Tuesday, January 3, 2023

BRIHDESHWAR TEMPLE - THANJAVOUR 2023

तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर, भाग - 4 

 बृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मंदिर 

2 JAN 2023

यात्रा शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये। 

वैदिक धर्म के विपरीत बौद्ध और जैन धर्म की भारतवर्ष में ही नहीं, अपितु भारत के नजदीकी देशों में भी प्रसरता अपने चरमोत्कर्ष पर थी। मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का सबसे अधिक प्रचार प्रसार किया और उसके पुत्र व पुत्री ने श्री लंका में बौद्ध धर्म की पराकाष्ठा बढ़ाई। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उत्तर भारत में हर्षवर्धन ने भी बौद्ध धर्म को सबसे अधिक महत्त्व दिया, इसकारण भारत अब विभिन्न धर्मों का देश बन चुका था।

 किन्तु दक्षिण भारत की बात अलग थी, यहाँ के राजवंश और शासकों ने शुरू से ही केवल वैदिक धर्म को सर्वोच्च स्थान दिया था। वह वैदिक धर्म के अनुयायी थे और पूर्ण रूप से अपने रीतिरिवाजों और अपनी संस्कृति के साथ अपने धार्मिक अनुष्ठानों को पूर्ण किया करते थे। उनके द्वारा निर्मित अभिलेखों से इस बात की पुष्टि होती है। 

चोल वंश का सबसे प्रतापी सम्राट राज राज प्रथम था जिसका मूल नाम अरिमोलीवर्मन था। उसने अपने साहस और कुशल रणनीति से चोल राज्य को साम्राज्य में बदल दिया था। अपने राज्यभिषेक के सुअवसर पर उसने राजराज की उपाधि धारण की थी। इसके अलावा और भी अनेकों उपाधि थी जो उसने धारण की किन्तु सबसे अधिक प्रसिद्धि उसे राजराज की उपाधि से ही मिली। 

इसी उपाधि के चलते उसने दक्षिण भारत के तंजौर नगर में देश के सबसे बड़े मंदिर का निर्माण कराया जो भगवान शिव को समर्पित है। उसने इस मंदिर का नाम राजराजेश्वर मंदिर रखा जो कालांतर में बड़ा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। सत्रहवीं शताब्दी में मराठा सरदारों ने इसे बृहदेश्वर मंदिर नाम दिया। जिसका अर्थ होता है सबसे बड़ा मंदिर। 


मेरी अब अगली यात्रा इस मंदिर के दर्शन हेतु ही थी जिसके लिए मैं अन्तोदय एक्सप्रेस से चेन्नई के ताम्बरम से रात को रवाना हुआ और अगली सुबह चोलों की प्राचीन राजधानी त्रिची शहर पहुंचा। त्रिची एक बहुत बड़ा शहर है और रेलवे का मुख्य जंक्शन पॉइंट है, इसी शहर को मैंने अपनी तमिलनाडू यात्रा के केंद्र बिंदु के रूप में चुना था। स्टेशन से बाहर निकलकर मैंने सबसे पहले एक होटल में कमरा लिया और यहाँ नहा धोकर तैयार होकर वापस स्टेशन पहुंचा। सुबह साढ़े आठ बजे एक ट्रेन के जरिये मैं तंजावुर पहुंचा। ट्रेन में से ही मुझे बृहदेश्वर मंदिर का शिखर दिखाई देने लगा था। 

स्टेशन से मंदिर तक की दूरी मैंने पैदल ही तय की, जो कि बहुत ही कम थी, मुश्किल से एक या दो किमी। रास्ते में एक दुकान से मैंने सुबह सुबह इडली साम्भर का नाश्ता भी किया। कुछ ही समय बाद मैं बड़ा मन्दिर पहुंचा जिसे चोल शासकों ने राजराजेश्वर मंदिर का नाम दिया था। इसके बाहरी गोपुरमों को देखकर ही इसकी भव्यता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए दो बड़े विशाल गोपुरम को पार करना होता है ये अत्यधिक ऊँचे तो नहीं थे किन्तु बहुत ही भव्य थे। गोपुरम से ही मंदिर का भव्य नजारा दिखाई देता है।  

बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी के शुरुआत में ग्रेनाइट के बड़े बड़े पत्थरों से बिना चूना गारे के हुआ है और आज भी इतनी साल गुजर जाने के बाद ये ज्यों का त्यों खड़ा है। इस मंदिर को बनाने के लिए इंटरलॉकिंग पद्धति का उपयोग हुआ है। 

ग्रेनाइट सबसे मजबूत पत्थरों में से एक है जिसे तोडना और काटना सहज नहीं है किन्तु इस मंदिर के निर्माण में ग्रेनाइट के कठोर पत्थरों को काट छाँट कर सुन्दर सुन्दर प्रतिमाओं और कलाओं से सजाया गया है। ऐसी तकनीक आधुनिक युग भी असंभव सी प्रतीत होती है। 

तंजौर नगर के आसपास अथवा दूर दूर तक कहीं भी कोई ग्रेनाइट पत्थरों की खदाने देखने को नहीं मिलती तो आखिर इस मंदिर के निर्माण के लिए यह ग्रेनाइट पत्थर आया कहाँ से होगा। 

 इस 216 फ़ीट ऊँचे मंदिर के ऊपर एक ही पत्थर से बना कलश स्थापित है जिसका वजन 80 टन है जिसके बारे आज भी विद्वानों में मतभेद हैं कि इसे इस मंदिर के ऊपरी शिखर तक कैसे पहुँचाया गया होगा। अनुमान है कि एक रैम्प के जरिये हाथियों द्वारा मजबूत रस्सियों से खींचकर इसे विमान के ऊपर तक पहुँचाया गया होगा किन्तु यह कार्य सोचने में जितना सरल लगता है उतना वास्तव में है नहीं।

 मंदिर के ऊपर इसे रखने का उद्देश्य आकाशीय बिजली से मंदिर के गर्भगृह में स्थित विशाल शिवलिंग की रक्षा करना है। इस शिखर से गर्भगृह और मंदिर परिसर में ऊर्जा का प्रवाह बना रहने में मदद मिलती है और साथ ही इस शिखर से मंदिर की भव्यता का आभास भी होता है। 

इस मंदिर की दीवारों पर विभिन्न तरह की शिल्पकलाएँ उत्कीर्ण हैं इन्हीं में से एक यूरोपियन व्यक्ति की छवि भी है जो टोपी पहने हुए है, 9 वीं शताब्दी में ऐसी रचना का होना आश्चर्य की बात है क्योंकि यह आधुनिक युग को दर्शाता है और हजारों साल पहले भविष्य की ऐसी रचना का होना अपने आप में सबसे बड़ा आश्चर्य है।  

बृहदेश्वर मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है। इसके शिलालेखों में अंकित संस्कृत व तमिल लेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्‍काशी द्वारा लिखे गए शिलालेखों की एक लंबी श्रृंखला शासक के व्‍यक्तित्‍व की अपार महानता को दर्शाते हैं।

 इस मंदिर के निर्माण कला की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके गुंबद की परछाई पृथ्वी पर नहीं पड़ती। जो सभी को चकित करती है तथा इसके शिखर पर स्वर्णकलश स्थित है। मंदिर के गर्भगृह में स्थापित भव्य शिवलिंग के दर्शन होते हैं, जो कि एक ही ग्रेनाईट पत्थर से निर्मित है। 

बृहदेश्वर एक विशिष्ट द्रविड़ शैली का मंदिर है जिसमें प्रवेश करने के लिए पूर्व में बड़े प्रवेश द्वार हैं जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। इस मंदिर में विशेष रूप से दो गोपुरम हैं, जिनमें से पहला केरलंतकन गोपुरम है जिसे राजराज की चेरों पर जीत हासिल करने पर बनाया गया था। इस गोपुरम में पाँच मंजिलें हैं और दूसरे गोपुरम की तुलना में यह कम अलंकृत है। 

मंदिर में प्रवेश करने पर गोपुरम यानी द्वार के भीतर एक चौकोर मंडप है तथा चबूतरे पर नंदी जी की विशाल मूर्ति स्थापित है। नंदी की यह प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर से निर्मित नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। इस मंदिर की उत्कृष्टता के कारण ही इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर का स्थान मिला है।

नायक शासकों द्वारा निर्मित, इस मंडप में पत्थर के एक खंड से बनी विशाल नंदी की प्रतिमा जो लगभग 12 फ़ीट ऊँची और 8 फ़ीट चौड़ी है। नंदी मंडप की छत को नायक शासकों की सुंदर चित्रकारियों से सजाया गया है।

इसके अलावा इस परिसर में श्री गणेश मंदिर, सुब्रह्मण्यम मंदिर, चण्डिकेश्वर मंदिर और अम्मन मंदिर भी निर्मित हैं जो द्रविड़ शैली का बेजोड़ नमूना हैं, बृहदेश्वर मंदिर के साथ ही ये चारों मंदिर भी अपनी स्थापत्य कला और शैली से यहाँ आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। 

बृहदेश्वर मंदिर के पीछे करुवर नामक एक मंदिर है जो यहाँ के राजपुरोहित को समर्पित है। 

यह मंदिर तो अपनी वास्तुकला के हिसाब से अपने आप में एक आश्चर्य है ही साथ मुझे दूसरा आश्चर्य तब हुआ जब मैंने यहाँ बुरका पहने हुए कुछ मुस्लिम स्त्रियों को इस मंदिर को देखते हुए देखा। आखिर एक ऐसे दूसरे धर्म की महिला, जिनके मजहब में हिन्दू मंदिरों में प्रवेश करना अवैध और इस्लाम धर्म से परे बताया गया है एक प्राचीन हिन्दू मंदिर के दीदार के लिए आई हुईं थीं। 

वैसे दक्षिण भारत की बात ही अलग है, यहाँ हिन्दू संस्कृति का प्रभाव ही इतना है कि कोई भी इंसान, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों ना हो, अपनी भारतीय संस्कृति से दूर नहीं हो सकता। और अभी कितने ही आश्चर्य बाकी हैं .......

तमिलनाडू की ऐतिहासिक धरा पर .....   

पहला गोपुरम 

दूसरा गोपुरम 



बृहदेश्वर मंदिर के गोपुरम 

बृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मंदिर 


200 फ़ीट ऊँचा श्री विमान 

नंदी मंडप 


मंदिर प्रांगण में प्राचीन तोप 






सुब्रह्मण्यम मंदिर 



सुब्रह्मण्यम मंदिर 



चण्डिकेश्वर मंदिर 


बृहदेश्वर मंदिर के द्वारपाल 

करुवर अथवा राजपुरोहित मंदिर 

बृहदेश्वर मंदिर के मुख्य द्वारपाल 

अम्मन मंदिर 

 अम्मन मंदिर 

गणेश मंदिर 



तंजावुर रेलवे स्टेशन 

तंजावुर नगर निगम 


तंजावुर क्लॉक टावर 

इडली नाश्ता 
















राजराज प्रथम की मूर्ति 



NEXT PART :- 

LAST PART:-

  • मथुरा से चेन्नई - ग्रैंड ट्रक एक्सप्रेस 
  • मैं, नई साल और राजधानी चेन्नई
  • चोल साम्राज्य और उसका अस्तित्व 
  • बृहदेश्वर अथवा राजराजेश्वर मंदिर - तंजावुर 
  • 🙏

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