CAVE



प्राचीनकाल की सीढ़ियाँ 







श्री कृष्ण का माखन लड्डू  / KRISHANA'S BUTTER BALL

यह एक संतुलित शिला है जो ढलान पर रुकी हुई है, और अपने संतुलन के कारण ही यह आश्चर्य का केंद्रबिंदु बनी हुई है। कहते हैं इसे अनेकों हाथियों के बल से भी नहीं हिलाया जा सका है। अनेकों बल लगने पर भी यह टस से मस नहीं हुई है। एक तरफ से गेंद जैसी दिखने के कारण इसे श्री कृष्ण का माखन लड्डू कहा जाता है।   






मैंने इस रॉक को हरतरफ से गौर से देखा, और अनुमान लगाया कि यह किसी बड़ी शिला का आधा भाग है जो उससे अलग होकर यहाँ आकर रुक गई है। 








गणेश रथ / GANESHA RATHA 

देवताओं में सर्वप्रथम पूजनीय श्री गणेश जी का यह पल्लवकालीन मंदिर है। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह द्रविड़ शैली में निर्मित है /








मुझे लगता है, कृष्णा की बटर बॉल, इसी रॉक का आधा बचा हुआ हिस्सा है। 


वराह गुफा / VARAH CAVE 


भगवान वाराह, पृथ्वी को अपनी गोद में लिए हुए 


भगवान के अष्टभुजी स्वरूप के दर्शन 


राज गोपुरम / ROYA GOPURAM 

राजगोपुरम, प्राचीन काल का एक राजा प्रासाद है। पंद्रहवीं शताब्दी  विजय नगर साम्राज्य के शासकों ने इस राजा प्रासाद का निर्माण कराया था। वर्तमान में यहाँ केवल इसका यह गोपुरम ही दर्शनीय है जो दर्शाता है कि महाबलीपुरम में ना केवल पल्लवकालीन सभ्यता के अवशेष देखने को मिलते हैं बल्कि यह विजयनगर साम्राज्य का भी हिस्सा रहा है। 





द्रोपदी स्नानागार / DRAUPADI'S BATH 

प्राकृतिक शिला निर्मित यह एक छोटा सा कुंड है जिसे द्रोपदी के स्नानागार के नाम से जाना जाता है। 



कमल तालाब / LOTUS POND



पल्लवकालीन प्राचीन सीढ़ियाँ 

महाबलीपुरम दीप स्तंभ / MAHABALIPURAM LIGHT HOUSE 









महिषासुर मर्दिनी गुफा / MAHISHASUR MARDINI CAVE

यह शिला, विश्राम हेतु निर्मित 


















पाँच रथ / FIVE RATHA




















तटवर्ती मंदिर / SHORE TAMPLE

समुद्र के किनारे स्थित शोर मंदिर, महाबलीपुरम अथवा तमिलनाडू का ही नहीं, अपितु पूरे भारतवर्ष की एक मुख्य ऐतिहासिक धरोहर के रूप विद्यमान है। यह समुद्र के किनारे रेतीले भूभाग में बना हुआ है इसीकारण इसे तटवर्ती मंदिर अथवा शोर मंदिर कहते हैं। 

इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में पल्लव शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय द्वारा किया गया था, उस समय यहाँ एक बड़ा व्यस्त बंदरगाह था जो पल्लव शासकों द्वारा प्रयोग किया जाता था। ग्रेनाइट के बड़े बड़े पत्थरों से निर्मित होने के कारण यह एक संरचनात्मक मंदिर ( रॉक कट टेम्पल ) के रूप में दिखाई देता है। 

सन 1984 में यूनेस्को ने महाबलीपुरम में स्थित अन्य स्मारकों से अलग इसे विश्व विरासत स्थल के रूप में वर्गीकृत किया।  

मार्को पोलो और उनके बाद आये अन्य यूरोपीय यात्रियों के वर्णन से ज्ञात होता है कि वह इसे सात पैगोडा के नाम से जानते थे और यह बात तब सच साबित होती नजर आई जब यहाँ सन 2004 में आई सुनामी के दौरान अन्य छ मंदिरों के अस्तित्व नजर में आये, जो आज समुद्र में डूबे हुए हैं। उनमें से एकमात्र यही मंदिर अब मौजूदा रूप में दिखाई देता है। मंदिर के आसपास अनेकों ऐसी चट्टानें भी दिखाई देती हैं जिनपर विभिन्न तरह की आकृतियाँ भी नजर आती हैं जिनपर अनेकों पशु पक्षियों के रूप में दिखाई देती हैं। 


शोर टेम्पल 

Shore Temple

Shore Temple

Shore Temple

Shore Temple

Shore Temple






Shore Temple








Shore Temple





Mahabalipuram Beach




Beautiful Shore Temple







THANKS FOR VISIT 
🙏

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