गुजरात की एक अधूरी यात्रा - 2023
वड़ोदरा बस स्टैंड पर एक दिन
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गिरनार पर्वत की दस हजार सीढ़ियाँ उतरने के बाद मैं जूनागढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचा, यहाँ कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि मेरे पैरों ने काम करना बंद कर दिया है। अब मैं स्टेशन पर बनी एक ब्रेंच से दूसरी ब्रेंच तक जाने में असमर्थ था। इसलिए यहीं सीट पर लेटे लेटे ही मैं ट्रेन का इंतज़ार करने लगा।
मुझे अगली सुबह वड़ोदरा स्थित चम्पानेर और पावागढ़ की यात्रा करनी थी इसलिए अब मुझे रात को सोमनाथ एक्सप्रेस से अहमदाबाद तक जाना था। इसी बीच रेलवे का मैसेज आया जिसमें लिखा था आपकी सीट कन्फर्म नहीं हुई है, कैंसिल चार्ज काटकर आपका भुगतान वापस कर दिया जायेगा। जब हम घर से कहीं दूर किसी नगर में हों और हमें पूरी रात एक ट्रेन में सफर करना हो तब ऐसा मैसेज आ जाये तो बड़ी ही गुस्सा आती है पर यह ऐसी गुस्सा होती है जिसका किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
बहुत ही मुश्किल से टिकट खिड़की से जाकर वड़ोदरा की एक जनरल टिकट लेने गया। टिकट खिड़की पर बहुत लम्बी लाइन थी, तभी UTS एप याद आया, तुरंत एक पेपर वाली टिकट बुक की और टिकट की मशीन से टिकट प्रिंट करा ली। यहाँ एक लड़का और खड़ा था जिसे अहमदाबाद जाना था, मुझे टिकट बुक करते देख उसने भी मेरे हाथ में पैसे थमा दिए और विनती करते हुए बोला भैया जी मेरी भी एक टिकट निकाल दो। मैंने उसकी भी एक टिकट निकाल कर उसे दे दी।
अभी ट्रेन के आने में थोड़ा समय था इसलिए थोड़ी सी हिम्मत करके मैं रेलवे स्टेशन के बाहर पहुँचा और यहाँ मैं कुछ खाने की दुकान देखने लगा परन्तु यहाँ जितनी भी खाने पीने की दुकानें थीं सभी शांतिप्रिय लोगों की थीं और शाकाहारी के नाम पर मुझे यहाँ कुछ भी खाने को नहीं मिला। इसलिए स्टेशन आकर ही चाय बिस्किट खाकर शाम के भोजन को पूरा किया।
सही समय पर सोमनाथ एक्सप्रेस भी आ गई, यह प्रतिदिन अहमदाबाद से वेरावल के बीच अपनी सेवा देती है।
अब यह वेरावल से वापस अहमदाबाद जाएगी। ट्रेन के स्लीपर कोच में कोई सीट खाली नहीं थी इसलिए मैं ना चाहते हुए भी जनरल कोच की तरफ बढ़ चला। जनरल कोच में भी मुझे कोई सीट खाली नहीं दिखी। मजबूरन इधर उधर बैठते टहलते मैंने पूरी एक रात की यात्रा इस ट्रैन में की।
अगली सुबह मैं अहमदाबाद में था। सोमनाथ एक्सप्रेस का सफर पूरा हो चूका था इसलिए अब मुझे यहाँ से किसी अन्य ट्रेन से वड़ोदरा तक पहुंचना था। मुझे तुरंत ही यहाँ से कर्णावती एक्सप्रेस मिल गई जिससे मैं वड़ोदरा के लिए रवाना हो चला। इस ट्रेन में मैंने विकलांग कोच में बैठकर यात्रा की क्योंकि यथा स्थिति मैं अभी विकलांग के समान ही था। मेरे बाएँ पैर में अत्यधिक सूजन थी और दर्द भी था जिसकारण मैं एक कदम भी चलने में असमर्थ था।
अहमदाबाद से वड़ोदरा तक के इस सफर को करने में मुझे बहुत आनंद आया। मुझे यहाँ गुजराती लोगों की दिनचर्या देखने को मिली, जहाँ वह सुबह सुबह अपना टिफिन लेकर अपने काम पर जाते हुए दिखे, कुछ लोग स्टेशन पर चाय की चुस्कियां लेते हुए ताजा अख़बार पढ़ते हुए मिले। स्कूल जाने वाले बच्चे भी यहाँ स्कूल जाने के लिए ट्रेन का उपयोग करते हैं। वाकई सुबह की ताज़ी हवा बीच कर्णावती एक्स्प्रेस का यह सफर मुझे जीवन भर यद् रहेगा।
जल्द ही मैं वड़ोदरा स्टेशन पर था। यह गुजरात का एक मुख्य जंक्शन रेलवे स्टेशन है और साथ ही पश्चिम रेलवे का मुख्य मंडल भी है। रेलवे स्टेशन सभी सुख सुविधाओं से परिपूर्ण है, इसके बाहर ही बुलेट ट्रैन के स्टेशन का भी निर्माण कार्य चल रहा है। बहुत ही जल्द यहाँ बुलेट ट्रैन से यात्रा करना का भी मौका मिलेगा।
वड़ोदरा स्टेशन को पहले बड़ौदा के नाम से जाना जाता था। यह गायकवाड़ राजवंश का प्रमुख केंद्र था। उनकी अनेकों निशानियां आज भी वड़ोदरा नगर की शोभा को बढाती हैं। आज वड़ोदरा एक महानगर होने के साथ साथ गुजरात राज्य का एक प्रमुख उद्योग नगर भी है। यहाँ अनेकों बड़ी बड़ी कंपनियां हैं जिनमें देश के विभिन्न नगरों के लोग आकर अपना जीवन यापन करते हैं।
रेलवे स्टेशन पर बने अमानती सामान गृह में मैंने अपना बैग जमा करा दिया। अमानती सामान गृह का बाबू बुंदेलखंडी है और सागर का रहने वाला है। उससे मेरी काफी अच्छी दोस्ती हो गई और उसके साथ बातो ही बातों अपना मोबाइल भी चार्ज कर लिया। उसने मुझे बताया कि स्टेशन के बाहर ही मुख्य बस स्टैंड है जहाँ से मुझे पावागढ़ जाने वाली बस आसानी से मिल जाएगी।
मैं स्टेशन के बाहर धीरे धीरे पैदल बस स्टैंड पहुंचा। मेरे द्वारा अब तक देखे गए अनेकों बस स्टैंडों में से, यह सबसे अलग बस स्टैंड था। मैं सबसे पहले एक मॉल में प्रवेश किया जहाँ एक बड़ा बाजार मुझे देखने को मिला।यह बहुत ही आधुनिक था, अनेकों तरह की स्टॉलें यहाँ मुझे देखने को मिली। मॉल घूमते हुए मैं बस स्टैंड के इस पॉइंट पर पहुंचा जहां से पावागढ़ की बस खुलती है। मेरे चलने की स्थिति और पैर की चोट को देखते हुए पावागढ़ जाने वाली बस के कंडक्टर ने मुझे बताया कि तुम पावागढ़ नहीं घूम सकते क्योंकि वह एक पहाड़ है जिसपर चढ़ना तुम्हारे वश नहीं इससे अच्छा है जब तुम सही हो जाओ तब तुम वहां जाना। मुझे कंडक्टर की बात भली भांति समझ में आ गई और सही पूछो तो पैर के दर्द के कारण मैं अब और आगे यात्रा करने में अक्षम था।
इस मॉल में पीवीआर सिनेमा भी था जिसमें अनेकों मूवीज चल रही थीं। मैंने कभी पीवीआर में कोई मूवीज नहीं देखी थी, आज मैं अपने इस शौक को भी पूरा करना चाहता था। मैंने पीवीआर में शहज़ादा मूवीज देखी। लगभग तीन घंटे मैंने बड़े आराम से बिता लिए। अभी शाम होने में काफी वक़्त था, मूवीज भी ख़त्म हो चुकी थी किन्तु मैं इस मॉल से बिलकुल भी बाहर नहीं निकला। पूरा मॉल घूमते घूमते कब शाम हो गई, पता ही नहीं चला।
रेलवे का एक सन्देश फिर से मुझे मेरे मोबाइल पर प्राप्त हुआ जिसमें वही दुखद सुचना थी जो इस यात्रा के दौरान मुझे शुरुआत से ही मिल रही थी कि आपकी टिकट कन्फर्म नहीं हुई है कैंसिल चार्ज काटकर आपका बकाया भगतन वापस कर दिया जायेगा। अब फिर वही रात और रात का ट्रेन में सफर। ट्रेन थी बांद्रा जयपुर सुपरफास्ट एक्सप्रेस।
जनरल की टिकट लेकर मैं ट्रेन में सवार हुआ और पैंट्री कार में एक साइड मुझे अच्छा स्थान मिल गया जिसपर लेटकर मैं अगली सुबह कोटा पहुँच गया। कोटा से निजामुद्दीन जाने वाली जनशताब्दी में मेरी सीट पहले से ही कन्फर्म थी, इसलिए इस ट्रैन से मथुरा पहुँचने में मुझे कोई परेशानी नहीं हुई और मैं बैठे बैठे ही रात भर की नींद लेकर अपने सही समय से अपने घर पहुँच गया।
इस प्रकार गुजरात की यह अधूरी यात्रा भी मैंने पूर्ण कर ली किन्तु जिस उद्देश्य से मैंने गुजरात यात्रा प्लान की थी वह अभी शेष था और बहुत ही जल्द हम इस यात्रा को पूरा करेंगे।
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गुजरात बस स्टैंड पर एक दृश्य |
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पीवीआर सिनेमा - वड़ोदरा |
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शहज़ादा मूवीज देखते हुए |
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वड़ोदरा बस स्टैंड पर एक दृश्य |
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यहाँ जगदीश एक प्रसिद्ध ब्रांड है |
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वड़ोदरा रेलवे स्टेशन |
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गुजरात में शाम का भोजन |
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दोपहर का भोजन |
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