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यात्रा दिनाँक - 5 मार्च 2023
गिरनार पर्वत एक प्राचीन पर्वत है, प्राचीनकाल में यह रैवतक पर्वत कहलाता था और इसके आसपास का भू भाग रैवत प्रदेश कहलाता था जो वर्तमान में सौराष्ट्र प्रान्त है।
पौराणिक काल के हिसाब से सतयुग में यहाँ महाराज रैवत का राज्य था, उनकी पुत्री रेवती थीं जो द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण के बड़े भ्राता बलराम जी की पत्नी बनी। इसप्रकार भगवान् श्रीकृष्ण और बलराम ने इस प्रदेश को अपने निवास स्थान के रूप में चुना, यहीं समुद्र से थोड़ी से जगह मांगकर द्वारिका नगरी का निर्माण किया। मगध सम्राट जरासंध ने गिरनार पर्वत तक श्री कृष्ण और बलराम का पीछा किया और जब वह गिरनार पर्वत पर आकर, जरासंध की नजरों से ओझल हो गए तो उसने इस पर्वत पर आग लगा दी।
जरासंध यह सोचकर यहाँ से वापस लौट गया कि दोनों भाई इस पर्वत की आग में जलकर भस्म हो गए। किन्तु भगवान् श्री कृष्ण और बलराम यहाँ से बच निकलकर सीधे द्वारिका द्वीप पहुंचे और वहां देवशिल्पी विश्वकर्मा का आहवान कर एक नई नगरी का निर्माण कराया। यही नगरी द्वारिका नगरी के नाम से आज प्रसिद्ध है।
प्राचीन काल से ही गिरनार पर्वत का विशेष धार्मिक महत्त्व रहा है। अनेकों ऋषि मुनियों ने यहाँ साधना में लीं होकर घोर तप किया है और अनेकों सिद्धियों को प्राप्त किया है। यह पर्वत ना सिर्फ वैदिक धर्म के लिए अपितु जैन धर्म के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जैन धर्म के बाईसवें तीर्थकर श्री नेमिनाथ जी का मोक्ष स्थल भी है। भगवान नेमिनाथ को अरिष्टनेमि के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे।
गिरनार पर्वत की कथाएं ना केवल वर्तमान या प्राचीन हैं बल्कि यह पौराणिक काल से भी जुड़ी हुईं हैं। जैसा कि मैंने पहले ही सूचित किया है कि गिरनार को पौराणिक काल में रैवतक पर्वत और प्राचीन काल में उर्ज्जयंत पर्वत कहा जाता था। भगवन श्री कृष्ण, उनके भाई बलराम और उनके चचेरे भाई अरिष्टनेमि के अलावा बलराम जी की बहिन सुभद्रा की कथा से भी जुड़ा हुआ है। कहा जाता है गिरनार पर्वत से ही अर्जुन ने सुभद्रा का हरण किया था जो कालांतर में वीर अभिमन्यु की माँ थी।
मैं रोपवे के जरिये गिरनार पर्वत की यात्रा पर रवाना हो गया था। आज तक मैंने अनेकों रोपवे में बैठकर यात्राएँ की थीं , किन्तु आज जैसा डर मुझे कभी किसी रोपवे में नहीं लगा था जितना आज गिरनार की तरफ बढ़ते हुए इस रोपवे में लग रहा था। यह सचमुच बहुत ऊँचा था, और साथ ही इसमें ऊपर की खिड़की खुल गई जिसकारण इसमें हवा भी पास हो रही थी, जिसकी बहुत तेज आवाज मुझे ना चाहते हुए भी डरने पर विवश कर रही थी।
एक तो यह हवा की वजह से पहले से ही काफी इधर उधर हिल रहा था, उसके अलावा इसमें मेरे साथ बैठे अन्य सहयात्री भी सेल्फियां खींचने के चक्कर में असंतुलित हो रहे थे, जिससे सिर्फ यही आभास हो रहा था कि यह किसी कारण से नीचे गिरा तो हमारा नामोनिशान नहीं मिलेगा, परन्तु ईश्वर की शक्ति के आगे सभी डर दूर हो जाते हैं।
मेरे साथ के सहयात्री भी इसके जोर जोर से हिलने की वजह से चीखने चिल्लाने लगे थे, कुछ ने तो हनुमान चालीसा का पाठ तक शुरू कर दिया था और अन्ततः हम पर्वत पर पहुंचे और रोपवे से उतरकर हमने राहत की सांस ली। रोपवे का किराया एक तरफ से चारसौ रूपये था और दोनों तरफ से छः सौ रूपये। मैंने रोपवे का इस्तेमाल सिर्फ पर्वत तक आने के लिए ही किया था और इस यात्रा में यही मेरी सबसे बड़ी भूल साबित हुई।
पर्वत पर पहुंचकर सबसे पहले माता अम्बा जी का मंदिर पड़ता है। माना जाता है यह एक प्राचीन मंदिर है, वैसे गुजरात में अनेकों अम्बा जी के नाम से मंदिर हैं किन्तु मुख्य मंदिर गुजरात राजस्तान की सीमा पर अम्बा जी के नाम से ही प्रसिद्ध है। मैं कभी वहां नहीं गया हूँ किन्तु एकबार अवश्य जाऊंगा, कब जाऊंगा ये अभी पता नहीं है।
मंदिर के बाहर माता जी के अनेकों भक्त खड़े थे, सभी लगभग गुजराती ही थे, पर्वत के ऊपर ठंडी ठंडी हवा लग रही थी, बहुत ही रमणीक और मनोरम स्थान है। यहीं पास में ही माता जी का प्रसाद वितरण चल रहा था, मैंने भी प्रसादी पाई और सुबह के नाश्ते का काम हो गया।
अम्बा माता के दर्शन करने के पश्चात मैं गिरनार पर्वत पर आगे बढ़ चला। अब एक सीढ़ीदार नुमा रास्ता पर्वत की धार पर होकर बना है, यह देखने में बिलकुल चीन की महान दीवार जैसा प्रतीत होता है। गिरनार पर्वत के मुख्य तीन शिखर हैं और तीनों शिखरों पर अलग अलग मंदिर बने हुए हैं। पहले शिखर पर माता अम्बा जी का मंदिर है। उसके बाद दूसरे शिखर पर गुरु गोरखनाथ जी के पदचिन्ह हैं और तीसरे शिखर पर गुरु दत्तात्रेय जी का मंदिर है। गिरनार की परिक्रमा इन तीनों मंदिरों या तीनों शिखरों की यात्रा करके ही पूर्ण होती है।
मैं दो शिखरों की यात्रा करके वापस लौट लिया क्यों कि तीसरे शिखर के लिए पहाड़ उतरना और फिर पुनः चढ़ना अब मेरे वश की बात नहीं थी। इस चीन के जैसी दीवार पर कुछ समय बिताने के बाद मैंने पैदल पर्वत से नीचे उतरना शुरू कर दिया। नीचे की तरफ एक विशाल मंदिरों की श्रृंखला दिखाई दे रही थी। यह जैन धर्म के मंदिर हैं।
मैं पर्वत से नीचे उतर रहा था, रास्ते में राजुल माता की गुफा जाने का बोर्ड लगा दिखाई दिया। इसलिए अब राजुल माता के दर्शन करने के बाद ही आगे बढूंगा। गिरनार पर्वत में यह एक प्राचीन गुफा है, इसी में माँ शेरावाली की मूर्ति है जिसे राजुल माता के नाम से जाना जाता है। यहाँ झरने जैसी कोई चीज नहीं थी जैसा की राजुल माता के सुचना पट्ट पर लिखा हुआ था।
गिरनार पर्वत अत्यंत प्राचीन पर्वत है, इसकी चट्टानों में बड़े बड़े गड्ढ़े दिखाई देते हैं जो कि हजारों वर्षों से बारिश के पानी से रिश रिश कर बने हैं, इन्हें देखने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे गिरनार पर्वत अब बूढ़ा होता जा रहा है, धीरे धीरे इसकी चट्टानें रिशती जा रही हैं, कुलमिलाकर एक खोखला पर्वत होता जैसा दिखाई देने लगा है।
जल्द ही मैं पर्वत के जैन क्षेत्र में पहुंचा। यहाँ जैन धर्म के बाइसवें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ का विशाल मंदिर हैं जहाँ उन्हें निर्वाण प्राप्त हुआ था। गिरनार पर्वत जो उज्जयंत पर्वत के नाम से भी उस समय विख्यात था, पर भगवान नेमिनाथ जो को ५६ दिन की कठोर तपस्या के बाद केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था इसी कारण वह कैवल्य कहलाये। मंदिर में नेमिनाथ जी के चरण चिन्ह पूजनीय हैं। यह विशाल मंदिर बारहवीं शताब्दी में निर्मित हुआ था।
मुझे जैन मंदिरों में विशेष रूचि नहीं हैं, मंदिर में प्रवेश करने से पूर्व ही यहाँ बैठे एक जैन प्रहरी ने मुझे कैमरा, मोबाइल बाहर छोड़ने के लिए बोला अतः मैंने मंदिर के बाहर से ही दर्शन कर लिए और नेमिनाथ जी को प्रणाम करके आगे बढ़ चला।
गिरनार से उतरते हुए अनेकों प्राचीन मंदिर और भवन देखने को मिलते हैं। यह एक हजार साल से भी अधिक पुराने हैं और अलग अलग समयों पर इनका निर्माण हुआ है। इन सभी को देखते हुए मैं लगातार नीचे उतरता ही जा रहा था किन्तु सीढ़ियां थीं कि समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं। इस एक हजार मीटर ऊँचे पर्वत पर अलगभग दस हजार सीढ़ीयां थीं जिनसे उतरना ही इतना मुश्किल होरहा था कि अगर चढ़ने की सोचता रूह काँप जाती। अच्छा था उड़नखटोले में ही आया वर्ना सुबह से इस पर चढ़ना आरम्भ करता किन्तु शाम तक भी इसकी छोटी पर नहीं पहुँच पाता।
परन्तु अब आभास सा होने लगा था कि मुझे उड़नखटोले की दोतरफा टिकट लेनी चाहिए थी। कब का जूनागढ़ पहुँच जाता और किले को भी देख लेता किन्तु अब किले को देखने का समय नहीं बचेगा। अब मेरे पास इन सीढ़ियों से नीचे उतरने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
धीरे धीरे लगभग दो ढाई घंटे बाद मैं इस पर्वत से नीचे उतर आया, मेरे पैर में लगी पुराणी चोट की कसक अब पुनः जागरूक हो गई और इसने मेंरी गतिशीलता को अवरुद्ध कर दिया। अंतिम सीढ़ियों के पास अनेकों तेली मिलते हैं गिरनार से पैदल आने यात्रियों के पैरों की थकान दूर करने के लिए पैरों की तेल मालिश करते हैं। दर्द को देखते हुए मैंने भी सौ रूपये में तेल मालिश कराली। मालिश के बाद पैरों को कुछ देर राहत महसूस हुई किन्तु एक दिन में दस हजार सीढ़ियां उतरने की थकान इस मालिश से दूर हो सकती तो कहने ही क्या थे।
पैदल पैदल मैं सुदर्शन झील के नजदीक पहुंचा और यहाँ बने प्राचीन काल के बांधों को खोजने लगा, कुछ देर बाद आभास हुआ कि मैं जहाँ खड़ा था वही बांध ही तो था। जो देखने में अब एक विशाल कच्चा रास्ता जैसा दिखाई दे रहा था और इस पर अब बड़े बड़े पेड़ भी लगे हुए थे।
पैदल चलने की शक्ति लगभग समाप्त हो चुकी थी, दिन भी ढलने की कगार पर था, तुरंत एक ऑटो पकड़ा और अब मैं स्टेशन की तरफ रवाना हो चला।
रास्ते में सम्राट अशोक के शिलालेख वाला भवन, बुद्ध की गुफाएं और जूनागढ़ का किला देखने से मैं वंचित रह गया। किन्तु कोई बात नहीं जूनागढ़ अगली बार भी तो आना है किन्तु गिरनार .... अब कभी नहीं।
गिरनार पर्वत की एक प्रतिकृति |
श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा गिरनार रोपवे का उदघाटन |
गिरनार उड़नखटोला |
उड़नखटोले में से एक दृश्य |
उड़नखटोले में से एक और दृश्य |
अम्बा जी का मंदिर |
गिरनार पर्वत स्थित अम्बा जी का मंदिर |
चीन की दीवार जैसी दिखने वाली गिरनार पर्वत की सीढ़ियां |
कुछ लोगों को यहाँ ऐसे भी बिठा के लाया जाता है। |
गिरनार पर्वत की दूसरी और तीसरी चोटियाँ |
सबसे ऊँची चोटी - गुरु शिखर |
गिरनार पर्वत और उसकी चोटियां |
अम्बा मंदिर पर भंडारा वितरण |
गौमुखी गंगा मंदिर |
नेमिनाथ जी का मंदिर |
एक और मंदिर |
राजुल माता की गुफा |
ब्राह्मणी, रुद्राणी और नारायणी की एक प्रतिमा, तथा कामधेनु गाय के थनों से गिरनार पर गिरती दूध की धार |
🙏
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