देवछठ - श्री दाऊजी महाराज का प्रसिद्ध ऐतिहासिक मेला,  हाथरस यात्रा 
     आज मेरा मूड ज्यादा खराब था इसलिए ऑफिस नहीं गया, बस यूही बाइक उठाई और घर से निकल गया। ये नहीं पता था कि जाना कहाँ है। चलते चलते मन में विचार आया कि बिजली का बिल ही आज जमा कर आऊं, सीधे एटीएम पहुँचा और फिर बिजली विभाग के दफ्तर। यहाँ बहुत लम्बी लाइन लगी हुई थी, यह देखकर मोबाइल पर मौका आजमाया। मौका बिलकुल फिट बैठा,  लो... जी हो गया पहलीबार ऑनलाइन बिल जमा। अब किसी लाइन में लगने की कोई जरुरत ही नहीं थी।
       बिल जमा करने के बाद मन में फिर ख़्याल आया कि अब कहाँ जाया जाये, फिर याद आया कि एक बार माँ ने कहा था कि खेत जुतवाने गांव जाना है। बस फिर क्या था निकल पड़ा उन्ही पुरानी राहों पर अपने गॉंव धौरपुर की ओर। दोपहर 3 बजे अपने गाँव पहुँच गया, ट्रैक्टर वाले भैया को खेत जोतने के लिए बोल दिया। फिर गॉंव से वापस निकल, अब मैं हाथरस में था यहाँ नीटू रहता है मेरा चचेरा बड़ा भाई है साथ में बचपन का दोस्त। घर के बाहर खड़े होकर फोन लगाया तो पता चला कि घर पर ही है। बाइक नीचे खड़ी करके उससे मिलने गया।
      काफी देर बातचीत होने के बाद जब चलने को हुआ तो भाभी जी ने रोक लिया और उनके कहने पर आज रात मुझे वहीं रुकना पड़ा। शाम हो चली थी मैं और नीटू और उसकी प्यारी सी बेटी प्रिंसी तीनो हाथरस घूमने निकल पड़े, उसने मुझे बताया कि यहाँ दाऊजी का देवछट का मेला चल रहा है। हम मेला देखने गए यहाँ दाऊजी का मंदिर है। यह एक ऐतिहासिक मंदिर है जो सदियों से हाथरस के खंडहर हो चुके किले में सबसे ऊँचे टीले पर बना है। जब यहाँ पहुंचे तो आरती शुरू हो चुकी थी, यहाँ से बाहर हमने झूलों का आनंद लिया। उसके वापस  घर आ गए, भाभीजी ने मटर पनीर की सब्जी बनाई थी।  
  | 
| हाथरस की एक इमारत  | 
  | 
| अपना खेत  | 
  | 
| अपने गाँव की खुशबू का लग ही मजा है  | 
  | 
| दाऊजी मंदिर , हाथरस  | 
  | 
| मैं और नीटू , प्रिंसी के साथ  | 
  | 
| हाथरस किला  | 
 
 
गाँव में मेला हो तो उसकी रौनक़ अलग ही होती है।
ReplyDelete