Sunday, December 11, 2022

RAISEN FORT


रायसेन का किला 


यात्रा - 11 दिसंबर 2022,         सहयात्री - कुमार भाटिया और कल्पना उपाध्याय 


    प्राचीन काल से ही भारत, एक हिन्दू राष्ट्र रहा है और यहाँ के वीर हिन्दू शासकों की वीरता और उनके बलिदान की गाथाएँ भारतीय इतिहास में अमर हैं। वक़्त के साथ देश में राजाओं और रजवाड़ों का युग तो समाप्त हो गया परन्तु उनके द्वारा बनाये गए गढ़, किले आज भी उनके वजूद की यादों को समेटे हुए हैं। भारत वर्ष में अधिकांश किले ऊँची पहाड़ियों पर निर्मित होते थे, जिससे शत्रु सेना आसानी से किले तक ना पहुँच सके और दूसरी ओर किले के समतल स्थान की अपेक्षा ऊंचाई पर होने का एक कारण यह भी था कि किलेदारों को बहुत दूर से ही शत्रु सेना के आने का पता चल जाता था जिससे उन्हें युद्ध की तैयारी के लिए उचित समय मिल जाता था। ऐसा ही एक किला मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 45 किमी दूर रायसेन के नाम से एक पहाड़ी पर स्थित है जिसका भारतीय इतिहास में विशेष महत्त्व है। 

BHOPAL 2022

सेठ जी परिवार के साथ, भोपाल की दो जश्न 'ए' शाम 

यात्रा तिथि - 11 DEC 2022 and 12 DEC 2022 




मैं और मेरे मित्र रूपक जैन जी 

अभी गत दिनों दीपावली के त्यौहार की खुशियां मनाकर मन भरा ही था कि आज फिर से एक खुश खबरी सुनने को मिल गई और यह खुश खबरी मुझे मेरी यात्रापटल के माध्यम से मेरे प्रिय घुमक्कड़ मित्र रूपक जैन जी की तरफ से प्राप्त हुई। रूपक जैन जी एक सफल व्यापारी होने के साथ साथ देश के बहुत बड़े घुमक्कड़ों में से एक हैं जिन्होंने समस्त भारतवर्ष में शायद ही कोई जगह छोड़ी हो जो अपनी आँखों से ना देखी हो। ऊँचे ऊँचे बर्फीले पहाड़ों से लेकर समुद्र तक और इसके अलावा देश के छोटे बड़े सभी शहरों की खाने पीने की मशहूर दुकानों तक उन्होंने घुमक्कड़ी में ऊँचा मुकाम हाँसिल किया है। 

करीब तीन साल पहले उन्होंने मुझे यात्रापटल के माध्यम से फेसबुक की आभासी दुनिया से निकालकर, अपनी वास्तविक दुनिया में अपना मित्र बनाया था और मुझे भी उनकी मित्रता पाकर काफी खुशी महसूस हुई। हमारी पहली मुलाकात मथुरा में हुई, जहाँ वह अक्सर अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण के दर्शन करने आते रहते हैं। 

इसके बाद मैं भी अपने बचपन के मित्र कुमार के साथ उनके यहाँ भोपाल गया था, जहाँ उन्होंने हमारी काफी अच्छे से आवभगत की और अपने प्रेम और स्नेह से हम दोनों को सदा के लिए अपने प्रेम का ऋणी बना लिया। उन्होंने अपनी गाड़ी से ही हमें भीमबेटका की गुफाएँ और भोजपुर शिव मंदिर का दर्शन कराया जहाँ उनके पुत्र शुभ जैन भी हमारे साथ हमारे सहयात्री थे और अगले दिन उन्होंने हमें साँची स्तूप के साथ साथ उदयगिरि की प्राचीन गुफाओं के दर्शन भी कराये। 

इसके बाद हम साथ में चंदेरी की यात्रा पर भी गए और फिर जैन साब मथुरा पधारे और उसके बाद हम हाथरस की यात्रा पर भी गए, जहाँ जैन साब ने हाथरस की मशहूर चाट और हन्नो लाला की रबड़ी का भी भरपूर स्वाद लिया। इसके बाद उन्हें मैं अपना गाँव भी दिखाकर लाया जो हाथरस से थोड़ी दूर ही था। शाम को हम मथुरा के लिए वापस हो लिए, रास्ते में मुरसान में हमने एक विवाह समारोह में प्रतिभोज का आनंद लिया। 

रात को हम वापस मथुरा आ गए। रात को जैन साब मेरे पास ही रुके, इस तरह इन मुलाकातों के दौरान जैन साब से अब दिली रिश्ता बन गया था, मैंने मन ही मन बिहारी जी को धन्यवाद किया कि उन्होंने अपनी कृपा से जैन साब के रूप में इतना अच्छा मित्र दिया, जिनके साथ रहने पर मुझे सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। 

रूपक जैन जी खुद भी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर के निवासी हैं और अगले दो महीने बाद उन्होंने मुझे अपने बड़े पुत्र शुभ जैन के विवाह समारोह में आमंत्रित करने के लिए विशेष आग्रह किया, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार किया। इस वैवाहिक कार्यक्रम में मेरे अलावा मेरा बचपन का दोस्त कुमार भाटिया और मेरी पत्नी कल्पना भी शामिल थे। 

Saturday, April 23, 2022

NARESHWAR TEMPLES

 UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

गुर्जर प्रतिहार कालीन - नरेश्वर मंदिर समूह 


     छठवीं शताब्दी के अंत में,सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के साथ ही भारतवर्ष में बौद्ध धर्म का पूर्ण पतन प्रारम्भ हो गया। भारतभूमि पर पुनः वैदिक धर्म अपनी अवस्था में लौटने लगा था, नए नए मंदिरों के निर्माण और धार्मिक उत्सवों की वजह से लोग वैदिक धर्म के प्रति जागरूक होने लगे थे। सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ होते ही अखंड भारत अब छोटे छोटे प्रांतों में विभाजित हो गया और इन सभी प्रांतों के शासक आपस में अपने अपने राज्यों की सीमाओं का  विस्तार करने की होड़ में हमेशा युद्धरत रहते थे।

भारतभूमि में इसप्रकार आपसी द्वेष और कलह के चलते अनेकों विदेशी आक्रमणकारियों की नजरें अब हिंदुस्तान को जीतने का ख्वाब देखने लगी थीं और इसी आशा में वह हिंदुस्तान की सीमा तक भी आ पहुंचे थे किन्तु शायद उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि बेशक भारत अब छोटे छोटे राज्यों में विभाजित हो गया हो, बेशक इन राज्यों के नायक आपसी युद्धों में व्यस्त रहते हों परन्तु इन नायकों की देशप्रेम की भावना इतनी सुदृढ़ थी कि अपने देश की सीमा में विदेशी आक्रांताओं की उपस्थिति सुनकर ही उनका खून खौल उठता था और वह विदेशी आक्रमणकारियों को देश की सीमा से कोसों दूर खदेड़ देते थे। 

इन शासकों का नाम सुनते ही विदेशी आक्रांता भारतभूमि पर अपनी विजय का स्वप्न देखना छोड़ देते थे। भारत भूमि के यह महान वीर शासक राजपूत कहलाते थे और भारत का यह काल राजपूत काल के नाम से जाना जाता था। राजपूत काल के दौरान ही सनातन धर्म का चहुंओर विकास होने लगा क्योंकि राजपूत शासक वैदिक धर्म को ही राष्ट्र धर्म का दर्जा देते थे और वैदिक संस्कृति का पालन करते थे। राजपूत शासक अनेक राजवंशों में बंटे थे जिनमें गुर्जर प्रतिहार शासकों का योगदान सर्वोपरि है। 

Tuesday, March 15, 2022

KIRTI MANDIR - BARSANA

UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

कीर्ति मंदिर  



श्री राधारानी की माता और महाराज वृषभान जी की पत्नी महारानी कीर्ति को समर्पित कीर्ति मंदिर का निर्माण जगद्गुरु कृपालु महाराज के सानिध्य में जगद्गुरु कृपालु परिषद द्वारा किया गया। सन 2006 में जगद्गुरु कृपालु महाराज ने स्वयं अपने हाथों से इस मंदिर की नीवं रखी थी।

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 यह मंदिर ब्रज क्षेत्र में मथुरा जिले के बरसाना में स्थित है और रंगीली महल के नजदीक प्रांगण में निर्मित है। इस मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है जो अनायास ही भक्तों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। कीर्ति मंदिर का सम्पूर्ण प्रांगण सफ़ेद रंग की संगमरमर से निर्मित है और भक्तगण यहाँ घंटों बैठकर श्री राधारानी का चिंतन करते हैं। इस मंदिर की भव्यता दूर से देखते ही बनती है। 

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 ना केवल ब्रज क्षेत्र में बल्कि समस्त भारतवर्ष में महारानी कीर्ति का यह एकमात्र मंदिर है जिसमें महारानी कीर्ति की गोद में बैठी श्री राधारानी के सुन्दर और वात्सल्य छवि के दर्शन होते हैं। 

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Saturday, March 5, 2022

VYOMASUR CAVE


 व्योमासुर की गुफा 

   व्योमासुर की गुफा एक पौराणिक स्थल है जो द्वापरयुग में भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली से सम्बंधित है। व्योमासुर की गुफा, ब्रज क्षेत्र के अंतर्गत राजस्थान के भरतपुर जिले में कामा नामक स्थान से एक किलोमीटर दूर कलावटी ग्राम के नजदीक अरावली पर्वत श्रृंखला में स्थित है।  दिल्ली से लगभग  160 किमी दूर यह एक प्राकृतिक मनोरम स्थान है। यहाँ चारोंतरफ अरावली पर्वत श्रृंखला बिखरी हुई दिखाई देती है। कामा, ब्रज के बारह वनों में से एक वन है जिसे काम्यवन भी कहा जाता है। व्योमासुर की गुफा देखने के लिए लगभग 65 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। 

Tuesday, March 1, 2022

SHRI KAILADEVI TEMPLE


 श्री राजराजेश्वरी कैलादेवी मंदिर - करौली 


यात्रा दिनाँक :- 05 फरवरी 2022 

     भारतवर्ष में अनेकों हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर हैं जिनमें भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग, भगवान विष्णु के चार धाम और आदि शक्ति माँ भवानी के 51 शक्तिपीठ विशेष हैं। इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है माँ कैलादेवी का भवन, जो राजस्थान राज्य के करौली जिले से लगभग 25 किमी दूर अरावली की घाटियों के बीच स्थित है। माँ कैलादेवी के मन्दिर का प्रांगण बहुत ही भव्य और रमणीय है। जो यहाँ एकबार आ जाता है उसका फिर लौटने का मन नहीं करता किन्तु सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के चलते भक्तों का यहाँ आने और जाने का सिलसिला निरंतर चलता ही रहता है।