तमिलनाडु की ऐतिहासिक धरा पर … अंतिम भाग
तमिलनाडू एक्सप्रेस और घर वापसी
5 JAN 2023
महाबलीपुरम घूमने के बाद मैं वापस बस स्टैंड आ गया। मेरे मोबाइल की बैटरी अब लगभग समाप्त होने को थी। मैं बस में बैठने से पूर्व मोबाइल को चार्ज करना चाहता था, इसके लिए बस स्टैंड के सामने स्थित एक चाय की दुकान पर मैंने अपने मोबाइल को चार्जर में लगा दिया और एक कप चाय लेकर मैं आधे घंटे से अधिक समय तक उस दुकान पर बैठा रहा। इस बीच अनेकों बसें चेन्नई की अलग अलग दिशाओं के लिए आई और चली गई।
चाय बेचने वाला दुकानदार, एक अच्छा इंसान था। उसने ना सिर्फ मेरे फोन को चार्ज करवाया बल्कि उसने मुझे चेन्नई पहुँचने के लिए टूटी फूटी हिंदी भाषा में बसों की जानकारी भी दी। मोबाइल चार्ज होने के बाद मैं एक बस मैं बैठकर चेन्नई के लिए रवाना हो चला। तमिलनाडू की पूरी यात्रा करने करने के बाद अब मेरी घर की वापसी यात्रा शुरू हो चुकी थी।
यह बस महाबलीपुरम से तांबरम के लिए जा रही थी और मेरे घर वापसी की यह पहली सवारी थी। एक डेढ़ घंटे की यात्रा करने के बाद मैं तांबरम बाजार पहुंचा। यात्रा के शुरुआत में, मैं इस बाजार में घूमने आया था और यहीं से अन्तोदय एक्सप्रेस से मैं त्रिची के लिए रवाना हुआ था। तब सोचा था कि लौटते हुए ही मैं यहाँ से घर के लिए कुछ खरीद के लेकर जाऊँगा।
ताम्बरम स्टेशन के बाहर ही बहुत बड़ा बाजार है। यहाँ से मैंने अपनी छोटी बहिन निधि के लिए एक जैकेट ली और उसके बेटे के लिए भी एक गर्म शूट ख़रीदा उसके बाद मैंने चेन्नई में प्रयोग किये जाने वाले कुछ बर्तन भी ख़रीदे जिनका डिज़ाइन हमारे उत्तर भारत के बर्तनों से भिन्न था। सोचा था दक्षिण भारत की निशानी के रूप यह बर्तन घर में काम आएंगे।
मुझे मेरे मोबाइल पर एक सन्देश प्राप्त हुआ जो कि रेलवे की तरफ से था जिसमें मुझे यह सन्देश मिला कि तमिलनाडू एक्सप्रेस में मेरी सीट कन्फर्म नहीं हुई है और मेरा टिकट कैंसल हो गया है। यह मेरे लिए बड़ी समस्या वाली बात थी क्योंकि घर लौटने का मेरा सफर बहुत लम्बा था और अब मेरे पास जनरल कोच में यात्रा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
मैं तांबरम स्टेशन पहुंचा, चेन्नई पार्क के लिए मुझे जल्द ही एक लोकल शटल मिल गई और घर वापसी की यह मेरी दूसरी सवारी बन गई। कुछ स्टेशन पार करते ही इसकी गति धीमी हो गई और यह रेंगने लगी। इसके रेंगने जैसी गति देखकर मेरी धड़कने तेजी से धड़कने लगीं क्योंकि समय के हिसाब से तमिलनाडू एक्सप्रेस के छूटने का वक़्त नजदीक था और मैं अभी भी चेन्नई सेंट्रल स्टेशन से काफी दूर था।
पार्क स्टेशन पर उतरते समय ट्रेन को छूटने में केवल पांच मिनट ही शेष बचे थे, जबकि मुझे सेंट्रल स्टेशन पहुंचकर क्लॉक रूम से अपना बैग भी लेना था और मथुरा के लिए जनरल टिकट भी लेनी थी। पार्क स्टेशन के सामने ही सेंट्रल स्टेशन है और इसबीच एक बड़ा हाईवे भी मुझे पार करना था जो बहुत ही व्यस्त था। मैंने UTS एप के जरिये लोकल टिकट बुक कर लिया और दौड़ते हुए क्लॉक रूम पर पहुंचा।
क्लॉकरूम के दूसरी साइड ही तमिलनाडू एक्सप्रेस अपनी यात्रा करने के लिए तैयार खड़ी हुई थी और जब मैं क्लॉक रूम से अपना बैग ले ही रहा था कि गार्ड महोदय ने सीटी बजा दी। बैग लेकर मैं जल्द ही ट्रेन की तरफ दौड़ा, जिसने कि प्लेटफॉर्म से रेंगना शुरू कर दिया था। मैं पानी भी नहीं पी पाया और मैंने जनरल कोच में अपना बैग फेंका और मैं भी कोच के अंदर जा घुसा।
इस एकलौते जनरल कोच में अत्यधिक भीड़ थी फिरभी मैंने अपने लिए स्थान ढूंढ ही लिया। गाडी अपने गंतव्य से रवाना हो चुकी थी, अधिकांश सवारियां दिल्ली की थी और कुछ विजयवाड़ा तक। जनरल कोच की विशेषता होती है कि इसमें आपको अलग अलग शहरों और गांवों के लोगों को देखने और उन्हें समझने का मौका मिलता है।
सामान्य कोच, सामान्य लोगों के लिए ही होता है और इन सामान्य लोगों में असामान्य व्यवहार देखने को मिलता है, प्रेम, अपनापन और इंसानियत सहज ही महसूस सी होती है किन्तु तब जब रेल स्टेशन छोड़ चुकी हो। क्योंकि जैसे जैसे यात्रा आगे बढ़ती जाती है, कोच में बैठी हुई सवारियां अधिकतर आपस में घुल मिल सी जाती हैं। आधी रात हो चुकी है, अधिकतर लोग सोये पड़े हैं, और कुछ लोग मेरी तरह भूखे भी हैं जिन्हें रास्ते में कहीं भी कुछ भी खाने का मौका नहीं मिल पाया और वो लोग भी मेरी तरह अगला स्टेशन आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।
चार घंटे की निरंतर यात्रा के बाद हमारी रेल विजयवाड़ा स्टेशन पहुंची। यहाँ मुझे पूरी तरह से बैठने के लिए एक सीट मिल गई थी, इससे पहले मैं अपने बैग पर बैठकर ही यात्रा करता आ रहा था। खिड़की किनारे की यह सीट किसी शाही सीट से कम नहीं होती, जनरल कोच की इस सीट पर बैठने के बाद यात्रा का एक अलग ही आनंद होता है। परन्तु जनवरी के माह में रात के समय यह इतनी महत्वपूर्ण नहीं रह जाती।
अगली सुबह
🙏
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