UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
श्री शैलम - मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
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हम तिरुपति से रात को दस बजे बस से निकले थे, पूरे दिन की थकान होने की वजह से बस में नींद अच्छी आई। बस भी सुपर लक्सरी थी इसलिए कम्फर्ट भी काफी रहा, बस पैर लम्बे नहीं हो पाए थे। पूरी रात आंध्र प्रदेश में चलते हुए सुबह हमारी बस एक होटल पर चाय पानी के लिए रुकी। यहाँ से कुछ दूरी पर ही श्रीशैलम के लिए रास्ता अलग होता है। डारनोटा से एक रास्ता श्रीशैलम के लिए जाता है और यहीं से घाट भी शुरू हो जाते हैं। ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के घुमावदार रास्तों को ही घाट कहा जाता है। यह रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है, जगह जगह वन्यजीवों के बोर्ड भी यहाँ देखने को मिलते हैं। करीब आठ नौ बजे तक हम श्रीशैलम पहुँच गए। बस ने हमें बस स्टैंड पर उतारा। यहाँ हमें आगरा के एक सज्जन भी मिले जो परिवार सहित श्रीशैलम के दर्शन करने आये हुए थे, उनके साथ मैं भी किसी होटल में रुकने का इंतज़ाम देखने निकल पड़ा।
यहाँ कोई कमरा खाली नहीं था, इसलिए मैंने नीलकंठ डोरमेट्री में ही रुकने का विचार बनाया। परन्तु वो सज्जन डोरमेट्री में नहीं रुके और किसी महंगे होटल में उन्होंने अपना इंतज़ाम देखा। मैं जानता था कि यहाँ पास में ही कहीं कृष्णा नदी भी है जहाँ नहाने का इंतज़ाम हो सकता है। मैंने जानकारी की तो पता चला कि उसे यहाँ पातालगंगा कहते हैं। डोरमेट्री से थोड़ा ही आगे है, इसलिए मैं, माँ को लेकर कृष्णा की तरफ निकल पड़ा। जब यहाँ पहुंचा तो वास्तव में जाना कि यह पातालगंगा ही है, मतलब हम इसवक्त बहुत ऊँचे पहाड़ पर थे और नदी यहाँ से काफी नीचे थी जहाँ तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हुई थी। नदी तक उतरना तो आसान था परन्तु वहां से ऊपर आना काफी कठिन बात थी। मैं, माँ को यहां एक चाय वाले की दुकान पर बैठा गया और अकेला ही नदी की तरफ चल पड़ा।
कथा - श्रीशैलम का यह मंदिर क्रौंच पर्वत पर स्थित है जो कि कृष्णा नदी के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि भगवान शिव के दोनों पुत्र कार्तिकेय और गणेश जी में आपस में बहस हुई कि दोनों में सबसे पहले विवाह किसका होगा। तो इसका जवाब देने के लिए माता पार्वती और भगवान शिव ने दोनों से कहा कि जो सम्पूर्ण धरती का चक्कर सबसे पहले लगाएगा उसी का विवाह पहले होगा। यह सुनकर स्वामी कार्तिकेय जी अपने वाहन मयूर पर समस्त पृथ्वी की परिक्रमा लगाने के लिए निकल पड़े। गणेश जी के लिए यह कार्य कठिन था क्योंकि इनकी सवारी मूषक थी तो अपनी गणेश जी ने चतुराई से काम लेते हुए अपने मातापिता की ही सात परिक्रमा की। भगवान शिव ने गणेश जी की चतुराई से प्रसन्न होकर गणेश जी का विवाह सिद्धि और बुद्धि के साथ कर दिया। जब तक कार्तिकेय जी सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे तो तो यह सच्चाई जानकार अत्यंत क्रोधित हुए, और अपने मातापिता से नाराज होकर, उनके चरण स्पर्श करके क्रौंच पर्वत पर रहने लगे। पुत्र वियोग में व्याकुल माता पार्वती उन्हें मनाने यहाँ आई और भगवन शिव भी ज्योतिर्लिंग के रूप में मल्लिकार्जुन के नाम से श्रीशैलम में विराजित हो गए।
मैं नीचे कृष्णा नदी तक पहुंचा, सामने का नज़ारा काफी अद्भुत था, काफी लोग यहाँ स्नान कर रहे थे। स्नान कर मैं भी यहाँ से वापस चलने लगा, तभी मेरी नजर रोपवे की तरफ गई, परन्तु यहाँ लगी लम्बी लाइन को देखकर मैंने पैदल ही पर्वत पर चढ़ने में अपनी भलाई समझी। मैं इसवक्त क्रौंच पर्वत पर चढ़ रहा था, और माँ के पास पहुँचने तक काफी थक चुका था। मैंने और माँ ने यहाँ एक डोसा खाया जो बिना सांभर के था। डोसा खाकर हम डोरमेट्री पहुंचे,थकावट के कारण मुझे नींद आ गई और मैं सो गया। जब आँख खुली तो घड़ी शाम के पाँच बजा चुकी थी। मैं और माँ जल्दी से मंदिर की तरफ रवाना हुए और मल्लिकार्जुन जी के दर्शन किये। यह मेरे और माँ के लिए दसवाँ ज्योतिर्लिंग था, अब केवल दो ज्योतिर्लिंग ही दर्शन करने के लिए बचे हैं श्री केदारनाथ जी और बैजनाथ जी।
मंदिर काफी अच्छा बना हुआ है, दक्षिण भारतीय संस्कृति और कला यहाँ हरतरफ देखने को मिलती है। तिरुपति की तरह ही इस मंदिर के चारों तरफ ऊँचे ऊँचे गोपुरम बने हुए हैं और बीच में भगवान शिव मल्लिकार्जुन के रूप साक्षात विराजमान हैं। दर्शन करने के बाद कुछ देर हम मंदिर में रुके, वातावरण काफी भक्तिमय था और अच्छा लग रहा था। मंदिर से बाहर निकलते ही एक गार्ड ने हमें खाने का फ्री कूपन दिया। हम खाने के लिए पास में बने हुए एक हाल में पहुंचे यहाँ भी वही तिरुपति की तरह खिचड़ी खाने को मिली। भगवान् का शिव का यह प्रसाद ग्रहण करके हम वापस बस स्टैंड पहुंचे, यहाँ पता चला कि अब कोई बस यहाँ से कहीं भी जाने के लिए नहीं थी। पहली बस सुबह चार बजे थी और आखिरी बस आठ बजे जा चुकी थी। हम डोरमेट्री भी छोड़ चुके थे इसलिए यहीं रुकना उचित समझा।
यहाँ सबकुछ अच्छा था बस एक कमी थी कि जिओ के नेटवर्क नहीं थे इसवजह से मैं अपना आगे का रास्ता प्लान नहीं कर पाया और यही मेरी इस यात्रा की सबसे बड़ी गलती साबित हुई। मैंने हैदराबाद की जगह मार्कापुर की बस की टिकट बुक कर ली जो यहाँ का नजदीकी रेलवे स्टेशन था।
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श्रीशैलम की ओर |
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श्रीशैलम द्धार |
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श्रीशैलम |
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पातालगंगा - कृष्णा नदी |
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कृष्णा नदी |
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कृष्णा नदी |
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कृष्णा नदी में स्नान |
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कृष्णा नदी और सुधीर उपाध्याय |
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श्री शैलम यात्रा |
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मैं और रिवर कृष्णा |
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KRISHNA RIVER |
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KRISHNA RIVER |
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KRISHNA RIVER |
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ANDHRA PRADESH NEAR KRISHNA RIVER |
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WAY TO PATALGANGA AS KRISHNA RIVER |
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SHRI SHAILAM |
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MY MOTHER SIT AT A HOTEL IN SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM - MALLIKARJUN TEMPLE |
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ME, MY MOTHER IN SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SRISHAILAM |
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SRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM |
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SHRI SHAILAM BUS STAND |
यात्रा के अगले भाग:-THANKS YOUR VISIT
🙏
जय भोलेनाथ, देवघर बचा है अपना भी
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