UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
ख्वाज़ा गरीब नवाज के दर पर
मैं ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह पर हाजिरी देने अजमेर जाता हूँ, इन्हें अजमेर शरीफ़ भी कहा जाता है। इस साल मेरे साथ मेरी पत्नी कल्पना और मेरा मौसेरा भाई दिलीप भी था। मैंने अपनी शादी से पहले ही सियालदाह-अजमेर एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करवा रखा था, इस ट्रेन का समय आगरा फोर्ट पर रात को आठ बजे है किन्तु आज यह ट्रेन रात की बजाय सुबह चार बजे आगरा फोर्ट पहुंची। आज हमारी पूरी रात इस ट्रेन के इंतजार में खराब हो गयी, खैर जैसी ख्वाजा जी की मर्जी। मैं आज पहली बार अपनी पत्नी की साथ यात्रा कर रहा था, एक अजीब सी ख़ुशी मेरे दिल में थी, मैं अपनी शादी के बाद अपनी पत्नी को भी सबसे पहले ख्वाजा जी के दर पर ले जाना चाहता था और आज मेरा यह सपना पूरा होने जा रहा था ।
एक्सप्रेस जयपुर पहुंचकर तक़रीबन खाली हो चुकी थी, यहाँ से करीब एक घंटे बाद हम अजमेर पहुँच गए। सबसे पहले मैंने क्लॉक रूम पर अपना सामान जमा कराया और सामान से मुक्त होकर हम अजमेर नगर घूमने के लिए चल दिए, यूँ तो दरगाह के लिए स्टेशन के ठीक सामने से ही रास्ता जाता है, पर मेरा मन अभी दरगाह जाने के लिए नहीं था। हम पैदल पैदल ही अजमेर में स्थित अकबर के किले में पहुंचे, यहाँ सिवाय सन्नाटे के देखने को कुछ भी नहीं था, इस किले में आज अजमेर की कोतवाली बन गई है।
किले के बाद हम पैदल पैदल ही अनासागर झील पहुंचे, यह झील ही अजमेर की सुन्दरता का मुख्य आकर्षण है, झील के किनारे संगमरमर का आलिशान प्लेटफार्म बना हुआ है और एक काफी बड़ा बगीचा भी है जिसमे एक टॉय ट्रेन भी चलती है, यह टॉयट्रेन केवल बच्चों के मनोरंजन के लिए ही है। झील में काफी बड़ी बड़ी मछलियाँ मुझे देखने को मिलीं। इसी झील में नौका विहार की सुविधा भी उपलब्ध है, कल्पना का मन नाव में बैठने को था इसलिए मैंने एक नौका किराए पर ली और कल्पना को आनासागर झील की सैर कराई। कल्पना की ख़ुशी को देखकर मुझे काफी प्रशन्नता हो रही थी।
झील से लौटकर हम बाहर सड़क पर आये, यहाँ से पुष्कर जाने के लिए हमें एक बस मिल गई और थोड़े ही समय में हम पुष्कर पहुँच गए। पुष्कर की यात्रा को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें ।
पुष्कर से लौटते हुए हमें शाम हो गई, ट्रेन के लेट हो जाने की वजह से हमारा तारागढ़ जाने का विचार कैंसिल हो गया था जिससे दिलीप को काफी दुःख हुआ, वह पृथ्वीराज के इस किले को देखना चाहता था, यह अजमेर का मुख्य किला है जो अजमेर के बीचों बीच एक पहाड़ पर स्थित है। पुष्कर से लौटकर हम रेलवे स्टेशन पहुंचे और यहाँ के वेटिंग रूम में नहा धोकर सीधे दरगाह की ओर रवाना हो लिए ।
आज दरगाह में कोई ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी, सो ख्वाजा जी की दरगाह पर माथा टेकने का मुझे मौका मिल गया, यह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है जो 1162 ई. में मोहम्मद गौरी की सेना के साथ ईरान से भारत आये थे और अजमेर में ही बस गए थे। कुछ समय पश्चात् ख्वाजा का इंतकाल होने के बाद उन्हें यहीं दफना दिया गया। मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी ने 1464 ई. में इनकी दरगाह तथा गुम्बज बनबाये थे ।
दरगाह की प्रसिद्धी अकबर के शासनकाल में हुई, इस दरगाह में अकबर ने मस्जिद, बुलंद दरवाजा तथा महफ़िल खाने का निर्माण कराया तथा शाहजहाँ ने सफ़ेद संगमरमर से जामा मस्जिद व् रोजे के ऊपर गुम्बज बनबाये थे। प्रतिवर्ष देख - विदेश से लाखों यात्री यहाँ जिय़ारत करने आते हैं ।
दरगाह से वापस हम रेलवे स्टेशन पहुंचे और क्लॉक रूम से अपना सामान वापस लिया । यहाँ से हमारा रिजर्वेशन अनन्या एक्सप्रेस से उदयपुर सिटी के लिए था, स्टेशन पर पहुंचकर कल्पना को आइस क्रीम खाने का मन बना, मैंने लाने से मना कर दिया इसलिए वो नाराज हो गई, पर मैं उसे खुद से नाराज होते कैसे देख सकता था, मैं बिना बताये ही स्टेशन से बाहर आया और दोनों के लिए चार आइस क्रीम ले आया। ट्रेन भी आ चुकी थी, मेरी नीचे की साइड वाली सीट थी, वैसे ट्रेन पूरी खाली ही पड़ी थी। काफी दूर तक कल्पना मेरे पैर दबाती रही और उसके बाद वह अपनी सीट पर जाकर सो गई।
कल्पना उपाध्याय
अकबर का अजमेर स्थित किला |
दिलीप उपाध्याय |
मैं और दिलीप |
मैं और मेरी पत्नी कल्पना |
अनासागर में नौकाविहार कल्पना के साथ |
ख्वाज़ा ग़रीब नवाज की दरगाह |
यात्रा अभी जारी है, अगला पड़ाव - उदयपुर सिटी
मेवाड़ यात्रा के अगले भाग:-
मेवाड़ यात्रा के अगले भाग:-
- झीलों की नगरी - उदयपुर
- राजसमन्द और कांकरोली शहर
- ऐतिहासिक रणभूमि - हल्दीघाटी
- कुम्भलगढ़ और परशुराम महादेव
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