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काँगड़ा घाटी में रेल यात्रा - 2010
मैंने दिल्ली से पठानकोट के लिए 4035 धौलाधार एक्सप्रेस में रिजर्वेशन करा रखा था। तारीख आने पर हम आगरा से दिल्ली की ओर रवाना हुए। मेरे साथ मेरी माँ और मेरी छोटी बहिन थी। हम थिरुकुरल एक्सप्रेस से
निजामुद्दीन स्टेशन पहुंचे और एक लोकल शटल पकड़ कर सीधे नई दिल्ली। नईदिल्ली से हम मेट्रो पकड़ सीधे चांदनी चौक पहुंचे और वहां जाकर गोलगप्पे खाए । सुना चाँदनी चौक के गोलगप्पे काफी मशहूर हैं। चाँदनी चौक के पास ही पुरानी दिल्ली स्टेशन है जहाँ से हमें पठानकोट की ट्रेन पकडनी थी। हम स्टेशन पर पहुंचे तो ट्रेन तैयार खड़ी थी हमने अपना सीट देखी। मेरी बीच वाली सीट थी। उसे ऊपर उठा अपना बिस्तर लगा कर मैं तो सो गया और ट्रेन चलती रही।
सुबह जब आँख खुली तो ट्रेन मुकेरियां स्टेशन पर खड़ी थी। मैं जब तक स्टेशन पर उतरता तब तक ट्रेन ने सीटी दे दी। एक घंटा चलने के बाद ट्रेन पठानकोट पहुँच गई। पठानकोट उत्तर रेलवे का अंतिम एवं जंक्शन स्टेशन है जहाँ से अमृतसर, जालंधर, जम्मू और जोगिन्दर नगर के लिए अलग अलग रेलमार्ग हैं। यह ब्रॉड गेज का आखिरी स्टेशन है और इससे आगे नेरो गेज की लाइन है जो काँगड़ा, बैजनाथ होते हुए जोगिन्दर नगर तक जाती है। इस रेल मार्ग का नाम काँगड़ा घाटी रेलवे है। पहले पठानकोट पर सभी गाड़ियाँ आती थी किन्तु अब जम्मू जाने वाली गाड़ियाँ चक्की बैंक से ही मुड़ जाती हैं और यहाँ रह जाती हैं कुछ गिनी चुनी ट्रेन। पठानकोट स्टेशन, ब्रॉडगेज के लिए कम नेरो गेज के लिए ज्यादा जाना जाता है ।
मैं बहुत साल पहले अपने माता पिता और मामा के साथ यहाँ आया था, तब हमने रात को दो बजे वाली ट्रेन यहाँ से पकड़ी थी। आज मैं, माँ और मेरी बहिन निधि थे, नेरो गेज की ये छोटी सी ट्रेन अब प्लेटफॉर्म पर लग चुकी थी और सही बजे यहाँ से रवाना हो जाएगी। नेरो गेज के पठानकोट स्टेशन पर एकमात्र दुकान है जहाँ छोले भठूरे बहुत मस्त मिलते हैं। यह भटूरा बहुत ही मोटा और स्वादिष्ट होता है। एक प्लेट की कीमत 20 रूपये है जिसमें ही आपका पेट आसानी से भर जाता है। इस यात्रा का यह खास मौका है कि आप अगर यहाँ से छोले भठूरे खाये बिना आगे गए तो यात्रा अधूरी मानिये।
ट्रेन के सामने लगा सिग्नल डाउन हो गया था और ट्रेन जोरदार सीटी देकर झटके के साथ आगे बढ़ चली। पठानकोट से निकलने के बाद ट्रेन हिमाचल प्रदेश में प्रवेश कर जाती है और धीरे धीरे पहाड़ों पर चढ़ती हुई जाती है। डलहौजी रोड, नूरपुर रोड, जवां वाला शहर, हरसर देहरी आदि हिमाचली स्टेशन निकलने के बाद भरी दोपहरी में ट्रेन गुलेर स्टेशन पहुँचती है और काँगड़ा की तरफ से आने वाली ट्रेन का इंतज़ार करती है क्योंकि यहाँ इकहरी रेलवे लाइन है और जब तक सामने से आने वाली ट्रेन नहीं आ जाती तब तक यह आगे नहीं बढ़ती।
गुलेर स्टेशन के नजदीक एक समोसे की दुकान है, यह समोसे खाने में बेहद स्वादिष्ट होते हैं। दोपहर का समय भी हो जाता है इसलिए भूख भी लग आती है इसलिए ट्रेन की अधिकतर सवारियां समोसे से ही अपना पेट भर लेती हैं। गुलेर के समोसे एक बार खाने के बाद हमेशा के लिए अपनी याद छोड़ जाते हैं। गुलेर के बाद मुख्य स्टेशन ज्वालामुखी रोड है। यहाँ से ज्वालादेवी के दर्शन हेतु जाया जा सकता है। इस रेलवे मार्ग का यह सबसे मध्यम केंद्र है। यहाँ रेलवे लाइन अर्धवृत्ताकार रूप से होकर गुजरती है। प्राकृतिक दृष्टि से यह रेलवे स्टेशन बहुत ही शानदार है।
ज्वालामुखी रेलवे स्टेशन के बाद अगला मुख्य स्टेशन काँगड़ा है। काँगड़ा, हिमाचल का मुख्य जिला और शहर है। यहाँ की वादियाँ, काँगड़ा घाटी के नाम से जानी जाती हैं। यह रेलवे लाइन पठानकोट से शुरू होकर बैजनाथ और जोगिंदर नगर तक सीमित है जो सम्पूर्ण काँगड़ा घाटी में स्थित है इसलिए इसे काँगड़ा घाटी रेलवे भी कहा जाता है। काँगड़ा, प्राचीनकाल में नगरकोट के नाम से विख्यात है। माँ बज्रेश्वरी देवी की मुख्य शक्तिपीठ यहाँ स्थापित है जिनके दर्शनों हेतु लाखों भक्त हर साल यहाँ आते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक प्रेमी और पर्वतीय यात्री भी यहाँ आकर यहाँ के धर्मशाला और मैक्लोडगंज जैसी जगहों से यहाँ स्थित धौलाधार की श्रेणी का आनंद प्राप्त करते हैं।
इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए भी कांगडा एक मुख्य स्थान है, काँगड़ा का प्राचीन दुर्ग, काँगड़ा रेलवे स्टेशन से ही दिखाई देता है। महमूद गजनवी से लेकर मुहम्मद बिन तुगलक और मुग़ल शासक जहांगीर जैसे मुस्लिम आक्रंताओ ने यहाँ आक्रमण किये और नगरकोट मंदिर को लूटा। यहाँ की अनेक धन सम्पदा वह अपने साथ अपने देश ले गए। लेकिन फिर भी काँगड़ा का वैभव कभी कम नहीं हुआ। काँगड़ा स्टेशन से आगे काँगड़ा मंदिर नामका रेलवे स्टेशन आता है जहाँ से माता बज्रेश्वरी देवी के मंदिर जाने का मार्ग स्थित है। इसके बाद मुख्य स्टेशन नगरोटा है।
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