अवंतिका से मालवा की एक मानसूनी यात्रा - भाग 1
उज्जैन में रामघाट पर क्षिप्रा स्नान
यात्रा दिनाँक : - 29 जुलाई 2023
मानसून का मौसम यात्रा करने के लिए सबसे उपयुक्त और बेहद सुहावना मौसम होता है। मानसून के दौरान किसी भी स्थान की सुंदरता अपने पूर्ण चरम पर होती है और यही सुंदरता एक सैलानी के मन को यात्रा के दौरान उत्साह और आनंद से भर देती है। हम इसी मानसून में गत माह कोंकण और मालाबार की यात्रा पर गए थे जहाँ हमने केरला की राजधानी तिरुवनंतपुरम तक की यात्रा पूर्ण की थी, इसी यात्रा में वापसी के दौरान हम केरल के मालाबार तट, पुडुचेरी के माहे नगर, कर्नाटक के मुरुदेश्वर, गोवा की राजधानी पणजी और ओल्ड गोवा एवं कोंकण रेलवे की यात्रा पूर्ण करके घर वापस लौटे थे। किन्तु मानसून अभी भी बरक़रार था और यह हमें फिर से उत्साहित कर रहा था एक और नई यात्रा करने के लिए।
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मैं पिछले कई वर्षों से मानसून के दौरान प्राचीन राज्य मालवा और इसकी मध्यकालीन राजधानी मांडू की यात्रा करना चाहता था। ऑफिस में बैठे बैठे मैंने इस यात्रा का प्लान तैयार किया और अपने सहकर्मी सोहन भाई को इस यात्रा में अपना सहयात्री चुना। सोहन भाई इस यात्रा के लिए तुरंत तैयार हो गए और हमारा यात्रा प्लान अब कन्फर्म हो गया। मैंने इस यात्रा को प्राचीन अवन्ति, अर्थात उज्जैन से शुरू करके इंदौर, महेश्वर और मांडू तक पूरा करने का निर्णंय लिया जिसमें अधिकांश मालवा का भाग शामिल था। वर्तमान में यह मध्य प्रदेश कहलाता है, और प्राकृतिक सुंदरता से परिपूर्ण एवं अनुपम दृश्यों से भरपूर है।
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यूँ तो मध्य प्रदेश बहुत ही शांत और सुन्दर प्रदेश है किन्तु यहाँ आवागमन के लिए साधन पर्याप्त सुलभ नहीं हैं अतः यहाँ घूमने के लिए अपना वाहन ही सर्वोत्तम है। इसलिए हमें एक बाइक की आवश्यकता थी जिससे हम अपनी इस मानसूनी मालवा यात्रा को सुगम और सरल बना सकते थे। मैंने उज्जैन में किराये पर मिलने वाली बाइक के बारे में पता किया, किन्तु कोई भी संतुष्टिजनक उत्तर नहीं मिला ,अन्ततः मैंने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रहने वाले अपने परम मित्र रूपक जैन जी से अपनी इस यात्रा को साझा किया और उन्हें अपनी यात्रा परेशानी का कारण बताया।
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रूपक जैन जी एक उच्च स्तर के घुमक्क्ड़ हैं, उन्होंने देश के विभिन्न स्थलों और अनेकों दुर्गम स्थानों की यात्रायें की हैं। मेरे ऐतिहासिक यात्रा पटल को वह बहुत अच्छे तरीके से समझते और जानते हैं और उन्हें पता है कि यात्रा दौरान मेरे लिए क्या सही और उचित रहेगा। रूपक जैन जी ने मेरी परेशानी का तुरंत निदान किया और उज्जैन में हमारे लिए एक बाइक की व्यवस्था करा दी। जैन साब ने हमारी इस यात्रा की सबसे बड़ी परेशानी को सिद्ध कर दिया था अतः अब हमारी इस यात्रा में कोई बाधा शेष न बची थी। मालवा घूमने के लिए मेरे साथ सहयात्री के रूप में सोहन भाई थे, सुलभ आवागमन के लिए जैन साब ने बाइक उपलब्ध होने का आश्वासन दे ही दिया था और मथुरा से उज्जैन के लिए ट्रेन में हमारी सीट भी कन्फर्म थी अतः अब हमारी यह यात्रा पूर्ण रूप से पक्की हो चुकी थी।
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जल्द ही यात्रा की तारीख आ गई और मैं शाम को माँ से आशीर्वाद लेकर अपनी इस मानसूनी मालवा यात्रा के लिए रवाना हो चला। हमारे घर किराये पर रह रहे साहिल ने मुझे अपनी बाइक से रेलवे स्टेशन तक छोड़ दिया और थोड़ी देर बाद सोहन भाई भी,अपने दो मित्रों मानवेन्द्र और नंदू कुंतल के साथ रेलवे स्टेशन पहुँच गए। सचमुच सोहन भाई बहुत ही भाग्यशाली हैं जिनके पास ऐसे मित्र हैं जो आधी रात को भी अपने मित्र को यात्रा के दौरान रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आये और ट्रेन के रवाना होने तक साथ रहे। रात को 11 बजे के आसपास नईदिल्ली - इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रेस से मैं और सोहन भाई मालवा के लिए रवाना हो चले।
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अगली सुबह हम मध्य प्रदेश के नागदा रेलवे स्टेशन पर थे। यहाँ से ट्रेन का इंजन आगे से हटकर पीछे लगता है और ट्रेन पुनः विपरीत दिशा में जाने के लिए तैयार होती है इसलिए यह यहाँ काफी देर ठहरती है। इस बीच ट्रेन के मुसाफिरों को रेलवे स्टेशन पर चाय पीने और नाश्ता करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। मैंने और सोहन भाई ने इस समय का भरपूर उपयोग किया और चाय नाश्ता करके आगे की यात्रा के लिए अपने उत्साह को बनाये रखा। शीघ्र ही ट्रेन नागदा से रवाना हो चली। अब यह उज्जैन की तरफ बढ़ रही थी, मध्य प्रदेश की इस ठंडी सुबह में तरोताजा हवा की महक हमारे मन को प्रफुल्लित कर रही थी। जल्द ही हम उज्जैन रेलवे स्टेशन पहुंचे।
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रेलवे स्टेशन के बाहर ही हमें महाकाल मंदिर जाने के लिए एक ई रिक्शा मिल गया जिसने उज्जैन की गलियों में से होकर जल्द ही हमें महाकाल मंदिर के समीप छोड़ दिया। हालांकि आज इस्लामिक पर्व बारावफात था जिसकी तैयारी अनेकों स्थानों पर चल रही थी और हमें कई स्थानों पर रास्ते बंद भी मिले किन्तु ई रिक्शा चालक होशियार था उसने गलियों से होकर हमें महाकाल मंदिर तक पहुंचा दिया था। सावन का महीना चल रहा है, भगवान शिव के अनेकों भक्त अपने आराध्य महाकाल जी के दर्शन हेतु उज्जैन आये हुए थे और उज्जैन की प्रत्येक गली भगवा ध्वजों से सजी हुई दिखाई दे रही थीं। हर तरफ बम बम भोले के जयकारे गूंजते सुनाई पड़ रहे थे।
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हमें जैन साब के बताये गए पते पर पहुँचना था जो रामघाट के नजदीक था, इसलिए हम अब पैदल पैदल ही रामघाट की ओर बढ़ चले। मार्ग में एक प्राचीन मंदिर दिखाई दिया जो कालांतर में भी पूजनीय है। यह चौबीस खंभा माता का मंदिर है, अनेकों झंडे माता के इस मंदिर पर लहरा रहे थे और मंदिर का भवन प्राचीन अवंतिका की शोभा को प्रदर्शित कर रहा था। इस मंदिर में प्राचीन चौबीस खम्भे लगे हैं इसलिए इसे चौबीस खम्भा मंदिर बोलते हैं। माता के दर्शनों के पश्चात हम शीघ्र ही उस पते पर पहुँच गए जो हमें रूपक जैन जी ने बताया था किन्तु यहाँ जाने से पूर्व हम, इससे थोड़ा सा आगे रामघाट पर पहुंचे जो क्षिप्रा नदी का एक प्रमुख घाट है।
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उज्जैन में यह मेरी दूसरी यात्रा थी, इससे पूर्व आज से 10 वर्ष पहले मैं यहाँ अपनी माँ के साथ आया था और तब मैंने माँ के साथ उज्जैन के समस्त दर्शनीय स्थलों को देखा था जिनमें से एक यह रामघाट भी था। तब उस समय क्षिप्रा नदी में इतना जल और साफ़ सफाई यहाँ देखने को नहीं मिली थी जो आज यहाँ दिखाई दे रही थी। आज क्षिप्रा नदी, माँ गंगा के समान और रामघाट, हरिद्वार की हरि की पैड़ी के समान प्रतीत हो रहा था। क्योंकि यह मानसून का मौसम है, सावन का महीना चल रहा है अतः यहाँ नदी के जल का प्रवाह भी खूब था और घाट पर भक्तों की भीड़ भी खूब थी। यहाँ अनेकों प्राचीन मंदिर और धर्मशालाएँ थीं, नदी के दूसरी तरफ गुरुद्वारा भी दिखलाई पड़ रहा था, साथ ही यहाँ क्षिप्रा आरती स्थल के साथ साथ नदी के दोनों तरफ पक्के घाट बने हुए थे। हमने यहीं एक घाट पर उचित स्थान देखकर क्षिप्रा नदी में स्नान किया और स्नान्न पश्चात दूसरे वस्त्र पहनकर, घाट पर बनी चाय की दुकान पर चाय नाश्ता किया।
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स्नान करने के पश्चात हम जैन साब के बताये गए पते पर पहुंचे। रामघाट रोड पर ही हमें यह पता मिल गया था, दरअसल यह पता निवासी, रूपक जैन जी के रिश्तेदार थे और उन्होंने हमारे आने की सुचना इन्हें पहले से ही दे दी थी अतः जब हम यहाँ पहुंचे तो वह हमसे मिलकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने हमारा आतिथ्य सत्कार बहुत अच्छे और प्रभावशाली ढंग से किया। हमें भी उनके व्यवहार और आतिथ्य सत्कार को देखकर बहुत प्रसन्नता हुई और अब हमें एक पल के लिए भी यह आभास नहीं हो रहा था कि हम अपने घर से दूर किसी पराये नगर में थे। हमें यहाँ अपने घर में होने जैसा ही अनुभव हो रहा था।
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हमने उन्हें अपने आने का कारण बताया और उनसे अपनी आगामी यात्रा के लिए बाइक की मांग की। प्रथमतया उन्होंने हमें बाइक से इतनी लम्बी दूरी की यात्रा ना करने के हिदायत दी किन्तु हमारा यात्रा कार्यक्रम बिना बाइक के अधूरा था इसलिए हमने उनकी हिदायत को नहीं माना और उन्हें आश्वासन दिया कि हम अपनी यात्रा अपने अनुभव पर बहुत ही सरल और सुगम तरीके से पूर्ण करते हैं। लम्बी दूरी को बाइक से तय करना हमारे लिए कोई नई बात नहीं है और हम शीघ्र ही बाइक लेकर वापस लौट आएंगे।
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उन्होंने हमें बाइक तो दे दी किन्तु मैं उनकी अनबन को भलीभाँति समझता रहा था इसलिए मैंने रूपक जैन जी से इस बारे में फोन पर बात की। जैन साब की तरफ से मुझे संतोषजनक उत्तर मिला, उन्होंने कहा कि आप और हम एक घुमक्कड़ हैं किन्तु वह लोग हमारी तरह नहीं हैं अतः निःसंकोच आप अपनी यात्रा पूर्ण करो। रूपक जैन जी की बात सुनकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई और हम अपनी यात्रा पर बढ़ चले। हालांकि सोहन भाई अभी पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थे, वह इस बाइक से चल अवश्य रहे थे किन्तु अब भी वह यही चाह रहे थे कि हमें कोई बाइक किराये पर ले लेनी चाहिए और इसलिए हम बाइक रेंट वाली दुकान की लोकेशन की तरफ गए जिससे हम बिना संकोच किराये की बाइक से हम कहीं भी घूम सकते थे। जब हम रेंटल बाइक की लोकेशन पर पहुंचे तो यहाँ हमें ऐसी कोई दुकान नहीं दिखी जहाँ हमें बाइक किराये पर मिल जाती। अब अंततः हमने इसी बाइक से अपनी मंजिलों पर पहुँचने का निर्णय लिया।
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महाकाल मंदिर में विशेष भीड़ थी अतः महाकाल बाबा को बाहर से ही प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लेकर हम इंदौर की तरफ रवाना हो चले। अब हम अवंतिका से मालवा की तरफ बढ़ रहे थे, उज्जैन नगर पीछे छूट गया था और लगभग एक दो घंटे के अंतराल के पश्चात हम इंदौर नगर के नजदीक पहुंचे। यहाँ हमारी बाइक में पहला पंचर हुआ और इसे ठीक कराने के पश्चात हम इंदौर के एक रेस्टोरेंट पर रुके जिसका नाम था रशियन ढ़ाबा। यह नाम से ढ़ाबा अवश्य था किन्तु यहाँ का वातावरण किसी शाही रेस्टोरेंट से कम नहीं था। हमने यहाँ अपना मोबाइल चार्जिंग में लगाया और आज के भोजन का आनंद प्राप्त किया।
यात्रा क्रमशः .....
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मथुरा रेलवे स्टेशन पर मैं, नंदू कुंतल, बीच में सोहन भाई और मानवेंद्र सिंह |
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नागदा पर आगमन |
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नागदा पर सुबह का चाय नाश्ता |
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मैं और इंटरसिटी एक्सप्रेस |
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श्री चौबीस खम्भा माता का प्राचीन मंदिर |
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रामघाट पर जाट देवता सोहन सिंह |
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रामघाट पर भक्तों की भीड़ |
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एक प्राचीन मंदिर |
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क्षिप्रा आरती स्थल और मैं |
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जाट मुसाफिर सोहन सिंह और रूपक जी द्वारा उपलब्ध बाइक |
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रशिया ढ़ाबा पर मैं और सोहन भाई |
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इंदौर स्थित रशिया ढ़ाबा और मैं |
अगले भाग में :- पातालपानी झरना और रेलवे स्टेशन
धन्यवाद
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