Wednesday, April 12, 2017

DWARIKA TRIP 2017 : MATHURA TO DWARIKA


UPADHYAY TRIPS PRESENT'S

द्धारिका यात्रा 

पहला पड़ाव - जयपुर 




     चार धामों में से एक और सप्तपुरियों में से भी एक भगवान श्री कृष्ण की पावन नगरी द्धारिका की यह मेरी पहली यात्रा थी जिसमे मेरे साथ मेरी माँ, मेरी छोटी बहिन निधि, मेरी बुआजी बीना और मेरे पड़ोस में रहने वाले भाईसाहब और उनकी फेमिली थी।  मैंने जयपुर - ओखा साप्ताहिक एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवाया था इसलिए हमें यह यात्रा जयपुर से शुरू करनी थी और उसके लिए जरूरी था जयपुर तक पहुँचना।


मुड़ेसी रामपुर से भरतपुर जंक्शन पैसेंजर यात्रा 

     हमारे पड़ोस में रहने वाले एक भाईसाहब अपनी जायलो से हमें मुड़ेसी रामपुर स्टेशन तक छोड़ गए यहाँ से हमें मथुरा - बयाना पैसेंजर मिली जिससे हम भरतपुर उतर गए। भरतपुर से जयपुर तक हमारा रिजर्वेशन मरुधर एक्सप्रेस में था जो आज 2 घंटे की देरी से चल रही थी ,चूँकि पिछली पोस्ट में भी मैंने बताया था कि भरतपुर एक साफ़ सुथरा और प्राकृतिक वातावरण से भरपूर स्टेशन है।  यहाँ का केवलादेव पक्षी विहार पर्यटन क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है जहाँ आपको दूर देशों के पक्षी भी विचरण करते हुए देखने को मिलते हैं,|इसी की एक झलक भरतपुर स्टेशन की दीवारों पर चित्रकारी के माध्यम से हमें देखने को मिलती है।


भरतपुर से जयपुर मरुधर एक्सप्रेस यात्रा 

     दो घंटे की देरी के पश्चात जब ट्रेन आई तो उसमे हमने अपनी सीट खोजी और जयपुर की तरफ कूच कर दिया। करीब ढाई बजे ट्रेन ने हमें जयपुर उतार दिया, यहाँ प्लेटफार्म दो पर इलाहाबाद जयपुर एक्सप्रेस भी खड़ी हुई थी जो करीब एक घंटे बाद मथुरा की तरफ रवाना होगी। यूँ तो जयपुर राजस्थान की राजधानी है पर यहाँ प्लेटफॉर्म काफी छोटे बने है, इसका एक मुख्य काऱण है कि कुछ साल पहले तक यहाँ ब्रॉडगेज नहीं थी, यह मीटरगेज का मुख्य जंक्शन था और राजस्थान के चारों दिशाओं में जाने के लिए यहाँ से मीटरगेज की ट्रेन ही हमें मिलती थी। परन्तु वक़्त के साथ देश का विकास हुआ तो रेलवे का भी विकास हुआ और जयपुर को मीटरगेज से ब्रॉडगेज का मुख्य स्टेशन से बना दिया गया। रेलवे लाइन तो बड़ी हो गई परन्तु जगह के भाव के कारण प्लेटफॉर्म छोटे ही रह गए।

जयपुर मेट्रो में एक सैर

    अभी ओखा जाने वाली ट्रेन ओखा से आई ही नहीं थी, इसका जयपुर से छूटने का समय शाम को 4:40 बजे था, इसलिए अभी हमारे पास जयपुर में घूमने के लिए काफी पर्याप्त समय था। मम्मी को वेटिंग रूम के पास बिठाकर मैं, निधि, बुआजी और पड़ोस वाली भाभी जी जयपुर घूमने निकल गए। जयपुर स्टेशन के बाहर ही जयपुर मेट्रो का स्टेशन बना है, परन्तु हम चांदपोल तक बैटरी वाला रिक्शा करके ले गए और पिंक सिटी जयपुर से थोड़ी बहुत खरीददारी करके वापस चांदपोल मेट्रो स्टेशन आ गए, मुझे छोड़कर बाकी तीनो पहली बार मेट्रो में बैठी थी, मेट्रो में पहली बार बैठने की ख़ुशी इनके चेहरे पर अलग ही दिखाई दे रही थी।
     
जयपुर से ओखा एक्सप्रेस यात्रा 

     रेलवे स्टेशन आकर देखा तो हमारी ट्रेन कबकी आ चुकी थी,  मैं माँ को लेकर प्लेटफॉर्म पांच पर पहुंचा जहाँ हमारी ट्रेन खड़ी हुई थी और अपनी सीट देखी। यहाँ पुल चढ़ने और उतरने में माँ को काफी असुविधा हुई और न चाहते हुए भी उन्होंने मुझसे वो शब्द कह दिए जो मैं नहीं सुनना चाहता था उन्होंने कहा कि अब कहीं नहीं जाना मुझे मेरी बस आखिरी यात्रा है। क्योकि अपने शरीर की वजह से वो काफी परेशान थीं और सूजन की वजह से अब उन्हें चलने में काफी दिक्कत महसूस हो रही थी। मेरी माँ शुरू से ही मेरे लिए एक अच्छी सहयात्री रही हैं उन्हीं  घूमने का शौक लगा था आज जब वो ऐसे शब्द बोले तो मन उदास हो ही जाता है।

ट्रेन जयपुर से प्रस्थान कर चुकी थी, आज हम एक नए रूट पर यात्रा कर रहे थे। दिल में यात्रा की एक अलग ही ख़ुशी हमें हो रही थी, यह मेरी और मेरे सभी सहयात्रियों की पहली गुजरात यात्रा थी। जयपुर के बाद अजमेर, ब्यावर, आबू रोड होते हुए ट्रैन कब गुजरात में प्रवेश कर गई पता ही नहीं चला क्योंकि रात हो चुकी थी। सुबह जब आँख खुली तो पता चला ट्रैन किसी स्टेशन पर खड़ी हुई थी, मैंने ट्रेन से नीचे उतरकर देखा तो यह कणकोट स्टेशन था स्टेशन के बोर्ड पर अब गुजराती भाषा भी लिखी आ रही थी।

कुछ देर बाद हम राजकोट पहुंचे, यहाँ मीटरगेज के कुछ अवशेष अब भी शेष थे। सुबह के नाश्ते का समय हो चूका था, राजकोट पर ट्रैन का ठहराव 15 मिनट का था इसलिए मैं स्टेशन के बाहर आकर गुजरती नाश्ता ले आया जिसमे ढोकला और नमकीन एवं पीले रंग वाली जलेबी थी। ऐसी जलेबी मैंने यहीं देखी थी हमारे यहाँ तो जलेबी लाल रंग में होती है। राजकोट के बाहर अपनी सेवा समाप्त कर चूका मीटर गेज का एक स्टीम इंजन भी खडा हुआ था जिसका नाम था सौराष्ट्र क्वीन।

राजकोट के बाद ट्रैन हापा और जामनगर होती हुई द्वारिका की तरफ बढ़ रही थी। रास्ते में हमें एक स्टेशन एक और देखने को मिला जिसका नाम था भाटिया।  भाटिया तो मेरे दोस्त का भी नाम है आज हमें उसके नाम का स्टेशन भी मिल गया था। यह समुद्री किनारा था, यहाँ अधिक मात्रा में पवन चक्की लगी हुईं थीं। कुछ समय बाद द्वारिका रेलवे स्टेशन भी आया। यहाँ ट्रेन लगभग पूरी ही खाली हो चुकी थी परन्तु हमें तो पहले भेंट द्वारिका जाना था जिसके लिए हमें ओखा उतरना था जो इस ट्रैन का ही नहीं गुजरात का भी आखिरी स्टेशन था।   

मुड़ेसी रामपुर स्टेशन पर पैसेंजर की प्रतीक्षा में 








BHARATPUR RAILWAY STATION



भरतपुर पर माँ विश्राम करती हुई 

एक सहयात्री प्रसन्न मुद्रा में 

चाँद पोल 

जयपुर मेट्रो क्र कुछ यात्री 

जयपुर मेट्रो में बैठने की एक ख़ुशी 

जयपुर के मेट्रो स्टेशन पर 

KANKOT RAILWAY STATION

ट्रेन में मेरी माँ और बुआजी 

जयपुर ओखा एक्सप्रेस 

KANKOT RAILWAY STATION 

BILESHWAR RAILWAY STATION

राजकोट स्टेशन के बाहर खड़ा सौराष्ट्र क्वीन 

राजकोट रेलवे स्टेशन और मैं 

HAPA RAILWAY STATION

HAPA

HAPA

HAPA RAILWAY STATION

HAPA

HAPA RAILWAY STATION

JAMNAGAR RAILWAY STATION

JAMNAGAR RAILWAY STATION

जामनगर रेलवे स्टेशन 

जामनगर के पास एक फैक्ट्री 

जामनगर 

BHATIYA RAILWAY STATION

BHATIYA RAILWAY STATION

भाटिया रेलवे स्टेशन 

गुजरात में पवन चक्की 


सबसे छोटा सहयात्री 

द्वारिका रेलवे स्टेशन 

ट्रेन  में बुआ जी 

BHIMRANA RAILWAY STATION

भीमराणा रेलवे स्टेशन 

भीमराणा रेलवे स्टेशन 

आखिरी स्टॉप - ओखा रेलवे स्टेशन 

OKHA RAILWAY STATION



द्वारिका यात्रा के अन्य भाग के लिंक नीचे दिए हैं 👇
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