Thursday, January 2, 2025

SAFDARJUNG HOSPITAL : NEW DELHI 2023


सफदरजंग हॉस्पिटल और मेरी दिल्ली यात्रा 

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल और आल इंडिया हॉस्पिटल के नाम देश भर में विख्यात हैं, कहते हैं जिस बीमारी का इलाज कहीं और नहीं हो पाता, वह यहाँ संभव हो जाता है। मैं पहले भी एक बार सफदरजंग हॉस्पिटल की यात्रा कर चूका हूँ।  उनदिनों मेरी बहिन रश्मि इस हॉस्पिटल में भर्ती रही थी, तब मैं अपनी माँ के साथ इस अस्पताल की यात्रा पर गया था और तभी मैंने इसकी विशालता को देखा था। देश भर के अनेकों अमीर - गरीब समुदाय के लोग यहाँ अपने रोगों से छुटकारा पाने के लिए यहाँ आते हैं और अनेकों दिन यहाँ रहकर अपना इलाज कराते हैं। 


इस बार मेरे दोस्त कुमार भाटिया के चाचा जी का इलाज सफदरजंग अस्पताल में चल रहा है। आज मैं भी ऑफिस के कार्य से फ्री था इसलिए चाचाजी को देखने जाने का प्लान मन में आया और दिल्ली के लिए रवाना हो गया। आधी दोपहर हो चुकी थी इसलिए आज दिल्ली घूमने की मंशा मन में नहीं थी। सिर्फ अपने दोस्त से एक भेंट हो जाएगी  चाचाजी के हाल चाल का भी पता हो जायेगा यही सोचकर मैं दिल्ली जाने के लिए निकल पड़ा। 

स्टेशन के बाहर ही अपनी बाइक खड़ी करके मैं रेलवे स्टेशन पहुंचा और दिल्ली जाने  वाली ट्रेन की प्रतीक्षा करने लगा। जल्द ही मुझे नईदिल्ली जाने के लिए श्रीधाम एक्सप्रेस मिल गई और मैं दोपहर बारह बजे तक दिल्ली पहुँच गया। 

मेरा दोस्त कुमार भाटिया आगरा में रेलवे विभाग में नौकरी करता है। मेरी और उसकी मुलाकात हमेशा होती रहती है। कभी मैं उसके पास उससे मिलने आगरा चला जाता हूँ और कभी वह भी मुझसे मिलने मथुरा आ जाता है। सही मायनों में वो मेरा सच्चा मित्र है, उसने हमेशा मेरी और मेरे परिवार की सहायता की है। एक भाई की तरह उसने हमेशा मेरी हिम्मत बांधे रखी है।  आज उससे मिले कई दिन हो चुके हैं इसलिए मुझे उसकी बहुत याद आ रही थी क्यंकि वो लगभग पिछले दस पंद्रह दिनों से दिल्ली रहकर अपने चाचाजी का इलाज सफदरगंज अस्पताल में करा रहा है। 

सफदरगंज हॉस्पिटल पहुंचकर मैं जब अपने मित्र कुमार से मिला, तो मुझे देखकर  उसके चेहरे पर एक अलग ही ख़ुशी मुझे देखने को मिली। और ख़ुशी होती भी क्यों नहीं, आखिर मैं उसके बचपन का मित्र हूँ, और आज हम कई दिनों बाद एक दूसरे से मिले थे। कुमार से मिलने के बाद मैं उसके चाचाजी से भी मिला जो अब अपने स्वास्थ्य में पहले से अच्छा महसूस कर रहे थे। एक तरीके से जिस बीमारी का इलाज उन्हें आगरा में रहते हुए नहीं मिल पा रहा था वो यहाँ दिल्ली के सफदरगंज अस्पताल में मिल गया था। 

इस अस्पताल को देखकर मुझे अपनी पुरानी यात्रा याद आ गई जब मैं यहाँ अपनी माँ के साथ अपनी छोटी बहिन को देखने आया था। मेरी बहिन भी यहाँ से पूरी तरह से ठीक होकर गई थी। 

दिल्ली में कुमार के बुआ - फूफाजी भी रहते हैं। मेरे पहुँचने के कुछ समय बाद वो भी यहाँ आ गए गरमागरम खाना लेकर।  मैंने और कुमार ने उसके फूफाजी और जीजाजी के साथ यहाँ दोपहर का भोजन किया और हम फिर थोड़ी देर अस्पताल के बाहर घूमने निकल आये।  एक दूकान से कोल्ड्रिंक लेकर हमने एक दूसरे से अपने अपने सुख दुःख बाँटे और जल्द ही मेरे लौटने का समय निकट आ गया। कुमार से बातों ही बातों में वक़्त कब बीत गया इसका पता ही नहीं चला। 

कुमार मुझे छोड़ने मेट्रो स्टेशन तक आया और फिर मिलने का वादा करके हम एक दूसरे से अलग  हो गए।  मैं वापसी की राह पर था और कुमार वापस अस्पताल की ओर। 

कुमार से मिलने के बाद फिर मेरा मन दिल्ली में नहीं लगा और मैं शीघ्र ही नईदिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा। नईदिल्ली स्टेशन के बाहर मैंने प्राचीन समय का भाप इंजन खड़ा देखा। यह किसी समय में कालका शिमला नेरोगेज रेलखंड पर अपनी सेवा दिया करता था। बदलते वक़्त के साथ आज यह अपने सेवा से निवृत्त होकर नईदिल्ली रेलवे स्टेशन की शोभा को बढ़ा रहा है। 

इंटरसिटी एक्सप्रेस पकड़कर मैं रात तक अपने घर वापस आ गया। 










मैं और मेरा दोस्त कुमार भाटिया 

कुमार के चाचाजी 

कुमार के फूफाजी और चाचा जी 

सफदरजंग अस्पताल में कैंटीन 


सफदरजंग अस्पताल के बाहर का एक दृश्य 


नई दिल्ली रेलवे स्टेशन 




कालका - शिमला रेलखंड का प्राचीन इंजन 

मथुरा जंक्शन का एक दृश्य 

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