इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
शाम को पांच बजे तक सिंधी कैंप बस स्टैंड आ गया यहाँ से गोपाल ने एक डीलक्स बस में मेरी टिकट ऑनलाइन करवा दी थी जिसके चलने का समय शाम सात बजे का था, काफी पैदल चलने की वजह से मैं काफी थक चुका था इसलिए बस में जाकर अपनी सीट देखी, यह स्लीपर कोच बस थी मेरी ऊपर वाली सीट थी उसी पर जाकर लेट गया। ट्रेन की अपेक्षा बस मे ऊपर वाली सीट मुझे ज्यादा पसंद है क्यूंकि बस की ऊपर वाली सीट में खिड़की होती है।
मैंने गोपाल को फोनकर बस के जोधपुर पहुंचने का टाइम पुछा उसने बताया रात को 2 बजे। उसी हिसाब से अलार्म लगाकर मैं सो गया और फिर ऐसी नींद आयी की सीधे बाड़मेर से सत्तर किमी आगे डोरीमन्ना में जाकर खुली, जोधपुर और बाड़मेर कबके निकल चुके थे मैंने बस वाले से पुछा भाई हम कहाँ हैं मुझे तो जोधपुर उतरना था तुमने जगाया क्यों नहीं। वह मेरी तरफ ऐसा देख रहा था जैसे मैंने को महान काम कर दिया हो, उसने मुझसे कहा की आधा घंटा और सोते रहते तो पाकिस्तान पहुँच जाते।
अच्छा हुआ मैं उस वक़्त तक जाग गया जब तक बस ने राष्ट्रीय राजमार्ग - 68 नहीं छोड़ा, यहाँ से पाकिस्तान का बॉर्डर आठ दस किमी ही है। मुझे इस हाईवे से बाड़मेर जाने के लिए आसानी से बस मिल जायेगी, मैंने गोपाल को फोन करने के लिए फोन निकला तो देखा यह डिस्चार्ज हो चुका था, मैंने सामने देखा एक सरकारी ऑफिस थी उसी के बरामदे में एक बोर्ड में मैंने मोबाइल चार्जर में लगा दिया। यह एक रेतीली भूमि है परन्तु यहाँ काली पहाड़ियां देखकर लगता था कि ये रेगिस्तान की अभी शुरुआत ही थी, बाड़मेर की तरफ जाती हुई एक डीलक्स में मैंने फिर से अपने मोबाइल को उनके म्यूजिक सिस्टम के यूएसबी पोर्ट में चार्ज होने के लिए लगा दिया। यह बस पूना से आ रही है बाड़मेर इसका आखिरी स्टॉप है। कल इसी वक़्त यह पूना से चली थी |
करीब एक- डेढ़ घंटे में बस ने मुझे बाड़मेर पहुंचा दिया और इसके बाद बस स्टैंड जाने के लिए एक ऑटो मिल गया रास्ते में रेलवे स्टेशन भी मिला परन्तु जोधपुर के लिए यहाँ से अभी कोई ट्रेन नहीं थी दोपहर को थी 1 बजे। यह जोधपुर - बाड़मेर पैसेंजर थी जो शाम को सात बजे जोधपुर पहुंचती है पिछली बार जब मैं बाड़मेर आया था तब इसी पैसेंजर से मैं जोधपुर पहुंचा था पर इस बार नहीं। सही दस बजे एक राजस्थान रोडवेज बस जोधपुर जाने के लिए तैयार खड़ी थी, इसी बस से मैं जोधपुर तक आ गया।
दोपहर 1 बजे मैं जोधपुर में था, मैंने गोपाल को फोन किया तो वो मुझे लेने आ गया, और सीधे मैं उसके फ्लैट पर पहुंचा, यहाँ उसका एक भाई और उसकी पत्नी थे। सबसे पहले मैं नहाधोकर रेडी हुआ तो उसकी पत्नी खाना ले आई, खाना खाकर मैं और गोपाल मेहरानगढ़ किले की तरफ बाइक से निकल पड़े | राजस्थान के किलों की एक अलग ही खाशियत होती है, किले के दो प्रवेश द्वार चाँद पोल और सूरज पोल के नाम से जाने जाते हैं |
यदि प्रवेश द्धार पूर्व दिशा में है तो वो सूरज पोल और पश्चिम दिशा में है तो वो चाँद पोल होगा |
राव जोधा जी द्वारा निर्मित मेहरानगढ़ किला जमीन से काफी ऊंचाई पर बना है उसकी जमीन से तकरीबन ऊंचाई १२५ मीटर है और यह एक पथरीली चट्टान पर स्थित है। यहाँ सीधे ऊपर जाने के लिए लिफ्ट की सुविधा भी उपलब्ध है। किला काफी बड़ा और विशालकाय है, राजा महाराजों के वस्त्र, अस्त्र और उनके बैठने और प्रयोग में लाये जाने वाली सभी चीज़ें आज भी सुरक्षित हैं।
|
बाड़मेर से जोधपुर |
|
मैं और मेहरानगढ़ किला |
|
मैं और गोपाल |
|
किले से जोधपुर शहर का नज़ारा, सामने दूर दिखाई देता उम्मेद प्लेस |
|
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर |
|
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर |
|
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर |
|
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर |
|
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर |
|
पालकी |
|
मेहरानगढ़ और सुधीर उपाध्याय |
|
गजेंद्र उपाध्याय |
|
गणगौर देवी |
|
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर |
|
किले के अंदर मारवाड़ी शासकों का एक मंदिर |
|
मेहरानगढ़ किला, जोधपुर |
|
गजेंद्र उपाध्याय |
No comments:
Post a Comment
Please comment in box your suggestions. Its very Important for us.