UPADHYAY TRIPS PRESENT'S
बैजनाथ मंदिर और नगरकोट धाम वर्ष 2010
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सुबह एक बार फिर चामुंडा माता के दर्शन करने के पश्चात् मैं, माँ और निधि चामुंडा मार्ग रेलवे स्टेशन की तरफ रवाना हो गए। सुबह सवा आठ बजे एक ट्रेन चामुंडा मार्ग स्टेशन से बैजनाथ पपरोला के लिए जाती है जहाँ बैजनाथ जी का विशाल मंदिर स्थित है। इस मंदिर के बारे कहाँ जाता है कि यहाँ स्थित शिवलिंग लंका नरेश रावण के द्वारा स्थापित है, रावण के हठ के कारण जब महादेव ना चाहते हुए भी उसकी भक्ति के आगे विवश हो गये तब उन्होंने रावण से उसका मनचाहा वर मांगने को कहा तब रावण के शिवजी को कैलाश छोड़कर लंका में निवास करने के लिए अपना वरदान माँगा।
शिवजी ने एक शिवलिंग के रूप में परवर्तित होकर रावण के साथ लंका में रहने का वरदान तो दे दिया किन्तु साथ ही उससे यह भी कह दिया कि इस शिवलिंग को जहाँ भी धरती पर रख दोगे यह वहीँ स्थित हो जायेगा। रास्ते में रावण को लघुशंका लगी जिसकारण वह इसे एक गड़रिये के बच्चे में थमाकर लघुशंका के लिए चला गया। वह बच्चा इस भरी शिवलिंग को ना थम सका और उसने इसे धरती पर रख दिया। वापस आकर रावण ने इस शिवलिंग को उठाने की बहुत कोशिश की किन्तु वह असफल रहा और आज भी यह शिवलिंग बैजनाथ के नाम से पपरोला में स्थित है।
सुबह दस बजे हम बैजनाथ पपरोला पहुँच गए और शिवजी के दर्शन करने के पश्चात फिर से रेलवे स्टेशन वापस आ गए। बारह बजे हमारी ट्रेन काँगड़ा के लिए रवाना हो गई। हिमालय की खूबसूरत वादियों को ट्रेन से देखते हुए बार बार यही एहसास होता था कि हम यहीं क्यों नहीं रहते। बार बार दिल यहीं बस जाने को कह रहा था। साढ़े तीन बजे तक हम काँगड़ा मंदिर स्टेशन पहुँच गए। काँगड़ा वाली देवी माता के मंदिर के लिए यहीं से रास्ता गया है। स्टेशन से बाहर आकर एक नदी पड़ती है जिस पर अंग्रेजों के ज़माने के तार वाला पुल बना हुआ है। यह बाणगंगा नदी कहलाती है।
इसे पार करके हमने एक ऑटो किया और काँगड़ा मंदिर के प्रवेश द्धार तक पहुंचे। मंदिर के ठीक सामने एक सरकारी सराय है यात्री सदन के नाम से। हमने इस सराय में एक कमरा बुक किया और नहाधोकर शाम को अपनी कुलदेवी माता श्री बज्रेश्वरी देवी जी के दर्शन किये। माना जाता है यह देवी माता सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश की कुलदेवी कहलाती हैं भक्त यहाँ ऐसे खिंचे चले आते हैं जैसे चुम्बक से लोहा खिंचा चला आता है। यहाँ आकर मन को एक अद्भुत शांति का अनुभव होता है, मंदिर प्रांगण में बैठकर ऐसा लगता ही नहीं है कि हम अपने घर से दूर हैं। माँ का आँगन किसी घर से काम नहीं लगता। शाम हुई तो कहने का वक़्त हो चला। रात नौ बजे से मंदिर प्रांगण में ही बने लंगर भवन में समस्त भक्तों को निशुल्क भोजन दिया जाता है जिसमे दाल चावल प्रमुख होते हैं।
खाना खाकर और देवी माता को प्रणाम करके हम वापस अपने कमरे पर आ गए। सुबह उठकर हमने फिर से एक बार माता के दर्शन किये और हम अपने अगले गंतव्य ज्वालाजी मंदिर की तरफ रवाना हो गए। बाहर से बसें निरंतर ज्वालाजी के लिए जाती रहती हैं ऐसी ही एक बस द्वारा हम ज्वाला जी पहुँच गए और माँ ज्वालादेवी जी के भी साक्षात् दर्शन किये। यहाँ पहाड़ की तलहटी में निरंतर ज्वालादेवी जी की ज्योति निरंतर निकलती रहती है। कहा जाता है यह ज्योति हजारों वर्षों से निरंतर यूँही निकलती रहती है किन्तु कोई भी यह प्रमाण नहीं कर सका की यह किस वजह से है इसीलिए इस पर्वत को ज्वालामुखी पर्वत भी कहते हैं। दूसरे दिन माता के दर्शन करके हम अपने घर की तरफ रवाना हो गए।
ज्वालाजी के पास कुछ दूर रानीताल नामक एक स्थान है जहाँ ज्वालामुखी रोड नामक रेलवे स्टेशन है। शाम को एक ट्रैन यहाँ से पठानकोट के लिए जाती है। इसी ट्रैन से हम भी पठानकोट पहुंचे और यहाँ से ऑटो द्वारा चक्की बैंक स्टेशन। चक्कीबैंक से रात को हिमसागर एक्सप्रेस में हमें आसानी से सीट मिल गई और हम अपने शहर आगरा वापस आ गए।
- जय माता दी
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पालमपुर हिमाचल रेलवे स्टेशन |
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बैजनाथ पपरोला की तरफ |
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पपरोला रेलवे स्टेशन |
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बैजनाथ जी मंदिर |
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बैजनाथ हिमाचल |
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बैजनाथ मंदिर, पुरातत्व विभाग के अधीन है। |
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बहार से पपरोला स्टेशन |
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पपरोला रेलवे प्रांगण |
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एक शानदार नजारा |
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बैजनाथ पपरोला |
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बैजनाथ से चलने को तैयार |
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परोर रेलवे स्टेशन |
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बाणगंगा नदी में मेरी माँ |
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मेरी बहिन भी |
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बाणगंगा नदी |
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बाणगंगा नदी में मैं भी |
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जय माता दी |
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पानी बहुत ही ठंडा है |
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नदी पार करते हुए मैं |
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अंग्रेजों द्वारा बना पुल |
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यात्री सदन की रशीद |
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नगरकोट मंदिर में मेरी माँ
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नगरकोट नादिर में निधि |
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KANGRA BHAIRAV |
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KANGRA TEMPLE |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
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JWALAMUKHI RAILWAY STATION |
धन्यवाद
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